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Thursday, August 22, 2024

दक्षिण एशिया में भारत पर बढ़ता दबाव


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को भारत की ओर से ‘ग्लोबल साउथ' के लिए कुछ पहलों की घोषणाएं की हैं, वहीं कुछ पर्यवेक्षक बांग्लादेश की परिघटना का हवाला देते हुए कह रहे हैं कि भारत की भूमिका, दक्षिण एशिया में कमतर हो रही हैं, ऐसे में ‘ग्लोबल साउथ' को कैसे साध पाएंगे

चीन के ‘बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव' (बीआरआई) के तहत कई देशों के ‘ऋण-जाल' में फँसने की चिंताओं के बीच पीएम मोदी ने भारत द्वारा आयोजित तीसरे ‘वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ' सम्मेलन में ‘कॉम्पैक्ट' (वैश्विक विकास समझौते) की घोषणा की.

शिखर सम्मेलन के समापन सत्र में उन्होंने कहा, मैं भारत की ओर से एक व्यापक वैश्विक विकास समझौतेका प्रस्ताव रखना चाहूंगा. इस समझौते की नींव भारत की विकास यात्रा और विकास साझेदारी के अनुभवों पर आधारित होगी.

भारत की पहल

शिखर सम्मेलन में भारत समेत 123 देशों ने हिस्सा लिया और ग्लोबल साउथ की साझा चिंताओं और प्राथमिकताओं पर विचार-विमर्श किया. उल्लेखनीय है कि चीन और पाकिस्तान इस सम्मेलन में शामिल नहीं थे. बांग्लादेश के शासनाध्यक्ष डॉ यूनुस ने इसमें भाग लिया.

सम्मेलन के वैचारिक-पक्ष को विदेशमंत्री डॉ एस जयशंकर ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में स्पष्ट करते हुए कहा कि इसकी टाइमिंग महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके बाद न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र का समिट ऑफ द फ्यूचर होगा. जिन मुद्दों पर यहां चर्चा हुई है, उन पर वहाँ भी चर्चा होगी.

फिलहाल यह सम्मेलन भारत की पहल और विकासशील देशों के बीच उसकी आवाज़ को रेखांकित करता है. चीन भी इस दिशा में सक्रिय है. ग्लोबल साउथ से ज्यादा इस समय बड़े सवाल दक्षिण एशिया को लेकर पूछे जा रहे हैं.

विस्मृत दक्षिण एशिया

एक विशेषज्ञ ने तो यहाँ तक माना है कि दक्षिण एशिया जैसी भौगोलिक-राजनीतिक पहचान अब विलीन हो चुकी है. जैसे पश्चिम एशिया या दक्षिण पूर्व एशिया की पहचान है, वैसी पहचान दक्षिण एशिया की नहीं है. इसका सबसे बड़ा कारण है भारत-पाकिस्तान गतिरोध.

बांग्लादेश में शेख हसीना के पराभव और आसपास के ज्यादातर देशों में भारत-विरोधी राजनीतिक ताकतों के सबल होने के कारण पूछा जाने लगा है कि क्या इस दक्षिण एशिया में भारत का रसूख पूरी तरह खत्म हो गया है? इस इलाके के सर्वाधिक प्रभावशाली देश के रूप में क्या अब चीन स्थापित हो गया है, या हो जाएगा?

ऐसे सवालों का जवाब देने की घड़ी अब आ रही है. जवाब संयुक्त राष्ट्र के सुधार कार्यक्रमों और भारतीय अर्थव्यवस्था के बदलते आकार में छिपे हैं. ये दोनों बातें एक-दूसरे से जुड़ी हुई भी हैं.

नेबरहुड फर्स्ट

2014 में नरेंद्र मोदी ने जब पहली बार भारत के प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली थी तो उन्होंने पड़ोसी देशों के शासनाध्यक्षों को भारत आने का न्योता देकर चौंकाया था. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ भी उसमें शामिल हुए थे.

मोदी सरकार पहले दिन से कहती रही है कि भारत की विदेश नीति में पड़ोसी देशों को सबसे ज़्यादा महत्व मिलेगा. इसे 'नेबरहुड फ़र्स्ट' का नाम दिया गया है. मतलब यह कि दूर के देशों की तुलना में भारत, पड़ोसी देशों को ज़्यादा अहमियत देगा.

