महाराष्ट्र और झारखंड दोनों राज्यों ने प्रो-इनकंबैंसी वोट दिया है। इनमें महिलाओं और दूसरे सामाजिक-वर्गों की भूमिका है, जिन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ मिला है। दोनों राज्यों के चुनाव-परिणामों को समझने के अलावा उत्तर प्रदेश में हुए नौ उपचुनावों के परिणामों और उसके कुछ समय पहले हुए हरियाणा (और कश्मीर के जम्मू क्षेत्र) के परिणामों के निष्कर्षों को समझने की ज़रूरत भी है। इन सभी परिणामों की वर्ष के शुरू में हुए लोकसभा चुनाव के परिणामों के साथ तुलना की जानी चाहिए। इसके बाद ही राष्ट्रीय-राजनीति की भावी दशा-दिशा के बारे में अनुमान लगाए जा सकते हैं।
Wednesday, December 4, 2024
महाराष्ट्र ने बदल दी राष्ट्रीय-राजनीति की दिशा
Wednesday, October 30, 2024
कांग्रेस और राहुल के ‘पुनरोदय’ को लगा धक्का
हरियाणा और जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनाव दो कारणों से महत्वपूर्ण थे। जून में लोकसभा चुनाव-परिणामों के बाद भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस की राजनीति के प्रति जनता का दृष्टिकोण क्या है और दूसरा यह कि कुल मिलाकर भारतीय राजनीति की दिशा क्या लग रही है। इन दोनों राज्यों के परिणामों में काफी कुछ बातें हैं, जिनसे निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं। इन चुनावों का प्राथमिक संदेश यह है कि भाजपा मशीनरी अपने मूल वोट-आधार को बनाए रखने में कामयाब है और कांग्रेस को उन क्षेत्रों में भी भाजपा को हराने के लिए जबर्दस्त मशक्कत करनी होगी, जहाँ उसने पैर जमा लिए हैं। यानी राहुल गांधी और कांग्रेस के पुनरोदय को पक्का मानकर चलना नहीं चाहिए।
इन नतीजों से संगठन पर मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह दोनों का नियंत्रण बढ़ेगा। दोनों राज्यों के लिए प्रमुख प्रत्याशियों को दोनों ने ही चुना है। भाजपा सूत्रों ने बताया कि पार्टी के हर फैसले पर दोनों की ही मुहर रहेगी, जिसमें नए पार्टी अध्यक्ष का चयन भी शामिल है। इससे राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के लिए भी सकारात्मक संदेश जाएगा, जिनकी जगह नए पार्टी अध्यक्ष को आना है। भाजपा इस वक्त महाराष्ट्र और झारखंड में सीटों के बँटवारे के लिए अपने सहयोगियों के साथ बातचीत कर रही है। इस जीत से उसका हौसला बढ़ेगा।
Wednesday, October 9, 2024
‘खर्ची-पर्ची’ खा गई, हरियाणा में कांग्रेस को
हरियाणा विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को मिली जीत बहुत से लोगों को अप्रत्याशित लग रही है। कांग्रेस पार्टी ने परिणाम आने के पहले ही साज़िश का अंदेशा व्यक्त करके चुनाव आयोग से शिकायत कर दी थी। इससे कुछ देर के लिए उसके कार्यकर्ताओं को दिलासा भले ही मिल गई हो, पर पार्टी की व्यापक रणनीति में छिद्र नज़र आने लगे हैं। कहा यह जा रहा है कि राष्ट्रीय गठबंधन बनाने के बावजूद कांग्रेस जिताऊ पार्टी नहीं है। हरियाणा को छोड़ भी दें, तो जम्मू-कश्मीर में इंडिया गठबंधन को मिली सफलता, कांग्रेस नहीं नेशनल कांफ्रेंस की वजह से है। इन परिणामों के बाद भाजपा के बरक्स कांग्रेस को जो धक्का लगेगा, वह दीगर है, उसे इंडिया गठबंधन में अपने ही सहयोगियों का धक्का भी लगेगा। महाराष्ट्र में सीट-वितरण के वक्त आप इसे देखेंगे।
वोट बढ़ा, फिर भी…
हरियाणा के परिणाम पर द हिंदू ने अपने संपादकीय में लिखा है, चुनाव विश्लेषकों के अनुमानों के विपरीत, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) हरियाणा में अपनी सीटों को 40 से बढ़ाकर 48 और वोट शेयर को 36.5% से बढ़ाकर 39.9% करके लगातार तीसरी बार सत्ता बरकरार रखने में कामयाब रही है। कांग्रेस का वोट शेयर भी 11 अंक बढ़कर 39.1% दर्ज किया गया, लेकिन इसकी सीटों की संख्या मामूली रूप से छह बढ़कर 37 हो गई। प्रभावशाली जाट समुदाय को बढ़ावा देने वाली दो क्षेत्रीय पार्टियों, इंडियन नेशनल लोकदल (आईएनएलडी) और जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) का प्रदर्शन खराब रहा, क्योंकि उनका संयुक्त वोट शेयर 2019 में 21% से गिरकर 2024 में 7% हो गया, जिससे कांग्रेस को मदद मिली।
Friday, August 23, 2024
फिर बजे चुनाव के नगाड़े
चार राज्यों के विधानसभा चुनाव से बदला माहौल
लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद से राष्ट्रीय राजनीति की बहस अभी चल ही रही है कि चार राज्यों के विधान सभा चुनाव सिर पर आ गए हैं। राजनीतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश में दस सीटों पर उप चुनाव होने हैं। प्रदेश के नौ विधायकों ने लोकसभा की सदस्यता प्राप्त करके अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। प्रदेश की फूलपुर, खैर, गाजियाबाद, मझवाँ, मीरापुर, मिल्कीपुर, करहल, कटेहरी और कुंदरकी यानी नौ सीटें खाली हुई हैं। दसवीं सीट सीसामऊ सपा विधायक इरफान सोलंकी को अयोग्य करार दिए जाने से खाली हुई है। जिन 10 सीटों पर उपचुनाव होना है, उनमें से पाँच पर समाजवादी पार्टी के विधायक थे, भाजपा के तीन और राष्ट्रीय लोक दल तथा निषाद पार्टी के एक-एक। यानी इंडिया गठबंधन और एनडीए की पाँच-पाँच सीटें हैं। अब दोनों गठबंधन अपने महत्व और वर्चस्व को साबित करने के लिए चुनाव में उतरेंगे। उधर बीजेपी के भीतर से बर्तनों के खटकने की आवाज़ें सुनाई पड़ रही हैं। ये चुनाव बीजेपी और इंडिया गठबंधन दोनों को अपनी ताकत आजमाने का मौका देंगे।
दो राज्यों के चुनाव
चुनाव आयोग ने चार में से फिलहाल दो राज्यों के विधानसभा चुनावों के कार्यक्रम की घोषणा की है। जम्मू-कश्मीर में तीन चरणों में और हरियाणा में एक चरण में मतदान होगा। नतीजे 4 अक्टूबर को आएंगे। सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर में 30 सितंबर तक चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग से कहा था। राज्य में अनुच्छेद 370 की वापसी के बाद यह पहला विधानसभा चुनाव है। जम्मू-कश्मीर में पहले चरण का मतदान 18 सितंबर, दूसरे का 25 सितंबर और तीसरे का 1 अक्तूबर को होगा। उसी दिन हरियाणा में भी वोट पड़ेंगे। वोटों की गिनती 4 अक्टूबर को होगी।
Friday, June 7, 2024
मोदी 3.0 की विदेश और रक्षा-नीति पर वैश्विक-दृष्टि
लोकसभा चुनावों के परिणामों पर भारतीय-विशेषज्ञों की तरह विदेशियों की निगाहें भी लगी हुई हैं. वे समझना चाहते हैं कि देश में गठबंधन-सरकार बनने से क्या फर्क पड़ेगा. इससे क्या विदेश-नीति पर कोई असर पड़ेगा? क्या देश के आर्थिक-सुधार कार्यक्रमों में रुकावट आएगी? पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों पर क्या असर पड़ेगा वगैरह.
