सिर्फ एक वीडियो ने देश की अंतरात्मा को जगा दिया। प्रधानमंत्री को बोलने को मजबूर कर दिया और सुप्रीम कोर्ट ने कार्रवाई करने की चेतावनी दे दी। मणिपुर में 3 मई को शुरू हुई हिंसा के जिस तरह के वीभत्स विवरण सामने आ रहे हैं, उनसे किसी भी देशवासी को शर्म आएगी। पिछले ढाई महीने में शायद ही कोई दिन रहा हो जब इस राज्य के किसी इलाक़े में हिंसक झड़प, हत्या या आगज़नी नहीं हुई हो, पर गत 19 जुलाई को सोशल मीडिया पर दो महिलाओं के यौन उत्पीड़न के विचलित करने वाले वीडियो के सामने आने के बाद यह वितृष्णा पराकाष्ठा पर पहुँच गई है। एकसाथ कई तरह के सवाल पूछे जा रहे हैं। क्या यह केवल कुकी और मैतेई समुदायों के बीच की सामुदायिक हिंसा है या इसके पीछे किसी की कोई योजना है? बर्बरता दोनों तरफ से हुई है और कई तरह के वीडियो वायरल हो रहे हैं। कौन है इसके पीछे? यह हिंसा रुक क्यों नहीं रही? राज्य सरकार क्या सोई हुई है? केंद्र खामोश क्यों है? अदालतें क्या कर रही है वगैरह। इस वीडियो के आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहा कि किसी भी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा। उन्होंने बोलने में इतनी देर क्यों की? वे ऐसे प्रकरणों पर बोलते क्यों नहीं? वे भारतीय मीडिया से बात क्यों नहीं करते? उधर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने कहा, कोई कुछ नहीं करेगा, तो हमें कोई कदम उठाना होगा। क्या कदम उठा सकती है अदालत? अदालत ने कहा है कि वह इस मामले में 28 जुलाई को सुनवाई करेगी।
राजनीतिक रंग
ज्यादातर राजनीतिक दलों ने अपने-अपने नज़रिए से टिप्पणी की है, बल्कि इस वीडियो के वायरल होने की तारीख बता रही है कि इसके पीछे कोई राजनीतिक-दृष्टि है। वर्ना 4 मई की घटना के वीडियो को प्रकट होने में ढाई महीने क्यों लगे? कौन था, जिसे संसद के सत्र का इंतज़ार था? किसी ने कहा इंटरनेट पर पाबंदी थी, इसलिए वीडियो वायरल नहीं हुआ। वस्तुतः सरकारी अधिसूचना के अनुसार राज्य में 20 जुलाई के दिन में तीन बजे तक इंटरनेट पर रोक थी। वायरल तो वह रोक के दौरान ही हुआ। उसके पहले भी मणिपुर के वीडियो सोशल मीडिया पर आ ही रहे थे। खबरें आ ही रही थीं और इतने महत्वपूर्ण वीडियो को तो राज्य के बाहर जाकर भी अपलोड किया जा सकता था। बहरहाल जो भी था। वीडियो के प्रकट होते ही सरकार ने मुख्य अभियुक्त की पहचान कर ली और उसे गिरफ्तार भी कर लिया। तभी क्यों नहीं पकड़ा, जब घटना की खबर मिली थी? यदि यह दो समुदायों के टकराव का मामला है, तो मुख्य अभियुक्त के गाँव की महिलाओं ने जो उसके मैतेई समुदाय से ही आती हैं, उसके घर को क्यों फूँका? इस हिंसा में कोई एक पक्ष पीड़ित नहीं है। कुकी और मैतेई, दोनों ही पक्ष अत्याचार झेल रहे हैं। दोनों समुदायों के लोगों को ज़िंदा जलाए जाने के भी मामले सामने आए हैं। बताया जाता है कि इससे भी ज्यादा भयावह वीडियो लोगों के पास हैं। बहरहाल यह वीडियो बेहद शर्मनाक है और इस कृत्य की निंदा होनी चाहिए।
वीडियो की टाइमिंग
20 जुलाई को प्रधानमंत्री ने पहली बार मणिपुर
मामले पर टिप्पणी की। इस हिंसा के शुरू होने के बाद से उन्होंने अब तक का पहला
बयान दिया। पर विरोधी दल इस बयान से संतुष्ट नहीं हैं। वे पहले उनकी चुप्पी पर
सवाल उठा रहे थे और जब बयान आया, तो वे उसे अपर्याप्त बता रहे हैं। स्वाभाविक रूप
से उनकी दिलचस्पी मामले को राजनीतिक रंग देने में है। जवाब में असम के मुख्यमंत्री
