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Monday, May 10, 2021

सबको मुफ्त टीका देने की इच्छा-शक्ति सोई क्यों पड़ी है?


हालांकि कोविड-19 की दूसरी लहर दुनियाभर में चल रही है, पर भारत में हालात हौलनाक हैं। इससे बाहर निकलने के फौरी और दीर्घकालीन उपायों पर विचार करने की जरूरत है। जब कोरोना को रोकने का एकमात्र रास्ता वैक्सीनेशन है, तब विश्व-समुदाय सार्वभौमिक निशुल्क टीकाकरण के बारे में क्यों नहीं सोचता? ऐसा तभी होगा, जब मनुष्य-समाज की इच्छा-शक्ति जागेगी।

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने पिछले रविवार को केंद्र से कहा कि वह अपनी वैक्सीन नीति पर फिर से सोचे, साथ ही वायरस लॉकडाउन के बारे में भी विचार करे। लॉकडाउन करें, तो कमजोर वर्गों के संरक्षण की व्यवस्था भी करें। सुप्रीम कोर्ट की इस राय के अलावा संक्रामक रोगों के प्रसिद्ध अमेरिकी विशेषज्ञ डॉ एंटनी फाउची ने भारत को कुछ सुझाव दिए हैं। उनपर भी अमल करने की जरूरत है।

इसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने 30 अप्रेल को सरकार से कहा था कि वह सभी नागरिकों को मुफ्त टीका देने के बारे में विचार करे। अदालत ने कहा कि इंटरनेट पर मदद की गुहार लगा रहे नागरिकों को यह मानकर चुप नहीं कराया जा सकता कि वे गलत शिकायत कर रहे हैं। देश के 13 विपक्षी दलों ने भी रविवार को केंद्र सरकार से मुफ्त टीकाकरण अभियान चलाने का आग्रह किया।

अदालत ने 30 अप्रेल की टिप्पणी में कहा था कि केंद्र को राष्ट्रीय टीकाकरण मॉडल अपनाना चाहिए क्योंकि गरीब आदमी टीकों की कीमत देने में समर्थ नहीं है। हाशिए पर रह रहे लोगों का क्या होगा? क्या उन्हें निजी अस्पतालों की दया पर छोड़ देना चाहिए?

अमीर देशों में मुफ्त टीका

अदालत ने गरीबों के पक्ष में यह अपील ऐसे मौके पर की है, जब दुनिया के अमीर देश जनता को निशुल्क टीका लगा रहे हैं। अमेरिका में अरबपति लोगों को भी टीका मुफ्त में मिल रहा है। कहा जा सकता है कि अमीर देश इस भार को वहन कर सकते हैं, पर भारत पर यह भारी पड़ेगा। क्या वास्तव में ऐसा है? क्या यह ऐसा भार है, जिसे देश उठा नहीं सकता?