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Sunday, January 9, 2022

सोशल मीडिया पर नफरत की खेती


बुल्ली बाई प्रकरण ने हमारे जीवन, समाज और संस्कृति की पोल खोली है। इस सिलसिले में अभी तक गिरफ्तार सभी लोग युवा या किशोर हैं, जिनमें एक लड़की भी है। यह बात चौंकाती है। इन युवाओं की दृष्टि और विचारों का पता बाद में लगेगा, पर इसमें दो राय नहीं कि ज़हरीली-संस्कृति को बढ़ावा देने में सोशल मीडिया की भूमिका की अनदेखी करना घातक होगा। इसके पहले जुलाई 2021 में सुल्ली डील्स नाम से गिटहब पर ऐसा ही एक कारनामा किसी ने किया था, जिसमें पकड़-धकड़ नहीं हुई। वजह यह भी थी कि गिटहब अमेरिका से संचालित होता है। अब खबर है कि सुल्ली डील्स मामले में भी एक व्यक्ति की गिरफ्तारी हुई है। गिटहब और बुल्ली बाई को सोशल मीडिया कहा भी नहीं जा सकता, पर इसके सामाजिक प्रभावों से इनकार भी नहीं किया जा सकता। इस सिलसिले में वीडियो गेम्स के पीछे छिपे सामाजिक-टकरावों का अध्ययन करने की जरूरत भी है। इन खेलों में जिसे दुश्मन बताया जाता है, वह हमारी दृष्टि पर निर्भर करता है।

उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने 3 जनवरी को केरल के एक कार्यक्रम में कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने धार्मिक विश्वासों को मानने और प्रचार करने का अधिकार है। अपने धर्म का पालन करें, लेकिन गाली न दें और अभद्र भाषा और लेखन में लिप्त न हों। उन्होंने एक सैद्धांतिक बात कही है, पर मसला धर्म के पालन का नहीं है, बल्कि एक बहुल समाज को समझ पाने की असमर्थता का है।

ज़हरीली भूमिका

विविधता हमारी पहचान है, जिसका सबसे बड़ा मूल्य सहिष्णुता है। यह बात समझने और समझाने की है, पर सोशल मीडिया ने सारी सीमाओं को तोड़ दिया है। बुल्ली मामले ने सोशल मीडिया की जहरीली भूमिका के अलावा सामाजिक रीति-नीति पर रोशनी भी डाली है। स्टैटिस्टा डॉट कॉम के अनुसार दुनियाभर में 3.6 अरब से ज्यादा लोग हर रोज औसतन 145 मिनट यानी सवा दो घंटे सोशल मीडिया पर बिताते हैं। कुछ दशक पहले तक लोग अखबारों और पत्रिकाओं को पढ़ने में जितना समय देते थे, उससे कहीं ज्यादा समय अब लोग सोशल मीडिया को दे रहे हैं। यह मीडिया जानकारियाँ देने, प्रेरित करने और सद्भावना बढ़ाने का काम करता है, वहीं नफरत का ज़हर उगलने और फेक न्यूज देने का काम भी कर रहा है।

Friday, January 7, 2022

गिटहब और बुल्ली बाई विवाद क्या है?


बुल्ली बाई विवाद के दौरान बार-बार इंटरनेट प्लेटफॉर्म गिटहब (GitHub) का नाम आता है। पिछले साल सुल्ली डील्स का जिक्र जब हुआ था, तब भी इसका नाम आया था। आज के मिंट में इसके बारे में बताया गया है।

बुल्ली बाई विवाद

बुल्ली बाई एक सॉफ्टवेयर एप्लीकेशन है, जो ऑनलाइन नीलामी को सिम्युलेट करती है। यानी नीलामी जैसी परिस्थितियाँ बनाती हैं। दूसरे एप्स की तरह यह गूगल या एपल एप स्टोर पर यह उपलब्ध नहीं है। इसे कोड रिपोज़िटरी और सॉफ्टवेयर कोलैबरेशन प्लेटफॉर्म पर, जिसका नाम गिटहब है, होस्ट किया गया है। इसमें 100 से ज्यादा मुस्लिम महिलाओं की तस्वीरों का इस्तेमाल किया गया है, जो इंटरनेट से हासिल की गई हैं। इसमें इन्हें नीलामी में बोली लगाकर बेचने का नाटक किया गया है। यह नीलामी वस्तुतः फर्जी है। इसमें इस्तेमाल हुए बुल्ली और सुल्ली शब्द अपमानजनक हैं।

गिटहब क्या है?

गिटहब सबसे बड़ा कोड रिपोज़िटरी और सॉफ्टवेयर कोलैबरेशन प्लेटफॉर्म है, जिसका इस्तेमाल डेवलपर, स्टार्टअप, बल्कि कई बार बड़ी टेक्नोलॉजी कम्पनियाँ भी करती हैं, ताकि किसी एप को विकसित करने में कोडिंग से जुड़े लोगों की मदद ली जा सके। माइक्रोसॉफ्ट कॉरपोरेशन, मेटा प्लेटफॉर्म इनकॉरपोरेट (फेसबुक) और गूगल एलएलसी भी अपने कोड गिटहब पर उपलब्ध कराते हैं, ताकि दूसरे लोग चाहें, तो उनका इस्तेमाल कर लें। माइक्रोसॉफ्ट ने 2018 में गिटहब को 7.5 अरब डॉलर की कीमत देकर खरीदा था। इस प्लेटफॉर्म पर गूगल के एंड्रॉयड ऑपरेटिंग सिस्टम के सोर्स कोड भी उपलब्ध हैं। फेसबुक के एंड्रॉयड और आईओएस एप्स के सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट किट्स भी यहाँ उपलब्ध हैं।