हिमंत बिस्वा सरमा ने वीडियो की टाइमिंग को लेकर सवाल उठाया। गुवाहाटी की प्रेस
कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा, यह केस कई दिन पहले दर्ज हुआ था। इसके
वीडियो पहले ही मौजूद थे, लेकिन इसे संसद का सत्र शुरू होने के एक दिन पहले लीक
किया गया। उन्होंने यह भी कहा कि रेप की घटनाएं मणिपुर की तुलना में पश्चिम बंगाल,
राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में ज़्यादा होती हैं। यह दुखद
घटना है, लेकिन इसे इस तरह पेश किया जा रहा है जैसे यहाँ ऐसी घटनाएं रोज़ होती हैं।
एक बात साफ नजर आती है कि सांप्रदायिक हिंसा हो या युद्ध, सबसे ज्यादा विपत्ति
महिलाओं पर आती है। यह सामाजिक दोष है।
बर्बरता से जुड़े वीडियो
मणिपुर में हिंसा के क़रीब पाँच हज़ार मामले
दर्ज किए गए हैं। इन घटनाओं में डेढ़ सौ के आसपास जानें गई है। कांग्रेस का आरोप
है कि केंद्र और राज्य सरकार स्थिति पर नियंत्रण करने में विफल रही है। निश्चित
रूप से यह राज्य या केंद्र सरकार की विफलता है। पर देखना यह भी होगा कि स्थिति पर
नियंत्रण स्थापित हो रहा था या नहीं? ढाई महीने
पुराने इस वीडियो से यह कैसे साबित होगा कि हालात बिगड़ते गए हैं? दोनों महिलाओं ने बताया कि पुलिस घटनास्थल पर मौजूद थी, लेकिन उसने महिलाओं की मदद नहीं की। ऐसा भी होता है, जब भीड़ के
सामने पुलिस की नहीं चलती। महाराष्ट्र के पालघर के गढ़चिंचले गांव में 16 अप्रैल
2020 को दो साधुओं और उनके ड्राइवर की 500 से अधिक लोगों की भीड़ ने पीट-पीटकर
हत्या कर दी थी। तब पुलिस भी वहाँ थी। घटना के विस्तार में जाएंगे, तो पाएंगे कि कुकी-ज़ोमी
समुदाय की इन महिलाओं को पुलिस ही बचाकर लाई थी। इनके साथ 4 मई को मैतेई बहुल थोबल
ज़िले में यौन उत्पीड़न हुआ था। 3 मई को आधुनिक हथियारों से भीड़ ने उनके गाँव पर
हमला बोला। लूटपाट करने के साथ ही उन्होंने आग लगानी शुरू कर दी। तीन महिलाएं अपने
पिता और भाई के साथ जंगलों की ओर भागीं। पुलिस इन महिलाओं को बचाने में कामयाब भी
हुई और वह इन्हें थाने लेकर जा रही थी। थाने से दो किलोमीटर पहले ही भीड़ ने
उन्हें रोक लिया। प्रदर्शनकारियों ने इन महिलाओं को पुलिस से छीन लिया और युवती के
पिता को मार डाला। 19 वर्षीय भाई ने युवती को निर्वस्त्र होने से बचाने की कोशिश
की तो उसे भी मार दिया गया।
हम शर्मिंदा क्यों हैं?
राज्य के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने कहा, ‘ज़मीनी हकीकत को देखिए। ऐसी सैकड़ों घटनाएं हुई
हैं, इसीलिए इंटरनेट बंद है।’ हम
एक वीडियो से विचलित हैं, जब अनेक वीडियो सामने आएंगे, तब क्या होगा? सबको शर्म आ रही है, पर शर्मिंदा कोई नहीं लगता। यह घटना न तो पहली है
और न अकेली। आप मणिपुर को ही क्यों देख रहे हैं? देश
के किसी न किसी कोने से मॉब लिंचिंग, बलात्कार, लूट और हिंसा की खबरें आ रही हैं।
ऐसी घटनाएं स्वतंत्रता के पहले और स्वतंत्रता के बाद भी होती रही हैं। हमारे
सामाजिक जीवन में यह हिंसा क्यों है? भारतीय मीडिया से ज्यादा विदेशी मीडिया
ने इस प्रकरण में दिलचस्पी दिखाई है। यूरोपियन यूनियन की संसद में इस मामले को
उठाया गया। भारत में होने वाली ‘हेट स्पीच’, मॉब लिंचिंग, सांप्रदायिक हिंसा, अराजकता, खासतौर से
कोविड-19 के एक दौर में ऑक्सीजन की कमी का जैसा विवरण पश्चिमी मीडिया ने दिया, वह
आंशिक रूप से सच था, पर उसमें अतिरंजना भी थी। ऐसे
प्रकरणों से देश की प्रतिष्ठा को ठेस लगती है। इस प्रतिष्ठा को बचाए रखने के लिए
हम-आप करते क्या हैं?
