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Monday, December 24, 2012

मध्य वर्ग के युवा को क्या नाराज़ होने का हक नहीं है?

हिन्दू में सुरेन्द्र का कार्टून
दिल्ली में बलात्कार के खिलाफ युवा-आक्रोश को लेकर एक अलग तरह की बहस चल निकली है। कुछ लोगों को इसमें  क्रांति की चिंगारियाँ नज़र आती हैं, वहीं कुछ लोग इसे मध्य वर्ग का आंदोलन मानकर पूरी तरह खारिज करना चाहते हैं। इन लोगों के पास जल, जंगल, जमीन और शर्मीला इरोम की एक शब्दावली है। वे इसके आगे बात नहीं करते। मध्य वर्ग कहीं बाहर से नहीं आ गया है। और जल, जंगल, जमीन पार्टी जिन लोगों के लिए लड़ रही है उन्हें भी तो इसी मध्य वर्ग में शामिल कराने की बात है। जो मध्य वर्ग दिल्ली की सड़कों पर खड़ा है, उसमें से आधे से ज्यादा की जड़ें जल,जंगल,जमीन में हैं। यह वर्ग अगर नाराज़ है तो उसके साथ न भी आएं, पर उसका मज़ाक तो न उड़ाएं। 

अरुंधती रॉय ने बलात्कार की शिकार लड़की को अमीर मध्य वर्ग की लड़की बताया है। वे किस आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुँची कहना मुश्किल है, पर यदि वे दिल्ली की सड़कों पर काम के लिए खाक छानते बच्चों को अमीर मध्य वर्ग मानती हैं तो उनकी समझ पर आश्चर्य होता है।

Wednesday, February 9, 2011

स्कूल स्तर पर यौन शिक्षा

मैने अपने ब्लॉग पर दूसरे लेखकों की रचनाएं भी आमंत्रित की हैं। मेरा उद्देश्य इस प्लेटफॉर्म के मार्फत विचार-विमर्श को बढ़ावा देना है। आज इस सीरीज़ में यह पहला आलेख है। इसे पटना के श्री गिरिजेश कुमार ने भेजा है। उनका परिचय नीचे दिया गया है। लेख के अंत में मैने दो संदर्भ सूत्र जोड़े हैं। बेहतर हो कि आप अपनी राय दें। 


बचपन को विकृत करने की साज़िश 
गिरिजेश कुमार
काले परदे के पीछे भूमंडलीकरण का निःशब्द कदम धीरे-धीरे सभ्यता का प्रकाश मलिन कर जिस अंधकारमय जगत की ओर लोगों को ले जा रहा है वह चित्र देखने लायक आँखऔर समझने लायक मन आज कितने लोगों में हैप्रेम जैसी सुन्दर अनुभूति को भुलाकरचकाचौंध रोशनी के बीच शरीर का विकृत प्रदर्शन और सेक्स के माध्यम से समाज को विषाक्त बनाने की कोशिश हो रही हैइसी परिकल्पित प्रयास का ही एक नाम है- स्कूल स्तर पर यौन शिक्षा|