Friday, October 10, 2025

विदेश-नीति के ‘संतुलन’ की परीक्षा


इस साल पहले टैरिफ और फिर ऑपरेशन सिंदूर को लेकर अमेरिकी रुख में आए बदलाव पर भारत की ओर से कोई तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की गई, पर देश में आक्रोश की लहर थी। शुरू में समझ नहीं आता था, पर अब धीरे-धीरे लगता है कि भारत और अमेरिका के बीच, पिछले दो दशक से चली आ रही सौहार्द-नीति में कोई बड़ा मोड़ आने वाला है। कुछ वर्षों से यह सवाल किया जा रहा है कि भारत एक तरफ रूस और चीन और दूसरी तरफ अमेरिका के बीच अपनी विदेश-नीति को किस तरह संतुलित करेगा? इसे स्पष्ट करने की घड़ी अब आ रही है।

भारत ने तालिबान, पाकिस्तान, चीन और रूस के साथ मिलकर अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के अफ़ग़ानिस्तान स्थित बगराम एयरबेस पर कब्ज़ा करने के प्रयास का विरोध किया है। यह अप्रत्याशित घटना तालिबान के विदेशमंत्री आमिर ख़ान मुत्तक़ी की इस हफ़्ते के अंत में होने वाली भारत-यात्रा से कुछ दिन पहले हुई है। अफगानिस्तान पर मॉस्को प्रारूप परामर्श के प्रतिभागियों द्वारा मंगलवार को जारी संयुक्त बयान में बगराम का नाम लिए बिना यह बात कही गई।

अफ़ग़ानिस्तान पर मॉस्को प्रारूप परामर्श की सातवीं बैठक मॉस्को में अफ़ग़ानिस्तान, भारत, ईरान, क़ज़ाक़िस्तान, चीन, किर्गिस्तान, पाकिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान के विशेष प्रतिनिधियों और वरिष्ठ अधिकारियों के स्तर पर आयोजित की गई थी। बेलारूस का एक प्रतिनिधिमंडल भी अतिथि के रूप में बैठक में शामिल हुआ। इस बैठक में पहली बार विदेशमंत्री अमीर खान मुत्तकी के नेतृत्व में अफगान प्रतिनिधिमंडल ने भी सदस्य के रूप में भाग लिया।

इसके पहले ट्रंप ने कहा था कि तालिबान, देश के बगराम एयर बेस को वाशिंगटन को सौंप दें। सच यह है कि ट्रंप ने ही पाँच साल पहले तालिबान के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसने काबुल से अमेरिका की वापसी का रास्ता साफ किया था। पिछली 18 सितंबर को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर के साथ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में ट्रंप ने कहा, ‘हमने इसे तालिबान को मुफ्त में दे दिया। अब हमें वह अड्डा वापस चाहिए।’

Wednesday, October 8, 2025

गज़ा शांति-योजना, सपना है या सच?


29 सितंबर को अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू के साथ खड़े होकर गज़ा में ‘शाश्वत शांति’ के लिए 20-सूत्री योजना पेश की थी. ट्रंप को यकीन है कि अब गज़ा में शांति स्थापित हो सकेगी, पर एक हफ्ते के भीतर ही इसकी विसंगतियाँ सामने आने लगीं हैं.

असल बात यह कि अभी यह योजना है, समझौता नहीं. योजना के अनुसार,  दोनों पक्ष सहमत हुए, तो युद्ध तुरंत समाप्त हो जाएगा. बंधकों की रिहाई की तैयारी के लिए इसराइली सेना आंशिक रूप से पीछे हट जाएगी. इसराइल की ‘पूर्ण चरणबद्ध वापसी’ की शर्तें पूरी होने तक सभी सैन्य अभियान स्थगित कर दिए जाएँगे और जो जहाँ है, वहाँ बना रहेगा.