न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा है, नरेंद्र मोदी के सत्ता के
बीते 10 सालों में कई पल हैरत से भरे थे लेकिन जो हैरत
मंगलवार की सुबह मिली वो बीते 10 सालों से बिल्कुल अलग थी क्योंकि
नरेंद्र मोदी को तीसरा टर्म तो मिल गया, लेकिन उनकी
पार्टी बहुमत नहीं ला पाई. इसके साथ ही 2014 के
बाद पहली बार नरेंद्र मोदी की वह छवि मिट गई कि 'वे
अजेय' हैं.
वॉशिंगटन पोस्ट ने लिखा है, भारत के मतदाताओं ने
नरेंद्र मोदी की लीडरशिप पर अप्रत्याशित अस्वीकृति दिखाई है. दशकों के सबसे मज़बूत
नेता के रूप में पेश किए जा रहे मोदी की छवि को इस जनादेश ने ध्वस्त कर दिया है. उनकी
अजेय छवि भी ख़त्म की है.
इस तरह की टिप्पणियों की इन अखबारों से उम्मीद भी थी, क्योंकि पिछले दस साल से ये मोदी सरकार के सबसे बड़े आलोचकों में शामिल रहे हैं. पर महत्वपूर्ण सवाल दूसरे हैं. सवाल यह है कि चुनाव के बाद हुए राजनीतिक-बदलाव का भविष्य पर असर कैसा होगा. सरकार को किसी नई नीति पर चलने या बनाने की जरूरत नहीं है, पर क्या वह आसानी से फैसले कर पाएगी?
Thursday, June 6, 2024
बीजेपी के नाम ‘अमृतकाल’ पहला कटु-संदेश
भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में एनडीए ‘400 पार’ नहीं कर पाई, यह उसकी विफलता है, पर व्यावहारिक सच यह भी है कि उसे सरकार बनाने लायक स्पष्ट बहुमत मिल गया है. जवाहर लाल नेहरू की तरह नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार लगातार तीसरी बार बनेगी.
दूसरी तरफ ‘इंडिया’ गठबंधन ने बीजेपी की अपराजेयता को एक झटके में ध्वस्त किया है. इससे पार्टी और उसके
नेतृत्व का रसूख कम होगा. ‘अमृतकाल’ का यह कड़वा अनुभव है. चुनाव-प्रचार
के दौरान नरेंद्र मोदी की रैलियों और बयानों से यह संकेत मिल भी रहा था कि उन्हें
नेपथ्य से आवाजें सुनाई पड़ रही हैं.
पहली नज़र में
जो भी परिणाम आए हैं, उनके अनुसार केंद्र में एनडीए की सरकार बन जाएगी, पर इस जीत में भी कई किस्म की
हार छिपी है. दूसरी तरफ कांग्रेस के नेतृत्व में ‘इंडिया’ गठबंधन अपनी सफलता से खुश भले ही हो ले, पर इसमें उसकी विफलता छिपी है. 295+ का
उनका दावा भी सही साबित नहीं हुआ. और बीजेपी के पास अगले पाँच साल के लिए राजदंड आ
गया है.
मतदाता
का असमंजस
इस चुनाव में बीजेपी किसी सकारात्मक संदेश को जनता तक पहुँचाने में कामयाब
नहीं हुई, पर ‘इंडिया’ गठबंधन ने
जिस नकारात्मक आधार पर चुनाव जीतने की रणनीति बनाई थी, वह भी कामयाब नहीं हुई. उनका
अभियान नरेंद्र मोदी हटाओ तक ही सीमित था. उन्होंने खुद जीत हासिल नहीं कि, बस
मोदी के नेतृत्व को नुकसान पहुँचाया है.
खबरें हैं कि वे भी जुगाड़ लगा कर सरकार बनाने का प्रयास कर रहे हं, पर इससे उन्हें बदनामी ही मिलेगी. ये चुनाव-परिणाम मतदाता की उम्मीदों से ज्यादा उसके असमंजस को व्यक्त कर रहे हैं.
