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Wednesday, November 25, 2020

उत्तर प्रदेश के अध्यादेश में ‘लव जिहाद’ शब्द का उल्लेख नहीं

 


उत्तर प्रदेश सरकार की कैबिनेट ने गत मंगलवार 24 नवंबर को उस बहुप्रतीक्षित अध्यादेश को स्वीकृति दे दी, जिसमें अवैध धर्मांतरण के खिलाफ सख्त कार्रवाई की व्यवस्था है। इस अध्यादेश का उद्देश्य शादी के लिए जबरन कराए जाने वाले धर्म परिवर्तन को रोकना बताया गया है। इसका प्रचार 'लव जिहाद' के खिलाफ अध्यादेश के रूप में पहले से हो रहा है। इस कानून का उल्लंघन होने पर एक से पाँच साल तक की कैद और 15,000 रुपये के जुर्माने की व्यवस्था की गई है। यदि विवाह केवल लड़की के धर्म-परिवर्तन के लिए हुआ है, तो उस विवाह को समाप्त किया जा सकता है।

कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने बताया कि जबरन सामूहिक धर्मांतरण के मामलों में 50,000 रुपये के जुर्माने के साथ तीन से 10 साल की जेल का प्रावधान है। सामूहिक धर्मांतरण कराने वाली संस्था के खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई का प्रावधान है। इसमें उस संस्था का पंजीकरण भी शामिल है। नाबालिग लड़की या अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति की लड़की के संदर्भ में इस कानून का उल्लंघन होने पर कैद की सजा 10 साल और जुर्माना 25,000 रुपये भी हो सकता है।

श्री सिंह ने बताया कि हमारी जानकारी में जबरन धर्म परिवर्तन के करीब सौ मामले सामने आए हैं। उन्होंने यह भी बताया कि किसी भी व्यक्ति को धर्म परिवर्तन के बाद शादी के लिए दो महीने पहले जिला कलक्टर से अनुमति लेनी होगी। ऐसा नहीं करने पर 10,000 जुर्माना और छह महीने से तीन साल तक की जेल का प्रावधान है।

उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश-2020 में दो बातें स्पष्ट हैं। पहली यह कि इसमें लव जिहादशब्द का न तो उल्लेख है और न उसे परिभाषित किया गया है। दूसरे यह किसी धर्म विशेष पर केंद्रित कानून नहीं है। इसमें किसी भी धर्म में होने वाले परिवर्तन में अपनाई गई धोखाधड़ी को लेकर व्यवस्थाएं हैं। अध्यादेश में कहा गया है कि यह साबित करने की जिम्मेदारी उस व्यक्ति की होगी, जिसने धर्म परिवर्तन कराया है, कि इसके पीछे धोखाधड़ी, गलत जानकारी, दबाव या लोभ-लालच का सहारा लेते हुए किसी कानून का उल्लंघन नहीं किया गया है। अलबत्ता इसमें अंतरधर्म विवाहों को रोकने या प्रेम-विवाह को हतोत्साहित करने जैसी कोई व्यवस्था नहीं है। यों भी कानून विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसा कोई कानून कभी बना भी, तो वह अदालत में जाकर निरस्त हो जाएगा।

अब इस अध्यादेश के विधानसभा के शीतकालीन सत्र में पेश किए जाने की संभावना है। विधानसभा में इसके पास होने के बाद यह कानून बन जाएगा। इसमें कोई अड़चन नहीं आएगी। हाँ इतना स्पष्ट है कि राजनीतिक दृष्टि से उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के वैचारिक कार्यक्रमों की प्रयोग-भूमि बनेगा। उत्तर प्रदेश विधानसभा उपचुनाव के दौरान एक जनसभा में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के अनुसार केवल शादी के लिए धर्म परिवर्तन मान्य नहीं है। ऐसे में सरकार ने भी 'लव जिहाद' को सख्ती से रोकने का काम करने का निर्णय किया है।

इस साल जनवरी में उत्तर प्रदेश देश का ऐसा पहला राज्य बना था, जहां नागरिकता संशोधन बिल लागू किया गया। 10 जनवरी को सीएए लागू होते ही करीब पचास हजार हिंदू शरणार्थियों ने नागरिकता पाने के लिए आवेदन किए थे। यह संख्या आने वाले दिनों में करीब दो लाख तक पहुंच सकती है।

उत्तर प्रदेश के इस अध्यादेश की पहली अनुगूँज पश्चिम बंगाल और असम के चुनावों में सुनाई पड़ेगी। इस बीच उत्तर प्रदेश में कानपुर से एक खबर मिली है कि राज्य पुलिस की एक स्पेशल इनवेस्टिगेशन टीम ने कथित लव जिहाद के 14 मामलों की जाँच की। इनमें से 11 मामलों में कानून का आपराधिक उल्लंघन पाया गया, पर किसी विदेशी फंडिंग या साजिश के प्रमाण नहीं मिले हैं।

लव जिहाद का नाम लेकर शुरुआती शिकायतें सन 2007 में केरल से मिली थीं। शुरू में इसे 'रोमियो-जिहाद' का नाम दिया गया था। दस साल पहले इसे लेकर इतनी बातें सामने आईं थी कि अमेरिका के चेन्नई स्थित कौंसुलेट ने 2010 में एक विशेष रिपोर्ट बनाकर अपने देश में भेजी थी। इसे लेकर दक्षिण में इतनी सामाजिक तुर्शी थी कि 2009 में केरल हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को सुझाव दिया कि इसे लेकर कानून बनाया जाए। हालांकि न तो केरल में या किसी और राज्य में आजतक ऐसे प्रमाण नहीं मिले हैं कि योजनाबद्ध तरीके से किसी साज़िश को चलाया जा रहा है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

Sunday, November 22, 2020

‘लव जिहाद’ प्रेम नहीं, राजनीति

देश में भाजपा-शासित कम से कम पाँच राज्यों ने धर्मांतरण के लिए किए जा रहे अंतर-धर्म विवाहों यानी लव जिहाद पर रोक लगाने के लिए कानून बनाने की तैयारी कर ली है। उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और असम ने इसमें पहल की है और संभव है कि कुछ और राज्यों के नाम सामने आएं। इन कानूनों की परिणति क्या होगी, फिलहाल कहना मुश्किल है, पर इतना साफ लगता है कि अगले साल पश्चिम बंगाल, असम, केरल और तमिलनाडु के विधानसभा चुनाव में यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा बनेगा।

सिद्धांततः अंतर-धर्म विवाहों पर पाबंदी नहीं लगाई जा सकती है, पर यह बहस विवाह की नहीं धर्मांतरण की है। अंतर-धर्म विवाहों का यह झगड़ा आज का नहीं है। यह उन्नीसवीं सदी से चला आ रहा है। यह मामला केवल भाजपा-शासित राज्य उठा रहे हैं, दूसरी तरफ राजस्थान जैसे कांग्रेस शासित राज्यों ने इस किस्म के कानून की संभावनाओं को अनुचित ठहराया है। देखना होगा कि राजनीतिक दल जनता तक इसका संदेश किस रूप में ले जाते हैं।