कोरोना महामारी के समय सहायता पहुँचाने और खासतौर से वैक्सीन देते समय ऐसा दिखाई भी पड़ा. बावजूद इसके दक्षिण एशिया में कारोबारी सहयोग का वैसा माहौल नहीं है, जैसा दक्षिण पूर्व एशिया सहयोग संगठन आसियान में है.

वैश्विक राजनीति

इस दौरान भारत ने अपने आर्थिक और सामरिक-संबंधों के लिए अमेरिका, रूस, जापान और इसराइल जैसे देशों को वरीयता दी. दक्षिण एशिया की तुलवा में उसके पश्चिम एशिया में यूएई, सऊदी अरब और ईरान के साथ रिश्ते बेहतर हैं. मोदी सरकार के पहले छह वर्षों में चीन से रिश्ते सुधारने की कोशिशें भी हुई थीं.

प्रधानमंत्री के रूप में मोदी के नेपाल (अगस्त, 2014), श्रीलंका (मार्च, 2015) और बांग्लादेश (जून, 2015) में गर्मजोशी से स्वागत किया गया था. पाकिस्तान के साथ भी कुछ समय तक यह गर्मजोशी रही, पर जनवरी 2016 में पठानकोट हमले के बाद वह बात खत्म हो गई और फरवरी 2019 में पुलवामा और बालाकोट जैसी घटनाओं के बाद बड़े युद्ध की आशंकाओं ने जन्म भी दिया.

अगस्त, 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 की वापसी ने दोनों देशों के रिश्तों को ऐसा सीलबंद किया है कि उसके खुलने का अबतक इंतज़ार है. पाकिस्तान ने तो औपचारिक रूप से भारत के साथ व्यापारिक रिश्ते बंद ही कर रखे हैं.

श्रीलंका और मालदीव

भारी आर्थिक संकट के दौर में भारत ने श्रीलंका की काफी मदद की थी, वहां की सरकार ने भी दिल्ली की टेढ़ी निगाहों को नज़रंदाज़ किया और चीन के जासूसी जहाज को अपने बंदरगाह पर लंगर डालने की अनुमति दी थी. ऐसा ही मालदीव में हुआ, जहाँ इंडिया आउट जैसा अभियान चला.

इस आंदोलन के सहारे भारत-समर्थक सरकार को सत्ता से हटा कर राष्ट्रपति बने मोहम्मद मुइज़्ज़ू ने अपने देश से भारतीय सैन्यकर्मियों को हटाया और चीनी जासूसी जहाज को लंगर डालने की अनुमति दी, जबकि श्रीलंका तक ने उस जहाज को आने से रोक दिया है.

नेपाल में नए संविधान को लागू करने के दौरान भारत के मौन समर्थन से चलाए गए 'आर्थिक नाकेबंदी' कार्यक्रम को लेकर जो बदमज़गी पैदा हुई थी, वह दोनों देशों की सीमा को लेकर विवाद में बदल चुकी है. नेपाल ने अपने नए आधिकारिक नक्शे के रूप में उस कड़वाहट को स्थायी रूप दे दिया है.

इस क्षेत्र का सबसे शांत देश भूटान सामरिक, विदेशी और आर्थिक, लगभग तमाम मामलों में भारत पर निर्भर है, उसने भी अकेले अपने दम पर चीन के साथ सीमा पर बातचीत शुरू कर दी है. केवल बातचीत ही शुरू नहीं की है, बल्कि राजनयिक स्तर पर रिश्ते बनाने की शुरुआत भी कर दी है.

हसीना का पराभव

इतने देशों के साथ कड़वाहट के बावज़ूद भारत-बांग्लादेश रिश्ते बेहतर स्थिति में थे. अब वहाँ शेख हसीना को अपदस्थ होना पड़ा है और वहाँ ऐसी राजनीतिक शक्तियाँ सक्रिय हो गई हैं, जिन्हें भारत का मित्र नहीं कहा जा सकता.

