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Monday, December 9, 2019

न्याय में देरी से नाराज है जनता


हैदराबाद बलात्कार मामले के चारों अभियुक्तों की हिरासत में हुई मौत के बाद ट्विटर पर एक प्रतिक्रिया थी, लोग भागने की कोशिश में मारे गए, तो अच्छा हुआ। पुलिस ने जानबूझकर मारा, तो और भी अच्छा हुआ। किसी ने लिखा, ऐसे दस-बीस एनकाउंटर और होंगे, तभी अपराधियों के मन में दहशत पैदा होगी। ज्यादातर राजनीतिक नेताओं और सार्वजनिक जीवन से जुड़े लोगों ने इस एनकाउंटर का समर्थन किया है। जया बच्चन सबसे आगे रहीं, जिन्होंने हाल में राज्यसभा में कहा था कि रेपिस्टों को लिंच करना चाहिए। अब उन्होंने कहा-देर आयद, दुरुस्त आयद।
कांग्रेसी नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने, जो खुद वकील हैं ट्वीट किया, हम जनता की भावनाओं का सम्मान करें। यह ट्वीट बाद में हट गया। मायावती ने कहा, यूपी की पुलिस को तेलंगाना से सीख लेनी चाहिए। कांग्रेस के नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी समर्थन में ट्वीट किया, जिसे बाद में हटा लिया। दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने परोक्ष रूप से इसका समर्थन किया। पी चिदंबरम और शशि थरूर जैसे नेताओं ने घूम-फिरकर कहा कि एनकाउंटर की निंदा नहीं होनी चाहिए।

Sunday, December 8, 2019

बलात्कारियों का क्या यही इलाज है?


उन्नाव की जिस लड़की के साथ पहले बलात्कार हुआ, फिर उसे जलाकर मार डाला गया, उसके पिता की माँग है कि अपराधियों को उसी तरह दौड़कर गोली मारी जाए, जैसे हैदराबाद के बलात्कारियों को मारी गई है. हैदराबाद में बलात्कार और हत्या के चार आरोपियों की एनकाउंटर में हुई मौत के बाद देशभर में बहस छिड़ी है. पुलिस की यह कार्रवाई क्या उचित है? क्या उन्हें ठीक करने का यही तरीका है और क्या यह सही तरीका है? क्या पुलिस को किसी को भी अपराधी बताकर मार देने का अधिकार है? सवाल यह भी है कि यह एनकाउंटर क्या वास्तव में अपराधियों के भागने की कोशिश के कारण हुआ? या पुलिस ने जानबूझकर इन्हें मार डाला, क्योंकि उसे यकीन था कि इन्हें  लम्बी न्यायिक प्रक्रिया के बाद भी सजा दिला पाना सम्भव नहीं होगा. जनता का बड़ा हिस्सा मानता है कि एनकाउंटर सही हुआ या गलत, दरिंदों का अंत तो हुआ. 
चिंता की बात यह है कि जनता का विश्वास न्याय पर से डोल रहा है. बरसों तक अपराधियों को सजा नहीं मिलती. पिछले कुछ वर्षों के रेप से जुड़े आंकड़े बताते हैं कि ऐसे मामलों में दोषी साबित होनेवाले लोगों की संख्या बेहद कम है। 2014 से 2017 तक के आँकड़े बताते हैं कि जितने केस रजिस्टर हुए उनमें से ज्यादा से ज्यादा 31.8 प्रतिशत में अभियुक्तों पर दोष सिद्ध हो पाए. सौम्या विश्वनाथन (2008), जिगिशा घोष (2009), निर्भया (2012), शक्ति मिल्स गैंगरेप (2013), उन्नाव कांड (2017) जैसे तमाम मामलों में अभी तक न्यायिक प्रक्रिया चल ही रही है.