मालदीव के राष्ट्रपति मुहम्मद मुइज़्ज़ू के साथ किरन रिजिजू
मालदीव में नव निर्वाचित राष्ट्रपति मुहम्मद
मुइज़्ज़ू कार्यकाल शुरू हो गया है और अब देखना होगा कि ऐसे दौर में जब वैश्विक
राजनीति लगातार टकरावों की ओर बढ़ रही है, मालदीव का सत्ता-परिवर्तन क्या गुल
खिलाएगा. देश में चुनाव प्रचार के दौरान भारत को लेकर कड़वाहट का जो माहौल बना था,
उसका व्यावहारिक असर अब देखने को मिलेगा.
भारत को भी सावधानी और
समझदारी के साथ इस देश के साथ रिश्तों को संभालने और परिभाषित करने की जरूरत होगी.
हालांकि यह बहुत छोटा देश है, पर हिंद महासागर के बेहद संवेदनशील इलाके में अपनी भौगोलिक
स्थिति के कारण यह महत्वपूर्ण है और उसे साधकर रखना जरूरी है. वैश्विक-राजनीति में
भूमिका निभाने के साथ-साथ भारत को अपने इलाके में बेहतर संबंध बनाने होंगे.
मालदीव के नए राष्ट्रपति अपनी संप्रभुता और राष्ट्रवादी जुनून से जुड़े दावे जरूर कर रहे हैं, पर वे ‘डबल गेम’ नहीं खेल सकते. उन्हें भी भारत के साथ अपने रिश्तों को स्पष्ट परिभाषित करना होगा. भारत छोटा देश नहीं है, बल्कि इस इलाके का सबसे बड़ा देश है.
भारतीय सैनिक?
राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू ने औपचारिक रूप से भारत
से कहा है कि आप हमारे देश से अपने सैनिकों को वापस बुला लें. उनका कहना है कि देश
में हुए चुनावों में जनता ने बहुमत से उनका और उनके उस कैंपेन का समर्थन किया है
जिसमें भारत से सेना हटाने की बात करना शामिल था. वह विरोधी नेता के रूप में उनका
चुनाव-प्रचार था, अब उन्हें शासन चलाना है.
मुइज़्ज़ू ने अपने चुनावी अभियान में 'इंडिया आउट' अभियान चलाया था और चुनाव जीतने के बाद
कहा कि भारतीय सैनिकों को वापस जाना होगा. वे यह भी कह रहे हैं कि मैं विकास का
पक्षधर हूँ और चीन-भारत दोनों के साथ ही बेहतर रिश्ते चाहता हूँ. एक इंटरव्यू में
उन्होंने कहा कि भारतीय सैनिकों की जगह चीनी सैनिकों को देश में तैनात कर मैं क्षेत्रीय
संतुलन को बिगाड़ना नहीं चाहूँगा.
यह स्पष्ट नहीं है कि मालदीव में भारतीय सैनिक
हैं भी या नहीं. हैं भी तो कितने, कहाँ और किस भूमिका में हैं. भारतीय मीडिया
स्रोतों के अनुसार वहाँ भारतीय सेना की तैनाती नहीं है. भारत ने मालदीव को जो दो
हेलिकॉप्टर और एक छोटा गश्ती विमान दिया है, उनके संचालन और ट्रेनिंग देने के लिए
कुछ असैनिक कर्मचारी वहाँ रह रहे हैं.
भरत ने 2010
में पहला हेलिकॉप्टर दिया था, जो मेडिकल इमर्जेंसी में काम आता है. इसके बाद 2016 में दूसरा हेलिकॉप्टर दिया. इसका इस्तेमाल भी राहत और बचाव कार्य के
लिए और मरीज़ों को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने के लिए किया जाना था.
2020 में भारत ने मालदीव राष्ट्रीय रक्षा बल
(एमडीएनएफ) को एक डॉर्नियर समुद्री निगरानी विमान दिया था, जिससे क्षेत्रीय जल में
जहाजों की आवाजाही और अन्य गतिविधियों पर नजर रखी जा सके. इसका निहितार्थ चीनी
पोतों की गतिविधियों पर नज़र रखना भी हो सकता है. संभवतः यह बात चीनी-प्रभाव के
कारण घुमा-फिराकर जनता के सामने रखी गई होगी.
मुइज़्ज़ू की गुज़ारिश
मालदीव के मीडिया के मुताबिक, डॉर्नियर विमानों के संचालन के लिए 25 भारतीय सैनिक हैं. इसके अलावा,
पहले हेलीकॉप्टर के प्रबंधन के लिए 24, दूसरे
हेलीकॉप्टर के लिए 26 सैनिक, और रखरखाव और इंजीनियरिंग के लिए दो
अन्य सैनिक हैं.