क्या यह बात भारत की विदेश नीति के दोषों की ओर इशारा कर रही है या ऐसी वैश्विक-परिस्थितियों की ओर इशारा कर रही हैं, जिनमें चीन-अमेरिका और यूरोपीय देशों की भूमिका है? या यह मानें कि दक्षिण एशिया के सामाजिक-सांस्कृतिक इतिहास और इस क्षेत्र की भू-राजनीतिक संरचना के कारण इस इलाके के देश भारत की केंद्रीयता को स्वीकार करने में हिचकते हैं?

पहले यह स्वीकार करना होगा कि दक्षिण एशिया दुनिया का सबसे कम एकीकृत क्षेत्र है. यहां एक देश से दूसरे देश में आवाजाही या अंतरराष्ट्रीय सीमा संबंध जितने कठिन और जटिल हैं, उतना दुनिया के किसी और इलाक़े में नहीं हैं.

कारोबार की बात करें तो ग़रीब अफ़्रीकी देशों के बीच जितना आपसी व्यापार होता है उसकी तुलना में भी दक्षिण एशिया के देशों का आपसी व्यापार नहीं होता है, जबकि इस क्षेत्र में 200 करोड़ से ज़्यादा लोग रहते हैं.

भारत की केंद्रीयता

इन देशों के केंद्र में भारत जैसा देश है, जो इस समय दुनिया की सबसे तेज गति से विकसित होती अर्थव्यवस्था है. फिर भी इस इलाके में एकीकरण की भावना गायब है. दक्षिण एशिया सहयोग संगठन (दक्षेस) संभवतः दुनिया का सबसे निष्क्रिय संगठन है. दक्षिण एशिया में पाकिस्तान के साथ निरंतर टकराव के कारण भारत ने दक्षेस के स्थान पर बंगाल की खाड़ी से जुड़े पाँच देशों के संगठन बिम्स्टेक पर ध्यान देना शुरू किया है.

भारत के पड़ोस के राजनीतिक माहौल पर एक नज़र डालें. 2021 में म्यांमार और अफगानिस्तान में सत्ता परिवर्तन हुए. 2022 में पाकिस्तान में इमरान सरकार का पराभव हुआ. उसी साल श्रीलंका में भीड़ ने राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षा को भागने को मज़बूर किया. 2023 में मालदीव में सत्ता परिवर्तन हुआ.

नेपाल में लगातार राजनीतिक अस्थिरता चल रही है. और अब बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन हुआ है. यह सब शांतिपूर्ण और सुव्यवस्थित लोकतांत्रिक तरीके से हुआ होता, तब अलग बात थी. इस बात का श्रेय भारत को मिलना चाहिए, जिसने इस इलाके में अराजकता को फैसले से रोक रखा है. 

अराजक राजनीति

दक्षिण एशिया की आर्थिक बदहाली की वजह को खोजने के लिए भारत की नीतियों के अलावा इन सभी देशों की आंतरिक-परिस्थितियों पर भी नज़र डालनी चाहिए. हमारे सभी पड़ोसी देशों में जबर्दस्त उथल-पुथल चल रही है, जिसकी अभिव्यक्ति लगातार बदलते रिश्तों के रूप में होती है. इसके सबसे अच्छे उदाहरण श्रीलंका और मालदीव हैं.

जिस समय बांग्लादेश की उथल-पुथल की खबरें आ रही थी, हमारे विदेशमंत्री एस जयशंकर मालदीव के दौरे पर थे. वहां उन्हें राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू  का जैसा दोस्ताना रवैया दिखा, वह भी विस्मय की बात थी.

पिछले एक साल में मालदीव को भी कई प्रकार के अनुभव हुए हैं, पर भारत ने धैर्य के साथ परिस्थितियों के अनुरूप खुद को बदला और लगता है कि उसे सफलता मिली है. और अब ऐसा ही बांग्लादेश में भी देखने को मिल सकता है.

कुछ दूसरी बातों की ओर भी हमें ध्यान देना होगा. भारत के साथ इन देशों के क्षेत्रफल, सैनिक और आर्थिक शक्ति तथा वैश्विक प्रभाव में भारी अंतर है. केवल पाकिस्तान ही एक बड़ा देश है, जो ऐतिहासिक और सामाजिक कारणों से भारत के साथ अच्छे रिश्ते बनाने से घबराता है.