प्रकट होने लगे गठबंधन-राजनीति के शुरुआती लक्षण
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनाने की तैयारियां शुरू हो गई हैं और उसके साथ ही गठबंधन की राजनीति के लक्षण भी प्रकट होने लगे हैं। चंद्रबाबू नायडू, नीतीश कुमार, चिराग पासवान, जीतन राम मांझी और एकनाथ शिंदे ने सरकार को अपना समर्थन दे दिया है, साथ ही अपनी-अपनी माँगों की सूची भी आगे कर दी है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार ज्यादातर नेता कम से कम एक कैबिनेट मंत्री का पद और दूसरी चीजें माँग रहे हैं। चंद्रबाबू नायडू संभवतः लोकसभा अध्यक्ष का पद भी माँग रहे हैं। ऐसी बातों की पुष्टि नहीं हो पाती है, पर ये बातें सहज सी लगती हैं। बहरहाल अंततः समझौते होंगे, क्योंकि गठबंधनों में ऐसा होता ही है। बीजेपी लोकसभा अध्यक्ष पद अपने हाथ में ही रखना चाहेगी, क्योंकि इस व्यवस्था में अध्यक्ष की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।
दिल्ली में एनडीए और ‘इंडिया’ की बैठकें हुई हैं। खबरें हैं कि कांग्रेस पार्टी किसी पर प्रधानमंत्री पद का चारा डाल रही है। बाहर से समर्थन देने के वायदे के साथ, पर ऐसी कौन सी मछली है, जो इस चारे पर मुँह मारेगी? आप पूछ सकते हैं कि कांग्रेस के पास ही ऐसा कौन सा संख्या बल है, जो बाहर से समर्थन देकर किसी को प्रधानमंत्री बनवा देगा? और कांग्रेस ऐसी कौन सी परोपकारी पार्टी है, जो किसी को निस्वार्थ भाव से प्रधानमंत्री बना देगी? बेशक वजह तो देश बचाने की होगी, पर याद करें अतीत में कांग्रेस पार्टी के इस चारे के चक्कर में चौधरी चरण सिंह, एचडी देवेगौडा, इंद्र कुमार गुजराल और चंद्रशेखर जैसे राजनेता आ चुके हैं। उनकी तार्किक-परिणति क्या हुई, यह भी आपको पता है।
गठबंधन राजनीति का टाइम शुरू होता है अब
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनाने की तैयारियां शुरू हो गई हैं और उसके साथ ही गठबंधन की राजनीति के लक्षण भी प्रकट होने लगे हैं। चंद्रबाबू नायडू, नीतीश कुमार, चिराग पासवान, जीतन राम मांझी और एकनाथ शिंदे ने सरकार को अपना समर्थन दे दिया है, साथ ही अपनी-अपनी माँगों की सूची भी आगे कर दी है। ज्यादातर कम से कम एक कैबिनेट मंत्री का पद और दूसरी चीजें माँग रहे हैं। चंद्रबाबू नायडू संभवतः लोकसभा अध्यक्ष का पद भी माँग रहे हैं। अंततः समझौते होंगे। बीजेपी लोकसभा अध्यक्ष पद अपने हाथ में ही रखना चाहेगी, क्योंकि इस व्यवस्था में अध्यक्ष की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।
दिल्ली में एनडीए और ‘इंडिया’ की बैठकें हुई हैं। खबरें हैं कि कांग्रेस पार्टी किसी पर प्रधानमंत्री पद का चारा डाल रही है। बाहर से समर्थन देने के वायदे के साथ, पर ऐसी कौन सी मछली है, जो इस चारे पर मुँह मारेगी? आप पूछ सकते हैं कि कांग्रेस के पास ही ऐसा कौन सा संख्या बल है, जो बाहर से समर्थन देकर किसी को प्रधानमंत्री बनवा देगा? और कांग्रेस ऐसी कौन सी परोपकारी पार्टी है, जो किसी को निस्वार्थ भाव से प्रधानमंत्री बना देगी? बेशक वजह तो देश बचाने की होगी, पर याद करें अतीत में कांग्रेस पार्टी के इस चारे के चक्कर में चौधरी चरण सिंह, एचडी देवेगौडा, इंद्र कुमार गुजराल और चंद्रशेखर जैसे राजनेता आ चुके हैं। उनकी तार्किक-परिणति क्या हुई, यह भी आपको पता है।
Wednesday, June 5, 2024
'अपराजेय' बीजेपी को अमृतकाल का पहला धक्का
लोकसभा चुनाव के परिणामों से देश की राजनीति के
अंतर्विरोधों को एकबार फिर से खोलने जा रहे हैं। इन परिणामों के साथ अनेक अनिश्चय
जन्म ले रहे हैं, जो धीरे-धीरे सामने आएंगे। लगता है कि इसबार पूरे परिणाम देर से
घोषित हो पाएंगे, पर उनके रुझान से स्थिति काफी सीमा तक स्पष्ट हो चुकी है। परिणामों
का पहला संकेत हैं भारतीय जनता पार्टी की अपराजेयता एक झटके में ध्वस्त होना।
यह भी साफ है कि जनादेश एनडीए के नाम है। केंद्र
में उसकी ही सरकार बननी चाहिए और बनेगी। पर यह सरकार पिछली दो सरकारों जैसी शक्तिमान
नहीं होगी। उसमें गठबंधन सहयोगियों की शर्तें शामिल होंगी। ऐसे में अर्थव्यवस्था
और राजनीति से जुड़े उसके कार्यक्रमों को लेकर सवाल खड़े होंगे। फिलहाल ‘अमृतकाल’ का यह कड़वा अनुभव है। चुनाव-प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी की
रैलियों और बयानों से यह संकेत मिल भी रहा था कि पार्टी को नेपथ्य की आवाजें सुनाई
पड़ गई थीं।
एनडीए को स्पष्ट बहुमत मिला है, बावजूद इसके खबरें हवा में हैं कि 2004 की तरह ‘इंडिया’ गठबंधन की सरकार
बनाने के प्रयास भी हो सकते हैं। खबरें हैं कि सोनिया गांधी और शरद पवार ने नीतीश
कुमार और चंद्रबाबू नायडू से संपर्क किया है। राजनीति में हर तरह की संभावनाओं को
टटोलने में जाता कुछ नहीं है. पर सवाल है कि एनडीए के गठबंधन सहयोगी क्या आसानी से
उसका साथ छोड़ देंगे? इसकी उम्मीद तो नहीं है, पर राजनीति
में किसी भी वक्त, कुछ भी हो सकता है।