राष्ट्रपति कार्यालय के बयान में कहा गया है कि
मालदीव सरकार ने औपचारिक तौर पर भारत सरकार से गुज़ारिश की है कि भारतीय सैनिकों
को हटाया जाए. इस गुज़ारिश की भारत अनसुनी नहीं करेगा, पर सुरक्षा से जुड़ी बातें
बहुत खुलकर नहीं की जाती हैं. मुइज़्ज़ू ने चुनावी-राजनीति के हिसाब से स्कोर कर
लिया है, पर उन्हें अब शासन चलाना है.
शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने गए भारत के
पृथ्वी विज्ञान मंत्री किरन रिजिजू से मुलाक़ात के दौरान मुइज़्ज़ू ने इस मुद्दे
पर भी बात की. दोनों नेताओं के बीच द्विपक्षीय रिश्तों को मज़बूत करने और भारत की
मदद से चल रही परियोजनाओं पर भी बात हुई.
सुरक्षा-प्रणाली
हिंद महासागर में चीनी-प्रभाव केवल एक देश की
राजनीति तक सीमित नहीं है. कुछ समय पहले
सेशेल्स की राजनीति में इसी किस्म की भारत-विरोधी प्रवृत्तियाँ देखने को मिली थीं.
दूसरी तरफ हिंद महासागर में चीनी गतिविधियों पर केवल भारत की ही नज़रें नहीं है.
अमेरिका, फ्रांस, जापान और यूरोपियन देशों की नज़रें भी इस इलाके पर हैं.
भारतीय सुरक्षा के नज़रिए से मालदीव, हिंद
महासागर क्षेत्र में महत्वपूर्ण द्वार की भूमिका निभाता है. लंबे अरसे तक उसने यह
भूमिका निभाई भी है. मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मौमून अब्दुल ग़यूम के कार्यकाल
में भारत के साथ मालदीव के रिश्ते बहुत अच्छे थे.
जब कभी मालदीव पर संकट आया, भारत ने सबसे पहले
बढ़कर सहायता की. 2004 की सुनामी के समय भारतीय नौसेना ने सहायता पहुँचाई थी.
भारतीय नौसेना इस इलाके में यह काम कर रही है.
2008 में ग़यूम की पराजय के बाद से स्थितियों
में बदलाव आया. उनके बाद मालदीव डेमोक्रेटिक पार्टी के मुहम्मद नशीद जीतकर आए.
उन्हें भी भारत-समर्थक माना जाता है. अलबत्ता उसी दौरान हिंद महासागर क्षेत्र में
चीनी सक्रियता बढ़ी.
चीनी-गतिविधियाँ
हिंद महासागर में चीन अपनी गतिविधियाँ बढ़ा रहा
है. मालदीव उसका एक महत्वपूर्ण पड़ाव साबित हुआ है. हाल के वर्षों में उसने उत्तरी
अफ्रीका के देश जिबूती में अपना फौजी अड्डा स्थापित किया, तो
भारत के कान खड़े हुए. श्रीलंका के हंबनटोटा और पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह अब
चीनी-नियंत्रण में हैं.
यह सब चीनी रणनीति में आए बदलाव के कारण है. 2011
तक मालदीव में चीन का दूतावास भी नहीं था. दक्षिण एशिया में अपने पड़ोसी देशों के
साथ रिश्ते बनाने की भारतीय कोशिशों में चीन एक बड़ी बाधा के रूप में उभर कर आया
है.
मालदीव के 'इंडिया
आउट' अभियान के पीछे भी चीन की भूमिका भी स्पष्ट
है. चीन ने पाकिस्तान के अलावा बांग्लादेश, नेपाल, म्यांमार, श्रीलंका और मालदीव
में काफी निवेश किया है. इसमें स्थानीय कारोबारियों की भूमिका भी होती है.
बीआरआई परियोजना
मुहम्मद मुइज़्ज़ु की पार्टी ने पिछले कार्यकाल
में चीन से नजदीकियां काफी ज्यादा बढ़ा ली हैं. चीन की बेल्ट एंड रोड परियोजना के
तहत बुनियादी ढाँचे के विकास के लिए खूब सारा धन बटोरा गया. 45 साल के मुइज़्ज़ु
माले के मेयर रहे हैं. पिछली सरकार में मालदीव के मुख्य एयरपोर्ट से राजधानी को
जोड़ने की 20 करोड़ डॉलर की चीन समर्थित परियोजना का नेतृत्व उन्हीं के हाथ में
था.
चीन के पैसे से बनी इसी परियोजना की सबसे अधिक
चर्चा है. 2.1 किमी लंबा यह चार लेन का एक पुल है. यह पुल राजधानी माले को
अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से जोड़ता है, जो दूसरे द्वीप पर स्थित है. इस पुल का
उद्घाटन 2018 में किया गया था.
