देस-परदेश
श्रीनगर और लेह में जी-20 कार्यक्रमों के आयोजन पर पाकिस्तान की आपत्ति को खारिज करते हुए भारत ने कहा है कि इन दोनों जगह जी-20 कार्यक्रमों का आयोजन स्वाभाविक है, क्योंकि ये भारत के अभिन्न अंग हैं. दूसरी तरफ पाकिस्तान और चीन इन आयोजनों का विरोध कर रहे हैं. कश्मीर को लेकर इन दोनों देशों की वैश्विक-डिप्लोमेसी की धार का पता भी इस दौरान लगेगा. जी-20 देश खामोश हैं और ओआईसी ने भी अभी तक कुछ कहा नहीं है.
कश्मीर और लद्दाख की इन बैठकों के पहले एक बैठक
अरुणाचल की राजधानी ईटानगर में 26 मार्च को हो चुकी है. अब श्रीनगर में 22 से 24
मई तक जी-20 टूरिज्म वर्किंग ग्रुप की बैठक होने वाली है. उसके पहले 26 से 28 अप्रेल
तक लेह में यूथ इंगेजमेंट समूह की बैठक होगी. कुल मिलाकर देश के 55 केंद्रों में
215 कार्यक्रम होंगे, पर सारी निगाहें श्रीनगर और लेह पर लगी हैं.
अटूट अंग
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने पिछले
गुरुवार अपने मंत्रालय की ब्रीफिंग के दौरान एक सवाल के जवाब में कहा, जी-20 कार्यक्रम पूरे देश में हो रहे हैं. हर क्षेत्र में इनका आयोजन
किया जा रहा है. जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में इनका आयोजन बहुत स्वाभाविक है, क्योंकि
वे भारत के अभिन्न अंग हैं. अरुणाचल की बैठक को लेकर चीन की आपत्ति पर उन्होंने
कहा कि अरुणाचल भारत का अटूट अंग था, है और रहेगा.
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने मंगलवार 11
अप्रेल को इन बैठकों के आयोजन पर तीव्र आक्रोश व्यक्त किया था. उन्होंने भारत के
इस कदम को गैर-जिम्मेदार बताया और कहा था कि इस तरह से भारत, संरा प्रस्तावों की
अनदेखी करते हुए जम्मू-कश्मीर पर अपने अवैध कब्जे को वैध बनाने का प्रयास कर रहा
है.
चीन को जवाब
गृहमंत्री अमित शाह सोमवार 10 अप्रैल को दो दिन के दौरे पर अरुणाचल पहुंचे और वहाँ एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा, भारत सुई की नोक पर भी अतिक्रमण स्वीकार नहीं करेगा. गृहमंत्री के दौरे को अपनी संप्रभुता का उल्लंघन बताते हुए चीन ने धमकी दी थी कि यह दौरा शांति के लिए खतरा पैदा कर सकता है. बीजिंग में चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने एक मीडिया ब्रीफ में दावा किया कि अरुणाचल चीन का हिस्सा है, और वहां भारत के किसी अधिकारी और नेता का दौरा हमारी संप्रभुता का उल्लंघन है.
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 की वापसी के बाद
ये बैठकें बहुत महत्वपूर्ण गतिविधि हैं. हालांकि चीन और पाकिस्तान इन क्षेत्रों को
विवादास्पद मानते हैं, पर वे खुद जिस आर्थिक सहयोग के गलियारे (सीपैक) पर काम कर
रहे हैं, वह उस इलाके से गुजरता है, जिसपर पाकिस्तान का अवैध कब्जा है. वहाँ चीनी
सेना भी तैनात है.
जी-20 की चुप्पी
हालांकि पाकिस्तान और चीन पिछले एक साल से इन
कार्यक्रमों को लेकर टिप्पणियाँ करते रहे हैं, पर जी-20 के सदस्य देशों ने अभी तक
कोई टिप्पणी नहीं की है. जी-20के सदस्य देशों में तुर्की, सऊदी अरब और इंडोनेशिया
इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) के सदस्य भी हैं. अनुच्छेद 370 की वापसी के निर्णय
की ओआईसी ने आलोचना की थी.
पिछले एक साल में पाकिस्तान ने दूसरे देशों के
अलावा इन तीन देशों में भी जाकर श्रीनगर की बैठक का विरोध किया है. हालांकि इन
कार्यक्रमों के निमंत्रण जनवरी में ही भेज दिए गए थे, पर ये देश अपने प्रतिनिधि भेजेंगे
या नहीं, यह अब देखना है. पर्यवेक्षकों का अनुमान है चूंकि अगले महीने तुर्की में
चुनाव हो रहे हैं, इसलिए संभव है कि इसके बहाने वह अनुपस्थित रहे. इंडोनेशिया और
सऊदी अरब ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की है.
