Sunday, September 10, 2023

दिल्ली-घोषणा से साबित हुआ भारत का राजनयिक-कौशल


लीडर्स घोषणा पत्र पर आमराय बन जाने के साथ जी-20 का नई दिल्ली शिखर सम्मेलन पहले दिन ही पूरी तरह से सफल हो गया है. यूक्रेन-युद्ध प्रसंग सबसे जटिल मुद्दा था, जिसका बड़ी खूबसूरती से हल निकाल लिया गया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ख़ुद आमराय की जानकारी शिखर-सम्मेलन में दी. उन्होंने कहा, हमारी टीम के हार्ड वर्क से और आप सभी के सहयोग से नई दिल्ली जी-20 लीडर्स घोषणा पत्र पर आम सहमति बनी है.

राजनीतिक-दृष्टि से प्रधानमंत्री मोदी ने पश्चिम एशिया के रास्ते यूरोप से जुड़ने की जिस महत्वाकांक्षी-योजना की घोषणा की है, वह एक बड़ा डिप्लोमैटिक-कदम है. इस परियोजना में भारत, अमेरिका, सऊदी अरब, यूएई, यूरोपियन संघ, फ्रांस, इटली और जर्मनी शामिल होंगे.

भारत ने एक तरफ जी-20 को जनांदोलन के रूप में परिवर्तित कर दिया है. दूसरी तरफ उसने इसे एक ऐसे राजनयिक-आयोजन में बदल दिया जो इससे पहले कभी नहीं देखा गया. पिछले एक साल में 60 भारतीय शहरों में 200 से ज्यादा बैठकें आयोजित की गईं. इससे भारत में जी-20 के प्रति एक नई चेतना कायम हुई.  

पश्चिम का समर्थन

दिल्ली-घोषणा की बारीकियों पर विवेचन अगले कुछ दिनों में होता रहेगा, पर मोटे तौर पर लगता है कि इस सम्मेलन को सफल बनाने के लिए पश्चिमी-देशों ने भारत की सहायता करते हुए अपने रुख में कुछ नरमी भी बरती है. डिप्लोमेसी यूक्रेन-युद्ध से आगे बढ़ गई है. इसके साथ ही नई विश्व-व्यवस्था में भारत उभर कर आगे आया है.

इस घोषणापत्र को चीन ने भी स्वीकार कर लिया है और इस बात की तारीफ की है कि इसमें भू-राजनीति से हटकर दूसरे महत्वपूर्ण प्रश्नों को उठाया गया है. दूसरी तरफ यूक्रेन इस घोषणा से संतुष्ट नहीं है. बाली घोषणा में जहाँ रूस की भर्त्सना की गई थी, वहीं दिल्ली घोषणा में अलग-अलग पक्षों के दृष्टिकोण को रेखांकित किया गया है. इस घोषणापत्र को तैयार करने में जी-7 के अध्यक्ष के रूप में जापान की महत्वपूर्ण भूमिका रही, जिसने संरा के प्रस्ताव के सहारे यूक्रेन-प्रसंग को शामिल करने का सुझाव दिया.

प्रधानमंत्री ने कहा, मेरा प्रस्ताव है कि इस घोषणापत्र को स्वीकार किया जाए. मैं इस डिक्लेरेशन को एडॉप्ट करने की घोषणा करता हूं. इस अवसर पर मैं हमारे मंत्रिगण, शेरपा और सभी अधिकारियों का हृदय से अभिनंदन करता हूं. जिन्होंने अथाह परिश्रम करके इसे सार्थक किया है.