2013 से लेकर 2018 तक राष्ट्रपति यामीन के दौर
में मालदीव में भारत-विरोधी ताकतों ने खुलकर खेला. उसी दौरान मालदीव चीन के बेल्ट
एंड रोड इनीशिएटिव में वह शामिल हुआ और उसने फ्री-ट्रेड समझौता भी किया. शी
चिनफिंग उसी दौरान मालदीव भी आए थे.
यामीन की तरह मुइज़्ज़ु चीन के प्रति प्रेम को
खुले रुप से जाहिर करते हैं. पिछले साल चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के एक प्रतिनिधि
के साथ ऑनलाइन मीटिंग में उन्होंने कहा कि अगर पीपीएम सत्ता में वापस आई तो,
दोनों देशों के बीच मजबूत रिश्तों का एक और अध्याय लिखा जाएगा.
2018 में इब्राहीम सोलिह ने यामीन को हराकर उस
खेल को रोका. भ्रष्टाचार के आरोपों में यामीन11 साल के कैद की सजा काट रहे हैं.
उन्हें निरंकुश नेता भी कहा जाता है. सोलिह ने आरोप लगाया था कि यामीन ने बुनियादी
ढाँचे के लिए भारी कर्ज लेकर देश को चीनी कर्जों के दलदल में फँसा दिया.
भौगोलिक-महत्व
मालदीव द्वीप समूह का आधिकारिक नाम मालदीव
गणराज्य है. यह मिनिकॉय और शागोस द्वीप समूह के बीच लक्षद्वीप सागर में मूँगे के द्वीपों
की एक दोहरी श्रृंखला में करीब 90,000 वर्ग किलोमीटर में फैला है. इसमें 1,192
टापू हैं, जिनमें से 200 पर बस्तियाँ है. यह एशिया का
सबसे छोटा देश है, पर इसकी भौगोलिक स्थिति इसे महत्वपूर्ण बनाती है.
देश की राजधानी और सबसे बड़ा शहर है माले,
जिसकी आबादी करीब सवाल लाख है. पूरे देश की उसकी कुल आबादी 5.2 लाख
है, जिनमें से 2.8 लाख वोटर हैं. राजा का द्वीप माले था, जहाँ
से प्राचीन मालदीव राजकीय राजवंश शासन करते थे. यहाँ उनका महल स्थित था.
ब्रिटेन से आजादी के बाद, सल्तनत, राजा मुहम्मद फरीद दीदी के अधीन अगले
तीन साल तक चलती रही. 11 नवम्बर 1968 को राजशाही समाप्त कर दी गई और इब्राहीम
नासिर की राष्ट्रपति पद के रूप में नियुक्ति के साथ इसे गणतंत्र घोषित कर दिया
गया.
मौमून ग़यूम
1978 में मालदीव की संसद ने मौमून अब्दुल ग़यूम
को राष्ट्रपति के पद पर चुना. वे 30 वर्ष इस पद पर रहे. इस दौरान उनकी सरकार को
गिराने की कोशिशें भी हुईं. सबसे घातक प्रयास 1988 में हुआ. उस समय भारतीय सेना ने
हस्तक्षेप किया और व्यवस्था को बनाए रखा.
अंततः बहुदलीय प्रणाली की स्थापना हुई और 9
अक्टूबर 2008 को चुनाव हुए, जिसमें ग़यूम और मुहम्मद नशीद के बीच राष्ट्रपति पद का
मुकाबला हुआ. इसमें नशीद की जीत हुई. मुहम्मद नशीद पहले ऐसे राष्ट्रपति बने, जो बहुदलीय
लोकतंत्र द्वारा चुने गए थे. नशीद के साथ भारत के रिश्ते अच्छे थे, पर 2012 में
अचानक देश में भारत-विरोधी प्रवृत्तियों ने सिर उठाना शुरू कर दिया.
2018 में जब इब्राहीम सोलिह राष्ट्रपति चुनाव
जीते, तब उनके शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हुए.
इसबार भी उन्हें आने का निमंत्रण भेजा गया था. दूसरे कार्यक्रमों में व्यस्तता के
कारण वे नहीं आए, पर परोक्षतः यह मालदीव के नए नेतृत्व के लिए एक संदेश भी है.
देश में एक और राजनीतिक गतिविधि अगले महीने
प्रस्तावित है. नागरिक एक जनमत संग्रह में भाग लेंगे, जिसमें तय होगा कि देश
वर्तमान राष्ट्रपति के चुनाव की प्रणाली पर चले या संसदीय प्रणाली को अपनाए. पूर्व
राष्ट्रपति मुहम्मद नशीद इस माँग का लंबे समय से समर्थन करते आए हैं. इस जनमत
संग्रह के परिणाम का भी इंतजार करना चाहिए.
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