पाकिस्तान जी-20 का सदस्य नहीं है और उसे इन बैठकों
का विशेष अतिथि के रूप में निमंत्रण नहीं दिया गया है, पर चीन जी-20 का सदस्य है.
गत 26 मार्च को ईटानगर में हुए यूथ-20 समारोह में चीन ने भाग नहीं लिया. संभावना
यह भी है कि वह लेह और श्रीनगर के कार्यक्रमों में हिस्सा नहीं लेगा.
विदेश-नीति की भूमिका
जी-20 की अध्यक्षता के साथ भारतीय विदेश-नीति
की दो तरह की भूमिकाएं उजागर हो रही हैं. एक, वैश्विक-राजनीति
में बढ़ते मतभेदों को दूर करने की कोशिश, और दूसरे अपने स्वतंत्र दृष्टिकोण को व्यक्त
करना. यह बात रेखांकित हो रही है कि भारत अब किसी की धौंसपट्टी में आने वाला देश
नहीं है.
श्रीनगर का कार्यक्रम
काफी विशाल आयोजन होगा, जिसका डिप्लोमैटिक-असर भी दूर तक होगा. दुनिया के सामने भारत,
कश्मीर को शोकेस करेगा. साथ ही दुष्प्रचार के उस गुब्बारे की हवा निकालेगा, जिसे अरसे
से भरा जा रहा है. चीन और पाकिस्तान के दावों को खारिज करने का यह मौक़ा है. लेह
की बैठक खासतौर से चीन को जवाब है, जिसने पूर्वी लद्दाख में गतिरोध बनाकर रखा है.
शोकेस कश्मीर
अगस्त, 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370
की वापसी के बाद से ही नहीं, स्वतंत्रता के
बाद से जम्मू-कश्मीर में होने वाला यह सबसे महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय आयोजन है. श्रीनगर
की बैठक को रोकने के लिए पाकिस्तान लगातार जी-20 में शामिल
अपने सहयोगी देशों जैसे सऊदी अरब, तुर्की और चीन के
सामने लॉबीइंग कर रहा है.
ईटानगर के कार्यक्रम
की कवरेज नहीं होने से एकबारगी लगा था कि भारत शायद चीन से इस समय टकराव मोल लेना
नहीं चाहता है. चीनी प्रतिनिधि उस बैठक में शामिल नहीं हुए, साथ ही उस बैठक के एक
हफ्ते बाद चीन ने इस राज्य के 11 स्थानों के 'नए नामों' की घोषणा की. नए नाम क्या कहें, वस्तुतः इन नामों का
आविष्कार किया गया.
नामकरण की इस घोषणा के
बाद भारत ने शुक्रवार 7 अप्रेल को अपने जी-20 कैलेंडर को
अपडेट करके घोषणा की कि श्रीनगर में 22 से 24 मई के बीच श्रीनगर में बैठक होगी और उससे पहले लेह में
26 से 28 अप्रेल को यूथ-20 की बैठक होगी.
अब उम्मीद की जा रही
हैं कि ईटानगर के विपरीत श्रीनगर और लेह के कार्यक्रमों की मीडिया कवरेज जोरदार
होगी और ताकि दुनिया के सामने संदेश जाए. इतने बड़े स्तर पर यहाँ कोई कार्यक्रम
पहली बार हो रहा है. ईटानगर की बैठक में करीब 50 प्रतिनिधि शामिल हुए थे, जबकि
श्रीनगर में उनकी संख्या ज्यादा बड़ी होगी. लेह में करीब 80 प्रतिनिधियों के शामिल
होने की संभावना है.
विदेशियों की
यात्राएं
पर्यवेक्षकों का
अनुमान है कि श्रीनगर की बैठक जम्मू-कश्मीर को राजनयिक मानचित्र पर महत्वपूर्ण
भूमिका प्रदान करेगी. इसके पहले कई देशों के नेता और प्रतिनिधि यहाँ की यात्राएं
कर चुके हैं. इनमें अमेरिका के विशेष दूत रॉबर्ट ब्लैकविल की श्रीनगर यात्रा
उल्लेखनीय है. वे सियाचिन भी गए थे. पर वह यात्रा
काफी पहले दिसंबर, 2002 में हुई थी.
अनुच्छेद 370 हटाए
जाने के बाद यूरोपियन यूनियन (ईयू) के 23 सांसदों का प्रतिनिधिमंडल भी कश्मीर के
दो दिन के दौरे पर आया था. वह दौरा देश की आंतरिक राजनीति का भी शिकार हुआ. कुछ
विरोधी दलों ने कहा कि ज्यादातर यूरोपीय सांसद दक्षिणपंथी पार्टियों के प्रतिनिधि
हैं. वे व्यक्तिगत आधार पर आए थे, ईयू या अपने देश के प्रतिनिधि के रूप में नहीं.
