दुनिया के सबसे बड़े मुस्लिम संगठनों में एक विश्व मुस्लिम लीग के महासचिव मोहम्मद बिन अब्दुल करीम अल-ईसा (या इस्सा) की भारत-यात्रा से इस्लाम को लेकर कई प्रकार की भ्रांतियाँ दूर हुई हैं, साथ ही भारत और सउदी अरब के मजबूत रिश्तों की बुनियाद पड़ी है. भारत के अरब देशों के साथ हजारों साल पुराने रिश्ते हैं.
यह दौरा इस लिहाज से भी महत्वपूर्ण है कि हाल
के वर्षों में भारत को लेकर पश्चिमी देशों में काफी नकारात्मक बातों का प्रचार हुआ
है. डॉ अल-इस्सा ने उस प्रचार से प्रभावित हुए बगैर कहा कि भारत शांतिपूर्ण
सह-अस्तित्व की शानदार मिसाल है. दुनिया को भारत से शांति के बारे में सीखना
चाहिए.
उनकी बातें बेहद महत्वपूर्ण है. खासतौर से यह
देखते हुए कि उनकी आवाज़ बहुत दूर तक जाती है. उनके इस दौरे को ऐतिहासिक की संज्ञा
दी जा सकती है. सउदी अरब से इतने व्यापक संदेश के साथ आए सर्वाधिक प्रतिष्ठित
धर्मगुरुओं में वे एक हैं. उनके संदेशों को दोहराने और समाज के भीतर तक ले जाने की
जरूरत है. इसके लिए संस्थागत तरीके से काम करने की जरूरत होगी.
मुसलमानों के नाम संदेश
दुनियाभर के मुसलमान इस समय संशय में हैं. ऐसे
में डॉ अल-ईसा का संदेश नया रास्ता दिखाने वाला साबित होगा. वे इस्लाम के मूल
उद्देश्यों को उनके सामने रख रहे हैं. उनका संदेश केवल मुसलमानों के नाम ही नहीं
है. वे सभी समुदायों, धर्मावलंबियों और सभ्यताओं-संस्कृतियों के प्रतिनिधियों के
साथ संवाद कर रहे हैं, जो बहुत बड़ी और सकारात्मक गतिविधि है.
पिछले मंगलवार को इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर
में भारत के सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल की मौजूदगी में हुए एक कार्यक्रम में उन्होंने
भाग लिया था. इसके अलावा वे विवेकानंद फाउंडेशन के एक कार्यक्रम में भी शामिल हुए
थे. इस दौरान अजित डोभाल ने डॉ अल-इस्सा की गहरी समझ की तारीफ की थी और कहा कि
मुस्लिम वर्ल्ड लीग के महासचिव का संदेश स्पष्ट है कि हमारे यहाँ सद्भाव है और
शांति भी.
अजित डोभाल इन दिनों मुस्लिम-जगत के साथ संपर्क
स्थापित कर रहे हैं. उनके माध्यम से डॉ अल-ईसा को भारत बुलाना केंद्र सरकार की ओर
से सद्भाव का कदम माना जा रहा है. साथ ही सउदी अरब की ओर से बदलते समय का संदेश.
भारत की तारीफ
समाचार एजेंसी एएनआई को दिए इंटरव्यू में डॉ इस्सा ने कहा, भारत अपनी पूर्ण विविधता के साथ ‘केवल जुबानी तौर पर ही नहीं, बल्कि जमीनी स्तर पर भी सह-अस्तित्व का एक शानदार मॉडल है.’ यह हिंदू बहुल राष्ट्र है, फिर भी इसका संविधान धर्मनिरपेक्ष है. दुनिया में नकारात्मक विचार फैलाए जा रहे हैं. हमें एक समान मूल्यों को मजबूत करने के लिए काम करना चाहिए.
उन्होंने कहा कि पिछले दिनों भारतीय मुसलमानों से
उनकी मुलाकात हुई, तो जाना कि उन्हें अपने संविधान,
राष्ट्र व उस भाईचारे पर गर्व है, जिसे
वे दूसरे समुदायों के वर्गों के साथ साझा करते हैं. उन्हें खुद के हिंदुस्तानी
होने पर गर्व है.
