कांग्रेस के वरिष्ठ नेता
पी चिदंबरम ने जम्मू-कश्मीर से जुड़े सरकारी फैसलों को सांप्रदायिक रंग देकर न तो
अपनी पार्टी का हित किया है और
न मुसलमानों का। और कुछ हो न हो, कांग्रेस को एक धक्का और लगा है। उन्होंने रविवार को
चेन्नई में कहा कि मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का फैसला इसलिए लिया क्योंकि वहां मुसलमान बहुसंख्यक
हैं। अगर वहां हिंदू बहुसंख्यक होते तो यह फैसला नहीं होता।
संयोग से मंगलवार के
अखबारों में चिदंबरम के इस बयान के साथ-साथ वरिष्ठ लेखिका नयनतारा सहगल का भी बयान
छपा है। उन्होंने कहा है कि सरकार को एक मुस्लिम बहुल राज्य फूटी आँखों नहीं
सुहाता, इसलिए यह फैसला हुआ है। सन 2015 में पुरस्कार वापसी अभियान की शुरुआत
नयनतारा सहगल ने की थी। तब भी कहा गया था कि इस मुहिम के पीछे राजनीतिक कारण
ज्यादा है, अभिव्यक्ति से जुड़े कारण कम। यह राजनीति तबसे लेकर अबतक कई बार मुखर
हुई है।
चिदंबरम कांग्रेस पार्टी
की दृष्टि से कोई बयान देते, तो इसमें गलत कुछ नहीं है, पर सवाल है कि क्या
कांग्रेस का यही नजरिया है? है तो इस बात को
पार्टी कहे और उसके निहितार्थ को भुगते। सच है कि पाकिस्तान की कोशिश है कि कश्मीर
में नागरिकों की धार्मिक भावनाओं का दोहन किया जाए। पर भारतीय मुसलमान धर्मनिरपेक्ष-व्यवस्था
के समर्थक हैं। विभाजन के समय उन्होंने भारत में रहना इसीलिए मंजूर किया था।
कश्मीर को धार्मिक-राज्य बनाने की कोशिश होगी या साम्प्रदायिक जुमलों से आंदोलन
चलाया जाएगा, तो भारत के राष्ट्रवादी मुसलमान उसका समर्थन नहीं करेंगे।