अमेरिकी
समर्थन
पिछले महीने अमेरिका
ने औपचारिक रूप से कहा कि भारत और चीन के बीच मैकमाहोन रेखा को हम अंतरराष्ट्रीय
सीमा मानते हैं. अमेरिकी सीनेट में लाए गए एक प्रस्ताव में अरुणाचल प्रदेश को भारत
का अभिन्न हिस्सा बताते हुए चीन की आक्रामकता के खिलाफ भारत का समर्थन दोहराया गया.
इस प्रस्ताव का दोनों प्रमुख दलों डेमोक्रेट व रिपब्लिकन का समर्थन हासिल था.
केवल अमेरिका की बात
ही नहीं है. इस मामले में पाकिस्तान को पश्चिम एशिया के देशों का समर्थन भी नहीं
मिल पाया है. इन देशों के कारोबारी, पर्यटक और डिप्लोमैट लगातार कश्मीर यात्रा पर
आ रहे हैं. यूएई के कुछ निवेशकों ने काम शुरू भी कर दिया है.
सकारात्मक
पक्ष
इतने देशों तथा
संगठनों के प्रतिनिधियों के सामने प्रकारांतर से भारत को जम्मू-कश्मीर के
सकारात्मक पक्ष को रखने का मौका मिलेगा. यूथ-20 और सिविल-20 कार्यक्रमों की
मेजबानी के लिए चुने गए देश के 15 संस्थानों में कश्मीर विश्वविद्यालय भी एक है.
लैंगिक समानता और
विकलांगता विषय पर सी-20 वर्किंग ग्रुप की बैठक कश्मीर विवि में हो चुकी है. जी-20
का एक आधिकारिक जुड़ाव समूह है सी-20. यूथ-20 कार्यक्रम, जून 2023 में वाराणसी में
होने वाले यूथ-20 समिट के लिए गठित जी-20 इंगेजमेंट ग्रुप है.
चीनी भूमिका
अगस्त, 2019 में अनुच्छेद
370 के सिलसिले में भारत सरकार के फैसले के बाद पाकिस्तान ने चीन की मदद से राजनयिक
गतिविधियों को तेज किया था. इसमें उसे सफलता नहीं मिली, पर कहानी खत्म
भी नहीं हुई. 16 अगस्त, 2019 को हुई सुरक्षा परिषद की एक बैठक में कोई औपचारिक
प्रस्ताव जारी नहीं हुआ,
पर पाकिस्तानी कोशिशें
खत्म नहीं हुईं.
इस बैठक को पाकिस्तान
अपनी उपलब्धि मानता है, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय जगत में उसकी सुनवाई
हुई. बैठक में उपस्थित ज्यादातर देशों ने इसे दोनों देशों के बीच का मामला बताया. वह
बैठक अनौपचारिक थी और इसमें हुए विचार का कोई औपचारिक दस्तावेज जारी नहीं हुआ.
पाकिस्तानी डिप्लोमेसी
की वह पराजय थी, पर इतना स्पष्ट है कि बैठक चीनी पहल पर हुई थी. पाकिस्तान के पक्ष
में हाल के वर्षों में, चीन सक्रिय भूमिका निभा रहा है. बैठक खत्म होने के बाद
चीनी दूत ने अपनी प्रेस वार्ता में पाकिस्तान का पक्ष लेते हुए ऐसा जताने का
प्रयास किया कि भारतीय कार्रवाई से विश्व समुदाय चिंतित है. यह चीन सरकार का अपना
नजरिया था. जी-20 की बैठकें चीन के इस दृष्टिकोण का खंडन करेंगी.
भारत-चीन
रिश्ते
चीन ने पिछले साल
श्रीनगर में बैठक के प्रस्ताव पर यह कहते हुए नाखुशी ज़ाहिर की थी कि ‘संबंधित पक्षों’ को किसी भी
एकतरफा कदम से स्थिति की जटिलता को बढ़ाना नहीं चाहिए. भारत और पाकिस्तान के
रिश्तों की तुलना में भारत और चीन के रिश्तों की सतह काफी अलग है.
अब इन बैठकों से आपसी
रिश्तों पर क्या प्रभाव पड़ेगा, यह कुछ समय बाद दिखाई पड़ने लगेगा. भारत और चीन के
बीच अगले कुछ महीनों में उच्चस्तरीय वार्ताएं होंगी. चीन के रक्षा और विदेश मंत्रियों
के जल्द शंघाई सहयोग संगठन की बैठक के लिए भारत आने की आशा है. हालांकि इन बैठकों
की तारीखें अभी तय नहीं हैं, पर इनमें पाकिस्तानी मंत्रियों को भी निमंत्रण दिया
गया है. वे आएंगे या नहीं, अभी स्पष्ट नहीं है.
अच्छा आलेख है
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