पाकिस्तान की भूमिका

पाकिस्तानी शासक मानते हैं कि भारत के साथ रिश्ते बेहतर बनाने का मतलब है विभाजन की निरर्थकता को स्वयंसिद्ध मान लेना. उनके अंतर्विरोध लगातार टकराव के रूप में व्यक्त होते हैं, जो उनके लिए ही घातक साबित होते हैं. पाकिस्तान की आर्थिक बदहाली में इसी नज़रिए का हाथ है.

भारत और पाकिस्तान के रिश्ते सुधरेंगे, तो दक्षिण एशिया का न केवल रूपांतरण होगा, बल्कि उस भू-राजनीतिक पहचान का महत्व भी रेखांकित हो सकेगा, जो हजारों वर्षों में विकसित हुई है. इस बात को स्वीकार करना होगा कि भारतीय भूखंड का सांप्रदायिक आधार पर हुआ कृत्रिम राजनीतिक-विभाजन तमाम समस्याओं के लिए जिम्मेदार है.

अमेरिका समेत ज्यादातर पश्चिमी देशों ने भारत के उभार को स्वीकार नहीं किया, बल्कि उसके स्थान पर चीन को महत्व दिया. वहीं भारतीय राजव्यवस्था ने खुली अर्थव्यवस्था को अपनाने में कम से कम चीन-चार दशक की देरी की. अब चीन हमारे पड़ोस में बड़े निवेश करने की स्थिति में है, जिससे उसे सामरिक लाभ भी मिलता है.

हिंदू-देश की छवि

दक्षिण एशिया का इतिहास भी रह-रहकर बोलता है. शक्तिशाली-भारत की पड़ोसी देशों के बीच नकारात्मक छवि बनाई गई है. मालदीव और बांग्लादेश का एक तबका भारत को हिंदू-देश के रूप में देखता है. पाकिस्तान की पूरी व्यवस्था ही ऐसा मानती है और भारत को दुश्मन की तरह पेश करती है.

इन देशों में प्रचार किया जाता है कि भारत में मुसलमान दूसरे दर्ज़े के नागरिक हैं. श्रीलंका में भारत को बौद्ध धर्म विरोधी हिंदू-व्यवस्था माना जाता है. हिंदू-बहुल नेपाल में भी भारत-विरोधी भावनाएं बहती हैं. वहाँ मधेशियों, श्रीलंका में तमिलों और बांग्लादेश में हिंदुओं को भारत-हितैषी माना जाता है.

दूसरी तरफ चीन ने इन देशों को बेल्ट रोड इनीशिएटिव (बीआरआई) और इंफ्रास्ट्रक्चर में भारी निवेश का लालच दिया है. पाकिस्तान और चीन ने भारत-विरोधी भावनाओं को बढ़ाने में कसर नहीं छोड़ी है.

चीनी सहयोग

कुछ पर्यवेक्षकों को लगता है कि भारत को चीन के साथ मिलकर अपने पड़ोस के साथ रिश्ते बेहतर बनाने चाहिए. शायद मोदी सरकार का पहला इरादा ऐसा ही था, पर 2020 के गलवान प्रकरण के बाद इस रास्ते पर बढ़ना देश की आंतरिक राजनीति के दृष्टिकोण से व्यावहारिक नहीं रहा. 

दक्षिण एशिया का आर्थिक और लोकतांत्रिक विकास तभी संभव है, जब भारत की केंद्रीयता को स्वीकार किया जाएगा. यदि भारत के विरुद्ध चीनी-पाकिस्तानी कार्ड खेले जाते रहेंगे. तब तक इस इलाके में स्थिरता आ भी नहीं पाएगी. यह बात पड़ोसी देशों की समझ में भी आनी चाहिए.