आंध्र प्रदेश में तेलुगु देसम पार्टी को भारी विजय मिली है। तेलुगु देसम एनडीए का घटक दल है। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक लगता है कि तेदेपा के 16 और जेडीयू के 15 सांसद जीतकर आएंगे। इन दो घटक दलों से ‘इंडिया’ गठबंधन ने संपर्क किया है। चूंकि बीजेपी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है, इसलिए उसे अब अपने गठबंधन को बनाए रखने के लिए प्रयत्न भी करने होंगे। उसके सहयोगी टूटेंगे या नहीं टूटेंगे, यह अलग बात है, पर अंदेशा बना रहेगा।
Saturday, June 1, 2024
एग्ज़िट पोल ने हवा का रुख बता दिया, अब 4 जून के फैसले का इंतजार करें
2024 के लोकसभा चुनाव के सातवें और अंतिम चरण का मतदान पूरा होने के बाद एग्ज़िट पोल के नतीजे आ गए हैं। इन पंक्तियों के प्रकाशित होने तक हालांकि ज्यादातर पोल अपने निष्कर्षों को पेश कर ही रहे हैं, पर कमोबेश सभी की नजर में नरेंद्र मोदी सरकार सफलता की तिकड़ी लगाने जा रही है। इनके नतीजों में किसी भी पोल ने एनडीए को 400 पार नहीं दिखाया है। दूसरे ज्यादातर ने दक्षिण भारत में बीजेपी के प्रवेश के दरवाजे खुलते दिखाए हैं। केरल में पहली बार और तमिलनाडु में भी बीजेपी को सीट मिलने की संभावनाएं देखी जा रही हैं। कर्नाटक में बीजेपी की स्थिति कमोबेश सुरक्षित है और आंध्र तथा तेलंगाना में उसकी स्थिति बेहतर होती दिखाई पड़ रही है। सबसे बड़ी बात, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी का दुर्ग ध्वस्त होता दिखाई पड़ रहा है।
कांग्रेस पार्टी ने पहले घोषित किया था कि उनके प्रतिनिधि इन एग्ज़िट पोल पर हो रही चर्चा में शामिल नहीं होंगे। अलबत्ता कई चैनलों पर कांग्रेस के प्रतिनिधि देखे गए। इनमें सुप्रिया श्रीनेत भी हैं। इसका मतलब है कि कांग्रेस ने अपने उस फैसले को वापस ले लिया। उधर समाजवादी पार्टी ने अपने कार्यकर्ताओं से कहा है कि वे एग्ज़िट पोल के झाँसे में न आएं। पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं, प्रत्याशियों और पदाधिकारियों को दिए एक संदेश में ‘भाजपा के झूठ और उसके एग्जिट पोल’ के खिलाफ सतर्क रहने को कहा है।
Wednesday, May 22, 2024
‘पीओके’ का जनांदोलन और लोकसभा-चुनाव
आप चाहें, तो दोनों बातों में ‘कॉन्ट्रास्ट’ या विसंगति देख सकते हैं. दोनों में कोई सीधा रिश्ता नहीं है, पर प्रकारांतर से है. पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर यानी ‘पीओके’ में चल रहे जनांदोलन को लेकर हमारे यहाँ कुछ लोगों को लगता है कि शायद वहाँ कोई बड़ी बात हो जाए. फिलहाल ऐसा लगता नहीं है, पर कश्मीर को लेकर जब भी विचार करें, तब मुज़फ़्फ़राबाद और मीरपुर पर भी बात करनी होगी.
दूसरी तरफ जम्मू-कश्मीर
में चल रहे लोकसभा चुनाव को लेकर सकारात्मक खबरें हैं, जिसके निहितार्थ अलग-अलग
लोगों ने अलग-अलग निकाले हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव के ठीक पहले
फरवरी में पुलवामा प्रकरण हुआ था और माना जाता है कि उस परिघटना का सायास या
अनायास असर लोकसभा चुनाव पर भी पड़ा.
उस चुनाव के कुछ महीनों बाद ही भारत सरकार ने
अनुच्छेद-370 हटाने का फैसला किया था. उसके बाद से ही ‘पीओके’ को वापस लेने की
बातें देश में हो रही हैं. हाल में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने
कहा है कि केंद्र में नई सरकार बनने के बाद छह महीने के भीतर ‘पीओके’ हमारा होगा.
चुनाव-सभा की इस बात का बहुत ज्यादा राजनीतिक
महत्व नहीं है, पर इस बात को मान लीजिए कि जैसे पाकिस्तान के नेता कश्मीर को अपनी ‘शह-रग’ यानी जुग्युलर-वेन मानते हैं, वैसे ही कश्मीर भी बड़ी संख्या में भारतीयों
के दिल में रहता है.
‘पीओके’ को लेकर विदेशमंत्री एस जयशंकर ने हाल
में कहा है कि 370 हटा कर जम्मू-कश्मीर को एकीकृत करना पहला पार्ट था, जो पूरा कर लिया गया है. अब हमें दूसरे पार्ट का इंतज़ार करना
चाहिए. कुछ इसी आशय की बातें गृहमंत्री अमित शाह ने भी कही हैं. दूसरे पार्ट से
आशय है, उसकी भारत में वापसी.
विभाजन का बचा हुआ काम
नब्बे के दशक में जब पाकिस्तानी प्रधानमंत्री
बेनज़ीर भुट्टो बार-बार कह रहीं थीं कि कश्मीर का मसला विभाजन के बाद बचा अधूरा
काम है. इस पर तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहराव ने कहा कि पाकिस्तान अधिकृत
कश्मीर की भारत में वापसी ही अधूरा रह गया काम है. वह समय था जब कश्मीर में हिंसा
चरमोत्कर्ष पर थी.
बढ़ती हुई आतंकवादी हिंसा के मद्देनज़र भारतीय संसद के दोनों सदनों ने 22 फरवरी 1994 को सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया और इस बात पर जोर दिया कि सम्पूर्ण जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, इसलिए पाकिस्तान को अपने कब्जे वाले राज्य के हिस्सों को खाली करना होगा. पाकिस्तान बल पूर्वक कब्जाए हुए भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर क्षेत्रों को खाली करे.
Wednesday, May 1, 2024
मतदाता कर पाएगा ‘डिफिडेंस’ और ‘कॉन्फिडेंस’ का फर्क?
