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Sunday, September 19, 2010

अयोध्या का फैसला आने से पहले

फैसला तो जो भी आएगा, लगता है हम सब घबरा रहे हैं। अतीत में हमारे मीडिया ने असंतुलित होकर जो भूमिका निभाई उसकी याद करके घबरा रहे हैं। वैबसाइट हूट के अनुसार न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एसोसएशन ने इस सिलसिले में सहमति बनाई है कि फैसले को किस तरह कवर करेंगे। हूट के अनुसारः-


The News Broadcasters Association has put out an advisory on how the High Court judgement on the Ayodhya issue should be reported. All news on the judgement in the case should be a verbatim reproduction with no opinion or interpretation, no speculation of the judgement before it is pronounced should be carried, no footage of the demolition of the Babri Masjid is to be shown in any new item relating to the judgement, and no visuals need be shown depicting celebration or protest following the pronouncement.


इस एडवाइज़री की भावना ठीक है, पर इतना अंदेशा क्यों? अयोध्या मामला ही नहीं सारे मामले महत्वपूर्ण होते हैं। कवरेज के मोटे नियम सभी पत्रकारों को समझने चाहिए। फैसला आने पर उसपर टिप्पणी करना लोकतांत्रिक अधिकार है। उस अधिकार की मर्यादा रेखा को समझना चाहिए। पत्रकारिता की परम्परागत ट्रेनिंग  ऑब्जेक्टिविटी और फेयरनेस और क्या हैं?  इसी तरह तथ्यों में तोड़-मरोड़ नहीं होनी चाहिए। 


एक बात यह भी समझनी चाहिए कि यह न्यायालय का फैसला है। इसके कानूनी पहलू पर ही हमें ज़ोर देना चाहिए। भावनाओं को किनारे कर दें। हमें अपनी व्यवस्था और देशवासियों पर यकीन करना चाहिए। सब समझदार हैं। बेहतर हो कि फैसला आने के पहले पृष्ठभूमि का पता करें। उसे पढ़ें और पूरी समस्या पर विचार करें। इसपर आमराय भी बनाई जा सकती है।