आवाज़ द वॉयस में प्रकाशित

Sunday, September 17, 2023

ग्लोबल सप्लाई-चेन का हब बनेगा भारत


जी-20 के शिखर-सम्मेलन में भारत को मिली सफलताओं से भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर कुछ संभावनाएं पैदा हुई हैं। पिछले साल अप्रेल में बेंगलुरु में आयोजित तीन दिन के सेमीकॉन इंडिया कॉन्फ्रेंस-2022 के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, भारत आने वाले समय में सेमीकंडक्टर का हब बनेगा। प्रधानमंत्री ने उन कुछ कारणों को गिनाया जिनकी वजह से भारत सेमीकंडक्टर और टेक्नोलॉजी के लिए एक आकर्षक मुकाम होगा। बुनियादी डिजिटल ढांचे का निर्माण और अगली टेक-क्रांति का रास्ता भारत तैयार कर रहा है। 5जी, आईओटी और क्लीन एनर्जी-टेक का विस्तार हो रहा है। हमारे पास दुनिया का सबसे तेजी से बढ़ने वाला स्टार्टअप इको-सिस्टम है। 21वीं सदी की जरूरतों के लिए हम युवा-कौशल प्रशिक्षण में भारी निवेश कर रहे हैं। हमारे पास दुनिया के 20 फीसदी सेमीकंडक्टर डिजाइन इंजीनियरों का असाधारण टेलेंट पूल है। दुनिया की शीर्ष 25 कंपनियों के सेमीकंडक्टर डिजाइन सेंटर हमारे यहाँ हैं। जब सारी दुनिया महामारी से लड़ रही थी, भारत न केवल लोगों के, बल्कि अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य को सुधार रहा था और उसने विनिर्माण के अपने इंफ्रास्ट्रक्चर में भारी बदलाव किए हैं।

आसन्न बदलाव

सवा साल पहले कही गई उस बात पर काफी लोगों ने ध्यान नहीं दिया, पर इस विषय पर नज़र रखने वालों ने उसके पहले देख लिया था कि ग्लोबल सप्लाई-चेन में बदलाव आने वाला है। इसके पीछे एक वजह चीन की बढ़ती आक्रामकता है। पिछले तीन दशकों में पश्चिमी देशों ने चीन में भारी निवेश और तकनीकी हस्तांतरण करके उसे वैश्विक सप्लाई-चेन का हब तो बना दिया, पर उसके भू-राजनीतिक निहितार्थ पर ध्यान नहीं दिया। चीन ने सबको आँखें दिखानी शुरू कर दी हैं। सप्लाई चेन का मतलब है कि चीन का वैश्विक-कारखाने के रूप में तब्दील हो जाना। यह केवल उत्पादन तक सीमित नहीं होती, बल्कि इसमें उत्पादन के विभिन्न चरण शामिल होते हैं। मसलन डिजाइन, असेंबली, मार्केटिंग, प्रोडक्शन और सर्विसिंग वगैरह। ये उत्पाद दूसरे उत्पादों के लिए सहायक होते हैं। मसलन इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का विकास इस चेन पर निर्भर करता है। इससे दुनिया को सस्ता माल मिलेगा और इन कार्यों पर लगी पूँजी पर बेहतर मुनाफा।

Monday, September 4, 2023

भारत की बढ़ती वैश्विक भूमिका और जी-20

 


भारत-उदय-02

दिल्ली में हो रहे शिखर सम्मेलन में रूस और चीन की भूमिकाओं को लेकर कई तरह के संदेह हैं, पर कुछ नई बातें भी हो रही हैं. भारत ने पहल करके अफ्रीकन यूनियन को जी-20 की पूर्ण-सदस्यता की पेशकश की है. इस प्रकार दुनिया की एक बड़ी आबादी को जी-20 के साथ जुड़कर अपने विकास का मौका मिलेगा. जी-20 की सदस्यता देश या संगठन की वैधानिकता और प्रभाव को व्यक्त करती है और उसे बढ़ाती भी है.

संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के दौरान दुनिया की सुरक्षा केवल सैनिक-संघर्षों को टालने तक की मनोकामना तक सीमित थी. पिछले सात दशकों में असुरक्षा का दायरा क्रमशः बड़ा होता गया है. आर्थिक-असुरक्षा या संकट इनमें सबसे बड़े हैं. इसके अलावा जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण ऐसा क्षेत्र है, जिसका विस्तार वैश्विक है. हाल के वर्षों में इंटरनेट से जुड़े हमलों और अपराधों के कारण सायबर-सुरक्षा एक और नया विषय सामने आया है.