83 पैराग्राफ की इस घोषणा में किसी प्रकार की असहमति, कोई पाद-टिप्पणी और स्पष्टीकरण नहीं है. इससे साबित होता है कि इसे तैयार करते समय कितनी सूझबूझ और सावधानी बरती गई है. यूक्रेन-युद्ध का जिक्र जिस पैरा में है, उसपर नज़र जालें, तो यह बात और स्पष्ट होगी. इसमें कहा गया है:

"यूक्रेन में युद्ध के संबंध में, बाली में चर्चा को याद करते हुए, हमने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और संयुक्त राष्ट्र महासभा (ए/आरईएस/ईएस-11/1 और ए/आरईएस/ईएस-11/6) में अपनाए गए अपने राष्ट्रीय दृष्टिकोण और प्रस्तावों को दोहराते हुए रेखांकित किया कि सभी देशों को पूरी तरह से संयुक्त राष्ट्र चार्टर के उद्देश्यों और सिद्धांतों के अनुरूप कार्य करना चाहिए. संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुरूप, सभी राज्यों को किसी की ज़मीन हड़पने और किसी भी देश की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता या राजनीतिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करते हुए शक्ति के इस्तेमाल से बचना चाहिए. परमाणु हथियारों का उपयोग या उसकी धमकी भी नामंज़ूर है."

उपरोक्त पैरा के आखिरी दो वाक्यों में हालांकि किसी देश का नाम नहीं है, पर यह बात छिपी नहीं है कि नाभिकीय शस्त्रों के इस्तेमाल की धमकी रूस ने दी थी और किसी देश की ज़मीन हड़पने का आरोप भी रूस पर है. 

मुख्य बिंदु

आज भी शिखर-सम्मेलन की शुरुआत दक्षिण चीन सागर में बिगड़ती स्थितियों और यूक्रेन-युद्ध से जुड़े प्रसंगों से हुई. 2022 में बाली के शिखर-सम्मेलन में इन्हीं प्रसंगों ने कड़वाहट पैदा कर दी थी. दिल्ली घोषणापत्र में यूक्रेन-युद्ध का उल्लेख हुआ है, पर किसी पक्ष को निशाना बनाने के बजाय युद्ध के कारण हो रहे नुकसान को रोकने पर ज़ोर दिया गया है.

घोषणा पत्र के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:- 1. मजबूत, दीर्घकालिक, संतुलित और समावेशी विकास, 2.सतत विकास लक्ष्यों पर आगे बढ़ने में तेज़ी, 3.दीर्घकालिक भविष्य के लिए हरित विकास समझौता, 4.इक्कीसवीं सदी के लिए बहुपक्षीय संस्थाएं, 5.बहुपक्षवाद को पुनर्जीवित करना.

आज सुबह से शुरू होकर से दोपहर डेढ़ बजे तक पहला सत्र 'वन अर्थ' पर आयोजित किया गया. दूसरा सत्र 'वन फैमिली' पर केंद्रित था. शाम 7 बजे डिनर पर सभी राष्ट्राध्यक्षों की मुलाक़ात और बातचीत हुई. कल रविवार को एक भविष्य विषय पर तीसरा सत्र सुबह 10 बजे से दोपहर 12.30 बजे तक होगा. इस सत्र के बाद शिखर सम्मेलन का समापन हो जाएगा.

वैश्विक-भरोसा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उद्घाटन भाषण के साथ नई दिल्ली में जी-20 के शिखर सम्मेलन की शुरुआत हो गई. प्रधानमंत्री ने इस मौके पर कहा, यहाँ से कुछ किलोमीटर की दूरी पर ढाई हजार साल पुराना एक स्तंभ लगा है, जिसपर प्राकृत में लिखा है, हेवं लोकश:हित मुखेति, अथ: इयं नातेशु हेवं अर्थात मानवता का हित और उसका कल्याण सुनिश्चित हो.

ढाई हजार साल पहले भारत की इसी भूमि ने यह संदेश पूरी दुनिया को दिया था. 21वीं सदी का यह समय पूरी दुनिया को नई दिशा देने वाला है. वर्षों पुरानी चुनौतियां हमसे नए समाधान माँग रही हैं.

