पिछले
एक साल की सकारात्मक संसदीय सरगर्मी के बाद गाड़ी अचानक ढलान पर उतर गई है। भूमि
अधिग्रहण कानून में संशोधन के विधेयक सहित 64 विधेयक संसद में विभिन्न स्तरों पर
लटके पड़े हैं। आर्थिक सुधारों से जुड़े तमाम विधायी काम अभी अधूरे पड़े हैं और सन
2010 के बाद से अर्थ-व्यवस्था की गाड़ी कभी अटकती है और कभी झटकती है।
फिलहाल
भूमि अधिग्रहण विधेयक एनडीए सरकार के गले की हड्डी बना है। राहुल गांधी ने एक ‘इंच
जमीन भी नहीं’ कहकर ताल ठोक दी है। शायद इसी वजह से केंद्रीय मंत्रिमंडल अपनी तरफ
से विधेयक में कुछ परिवर्तनों की घोषणा करने पर विचार करने लगा है। हालांकि इस बात
की आधिकारिक रूप से पुष्टि नहीं हुई है, पर
लगता है कि सरकार इस कानून के सामाजिक प्रभाव को लेकर नए उपबंध जोड़ने को तैयार
है। इन्हें इस विधेयक में इसके पहले पूरी तरह हटा दिया गया था। पर क्या इतनी बात
से मामला बन जाएगा?