जी-20 का गठन मूलतः आर्थिक-संकटों का सामना करते हुए हुआ है. पर उसका दायरा बढ़ रहा है. दुनिया के 19 देशों और यूरोपियन यूनियन का यह ग्रुप-20 दुनिया की 85 फीसदी अर्थव्यवस्था और करीब दो तिहाई आबादी का प्रतिनिधित्व करता है, पर  अभी तक इसमें अफ्रीका महाद्वीप से केवल दक्षिण अफ्रीका ही इस ग्रुप का सदस्य है.

Thursday, August 31, 2023

मॉनसून की चिंता


मॉनसून के बारे में जो सूचनाएं आ रही हैं वे बहुत उत्साहित करने वाली नहीं हैं। भारत के लिए मॉनसून बहुत अहम है क्योंकि उसकी सालाना बारिश में मॉनसूनी बारिश का योगदान 70 फीसदी है। मॉनसूनी बारिश में अगर ज्यादा कमी हुई तो खरीफ की फसल का उत्पादन तो प्रभावित होगा ही, साथ ही रबी की फसल पर भी असर होगा।

 खबरों के मुताबिक इस वर्ष आठ साल की सबसे कम बारिश होने वाली है। इन दिनों सूखे का जो सिलसिला चल रहा है उसके चलते अगस्त में बारिश में रिकॉर्ड कमी आई है और यह सिलसिला आगे भी जारी रहने की आशंका है। जानकारी के मुताबिक अल नीनो प्रभाव मजबूत हो रहा है और माना जा रहा है कि दिसंबर तक उसका प्रभाव जारी रहेगा। बिजनेस स्टैंडर्ड की पूरी संपादकीय टिप्पणी पढ़ें यहाँ

चीन सदा-सर्वदा विकासशील!

दक्षिण अफ्रीका में हाल ही में संपन्न ब्रिक्स देशों की शिखर बैठक से इतर चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने जोर देकर कहा कि उनका देश ‘विकासशील देशों के समूह का सदस्य था, है और हमेशा रहेगा।’ इस बात की संभावना कम है कि शी चीन की भविष्य की वृद्धि को लेकर कोई आशंका व्यक्त कर रहे थे और ऐसा कुछ कह रहे थे कि उनका देश मध्य आय के जाल में उलझा रहेगा। यदि वह ऐसा नहीं कह रहे थे तो फिर उनके इस वक्तव्य की व्याख्या किस प्रकार की जाए?

Sunday, January 15, 2023

‘ग्लोबल-साउथ’ की आवाज़ बनेगा भारत


गुजरे हफ्ते गुरुवार और शुक्रवार को हुए वॉयस ऑफ ग्लोबल-साउथ समिट ने दो बातों की तरफ ध्यान खींचा है। कुछ लोगों के लिए ग्लोबल-साउथ शब्द नया है। उन्हें इसकी पृष्ठभूमि को समझना होगा। भारत की विदेश-नीति के लिहाज से इसके महत्व को रेखांकित करने की जरूरत भी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसके उद्घाटन और समापन सत्रों को संबोधित किया। सम्मेलन में 120 से ज्यादा विकासशील देशों की शिरकत के साथ यह ग्लोबल-साउथकी सबसे बड़ी वर्चुअल सभा साबित हुई। इन देशों में दुनिया की करीब तीन-चौथाई आबादी निवास करती है। वस्तुतः पूरी दुनिया का दिल इन देशों में धड़कता है।

वैश्विक-संकट

यह सम्मेलन कोविड-19, जलवायु-परिवर्तन और वैश्विक-मंदी की पृष्ठभूमि के साथ आयोजित हुआ है। इन तीनों बातों की तपिश विकासशील देशों को झेलने पड़ी है, जबकि तीनों के लिए ग्लोबल साउथ के ये देश जिम्मेदार नहीं है। दूसरी तरफ वैश्विक-संकट गहरा रहा है। ऐसे में भारत समाधान देने और खासतौर से ग्लोबल साउथ यानी इन विकासशील देशों की आवाज़ बनने जा रहा है। इस वर्ष भारत जी-20 और शंघाई सहयोग संगठन का अध्यक्ष भी है, इस लिहाज से यह समय भी महत्वपूर्ण है। पिछले मंगलवार को इंदौर में संपन्न हुए 17वें प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन के अंतिम दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक तरफ गुयाना के राष्ट्रपति इरफान अली और दूसरी तरफ सूरीनाम के राष्ट्रपति चंद्रिका प्रसाद संतोखी थे। यह पहल भारतवंशियों के मार्फत दुनिया से जुड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