सरकार की भूमिका
इसे देखना होगा कि राज्य या केंद्र सरकारें सोई
हैं या जागी हैं। न्याय-व्यवस्था
क्या कर रही है। हिंसा हाईकोर्ट के एक आदेश के विरोध में भड़की थी। मणिपुर में कई
तरह की ताकतें सक्रिय हैं। सरकार का दावा है कि करीब पचास हजार लोगों को हिंसा से
बचाकर निकाला गया। करीब नौ हजार ट्रकों पर जरूरी सामग्री, दवाएं वगैरह इंफाल
पहुँचाई गईं, जबकि मुख्य हाईवे को प्रदर्शनकारियों ने बंद कर रखा है। केंद्र सरकार
ने भी हस्तक्षेप किया। राज्य में कर्फ्यू लगाया गया। इंटरनेट सेवाएं बंद हैं।
गृहमंत्री अमित शाह ने मई में ही राज्य का दौरा किया और उसके बाद इस मुद्दे पर
सर्वदलीय बैठक बुलाई। ढाई महीने पुराने वीडियो से यह निष्कर्ष कैसे निकलेगा कि अराजकता
रुकी नहीं। जुलाई के पहले हफ्ते में स्कूल खोले गए हैं। पूछा जा रहा है कि हिंसा
शुरू होने के बाद से पीएम मोदी ने मणिपुर का दौरा क्यों नहीं किया? बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने कहा, राहुल गांधी मणिपुर जा
सकते हैं तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्यों नहीं जा सकते? जवाब में पूछा जा सकता है कि क्या राहुल गांधी के जाने
से अराजकता रुकी? क्या वे अराजकता रोकने के लिए गए थे?
प्रधानमंत्री की चुप्पी
प्रधानमंत्री ने बोलने में देर की है। उन्होंने
अमेरिका में एक पत्रकार के जवाब में कहा था कि भारत में भेदभाव नहीं होता। सामान्यतः
नरेंद्र मोदी कानून-व्यवस्था के मामलों पर बोलते नहीं हैं। मामले बीजेपी शासित
राज्यों में हों या दूसरे राज्यों में। वे बंगाल के स्थानीय निकाय चुनाव की हिंसा
पर नहीं बोले, केरल की घटनाओं पर भी नहीं। जब उत्तर प्रदेश में कमलेश तिवारी की
हत्या हुई थी, तब भी नहीं। उन्हें बोलना चाहिए। बेहतर हो कि मणिपुर के मसले पर
संसद में बहस हो। पर सवाल यह भी है कि प्रधानमंत्री की चुप्पी से क्या मणिपुर में अराजकता
फैली? वीडियो वायरल
होने के अगले दिन संसद के परिसर में पीएम मोदी ने कहा, मणिपुर
की घटना से मेरा हृदय दुख से भरा है। यह घटना शर्मसार करने वाली है। मैं
देशवासियों को यकीन दिलाना चाहता हूं कि किसी को बख्शा नहीं जाएगा…पाप करने वाले
कितने हैं, कौन हैं वह अपनी जगह है, पर
बेइज्जती पूरे देश की हो रही है। उन्होंने यह भी कहा, ‘‘घटना चाहे राजस्थान की हो, छत्तीसगढ़ की या
मणिपुर की…राज्य सरकार को राजनीतिक वाद-विवाद से ऊपर उठकर कानून व्यवस्था को महत्व
देना चाहिए और नारी के सम्मान की रक्षा करनी चाहिए।’’ उन्होंने मणिपुर के पहले
राजस्थान और छत्तीसगढ़ के नाम लेकर इस बात के राजनीतिक निहितार्थ भी स्पष्ट कर दिए।
बहरहाल उनका बोलना जरूरी है। पूर्वोत्तर के राज्यों में यह संदेश नहीं जाना चाहिए
कि मुख्यधारा को हमारी परवाह नहीं।
हरिभूमि में प्रकाशित
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