देस-परदेस
पिछले हफ्ते हैदराबाद के एक कार्यक्रम में विदेशमंत्री एस जयशंकर ने कहा कि 2008 के मुंबई आतंकवादी हमले के बाद तत्कालीन यूपीए सरकार ने ‘कुछ भी नहीं’ करने का फैसला किया था. यह मान लिया गया कि पाकिस्तान पर हमला करने के मुकाबले हमला नहीं करना सस्ता पड़ेगा.
तत्कालीन सरकार के
सुरक्षा सलाहकार ने लिखा है कि हमने इस विषय पर विचार-विमर्श किया और इस निष्कर्ष
पर पहुँचे कि पाकिस्तान पर हमला करने की कीमत ज्यादा होगी. एस जयशंकर के इस बयान
को राजनीतिक चश्मे से, खासतौर से लोकसभा-चुनाव के संदर्भ में देखने की जरूरत है.
जयशंकर के शब्दों में भारतीय विदेश-नीति ‘डिफिडेंस (असमंजस)’ के दौर से निकल कर ‘कॉन्फिडेंस (आत्मविश्वास)’ के दौर में आ गई है. आज हम अमेरिका के सामने पहले की तुलना में बेहतर आत्मविश्वास के साथ बात कर सकते हैं. इस बात को किसी भी दृष्टि से देखे, पर सच यह है कि भारतीय जनता पार्टी ने विदेश-नीति को भी अपने चुनाव-अभियान में अच्छी खासी जगह दी है.
Tuesday, April 16, 2024
बीजेपी की जीत में सबसे बड़ी भूमिका उत्तर भारत की होगी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 17वीं लोकसभा के अंतिम सत्र में खड़े होकर आत्मविश्वास के साथ कहा, अबकी बार 400 पार। अकेले बीजेपी को 370 सीटें मिलेंगी और एनडीए गठबंधन चार सौ का आँकड़ा पार करेगा। ज्यादातर पर्यवेक्षकों की और चुनाव-पूर्व सर्वेक्षणों की राय है कि इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी एकबार फिर से जीतकर आने वाली है। भारतीय राजनीति के गणित को समझना बहुत सरल नहीं है। फिर भी करन थापर और रामचंद्र गुहा जैसे अपेक्षाकृत भाजपा से दूरी रखने वाले टिप्पणीकारों को भी लगता है कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार तीसरी बार बन सकती है।
कुछ पर्यवेक्षक इंडिया गठबंधन की ओर देख रहे
हैं। उन्हें लगता है कि भाजपा जीत भी जाए, पर इंडिया गठबंधन के कारण यह जीत उतनी
बड़ी नहीं होगी, जैसा दावा किया जा रहा है। पर समय के साथ यह गठबंधन गायब होता जा
रहा है। पंजाब, पश्चिम बंगाल, असम, केरल और जम्मू-कश्मीर
में गठबंधन के सिपाही एक-दूसरे पर तलवारें चला रहे हैं।
मोटी राय यह है कि भारतीय जनता पार्टी की विजय
में उत्तर के राज्यों की भूमिका सबसे बड़ी होगी। इन 10 राज्यों और दिल्ली,
जम्मू-कश्मीर, लद्दाख और चंडीगढ़ के केंद्र-शासित क्षेत्रों में कुल मिलाकर 245
लोकसभा सीटें हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को इनमें से 163
सीटों पर सफलता मिली थी और 29 सीटों पर उसके सहयोगी दल जीतकर आए थे। उत्तर की इस
सफलता के बाद गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, असम,
त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल ऐसे राज्य हैं, जहाँ से पार्टी को बेहतर परिणाम मिलते
हैं।
एनडीए और ‘इंडिया’ की संरचना में फर्क है। एनडीए के
केंद्र में बीजेपी है। यहाँ शेष दलों की अहमियत अपेक्षाकृत कम है। ‘इंडिया’ के केंद्र में
कांग्रेस है, पर उसमें परिधि के दलों का हस्तक्षेप एनडीए के सहयोगी दलों की तुलना में ज्यादा
है। जेडीयू और तृणमूल अब अलग हैं और केरल
में वामपंथी अलग। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी का और बिहार में राजद का दबाव कांग्रेस
पर रहेगा। हालांकि कांग्रेस ने दोनों राज्यों में क्रमशः 17 और 9 सीटें हासिल कर
ली हैं, पर उसका स्ट्राइक रेट चिंता का विषय है।
गणित और रसायन
‘इंडिया’ गठबंधन ने उस
गणित को गढ़ने का प्रयास किया है, जिसके सहारे बीजेपी के प्रत्याशियों के सामने
विरोधी दलों का एक ही प्रत्याशी खड़ा हो। पर अभी तक यह सब हुआ नहीं है। मोटे तौर
पर यह ‘वन-टु-वन’ का गणित है।
यानी बीजेपी के प्रत्याशियों के सामने विपक्ष का एक प्रत्याशी। हालांकि ऐसा हुआ नहीं है, फिर भी कल्पना करें कि बीजेपी को देशभर में
40 फीसदी तक वोट मिलें, तो क्या शेष 60 प्रतिशत वोट बीजेपी-विरोधी
होंगे?
2019 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा गठबंधन इसी गणित के आधार पर हुआ था, जो फेल हो गया। सपा-बसपा गठजोड़ के पहले 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस गठजोड़ भी विफल रहा था। 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा, रालोद, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा), महान दल और जनवादी पार्टी (समाजवादी) का गठबंधन आंशिक रूप से सफल भी हुआ, पर वह गठजोड़ अब नहीं है। ऐसा कोई सीधा गणित नहीं है कि पार्टियों की दोस्ती हुई, तो वोटरों की भी हो जाएगी।
Friday, April 5, 2024
जलेबी जैसी घुमावदार 'पॉलिटिक्स' में दोस्ती और दुश्मनी का मतलब!