विकासशील-आवाज़

शिखर सम्मेलन में विदेशमंत्री एस जयशंकर ने कहा कि विकासशील दुनिया की प्रमुख चिंताओं को जी-20 की चर्चाओं में शामिल नहीं किया जा रहा है। कोविड-19, खाद्य एवं ऊर्जा सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद, कर्ज-संकट और रूस-यूक्रेन संघर्ष का समाधान तलाशने में विकासशील देशों की जरूरतों को तवज्जोह नहीं दी गई। हम सुनिश्चित करना चाहते हैं कि जी-20 में भारत की अध्यक्षता के दौरान विकासशील देशों की आवाज, मुद्दे, दृष्टिकोण और ग्लोबल साउथ की प्राथमिकताएं सामने आएं। इस पूरी परियोजना के साथ भू-राजनीति से जुड़े मसले हैं, जो यूक्रेन-युद्ध और दक्षिण चीन सागर में बढ़ते तनाव के रूप में नजर आ रहे हैं।

व्यापक दायरा

सम्मेलन का फलक काफी व्यापक था। इसके व्यावहारिक-प्रतिफल भी सामने आए हैं। सम्मेलन में कुल दस सत्र हुए, जिनमें वित्तीय-परिस्थितियों, ऊर्जा, शिक्षा और स्वास्थ्य से जुड़े सत्र महत्वपूर्ण थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समिट के समापन सत्र में कहा कि नए साल की शुरूआत एक नई आशा का समय है। विकासशील देश ऐसा वैश्वीकरण चाहते हैं, जिससे जलवायु संकट या ऋण संकट उत्पन्न न हो, जिसमें वैक्सीन का असमान वितरण न हो, जिसमें समृद्धि और मानवता की भलाई हो। उन्होंने यह भी कहा कि भारत एक 'ग्लोबल साउथ सेंटर ऑफ एक्सेलेंस' स्थापित करेगा। उन्होंने एक नए प्रोजेक्ट 'आरोग्य मैत्री' की जानकारी भी दी। इसके तहत भारत प्राकृतिक आपदाओं और मानवीय संकट का सामना कर रहे विकासशील देशों को मेडिकल सहायता उपलब्ध कराएगा। विकासशील देशों के छात्रों के लिए भारत में उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए ग्लोबल साउथ स्कॉलरशिप भी शुरू होगी।

बदलती भूमिका

आर्थिक-विकास और कल्याणकारी-व्यवस्था की पहली शर्त है विश्व-शांति। इस परियोजना के साथ आर्थिक और डिप्लोमैटिक दोनों पहलू जुड़े हैं। संयुक्त राष्ट्र समेत सभी अंतरराष्ट्रीय संगठनों में भारत की भूमिका बढ़ रही है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा में हम केंद्रीय-भूमिका निभाने जा रहे हैं। शिखर-सम्मेलन में चीन की भागीदारी से जुड़े कुछ सवाल भी उठे हैं। चीन की प्रत्यक्ष भागीदारी इसमें नहीं थी, अलबत्ता चीनी विदेश-मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने गुरुवार को संवाददाताओं को बताया कि भारत ने हमें इस सम्मेलन के बारे में सूचना दी थी। भारत ने चीन को जानकारी क्यों दी, इसे भी विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा ने स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि भारत का जी-20 से जुड़े मसलों पर अन्य देशों के साथ मजबूत सहयोग है। यह उस विचार के तहत है कि हमने उस प्रत्येक देश से परामर्श किया, जिसके साथ हमारी मजबूत विकास साझेदारी है। बदलते वैश्विक-परिप्रेक्ष्य में भारत की इस भूमिका को विशेषज्ञों ने प्रशंसा की नज़रों से देखा है।