उन्होंने मनुष्य-केंद्रित विकास और कोविड-19 और यूक्रेन-युद्ध के कारण वैश्विक सप्लाई-चेन को लेकर फैल रहे अविश्वास के कम करने और विश्वास को फिर से कायम करने का आह्वान किया. उन्होंने भूकंप की त्रासदी के शिकार मोरक्को को यथा संभव सहायता का वचन भी दिया.

अफ्रीकन यूनियन

शिखर सम्मेलन के पहले फैसले के रूप में अफ्रीकन यूनियन को नया स्थायी सदस्य बनाने की घोषणा भी हुई. प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि अफ्रीकन यूनियन को इस समूह का इक्कीसवाँ सदस्य बनाया जा रहा है.

उन्होंने कहा, अफ्रीकी यूनियन को भारत जी-20 में शामिल करने का प्रस्ताव दे रहा है. हमें उम्मीद है कि इस प्रस्ताव में हर देश की सहमति है. मैं कोमोरोस के राष्ट्रपति और अफ्रीकन यूनियन के सभापति अज़ली असौमानी को स्थायी सदस्य के रूप में अपना स्थान ग्रहण करने के लिए आमंत्रित करता हूं. इसी के साथ अब यह समुदाय जी-21 के नाम से जाना जाएगा.

भारत-सऊदी संवाद

जी-20 के हाशिए पर संवाद के अलावा भारत और सऊदी अरब के रिश्तों की और गहरी बुनियाद भी इस सम्मेलन के दौरान पड़ी है. सऊदी अरब के वली अहद और प्रधानमंत्री मोहम्मद बिन सलमान इस सम्मेलन में आए हुए हैं.

सम्मेलन में शामिल होने के एक दिन बाद भी वे भारत में मौजूद रहेंगे. इससे दुनिया में साफ संदेश जाएगा कि भारत और सऊदी अरब के बीच मौजूदा संबंध कितने प्रगाढ़ हैं. विदेश मंत्रालय के अनुसार, मोहम्मद बिन सलमान 9 और 10 को शिखर सम्मेलन में शामिल होने के बाद भारत का राजकीय दौरा करेंगे.

इससे पहले प्रधानमंत्री मोदी और मोहम्मद बिन सलमान के बीच जून में फोन पर बातचीत हुई थी. दोनों ने तब कनेक्टिविटी, ऊर्जा, रक्षा, व्यापार और निवेश में संबंधों को मजबूत करने के तरीकों पर चर्चा की थी. हाल में सऊदी अरब, ईरान और यूएई ने रूस और चीन के साथ अपने रिश्तों को मजबूत किया है. सहयोग के इस बदलते माहौल में भारत की भूमिका भी स्पष्ट होगी.

पश्चिम एशिया से जुड़ाव

हाल में समाचार एजेंसी रायटर्स ने खबर दी है कि भारत, सऊदी अरब, यूएई, अमेरिका और कुछ अन्य देश इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़े एक समझौते पर विचार कर रहे हैं, जिससे पश्चिम एशिया के देशों में रेलवे लाइनों और बंदरगाहों के जरिए खाड़ी देशों और दक्षिण एशिया के बीच व्यापार को बढ़ावा मिलेगा. इस समझौते में यूरोप के देश भी शामिल हैं.

प्रधानमंत्री मोदी की आज की घोषणा ने इस खबर की पुष्टि कर दी है. प्रत्यक्षतः यह परियोजना चीन के बॉर्डर रोड इनीशिएटिव के जवाब में तैयार की गई है. अमेरिका की दूसरा उद्देश्य फलस्तीनी समस्या का स्थायी समाधान निकालना भी है. इसके लिए उसने पश्चिम एशिया में अपनी उपस्थिति को बढ़ाने का निश्चय किया है. आशा है कि इस सिलसिले में कुछ और घोषणाएं जल्द सुनाई पड़ेंगी.

आवाज़ द वॉयस में प्रकाशित

 

 

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