भारत-उदय-08
पिछले साल 1 दिसंबर को जब जी-20 समूह की अध्यक्षता एक साल के लिए भारत के पास आई थी, तभी स्पष्ट था कि यह अध्यक्षता बड़े चुनौती भरे समय में भारत को मिली है. दुनिया तेजी से दो ध्रुवों में बँटती जा रही है. बाली सम्मेलन में घोषणापत्र की शब्दावली को तय कर पाना मुश्किल हो गया था.
अब दिल्ली शिखर
सम्मेलन में शी चिनफिंग और व्लादिमीर पुतिन की अनुपस्थिति से वैश्विक-एकता और
सहयोग के प्रयासों को एकबारगी धक्का लगा है. सम्मेलन में वैश्विक-सर्वानुमति बना
पाने में दिक्कतें हैं. उससे ज्यादा बड़ा खतरा जी-20 के विभाजन का है.
शी चिनफिंग
की भी वैश्विक राजनीति में भूमिका कमज़ोर होगी और आंतरिक-राजनीति में भी आलोचना
झेलनी होगी. उनका निशाना भारत नहीं अमेरिका है. अलबत्ता इसी सम्मेलन में भारत के
भावी राजनय की दिशा स्पष्ट हो रही है.
दबाव
में चीन
चीन भी दबाव में है. शी चिनफिंग का नहीं आना, चीन की निराशा को व्यक्त कर रहा है. जी-7 की तुलना में जी-20 का आधार ज्यादा बड़ा है. संयुक्त राष्ट्र को अलग कर दें, तो जी-20 ही ऐसे व्यापक आधार वाला समूह है. इसमें रूस-चीन और पश्चिमी देश आमने-सामने बैठ सकते हैं. इस प्रकार का दूसरा कोई समूह नहीं है.