सम्मेलन का समापन हो गया. अब कोई कार्यक्रम नहीं है, सिर्फ प्रतिक्रियाएं हैं. सम्मेलन के निष्कर्ष और निहितार्थ भी धीरे-धीरे समझ में आ रहे हैं. कुछ मेहमान अभी रुके हुए हैं, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण हैं सऊदी अरब के शहज़ादे मोहम्मद बिन सलमान अब्दुलअज़ीज़ अल सऊद.
आज उनके साथ पीएम मोदी की द्विपक्षीय बातचीत हुई
है. यह वार्ता दोनों देशों के दीर्घकालीन सहयोग का संकेत दे रही है. एक दिन का यह
दौरा दोनों देशों के संबंधों को और मजबूत करेगा.
कुल मिलाकर वैश्विक मंच पर यह भारत के आगमन की
घोषणा है. वैसे ही जैसे 2008 के ओलिंपिक खेलों के साथ चीन का वैश्विक मंच पर आगमन
हुआ था. पर्यवेक्षकों की आमतौर पर प्रतिक्रिया है कि भारत में हुआ शिखर सम्मेलन और
भारतीय अध्यक्षता कई मायनों में अभूतपूर्व रही है.
ऐसा मानने के दो कारण हैं. एक, आयोजन की भव्यता और दूसरे, ऐसे दौर में जब दुनिया में कड़वाहट बढ़ती जा रही है, सभी पक्षों को संतुष्ट कर पाने में सफल होना. भारत ने जी-20, जी-7, ईयू, रूस और चीन जैसे विभिन्न हितधारकों के बीच अधिकतम सहमतियाँ बनाने की कोशिश की है.
पिछड़े देशों पर ध्यान
भारत ने इसके साथ ही पश्चिमी देशों का ध्यान इस
बात की तरफ खींचा कि ‘ग्लोबल साउथ’ देश यूक्रेन पर रूसी
कार्रवाई को पसंद नहीं करते, पर यूक्रेन ही एक मसला नहीं है. आप कोरोना और
जलवायु-परिवर्तन के दुष्प्रभावों के पीड़ित विकासशील देशों पर भी ध्यान दीजिए. इस सम्मेलन ने गरीब देशों और उनकी समस्याओं की ओर दुनिया का ध्यान
खींचा है.
ये देश अब इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि
ब्लैक सी के रास्ते यूक्रेन के गेहूँ के निर्यात पर लगी रोक को रूस हटाए. ताकि
खाद्यान्न की सप्लाई जारी रहे. वैश्विक खाद्य-संकट को टालने के लिए यह कदम बेहद
जरूरी है. रूस को भी इस बात को स्वीकार करना चाहिए कि जी-20 ने उसकी सीधे आलोचना
नहीं की है. यह एक ऐसा बिंदु है, जहाँ से समझौते और सहमति की आवाज़ निकलनी चाहिए.
भारत का रसूख
सम्मेलन के आखिरी दिन कुछ देशों के बयानों और
वैश्विक-मीडिया की कवरेज से भारत के बढ़ते महत्व को भी बेहतर तरीके से समझा जा
सकता है. भारत के नज़रिए से सबसे रोचक बयान तुर्किये के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोगान
का रहा, जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता का
समर्थन किया.
एर्दोगान को भारत के आलोचक नेताओं में शामिल
किया जाता है. उनका पाकिस्तान की ओर झुकाव ज़ाहिर है, पर इस मामले में उन्होंने
बड़े साफ शब्दों में भारत का समर्थन किया है. उन्होंने यह भी कहा कि इतनी बड़ी
दुनिया में पाँच देश ही क्यों? दुनिया इन पांच देशों से कहीं ज्यादा बड़ी है.
उन्होंने आगे कहा कि अगर भारत जैसे देश को
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाया जाता है तो हमें गर्व महसूस
होगा. साथ ही यह भी कि गैर-स्थायी सदस्यों को बारी-बारी से सुरक्षा परिषद का सदस्य बनने का
मौका दिया जाना चाहिए. यानी कि सभी 195 देशों को रोटेशनल आधार पर मौका मिलना
चाहिए.
पीएम मोदी ने 10
सितंबर को राष्ट्रपति एर्दोगान के साथ द्विपक्षीय बैठक भी की. इस बैठक में व्यापार
और निवेश, रक्षा और सुरक्षा, नागर
विमानन और शिपिंग जैसे क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग की संभावनाओं पर चर्चा की
गई। एर्दोगान ने फरवरी 2023 में तुर्किये में आए भूकंप के बाद
ऑपरेशन दोस्त के तहत त्वरित राहत के लिए भारत को धन्यवाद भी दिया और चंद्रयान मिशन
की सफलता पर बधाई और आदित्य मिशन के लिए शुभकामनाएं दीं.
द्विपक्षीय बैठकें
सम्मेलन के हाशिए पर पीएम नरेंद्र मोदी ने कई
देशों के राष्ट्राध्यक्षों के साथ द्विपक्षीय बैठकें कीं. इनमें जापान, ब्रिटेन,
फ्रांस, इटली और जर्मनी, तुर्की, यूएई, दक्षिण कोरिया, ईयू/ईसी, ब्राज़ील, नाइजीरिया और बांग्लादेश के नेताओं से मुलाकातें मायने रखती हैं. इसी कड़ी में रविवार को उन्होंने
कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो से मुलाकात की. जस्टिन ट्रूडो पर भी भारतीय मीडिया की
नज़रें थीं. सूत्रों के अनुसार, पीएम मोदी ने इस दौरान कनाडा के पीएम
जस्टिन ट्रूडो के सामने खालिस्तान का मुद्दा भी उठाया.