शिवसेना (उद्धव) की ओर से एकतरफा प्रत्याशी घोषित करने के बाद महाराष्ट्र में इंडिया गठबंधन में खींचतान है. शरद पवार कांग्रेस और शिवसेना दोनों से नाराज हैं. उनकी शिकायत है कि जब सीटों बँटवारे की बातें चल रही थीं, तो एमवीए के घटक दलों ने अलग-अलग सीटें क्यों घोषित कीं? उधर कांग्रेस के संजय निरुपम शिवसेना से नाराज़ हैं. उद्धव ठाकरे भी नाराज़ है. बीजेपी, शिवसेना (शिंदे) और एनसीपी (अजित) की रस्साकशी भी चल रही है. यूपी में रामपुर और मुरादाबाद की सीटों को लेकर समाजवादी पार्टी के भीतर घमासान चला. आजम खां भले ही जेल में हैं, पर मुरादाबाद के मौजूदा सांसद एसटी हसन का टिकट उन्होंने कटवा दिया और रुचिवीरा को दिलवा दिया. पर रामपुर में उनकी नहीं सुनी गई और मोहिबुल्लाह नदवी को टिकट मिल गया.
भारतीय राजनीति उतनी सीधी सपाट नहीं है, जितनी
दिखाई पड़ती है. वह जलेबी जैसी गोल है. विचारधारा, सामाजिक-न्याय, जनता की सेवा और
‘कट्टर
ईमानदारी’ जैसे जुमले अपनी जगह हैं. पंजाब में आम आदमी
पार्टी को झटका देते हुए जालंधर के सांसद सुशील कुमार रिंकू बीजेपी में शामिल हो
गए. रिंकू 17वीं लोकसभा में ‘आप’ के एकमात्र सांसद
थे. वे सुर्खियों में तब आए थे, जब हंगामे की वजह से पूरे सत्र के लिए
निलंबित हुए थे.
चलती का नाम गाड़ी
ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है. चुनाव के दौरान अंतिम समय की भगदड़, मारामारी और बगावतें कोई नई बात नहीं. इसबार बीजेपी ने चार सौ से ज्यादा सीटों पर उम्मीदवार घोषित किए हैं, उनमें से 17वीं लोकसभा में 291 पर उसके सांसद थे. इनमें 101 को टिकट नहीं मिला. पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी ने 119 सांसदों के टिकट काटे थे. टिकट कटने से बदमज़गी पैदा होती है. गठबंधनों में सीटों के बँटवारे को लेकर भी खेल होते हैं, पर सार्वजनिक रूप से दिखावा किया जाता है कि सब कुछ ठीकठाक है.
Thursday, March 21, 2024
चौधरी चरण सिंह की कर्मभूमि बागपत
दिल्ली और हरियाणा की सीमा से सटे बागपत की धरती जाट-राजनीति का केंद्र है. पहले यह क्षेत्र मेरठ का हिस्सा हुआ करता था. इस लोकसभा क्षेत्र में पाँच विधानसभा क्षेत्र आते हैं. बागपत, बड़ौत, छपरौली, मोदीनगर और सिवालखास.
इस सीट को चौधरी चरण सिंह की कर्मभूमि कहा जाता
है, जिन्हें हाल में भारत सरकार ने भारत रत्न अलंकरण से सम्मानित करने की घोषणा की
है. पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह की पहचान भूमिधर किसानों के नेता, महात्मा गांधी के अनुयायी और खेती से जुड़ी अर्थव्यवस्था
विशेषज्ञ के तौर पर रही है. उनकी आधा दर्जन से ज्यादा किताबें इसका प्रमाण हैं.
साफगोई उनकी दूसरी विशेषता रही है. कांग्रेस में रहते हुए भी वे जवाहर लाल नेहरू
की आर्थिक-नीतियों के आलोचक थे.
भारतीय राजनीति में, खासतौर से सामाजिक-न्याय
से जुड़ी ताकतों को, मुखर करने में भी उनकी बड़ी भूमिका रही. साठ के दशक के
उत्तरार्ध में उन्होंने चौधरी कुंभाराम आर्य के साथ मिलकर भारतीय क्रांति दल की
स्थापना की थी, जिसकी उत्तराधिकारी पार्टी भारतीय लोकदल थी, जिसके चुनाव चिह्न पर
1977 में जनता पार्टी ने चुनाव लड़ा.
पूरा थाना सस्पेंड
चौधरी चरण सिंह कठोर प्रशासक और अड़ियल राजनेता के रूप में वे प्रसिद्ध रहे हैं. उनसे जुड़ा एक प्रकरण काफी चर्चित है. 1979 में जब वे प्रधानमंत्री थे, एक व्यक्ति की शिकायत पर अचानक शाम को यूपी के इटावा में अकेले और फटेहाल, मजबूर किसान के रूप में एक थाने में पहुँचे और कहा, जेब कतरी की रपट लिखवानी है.
Wednesday, March 20, 2024
मुस्लिम-बहुल रामपुर में बीजेपी ने झंडा फहराया
पश्चिमी उत्तर प्रदेश का रामपुर शहर रूहेलखंड की संस्कृति का केंद्र और नवाबों की नगरी रहा है. एक दौर में अफगान रूहेलों के आधिपत्य के कारण इस इलाके को रूहेलखंड कहा जाता है. रोहिल्ला वंश के लोग पश्तून हैं; जो अफगानिस्तान से उत्तर भारत में आकर बसे थे. रूहेलखंड सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यन्त समृद्ध क्षेत्र रहा है. साहित्य, रामपुर घराने का शास्त्रीय संगीत, हथकरघे की कला, और बरेली के बाँस का फर्नीचर इस इलाके की विशेषताएं हैं. अवध के नवाबों की तरह रामपुर के नवाबों की तारीफ गंगा-जमुनी संस्कृति को बढ़ावा देने के कारण होती है.
रूहेलखंड का एक महत्वपूर्ण लोकसभा क्षेत्र है
रामपुर, जहाँ से 1952 के पहले लोकसभा चुनाव में देश के पहले शिक्षामंत्री अबुल
कलाम आज़ाद जीतकर आए थे. मौलाना आज़ाद के अलावा कालांतर में रामपुर नवाब खानदान के
सदस्यों से लेकर फिल्म कलाकार जयाप्रदा और खाँटी ज़मीनी नेता आजम खान तक ने इस
क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया है.
सपा नेता आजम खां का कभी रामपुर में इतना दबदबा
था कि जनता ही नहीं, बड़े सरकारी अफसर भी उनसे खौफ खाते थे। उनकी
दहशत के किस्से इस इलाके के लोगों की ज़ुबान पर हैं. बताते हैं कि एक अफसर उनकी डाँट
के कारण उनके सामने ही गश खा गया. वक्त की बात है कि आज आजम खान और जयाप्रदा जैसे
सितारों के सितारे गर्दिश में हैं.
