Showing posts with label इसरो. Show all posts
Showing posts with label इसरो. Show all posts

Saturday, October 21, 2023

समानव अंतरिक्ष-यात्रा की दिशा में पहला कदम


चंद्रयान-3 आदित्य एल-1 की सफलता के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने मिशन-गगनयान के टेस्ट वेहिकल की सफल लॉन्चिंग के साथ अब समानव-अंतरिक्ष यात्रा की दिशा में पहला कदम रख दिया है। भविष्य की समानव उड़ानों के मद्देनज़र यह मानवरहित परीक्षण-उड़ान बड़ी खबर है। इसरो ने टेस्ट वेहिकल एबॉर्ट मिशन-1 (टीवी-डी1) के जरिए पहले क्रू मॉड्यूल का परीक्षण किया है।

गत 21 अक्तूबर को इस मिशन की टेस्ट उड़ान टीवी-डी1 को सुबह आठ बजे लॉन्च किया जाना था, लेकिन अतिरिक्त सतर्कता बरतते हुए इसका लॉन्च टाइम आगे बढ़ा दिया गया। खराब मौसम की वजह से इसरो ने मिशन को 10 बजे लॉन्च किया। अंतरिक्ष में भेजने के बाद इसे सफलतापूर्वक बंगाल की खाड़ी में उतार लिया गया। टेस्ट फ़्लाइट की सफलता की घोषणा के साथ ही इसरो के प्रमुख एस सोमनाथ ने बधाई दी।

टीवी डी1 टेस्ट फ़्लाइट के डायरेक्टर एस शिवकुमार ने कहा, यह तीन प्रयोगों का गुलदस्ता है। हमने तीन सिस्टम की विशेषताओं को देखा है। इनमें टेस्ट वेहिकल, क्रू एस्केप सिस्टम और क्रू मॉड्यूल का पहले ही प्रयास में सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया है। 2025 में प्रस्तावित समानव-प्रक्षेपण के पहले इसरो करीब 20 प्रकार के परीक्षण करेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  2040 तक चंद्रमा पर भी भारत के अंतरिक्ष-यात्री को पहुँचाने की घोषणा कर चुके हैं। 

Sunday, August 27, 2023

चंद्रयान-3 ने खोले संभावनाओं के द्वार


चंद्रयान-3 की सफलता ने देश-विदेश में करोड़ों भारतीयों को खुशी का मौका दिया है। इतिहास में ऐसे अवसर कभी-कभी आते हैं, जब इस तरह करोड़ों भावनाएं एकाकार होती हैं। दुनिया ने भारत को स्पेस-पावर के रूप में स्वीकार कर लिया है। हालांकि रूस और अमेरिका पाँच दशक पहले चंद्रमा पर विजय प्राप्त कर चुके हैं, फिर भी भारत की यह उपलब्धि बहुत महत्वपूर्ण है। अमेरिका और तत्कालीन सोवियत संघ के संसाधनों को देखते हुए हमारी उपलब्धि हल्की नहीं है। चंद्रयान की इस सफलता के चार दिन पहले ही रूस को चंद्रमा पर निराशा का सामना करना पड़ा। भारत ने जिस तकनीक और किफायत से इस उपलब्धि को हासिल किया, उसपर गौर करने की जरूरत है। किफायती हाई-टेक के क्षेत्र में भारत ने अपने झंडे गाड़े हैं। चंद्रयान-2 की विफलता से हासिल अनुभव का इसरो ने फायदा उठाया और उन सारी गलतियों को दूर कर दिया, जो पिछली बार हुई थीं। उन्नत चंद्रयान-3 लैंडर को आकार देने के लिए 21 उप-प्रणालियों को बदला गया। ऐसी व्यवस्था की गई कि यदि किसी एक पुर्जे या प्रक्रिया में खराबी आ जाए, तो दूसरा उसकी जगह काम संभाल लेगा। लैंडिंग की प्रक्रिया को मिनटों और सेकंडों के छोटे-छोटे कालखंडों में बाँटकर इस तरह से संयोजित किया गया कि अभियान के विफल होने की संभावना ही नहीं बची।