कुल मिलाकर यह एक छोटे लक्ष्य की दिशा में बड़ा कदम है. इससे पश्चिम एशिया या फलस्तीन की समस्या का समाधान नहीं निकल जाएगा, पर यदि यह सफल हुई, तो इससे कुछ निर्णायक बातें साबित होंगी. उनसे टू स्टेट समाधान का रास्ता खुल भी सकता है, पर इसमें अनेक किंतु-परंतु जुड़े हैं.

हालाँकि हमास ने इसराइली बंधकों को रिहा करने पर सहमति व्यक्त की है, लेकिन वे कुछ मुद्दों पर चर्चा करना चाहते हैं. ट्रंप ने हमास के बयान को सकारात्मक माना है, लेकिन अभी तक उनकी बातचीत की माँग के बारे में कुछ नहीं कहा है.

इसराइल ने कहा है कि ट्रंप की योजना के पहले चरण के तहत गज़ा में सैन्य अभियान सीमित रहेंगे, लेकिन उसने यह नहीं कहा है कि हमले पूरी तरह से बंद हो जाएंगे या नहीं.

इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू का कहना है कि यह योजना इसराइल के युद्ध उद्देश्यों के अनुरूप है, वहीं अरब और मुस्लिम नेताओं ने इस पहल का शांति की दिशा में एक कदम के रूप में स्वागत किया है. लेकिन एक महत्वपूर्ण आवाज़ गायब है-वह है फ़लस्तीनी लोगों के किसी प्रतिनिधि की.

Thursday, October 2, 2025

इन नौ रावणों का भी अंत होना चाहिए


रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों के लेखन का उद्देश्य वेद के गूढ़ ज्ञान को सरल करना था. कोशिश यह थी कि आम लोगों को ये बातें कहानियों के रूप में सरल भाषा में समझाई जाएँ, ताकि उन्हें उनके कर्तव्यों की शिक्षा दी जा सके.

भारतीय संस्कृति के प्राचीन सूत्रधारों ने ज्ञान को कहानियों, अलंकारों और प्रतीकों की भाषा में लिखा. ऐसी घटनाएँ और ऐसे पात्र हर युग में होते हैं. उनके नाम और रूप बदल जाते हैं, इसलिए इनके गूढ़ार्थ को आधुनिक संदर्भों में भी देखने की ज़रूरत है.

तुलसी के रामचरित मानस और वाल्मीकि की रामायण में रावण को दुष्ट व्यक्ति के रूप में दिखाया गया है, जिसका वध राम ने किया. यह कहानी प्रतीक रूप में है, जिसके पीछे व्यक्ति और समाज के दोषों से लड़ने का आह्वान है.

हमारे पौराणिक ग्रंथों में वर्णित रावण के दस सिरों की अनेक व्याख्याएँ हैं. मोटे तौर पर वे दस नकारात्मक प्रवृत्तियों के प्रतीक हैं. ये प्रवृत्तियाँ हैं काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, घृणा, ईर्ष्या, द्वेष एवं भय. इन प्रवृत्तियों के कारण व्यक्ति रावण है.

रावण के पुतले का दहन इन बुराइयों को दूर करने और अच्छाई के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है. एक परिभाषा से नौ प्रकार के रावण नौ प्रकार की दुष्प्रवृत्तियों के प्रतिनिधि हैं, जिन्हें रावण के दस सिरों से समझा जा सकता है. ऐसा भी माना जाता है कि रावण का एक सिर सकारात्मक ज्ञान का प्रतीक है, और शेष नौ नकारात्मक प्रवृत्तियों के प्रतिनिधि.  

सैकड़ों साल से रावण के पुतलों का हम दहन करते आए हैं, क्या उसी रावण को हम आज भी मारना चाहते हैं? क्या उन्हीं प्रवृत्तियों से हम लड़ते रहेंगे? क्या हमें उन नई प्रवृत्तियों के विरुद्ध लड़ाई नहीं लड़नी चाहिए, जो आज के संदर्भ में प्रासंगिक हैं.