अबुल कलाम आज़ाद
इस सीट से 1952 में पहली बार कांग्रेस के मौलाना अबुल कलाम आज़ाद लोकसभा में गए थे. हालांकि उनका परिवार कोलकाता में रहता था, पर उन्हें रामपुर से चुनाव लड़ने के लिए कहा गया. उनका मुकाबला हिंदू महासभा के बिशन चंद्र सेठ से हुआ. उस चुनाव में कुल दो प्रत्याशी ही मैदान में थे. मौलाना आज़ाद को कुल 108180 यानी 54.57 प्रतिशत और उनके प्रतिस्पर्धी को 73427 यानी कि कुल 40.43 प्रतिशत वोट मिले.
Tuesday, March 19, 2024
एक-दूसरे को नई पहचान दी, वाराणसी व मोदी ने
वाराणसी को आप देश की सबसे प्रमुख लोकसभा सीट मान सकते हैं. वहाँ से नरेंद्र मोदी दो बार जीतकर प्रधानमंत्री बने हैं. मोदी के जीवन में वाराणसी की और वाराणसी नगर के आधुनिक इतिहास में, मोदी की महत्वपूर्ण भूमिका है.
दुनिया प्राचीनतम
नगरों में एक शिव की यह नगरी हिंदुओं के महत्वपूर्ण तार्थस्थलों में एक है. देश के
हरेक कोने से तीर्थयात्री यहाँ आते हैं. अब यह भारत की राजनीति का महत्वपूर्ण
केंद्र है.
2014 के चुनाव में
मोदी ने इस चुनाव-क्षेत्र को अपनाया, तो इसके अनेक मायने थे. देश और विदेश का हिंदू समाज वाराणसी
की ओर देखता है. इसे सामाजिक-मोड़ दिया जा सकता है. ‘माँ गंगा और
बाबा विश्वनाथ’ के उद्घोष से एक नई सांस्कृतिक चेतना जगाई
जा सकती है.
2014 के चुनाव परिणाम
आने के पहले तक अनेक पर्यवेक्षकों को लगता था कि त्रिशंकु संसद भी बन सकती है. हालांकि
ज्यादातर चुनाव पूर्व सर्वेक्षण यह भी कह रहे
थे कि एनडीए को सबसे ज्यादा सीटें मिलेंगी, पर पूर्ण बहुमत का अनुमान बहुत कम को
था.
उत्तर प्रदेश की भूमिका
एनडीए और खासतौर से बीजेपी को मिली जीत
अप्रत्याशित थी. इसमें सबसे बड़ी भूमिका उत्तर प्रदेश की थी, जहाँ की 80 में से 73
सीटें एनडीए को मिलीं. इनमें से 71 बीजेपी के नाम थीं. उत्तर प्रदेश की इस
ऐतिहासिक सफलता ने राष्ट्रीय राजनीति में बड़ा उलट-फेर कर दिया.
जून 2013 में गोवा में हुई पार्टी की राष्ट्रीय
कार्यकारिणी की बैठक के बाद यह स्पष्ट हो गया कि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के
प्रत्याशी होंगे. इसके पहले पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने अमित शाह को पार्टी का
महामंत्री बनाया और उत्तर प्रदेश का प्रभारी.
अमित शाह को अच्छा चुनाव प्रबंधक माना जाता था, पर उस समय तक उनका अनुभव केवल गुजरात का था. यूपी गुजरात के मुकाबले बड़ा प्रदेश तो था ही, साथ में वहाँ के पार्टी संगठन की दिलचस्पी नरेंद्र मोदी में कम थी. 2012 के विधानसभा चुनाव में मोदी को उत्तर प्रदेश में प्रचार के लिए बुलाया भी नहीं गया. उस चुनाव में बीजेपी को भारी विफलता का सामना करना पड़ा था.
Thursday, March 14, 2024
अलग राजनीतिक मिज़ाज का शहर लखनऊ
लोकसभा क्षेत्र: लखनऊ
रायबरेली और अमेठी के अलावा मध्य उत्तर प्रदेश के अवध क्षेत्र में लखनऊ को वीआईपी सीट माना जाता है. यहाँ से चुने गए ज्यादातर राजनेताओं की पहचान राष्ट्रीय-स्तर पर होती रही है. इनमें विजय लक्ष्मी पंडित, हेमवती नंदन बहुगुणा, अटल बिहारी वाजपेयी और राजनाथ सिंह जैसे नाम शामिल हैं.
इस शहर की खासियत है कि वह जब किसी में कुछ खास
बात देख लेता है, तो उसका मुरीद हो जाता है. नवाबी दौर में उसने तमाम मशहूर
शायरों, गायकों, संगीतकारों और यहाँ तक कि खान-पान विशेषज्ञों तक को अपने यहाँ
बुलाकर रखा. पिछले 72 साल में इस चुनाव-क्षेत्र ने जिन 12 प्रत्याशियों को लोकसभा
भेजा है, उन सबमें कोई खास बात उसने देखी, तभी उन्हें चुना.
आनंद नारायण मुल्ला
सच है कि राजनीति के मैदान में तमाम फैक्टर काम
करते हैं, फिर भी लखनऊ का लोकतांत्रिक अंदाज़े बयां कुछ और है. यह बात मैंने 1967
के लोकसभा चुनाव में देखी, जो इस शहर के लोकतांत्रिक-मिजाज के साथ मेरा पहला अनुभव
था. उस साल यहाँ से निर्दलीय प्रत्याशी आनंद नारायण मुल्ला जीते, जो हाईकोर्ट के
पूर्व न्यायाधीश रह चुके थे और अपने दौर के नामचीन शायर थे.
1967 के चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के वीआर
मोहन और जनसंघ के आरसी शर्मा को हराया. उनके सामने खड़े दोनों प्रत्याशियों के पास
संगठन-शक्ति थी, साधन थे. मुल्ला के पास जनता का समर्थन था. लखनऊ की खासियत है
उसका गंगा-जमुनी मिजाज.