14 दिन का कार्यक्रम

चंद्रयान-3 के तीन बड़े लक्ष्य हैं। इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए चंद्रयान के पास 14 दिन का समय है। पहला, चंद्र सतह पर सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग की क्षमता प्रदर्शित करना। दूसरा, रोवर प्रज्ञान का चंद्रमा की सतह पर भ्रमण और तीसरा वैज्ञानिक प्रयोगों को पूरा करना। इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए लैंडर व रोवर में सात पेलोड लगे हैं। विक्रम और प्रज्ञान दोनों ही सौर ऊर्जा से संचालित हैं। जिस इलाके में ये उतरे हैं, वहाँ सूरज की रोशनी तिरछी पड़ती है। सूर्य से प्राप्त ऊर्जा का इस्तेमाल करने के लिए इनमें लंबवत यानी खड़े सोलर पैनल लगे हैं। भविष्य में चंद्रमा को डीप स्पेस स्टेशन के तौर पर इस्तेमाल करने के लिहाज से 14 दिन के ये प्रयोग अहम साबित होंगे। इन क्रेटरों में इंसान भविष्य में टेलिस्कोप लगाकर सुदूर अंतरिक्ष का अध्ययन कर सकता है। यहाँ से बहुमूल्य खनिजों को हासिल किया जा सकता है। 

Thursday, July 13, 2023

चंद्रयान-3 से जुड़ी है भारत की राष्ट्रीय-प्रतिष्ठा


इस हफ्ते 14 जुलाई को भारत के चंद्रयान-3 का प्रक्षेपण प्रस्तावित है. यह देश का तीसरा चंद्रयान मिशन है, जिसके साथ बहुत सी बातें जुड़ी हुई हैं. सबसे बड़ी बात राष्ट्रीय-प्रतिष्ठा की है. अंतरिक्ष-विज्ञान में सफलता को तकनीकी श्रेष्ठता का मापदंड माना जाता है. एक ज़माने में रूस और अमेरिका के बीच अंतरिक्ष में प्रतियोगिता थी. वैसा ही कुछ अब अमेरिका और चीन के बीच देखने को मिल रहा है. अब भारत भी इस प्रतियोगिता में शामिल हो गया है.  

प्रतिष्ठा की मनोकामना, प्रतियोगिता को बढ़ाती है. लंबे समय तक भारत की छवि पोंगापंथी, गरीब, पिछड़े और अराजक देश के रूप में रही या बनाई गई, पर अब उसमें तेजी से बदलाव आ रहा है. बेशक हम गरीब हैं, पर हमारे लोगों ने तकनीकी कौशल का प्रदर्शन किया है. भारतीय इंजीनियरों, डॉक्टरों और अंतरिक्ष-विज्ञानियों से लेकर अर्थशास्त्रियों तक ने दुनिया में अपनी श्रेष्ठता साबित की है. 

उपहास और तारीफ़

2014 में भारत के मिशन मंगलयान की सफलता पर अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्समें एक कार्टून छपा, जिसमें भारतीय कार्यक्रम का मज़ाक बनाया गया था. कार्टून में दिखाया गया था कि एक किसान, बैल को लेकर मंगल ग्रह पर पहुंचकर दरवाज़ा खटखटा रहा है और अंदर तीन-चार विकसित, पश्चिमी देशों के वैज्ञानिक बैठे हुए हैं और लिखा हुआ है एलीट स्पेस क्लब.

इस कार्टून को लेकर न्यूयॉर्क टाइम्स को काफ़ी आलोचना झेलनी पड़ी और कई पाठकों ने इसे भारत जैसे विकासशील देशों के प्रति पूर्वग्रह से ग्रस्त बताया. पाठकों की तीखी प्रतिक्रिया के बाद अखबार ने माफ़ी माँग ली.  

उसी न्यूयॉर्क टाइम्स ने पिछले हफ्ते 6 जुलाई को भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की तारीफ की है. ‘विश्व के अंतरिक्ष व्यवसाय में आश्चर्यजनक प्रयास’ शीर्षक आलेख में अखबार ने लिखा है कि जिस तरह से भारत अंतरिक्ष कार्यक्रमों में छलांग लगा रहा है, उससे लगता है कि वह चीन को टक्कर देने की स्थिति में आ गया है.

चीन को टक्कर

अखबार ने लिखा, दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में अंतरिक्ष-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में तेजी से स्टार्ट-अप विकसित हो रहे हैं और संकेत दे रहे हैं कि वह इस क्षेत्र में व्यापक बदलाव ला सकता है तथा चीन को भी ‘बराबर की टक्कर’ देने वाली ताकत के रूप में उभर सकता है.

भारत में कम से कम 140 पंजीकृत अंतरिक्ष-प्रौद्योगिकी स्टार्ट-अप हैं, जिनमें एक स्थानीय अनुसंधान क्षेत्र भी शामिल है. यह इस क्षेत्र में व्यापक बदलाव ला सकता है. अमेरिका ने भारत को ‘नवोन्मेष का एक संपन्न केंद्र’ और ‘दुनिया में सबसे प्रतिस्पर्धी प्रक्षेपण स्थलों में से एक’ माना है.