रामायण बताती है कि रावण विद्वान व्यक्ति था और नीति का विशेषज्ञ, पर उसके अवगुण उसे दुष्ट व्यक्ति बनाते थे. उसके दस सिरों में केवल एक सकारात्मक ज्ञान का प्रतीक था, शेष नौ अवगुणों के. प्रश्न है आज की परिस्थितियों में हम कौन से अवगुणों से युक्त नौ रावणों को मारना चाहेंगे? ऐसे नौ रावण, जिनका मरना देश और मानवता के हित में जरूरी है?

Wednesday, October 1, 2025

बिगड़ती विश्व-व्यवस्था और संयुक्त राष्ट्र


सितंबर के महीने में हर साल होने वाले संरा महासभा के सालाना अधिवेशन का राजनीतिक-दृष्टि से कोई विशेष महत्व नहीं होता. अलबत्ता 190 से ऊपर देशों के शासनाध्यक्ष या उनके प्रतिनिधि सारी दुनिया से अपनी बात कहते हैं, जिसमें राजनीति भी शामिल होती है.

भारत के नज़रिए से देखें, तो पिछले कई दशकों से इस दौरान भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्तों की कड़वाहट सामने आती रही है. भारत भले ही पाकिस्तान का ज़िक्र न करे पर पाकिस्तानी नेता किसी न किसी तरीके से भारत पर निशाना लगाते हैं.

यह अंतर दोनों देशों के वैश्विक दृष्टिकोण को रेखांकित करता है. दोनों देशों के नेताओं के पिछले कुछ वर्षों के भाषणों का तुलनात्मक अध्ययन करें, तो पाएँगे कि पाकिस्तान का सारा जोर कश्मीर मसले के अंतरराष्ट्रीयकरण और उसकी नाटकीयता पर होता है और भारत का वैश्विक-व्यवस्था पर.

इस वर्ष इस अधिवेशन पर हालिया सैनिक-टकराव की छाया भी थी। ऐसे में इन भाषणों पर सबकी निगाहें थी, पर इस बार अमेरिका के राष्ट्रपति के भाषण ने भी हमारा ध्यान खींचा, जिसपर आमतौर पर हम पहले ध्यान नहीं देते थे.

दक्षिण एशिया

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ और भारत के विदेशमंत्री एस जयशंकर के भाषणों में उस कड़वाहट का ज़िक्र था, जिसके कारण दक्षिण एशिया दुनिया के सबसे पिछड़े इलाकों में बना हुआ है. अलबत्ता जयशंकर ने भारत की वैश्विक भूमिका का भी ज़िक्र किया.

इससे पहले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने मई में तनाव बढ़ने के दौरान पाकिस्तान को राजनयिक समर्थन देने के लिए चीन, तुर्की, सऊदी अरब, क़तर, अजरबैजान, ईरान, संयुक्त अरब अमीरात और संयुक्त राष्ट्र महासचिव सहित पाकिस्तान के ‘मित्रों और साझेदारों’ को धन्यवाद दिया.

उन्होंने एक से ज्यादा बार भारत का नाम लिया और यहाँ तक कहा कि पाकिस्तान ने भारत के साथ युद्ध जीत लिया है और अब हम शांति जीतना चाहते हैं.

उनके इस दावे के जवाब में भारत के स्थायी मिशन की फ़र्स्ट सेक्रेटरी पेटल गहलोत ने 'राइट टू रिप्लाई' का इस्तेमाल करते हुए कहा, ‘तस्वीरों को देखें, अगर तबाह रनवे और जले हैंगर जीत है, तो पाकिस्तान आनंद ले सकता है.’

उन्होंने कहा, इस सभा ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की बेतुकी नौटंकी देखी, जिन्होंने एक बार फिर आतंकवाद का महिमामंडन किया, जो उनकी विदेश नीति का मूल हिस्सा है.’