भारत-उदय-02
दिल्ली में हो रहे शिखर सम्मेलन में रूस और चीन की
भूमिकाओं को लेकर कई तरह के संदेह हैं, पर कुछ नई बातें भी हो रही हैं. भारत ने
पहल करके अफ्रीकन यूनियन को जी-20 की पूर्ण-सदस्यता की पेशकश की है. इस प्रकार
दुनिया की एक बड़ी आबादी को जी-20 के साथ जुड़कर अपने विकास का मौका मिलेगा. जी-20
की सदस्यता देश या संगठन की वैधानिकता और प्रभाव को व्यक्त करती है और उसे बढ़ाती
भी है.
संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के दौरान दुनिया की
सुरक्षा केवल सैनिक-संघर्षों को टालने तक की मनोकामना तक सीमित थी. पिछले सात
दशकों में असुरक्षा का दायरा क्रमशः बड़ा होता गया है. आर्थिक-असुरक्षा या संकट
इनमें सबसे बड़े हैं. इसके अलावा जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण ऐसा क्षेत्र है,
जिसका विस्तार वैश्विक है. हाल के वर्षों में इंटरनेट से जुड़े हमलों और अपराधों
के कारण सायबर-सुरक्षा एक और नया विषय सामने आया है.
जी-20 का गठन मूलतः आर्थिक-संकटों का सामना करते हुए हुआ है. पर उसका दायरा बढ़ रहा है. दुनिया के 19 देशों और यूरोपियन यूनियन का यह ग्रुप-20 दुनिया की 85 फीसदी अर्थव्यवस्था और करीब दो तिहाई आबादी का प्रतिनिधित्व करता है, पर अभी तक इसमें अफ्रीका महाद्वीप से केवल दक्षिण अफ्रीका ही इस ग्रुप का सदस्य है.
ग्लोबल साउथ की आवाज़
55 देशों के संगठन अफ्रीकन यूनियन के इसमें शामिल हो
जाने से एक बड़ी रिक्ति की पूर्ति होगी. इस ब्लॉक की समेकित जीडीपी करीब तीन
ट्रिलियन डॉलर की है. सैनिक तख्ता पलट के कारण इस समय इस संगठन ने अपने पाँच सदस्य
देशों को निलंबित कर रखा है.
भारतीय अध्यक्षता में अफ्रीकन यूनियन को जी-20 की
सदस्यता मिलने पर उस दावे को वैश्विक मंजूरी भी मिलेगी कि भारत ग्लोबल साउथ के
देशों की आवाज बन चुका है. इसके साथ अफ्रीका के देशों में भारत के प्रति भरोसा बढ़ेगा.
भारत का कहना है कि विकासशील देशों की जनता को
आश्वस्त करने के लिए हमें आम सहमतियाँ बनाकर आगे आना चाहिए. दुनिया के समावेशी
विकास की यह अनिवार्य शर्त है. दुनिया के सामने पेश आ रही सप्लाई चेन की समस्या के
समाधान के रूप में भी भारत ने खुद को प्रस्तुत किया है.
भारत ने 2023 के लिए बांग्लादेश, मिस्र, मॉरिशस, नीदरलैंड,
नाइजीरिया, ओमान, सिंगापुर,
स्पेन और यूएई को शिखर सम्मेलन में अतिथि देश के रूप में आमंत्रित
किया है. रूस-यूक्रेन के अलावा दुनिया के सामने दूसरी चुनौतियां भी है.
समावेशी, समान और सतत विकास,
महिला सशक्तिकरण, डिजिटल पब्लिक
इंफ्रास्ट्रक्चर, जलवायु वित्तपोषण, वैश्विक
खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा जैसे मसले सामने हैं. कार्बन उत्सर्जन को लेकर गरीब देशों
को मिलने वाली आर्थिक मदद, स्वच्छ ऊर्जा के मामले में गरीब
देशों को तकनीकी और आर्थिक मदद, खाद्य सुरक्षा और सप्लाई चेन
के मसले काफी महत्वपूर्ण है.