हालांकि कनाडा और भारत के रिश्ते परंपरागत रूप
से अच्छे हैं और कोई वजह नहीं है कि वे खराब हों, पर खालिस्तानी मुद्दा ‘गले
की फाँस’ की तरह अटका है. सिख अलगाववादियों ने
खालिस्तान के नाम से एक अलग देश बनाने की माँग को लेकर अस्सी के दशक में पंजाब में
खून की नदियाँ बहा दी थीं. 1985 में मांट्रियल से दिल्ली के लिए रवाना
हुए एयर इंडिया के जम्बो जेट ‘कनिष्क’ को इन आतंकवादियों ने ध्वस्त कर दिया था,
जिसमें 329 लोगों की मौत हुई थी.
कनाडा में करीब पाँच लाख सिख रहते हैं, जो कुल आबादी का करीब 1.4 फीसदी है.
ट्रूडो सिखों के इतने प्रिय हैं कि उन्हें मजाक में जस्टिन सिंह भी कहा जाता है.
अपनी लिबरल पार्टी के खालिस्तानियों के साथ रिश्तों को लेकर ट्रूडो गोल-मोल बातें
करते हैं. बहरहाल दिल्ली-सम्मेलन के दौरान वे कुछ फीके रहे.
आकर्षक-भारत
दिल्ली-सम्मेलन को लेकर वैश्विक-मीडिया की कुछ
रोचक टिप्पणियाँ भी सामने आई हैं. सम्मेलन की तारीफ चीन के सरकारी अख़बार ‘ग्लोबल
टाइम्स’ से लेकर अमेरिकी अखबार ‘वॉशिंगटन
पोस्ट’ तक ने की है. ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने
लिखा है-जी-20 सम्मेलन ने बढ़ते मतभेदों के बीच बुनियादी एकजुटता प्रदर्शित की है.
सम्मेलन में अंततः साझा बयान स्वीकार कर
लिया गया जिसमें बहुत बुनियादी एकजुटता और यूक्रेन युद्ध को लेकर तटस्थ नज़रिया है.
किसी भी देश की प्रत्यक्ष निंदा इसमें नहीं की गई है, जो 2022 से भिन्न स्थिति है.
अखबार ने फुडान यूनिवर्सिटी में इंस्टीट्यूट
ऑफ़ इंटरनेशनल स्टडीज़ के प्रोफ़ेसर ली मिनवांग को इस प्रकार उधृत किया है-भारत ने
इस सम्मेलन का मेज़बान होने के नाते बहुत कुछ हासिल किया है. उसने खुद को ‘बहुत आकर्षक’ बना लिया है, क्योंकि
उसे पश्चिम और रूस दोनों पसंद कर रहे हैं. उसने यह भी लिखा
है कि जी-20 शिखर सम्मेलन की सफलता भारत में मोदी और उनकी भारतीय जनता पार्टी के
शासन को मज़बूत करेगी.
रूस की समाचार एजेंसी तास ने जर्मन अख़बार ‘डाई
ज़ीट’ का हवाला देते हुए लिखा है कि जी-20 के साझा
बयान में रूस की निंदा नहीं होने से साबित होता है कि पश्चिमी देश रूस को अलग-थलग
करने में नाकाम रहे. जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा
कि दिल्ली-घोषणा सफल रही.
बाली को बदला
अमेरिकी अखबार ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने जी-20 घोषणापत्र को बड़े जतन और मेहनती-विमर्श का नतीजा बताया
है. उसने इस बात को रेखांकित किया है कि इसमें रूस की निंदा नहीं की गई है. इसबार
का दस्तावेज बाली के दस्तावेज के मुकाबले काफी बदला हुआ है, जिसमें यूक्रेन पर
रूसी हमले की निंदा की गई थी और रूस से सेना वापस बुलाने को कहा गया था.
‘वॉशिंगटन पोस्ट’ ने
लिखा है कि जी-20 का घोषणापत्र यूक्रेन को लेकर बढ़ते मतभेद और ग्लोबल साउथ (भारत
जैसे विकासशील देशों) के बढ़ते प्रभाव को दर्शाता है. मेज़बान भारत अलग-अलग समूहों
से अंतिम बयान पर दस्तख़त कराने में कामयाब रहा, लेकिन
यूक्रेन में रूस के युद्ध के विवादित मुद्दे पर भाषा को नरम करके ऐसा किया गया.
समापन के एक दिन पहले जारी हुए घोषणापत्र में
‘यूक्रेन युद्ध की मानवीय पीड़ा और नकारात्मक प्रभावों’ को रेखांकित किया गया, पर इसमें
रूस के नाम तक नहीं है…रूस ने इस घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए, इस बात को भी पश्चिमी
देश कामयाबी के रूप में देख रहे हैं.
भारत-सऊदी वार्ता
सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान
का आधिकारिक भारत दौरा आज है. आज सुबह राष्ट्रपति भवन में उनका औपचारिक स्वागत
किया गया. इस दौरान उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी और अन्य मंत्रियों से भी उनकी मुलाकात हुई. इससे पहले भारत और सऊदी
अरब के बीच भारत-सऊदी निवेश समझौते के तहत कई समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर हुए.
हैदराबाद हाउस में पीएम मोदी के साथ द्विपक्षीय
बैठक हुई और भारत-सऊदी स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप कौंसिल पर हस्ताक्षर होने के अलावा शाम
6.30 बजे राष्ट्रपति भवन में उनकी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के साथ बैठक होगी और
उसके बाद रात 8.30 बजे वे अपने देश रवाना हो जाएंगे.
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