दिफाए पाकिस्तान कौंसिल ने रविवार को लाहौर से लांग मार्च शुरू किया है, जिसका उद्देश्य नेटो सेनाओं की रसद सप्लाई पर लगी रोक हटाने के खिलाफ नाराज़गी जताना है। इस बीच अमेरिका ने अफगानिस्तान को गैर-नेटो देशों में अपने सामरिक साझीदारों की सूची में शामिल करके आने वाले समय में इस इलाके के सत्ता संतुलन का संकेत दिया है। पाकिस्तान के सत्ता प्रतिष्ठान को समझ में आने लगा है कि यह वक्त आर्खिक सहयोग का है, टकराव का नहीं, पर वहाँ का कट्टरपंथी तबका इस बात को समझने के लिए तैयार नहीं है।
हाल में भारत आए पाकिस्तान के विदेश सचिव जलील अब्बास जीलानी और भारत के विदेश सचिव रंजन मथाई के बीच दो दिन की बातचीत के बाद हुई प्रेस कांफ्रेस में दोनों सचिवों ने मीडिया से अपील की कि वह दोनों देशों के बीच टकराव का माहौल न बनाए। इस बातचीत का मकसद दोनों देशों के बीच रिश्तों को बेहतर बनाना था, जिसमें जम्मू-कश्मीर, आतंकवाद और भरोसा बढ़ाने वाले कदम (सीबीएम) शामिल हैं। दोनों देशों के रिश्ते जिस भावनात्मक धरातल पर हैं, उसमें सबसे बड़ा सीबीएम मीडिया के हाथ में है। जब भी भारत और पाकिस्तान का मैच खेल के मैदान पर होता है मीडिया में ‘आर्च राइवल्स’, परम्परागत प्रतिद्वंदी, जानी दुश्मन जैसे शब्द हवा में तैरने लगते हैं। किसी एक की विजय पर उस देश में जिस शिद्दत के साथ समारोह मनाया जाता है तकरीबन उसी शिद्दत से हारने वाले देश में शोक मनाया जाता है। इसके विपरीत दोनों देशों के बीच की सरकारी शब्दावली पर जाएं तो उसमें काफी बदलाव आ गया है। ताजा संयुक्त वक्तव्य को पढ़ें तो यह फर्क समझ में आएगा। पर दोनों विदेश सचिवों के संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में बातें बार-बार अबू जुंदाल पर जा रहीं थीं।