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9 अप्रैल 2024 की इस तस्वीर में इंडिया के ज़ेर-ए-इंतज़ाम कश्मीर के दार-उल-हुकूमत श्रीनगर के एक बाज़ार में लोगों का हुजूम देखा जा सकता है। फोटो: तौसीफ़ मुस्तफ़ा एएफ़पी |
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नईमा अहमद महजूर |
एक ज़माने में मैं बीबीसी की हिंदी और
उर्दू प्रसारण सेवाओं को नियमित रूप से सुनता था। सुबह और शाम दोनों वक्त। उसकी एक वजह लखनऊ के नवभारत टाइम्स का दैनिक कॉलम 'परदेस' था, जिसे मैं लिखने लगा था, यों बीबीसी का श्रोता मैं 1965 से था, जब भारत-पाकिस्तान लड़ाई हुई थी। बहरहाल नव्वे के दशक में बीबीसी उर्दू
सेवा के दो प्रसारक ऐसे थे, जो हिंदी के कार्यक्रमों में भी सुनाई पड़ते थे। उनमें
एक थे शफी नक़ी जामी और दूसरी नईमा अहमद महजूर। कार्यक्रमों को पेश करने में दोनों
का जवाब नहीं। नईमा अहमद कश्मीर से हैं और उनकी प्रसिद्धि केवल बीबीसी की वजह से
नहीं है। वे पत्रकार होने के साथ कथा लेखिका भी हैं। हाल में इंटरनेट की सैर करते हुए मुझे उनका एक लेख पाकिस्तान के अखबार 'इंडिपेंडेंट 'में पढ़ने को मिला।
उर्दू अखबार के लेख को मैं यों तो पढ़ नहीं पाता, पर तकनीक ने अनुवाद और लिप्यंतरण
की सुविधाएं उपलब्ध करा दी हैं। उर्दू के मामले में मैं दोनों की सहायता लेता हूँ,
पर वरीयता मैं लिप्यंतरण को देता हूँ। लिप्यंतरण भी शत-प्रतिशत सही नहीं होता। इस
लेख में भी मैंने कुछ जगह बदलाव किए हैं। बहरहाल लिप्यंतरण से जुड़े मसलों और
कश्मीर की स्थितियों को समझने की कोशिश में मैंने इस लेख को चुना है। आप पढ़ें और
यदि सुझाव दे सकें, तो दें। लेख के अंत में आपकी टिप्पणी के लिए जगह है। यह लेख
काफी ताज़ा है और श्रीनगर के हालात से जुड़ा है। मैं समझता हूँ कि आप भी इसे पढ़ना
चाहेंगे।
1 जुमा, 12
अप्रैल 2024
लंदन में पाँच साल रहने के बाद जब मैंने इंडिया
के ज़ेर-ए-इंतज़ाम कश्मीर जाने के लिए एयरपोर्ट की राह इख़्तियार की तो अपने आबाई घर
पहुंचने का वो तजस्सुस (जिज्ञासा) और जल्दी नहीं थी, जो
माज़ी (अतीत) में दौरां सफ़र मैंने हमेशा महसूस की है।
मेरे ज़हन में2019 की
यादें ताज़ा हैं।
दिल्ली से श्रीनगर का सफ़र कश्मीरी मुसाफ़िरों के
साथ हमकलाम होने में गुज़र जाता। आज तय्यारे में चंद ही कश्मीरी पीछे की नशिस्तों
पर बैठे थे जबकि पूरा तय्यारा जापानी और इंडियन सय्याहों (यात्रियों) से भरा पड़ा
था।
क्या कश्मीरी हवाई सफ़र कम करने लगे हैं या
सय्याहों की तादाद के बाइस (कारण)
टिकट नहीं मिलता या फिर वो अब महंगे टिकट ख़रीदने की सकत नहीं रखते?
अपने ज़हन को झटक कर मैंने दुबारा पीछे की जानिब
नज़र दौड़ाई शायद कोई जान पहचान वाला नज़र आ जाए। जापानी सय्याह मुँह पर मास्क चढ़ाए
मज़े की नींद सो रहे थे और इंडियन खिड़कियों से बाहर बरफ़पोश पहाड़ों की फोटोग्राफी
में मसरूफ़ थे।
आर्टिकल-370 को
हटाने के बाद इंडियन आबादी को बावर (यकीन) कराया गया है कि इस के ज़ेर-ए-इंतज़ाम
जम्मू-ओ-कश्मीर को जैसे आज़ाद करा के इंडिया में शामिल कर दिया गया है।