लंबे अरसे से लखनऊ भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशियों को जिताकर लोकसभा में भेज रहा है, पर जीतने वाले कट्टर हिंदूवादी नहीं हैं. और यह लखनऊ की सिफत है कि यहाँ के मुसलमान मतदाताओं का एक बड़ा तबका अटल बिहारी वाजपेयी, लालजी टंडन और राजनाथ सिंह को वोट देता रहा है.
Wednesday, March 13, 2024
कांग्रेस के सीने पर अमेठी का जख़्म
लोकसभा क्षेत्र: अमेठी
रायबरेली से सोनिया गांधी के हट जाने के बाद दूसरा बड़ा सवाल है कि क्या राहुल गांधी भी अमेठी को छोड़ेंगे? 2019 के चुनाव से इतना स्पष्ट जरूर हो गया था कि पार्टी को अब अमेठी पर पूरा भरोसा नहीं है, इसीलिए राहुल के लिए केरल की वायनाड सीट खोजी गई. स्मृति ईरानी के हाथों अमेठी में मिली हार ने पार्टी का मनोबल तोड़कर रख दिया है.
सोमवार 19 फरवरी को
राहुल गांधी और स्मृति ईरानी दोनों अमेठी में थे. उस मौके पर स्मृति ईरानी ने कहा
कि 2019 में राहुल ने अमेठी को छोड़ा था, आज अमेठी ने उन्हें
छोड़ दिया है. उन्होंने यह भी कहा कि वे अपनी जीत को लेकर आश्वस्त हैं तो वायनाड
जाए बिना अमेठी से (चुनाव) लड़कर दिखाएं.
संभव है कि राहुल
गांधी सामना करने को तैयार भी हो जाएं, पर वे
वायनाड या किसी दूसरी ‘सेफ सीट’ के बगैर ऐसा
नहीं करेंगे. संभव है परिवार का कोई सदस्य यहाँ से चुनाव लड़े. राहुल गांधी की
भारत-जोड़ो न्याय-यात्रा अमेठी से भी होकर गुज़री है. उत्तर प्रदेश कांग्रेस के
अध्यक्ष अजय राय का कहना है कि यहाँ के लोग रायबरेली और अमेठी से केवल परिवार के
ही किसी सदस्य को देखना चाहते हैं. वे 2019 की गलती को सुधारना चाहते हैं.
दूसरी ओर स्मृति ईरानी दुगने उत्साह के साथ मैदान में हैं. जिस दिन राहुल गांधी की यात्रा अमेठी पहुँची, उसी रोज उन्होंने भी अपना कार्यक्रम यहाँ रखा. वे चार दिन अमेठी में रहीं. यहाँ से चुनाव हारने के बाद राहुल गांधी अपने नए संसदीय क्षेत्र वायनाड तो कई बार गए हैं, लेकिन उन्होंने अमेठी आना छोड़ दिया. दूसरी तरफ भाजपा ने तेजी से अपने संगठन का विस्तार किया है. स्मृति ईरानी अपने कार्यकर्ताओं के संपर्क में लगातार बनी रहती हैं.
Tuesday, March 12, 2024
नेहरू-गांधी परिवार के ‘गढ़’ में दरार
लोकसभा क्षेत्र: रायबरेली
1977 के लोकसभा चुनाव का प्रचार चल रहा था. एक शाम हमारे रायबरेली संवाददाता ने खबर दी कि आज एक चुनाव सभा में राजनारायण ने कांग्रेस के चुनाव चिह्न गाय-बछड़ा को इंदिरा गांधी और संजय गांधी की निशानी बताया है. खबर बताने वाले ने राजनारायण के अंदाज़े बयां का पूरी नाटकीयता से विवरण दिया था. बावजूद इसके कि इमर्जेंसी उस समय तक हटी नहीं थी और पत्रकारों के मन का भय भी कायम था. बताने वाले को पता था कि जरूरी नहीं कि वह खबर छपे.
उस समय मीडिया भी क्या था, सिर्फ अखबार, जिनपर
संयम की तलवार थी. सवाल था कि इस खबर को हम किस तरह से छापें. बहरहाल वह खबर
बीबीसी रेडियो ने सुनाई, तो बड़ी तेजी से चर्चित हुई. मुझे याद नहीं कि अखबार में
छपी या नहीं. वह दौर था, जब खबरें अफवाहें बनकर चर्चित होती थीं. मुख्यधारा के
मीडिया में उनका प्रवेश मुश्किल होता था. चुनाव जरूर हो रहे थे, पर बहुत कम लोगों
को भरोसा था कि कांग्रेस हारेगी.
इंदिरा गांधी का चुनाव
रायबरेली पर पूरे देश की निगाहें थीं. चुनाव
परिणाम की रात लखनऊ के विधानसभा मार्ग पर स्थित पायनियर लिमिटेड के दफ्तर के गेट
पर हजारों की भीड़ जमा थी. दफ्तर के बाहर बड़े से बोर्ड पर एक ताज़ा सूचनाएं लिखी
जा रही थीं. गेट के भीतर उस ऐतिहासिक बिल्डिंग के दाएं छोर पर पहली मंजिल में
हमारे संपादकीय विभाग में सुबह की शिफ्ट से आए लोग भी देर रात तक रुके हुए थे.
बाहर की भीड़ जानना चाहती थी कि रायबरेली में
क्या हुआ. शुरू में खबरें आईं कि इंदिरा गांधी पिछड़ रही हैं, फिर लंबा सन्नाटा
खिंच गया. कोई खबर नहीं. उस रात की कहानी बाद में पता लगी कि किस तरह से रायबरेली के तत्कालीन ज़िला मजिस्ट्रेट विनोद मल्होत्रा ने
अपने ऊपर पड़ते दबाव को झटकते हुए इंदिरा गांधी की पराजय की घोषणा की. बहरहाल
रायबरेली और वहाँ के डीएम का नाम इतिहास में दर्ज हो गया.
मोदी का निशाना
इंदिरा गांधी की उस ऐतिहासिक पराजय के 47 साल बाद सत्रहवीं लोकसभा के अंतिम सत्र में राष्ट्रपति के अभिभाषण का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सदा की भांति परिवार-केंद्रित कांग्रेस पार्टी पर निशाना लगाते हुए कहा, एक ही प्रोडक्ट बार-बार लॉन्च करने के चक्कर में कांग्रेस की दुकान पर ताला लगने की नौबत आ गई है.