Friday, November 18, 2022

विक्रम-एस के साथ भारत के निजी क्षेत्र की अंतरिक्ष में लंबी छलाँग

 


निजी क्षेत्र के पहले अंतरिक्ष रॉकेट के प्रक्षेपण के साथ इसरो और हैदराबाद की कंपनी स्काईरूट ने इतिहास रच दिया। स्काईरूट एयरोस्पेस के रॉकेट विक्रम-एस की यह परीक्षण उड़ान थी। इसे नाम दिया गया मिशन प्रारंभ। इस मिशन के तीन पेलोड थे और यह सब ऑर्बिटल मिशन था। विक्रम-एस उप-कक्षीय उड़ान में चेन्नई के स्टार्टअप स्पेस किड्ज, आंध्र प्रदेश के स्टार्ट-अप एन-स्पेस टेक और आर्मेनियाई स्टार्ट-अप बाजूमक्यू स्पेस रिसर्च लैब के तीन पेलोड ले गया था। यानी पृथ्वी की सतह से 89.5 किलोमीटर की अधिकतम ऊँचाई तक जाने के बाद रॉकेट समुद्र में गिर गया। इसरो ने इस मिशन के प्रक्षेपण के लिए स्काईरूट एयरोस्पेस को 12 नवंबर से 16 नवंबर का विंडो दिया था, लेकिन मौसम को देखते हुए इसका प्रक्षेपण 18 नवंबर को सुबह 11.30 बजे किया गया।

इसरो ने किया प्रक्षेपण

यह पहली बार था जब इसरो ने किसी निजी कंपनी के मिशन का अपने लॉन्चिंग पैड से प्रक्षेपण किया है। इसकी वजह है कि भारतीय निजी क्षेत्र अभी इतना सबल नहीं है कि अपने प्रक्षेपण स्थल विकसित कर सके। स्काईरूट एयरोस्पेस एक स्टार्टअप है, जो चार साल से काम कर रहा है। उसने इस अभियान के साथ अपनी महत्वाकांक्षा को उजागर कर दिया है। अब जब भी भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम में निजी क्षेत्र का जिक्र होगा, उसका नाम सबसे पहले लिया जाएगा।

इसरो के पूर्व वैज्ञानिक पवन कुमार चंदन और नागा भारत डाका ने 2018 में स्टार्टअप के रूप में स्काईरूट एयरोस्पेस की स्थापना की थी। इसके सीईओ पवन कुमार चंदन ने बताया कि इस मिशन के लिए इसरो की ओर से कई तकनीकी सुविधाएं मुहैया कराई गईं। वे कहते हैं, इसरो ने इसके लिए बहुत ही मामूली फ़ीस ली है। अगले एक दशक में कंपनी ने 20,000 छोटे सैटेलाइट छोड़ने का लक्ष्य रखा है। कंपनी की वेबसाइट पर लिखा है कि “अंतरिक्ष में सैटेलाइट भेजना अब टैक्सी बुक करने जैसा, तेज़, सटीक और सस्ता हो जाएगा।” 

भारत सरकार इन दिनों हर क्षेत्र में निजी क्षेत्र को बढ़ावा दे रही है और जल्द ही अंतरिक्ष अनुसंधान में निजी क्षेत्र की भूमिका के सिलसिले में नई नीतियों की घोषणा करने वाली है। जून 2020 में मोदी सरकार ने इस क्षेत्र में बदलाव की शुरुआत की थी, जिसके बाद निजी कंपनियों के लिए रास्ता खुला। इसके लिए इन-स्पेस ई नामक एक नई संस्था बनाई गई जो इसरो और स्पेस कंपनियों के बीच पुल का काम करती है। सरकार चाहती है कि छोटे मिशनों का भार, जो इसरो पर रहा है वह अब प्राइवेट सेक्टर को दिया जाए, ताकि इसरो बड़े मिशनों पर फोकस कर सके। भारत में कॉमर्शियल मार्केट भी बढ़ेगा, जिससे इसरो को अपने बड़े मिशन पर काम करने का वक्त मिल पाएगा।

Saturday, November 7, 2020

ईओएस-01 उपग्रह का प्रक्षेपण


भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने आज 7 नवंबर को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से अपने पीएसएलवी-सी49 प्रक्षेपण यान की सहायता से 10 उपग्रहों को कक्षा में स्थापित किया। इनमें भारत का नवीनतम भू-पर्यवेक्षण उपग्रह ईओएस-01 और नौ विदेशी उपग्रह शामिल हैं। इन्हें प्रक्षेपण के बाद सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित कर दिया गया।

इस साल 23 मार्च को राष्ट्रव्यापी कोरोनावायरस लॉकडाउन शुरू होने के बाद से यह राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी का पहला प्रक्षेपण है। लॉन्च 26 घंटे की उलटी गिनती के बाद दोपहर 3.12 बजे हुआ। उड़ान मार्ग में मलबा आने के कारण प्रक्षेपण में 10 मिनट की देरी हुई।