क्या है जी-20
25 सितंबर 1999 को अमेरिका की राजधानी वॉशिंगटन डीसी
में विश्व के सात प्रमुख देशों के संगठन जी-7 ने एक नया संगठन बनाने की घोषणा की
थी. उभरती आर्थिक ताक़तों की बुरी वित्तीय स्थिति से बने चिंता के माहौल के बीच
गठित इस संगठन का नाम दिया गया-जी 20.
जी-20 में फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली,
जापान, अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया,
ब्राजील, कनाडा, चीन,
दक्षिण कोरिया, मैक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका,
तुर्की, ब्रिटेन, अमेरिका
और यूरोपीय संघ शामिल हैं. इनके अलावा इसके सम्मेलनों में दुनिया भर के तमाम
संगठनों और देशों को समय-समय पर निमंत्रित किया जाता है.
बुनियादी तौर पर जी-20 ने आर्थिक सहयोग के प्रभावशाली
संगठन के रूप में शुरुआत की थी. यह वैश्विक जीडीपी का लगभग 85 प्रतिशत, वैश्विक व्यापार का 75 प्रतिशत से अधिक और विश्व की लगभग दो-तिहाई आबादी
का प्रतिनिधित्व करता है. आर्थिक परिघटनाओं, खासतौर से
वैश्विक मंदी के मद्दे-
यह समूह किसी संधि की प्रस्तावना से गठित नहीं हुआ है, बल्कि 1997-99 के एशिया के वित्तीय संकट की छाया में गठित हुआ था. इसमें
मुख्य भूमिका विकसित देशों यानी जी-7 की थी. प्रयास यह था कि इसमें विकासशील और
राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण देशों को भी शामिल किया जाए, ताकि
वैश्विक आर्थिक-संकट का सामना किया जा सके.
सन 2008 के वैश्विक आर्थिक-संकट के बाद पहली बार इसके
शिखर सम्मेलनों की जरूरत महसूस की गई. उसके बाद से इसके उद्देश्यों में
आर्थिक-संकट के अलावा मानवीय-संकट, टकराव, लैंगिक प्रश्न, जलवायु परिवर्तन, ऊर्जा और डिजिटलीकरण जैसे नए मसले भी शामिल हो गए हैं.
यूक्रेन-युद्ध
यूक्रेन-युद्ध और चीन के साथ पश्चिमी देशों के
बिगड़ते रिश्तों की वजह से आवश्यक-वस्तुओं की आपूर्ति का संकट पैदा हो गया है. सबसे
बड़ा खतरा खाद्य-सुरक्षा को लेकर है. इन खतरों को दूर करने में वैश्विक-मंचों की
भूमिका है. तेज गति से बढ़ती अपनी अर्थव्यवस्था के भरोसे भारत इस संकट के समाधान में
मददगार हो सकता है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले रविवार को दिल्ली
में हुए बी-20 समिट में भारत के विज़न को दुनिया के सामने रखा. बी-20 या बिजनेस
ट्वेंटी जी-20 का आधिकारिक कारोबारी समुदाय है. पीएम मोदी ने कहा कि भारत के पास
दुनिया का सबसे युवा टेलेंट है. इंडस्ट्री 4.0 के दौर में भारत डिजिटल क्रांति का
चेहरा बना है.
चुनौतियाँ
जी-20 के दिल्ली शिखर सम्मेलन की सबसे बड़ी चुनौती उस
दस्तावेज को तैयार करने की है, जो सबसे अंत में जारी होगा. यह दस्तावेज एक प्रकार
से दुनिया के सामने खड़े सवालों को लेकर आम सहमति को व्यक्त करता है.
यूक्रेन-युद्ध और बढ़ते वैश्विक-ध्रुवीकरण के कारण अब आम सहमतियाँ बना पाना बहुत
मुश्किल काम हो गया है.
शिखर सम्मेलन के पहले अलग-अलग स्तर पर हुए विभिन्न
सम्मेलनों में ये मतभेद खुलकर सामने आए हैं. भारत की डिप्लोमैटिक समझदारी और
प्रभाव शिखर-सम्मेलन में देखने को मिलेगा. यह सक्रियता हाल में संपन्न हुए ब्रिक्स
सम्मेलन में भी देखने को मिली.
वेदवाक्य है, ‘यत्र विश्वं भवत्येक
नीडम.’ यह हमारी विश्व-दृष्टि है. 'एक विश्व' की अवधारणा, जो आधुनिक ‘ग्लोबलाइजेशन’ या ‘ग्लोबल
विलेज’ जैसे रूपकों से कहीं व्यापक है. भारत का यह पुनरोदय-काल है.
यूक्रेन युद्ध के बाद दुनिया दो भागों में बँट गई है.
जी-20 में दोनों ही गुटों के समर्थक देश शामिल हैं. भारत का संपर्क पश्चिमी देशों
और रूस दोनों के साथ ही घनिष्ठ है. यही वजह है कि पश्चिमी मीडिया जोर देकर कह रहा
है कि भारत यूक्रेन युद्ध में शांति कराने
की क्षमता रखता है.
बाली सम्मेलन
पिछले साल बाली सम्मेलन में मतभेद इस स्तर पर थे कि
एक सर्वसम्मत घोषणापत्र बन पाने की नौबत नहीं आ रही थी. ऐसे में भारत की पहल पर
घोषणापत्र बन पाया. इस घोषणापत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस प्रसिद्ध
वाक्य को शामिल किया गया कि ‘आज लड़ाइयों का ज़माना नहीं है’.
यह बात उन्होंने समरकंद में हुए शंघाई सहयोग संगठन के
शिखर सम्मेलन में कही थी. बाली-घोषणा में इस वाक्य के जुड़ जाने के बाद अमेरिकी
राष्ट्रपति ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की तारीफ की है. 15 दौर की मंत्रिस्तरीय
वार्ता के बावजूद पूरा संगठन दो खेमे में बँटा हुआ था.
अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देश बगैर घोषणापत्र
के ही बाली बैठक का समापन चाहते थे. तब भारतीय प्रतिनिधियों ने संगठन के दूसरे
विकासशील देशों के साथ मिल कर सहमति बनाने की कोशिश की जिसके बाद बाली घोषणापत्र
जारी हो पाया.
बढ़ती कड़वाहट
घोषणापत्र जारी जरूर हो गया, पर आने वाले समय की जटिलताओं को भी रेखांकित कर गया. संयुक्त घोषणापत्र
जारी होने के बावजूद सदस्य देशों के बीच कई मुद्दों पर सहमति नहीं बन पाई. इस
कड़वाहट को प्रतीक रूप में इस तथ्य से समझा जा सकता है कि बाली बैठक के दौरान सभी
राष्ट्र प्रमुखों का संयुक्त फोटो नहीं लिया जा सका.
जी-20 बैठक के दौरान यह पहला मौका था, जब सदस्य देशों
के प्रमुखों की कोई ग्रुप फोटो नहीं हुई. ऐसी कटु-पृष्ठभूमि में दिल्ली के शिखर
सम्मेलन और दिल्ली घोषणा पर दुनिया भर की निगाहें हैं.
हाल के वर्षों में भारत विकासशील देशों की आवाज बनकर
खड़ा हुआ है. पिछले साल संयुक्त राष्ट्र महासभा में विदेशमंत्री एस जयशंकर ने इस
बात को काफी मजबूती से कहा कि वैश्विक-संकटों का सबसे बड़ा असर विकासशील देशों पर
पड़ता है.
दुनिया का दुर्भाग्य है कि जैसे ही महामारी से
छुटकारा मिलने की स्थिति आई यूक्रेन में लड़ाई शुरू हो गई. इसी दौरान संयुक्त
राष्ट्र में सुधारों की माँग खड़ी हो रही है. सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के
लिए भारत की दावेदारी भी बढ़ती जा रही है.
दूसरी तरफ आपसी मतभेदों के कारण इस समूह
की विश्वसनीयता को धक्का लग रहा है. पश्चिमी देशों की ओर से यह मांग उठ रही है कि
जी-20 से रूस को बाहर किया जाए. ऐसे में रूस की वैश्विक उपस्थिति बनाए रखने के लिए
भी भारत को प्रयास करना होगा. भारत को पिछले सम्मेलनों के एजेंडा की निरंतरता को
भी बनाकर रखना होगा.
आवाज़ द वॉयस में 2 सितंबर, 2023 को प्रकाशित
अगले अंक में पढ़ें:
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