यहां एक धर्मनिरपेक्ष संविधान है, जो विभिन्न संप्रदायों के लिए छतरी की तरह है. कई बार मतभेद हो जाते
हैं, उनको संविधान के दायरे में रहकर चर्चा करके दूर
करना चाहिए. इस्लाम किसी भी ऐसे विचार को बढ़ावा नहीं देता, जो समुदायों और उनके विचारों
के बीच में तनाव पैदा करता हो या फिर आतंकवाद या उग्रवाद को बढ़ावा देने वाला हो.
इन सभी बातों को इस्लाम पूरी तरह से खारिज करता है.
'मैं भारतीय लोकतंत्र को तहेदिल से सलाम करता
हूँ। मैं भारत के संविधान को सलाम करता हूँ। मैं विश्व को सद्भावना सिखाने वाले
भारतीय दर्शन और परंपरा को भी नमन करता हूँ।' उन्होंने
कहा कि, मैंने भारत में जो मैंने शांतिपूर्ण
सह-अस्तित्व देखा, वह भी अपने आप में अद्वितीय और अद्भुत
है।
हिंदुओं पर भी असर
डॉ अल-इस्सा ने धार्मिक कट्टरता, अशांति और
हिंसा को रोकने में धार्मिक नेताओं की भूमिका को रेखांकित किया. उनकी बातों का असर
केवल भारतीय मुसलमानों पर ही नहीं, बहुसंख्यक हिंदुओं पर भी पड़ेगा. हालांकि यह
दौरा मुख्यतः धार्मिक-सांस्कृतिक दृष्टि से हुआ था, पर राजनीतिक नज़रिए से भी इसके
दूरगामी परिणाम होंगे. खासतौर से भारत के मुसलमानों को मुख्यधारा से जोड़ने में
इसकी भूमिका होगी.
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के साथ उनकी
मुलाकात काफी अच्छी रही. उन्होंने पीएम मोदी के विचारों को बड़े ही ध्यान से सुना
और दोनों देशों के बीच आपसी संबंधों को बढ़ाने के लिए गहन चर्चा भी हुई. उन्होंने
कहा कि सउदी नागरिक होने की दृष्टि कहता हूं कि दोनों देशों के बीच संबंध और
मजबूत हुए हैं. उम्मीद है कि आगे ये और प्रगाढ़ होंगे.
वैश्विक-संवाद
उनका यह दौरा केवल भारत और सउदी रिश्तों तक सीमित
नहीं था. वे दुनिया के सभी समुदायों के साथ संवाद कर रहे हैं. वे इस्लाम की
इंसान-परस्ती, न्याय-भावना और शांति-कामना का संदेश लेकर आए और इसका उन्होंने काफी
अच्छे ढंग से निर्वाह किया. अब जरूरत इस बात की भी है कि उनके संदेश को देश के
सुदूर क्षेत्रों तक पहुँचाया जाए.
उन्होंने अपनी छह दिन की यात्रा के दौरान देश
के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और अन्य महत्वपूर्ण नेताओं के अलावा धर्मगुरुओं,
समाजसेवियों तथा मानवाधिकार कार्यकर्ताओं से भी भेंट की और शांति तथा सहिष्णुता से
जुड़े विचारों का आदान-प्रदान किया. उन्होंने जामा मस्जिद में नमाज अदा की और वे
अक्षर धाम मंदिर में भी गए.
कट्टरपंथ की निंदा
सबसे बड़ी बात उन्होंने कट्टरपंथी संगठनों की
निंदा की और कहा कि उनकी हरकतों से दीन की छवि बिगड़ती है. इस्लाम और आतंकवाद का
एक-दूसरे से कोई रिश्ता नहीं है. ये संगठन सिवा अपने किसी का प्रतिनिधित्व नहीं
करते हैं. हम इन विचारों की निंदा करते हैं और इनके सच को दुनिया के सामने रखना
चाहते हैं.
सामुदायिक सहयोग और शांति अब केवल एक विकल्प
नहीं, अनिवार्यता है. समय आ गया है कि जो इस बात को स्वीकार नहीं करते, उन्हें
खारिज किया जाए. उन्होंने कहा कि सउदी अरब का राजतंत्र इस प्रकार के विचारों से
लड़ने के लिए सबसे मजबूत मंचों में से एक है. और इसमें हमें सफलता भी मिली है.
अरब-आधुनिकीकरण
इक्कीसवीं सदी में इस्लाम के सामने आधुनिकीकरण
की चुनौती है.डॉ अल-इस्सा का यह दौरा सउदी अरब के बदलते सामाजिक-सरोकारों की
अभिव्यक्ति भी है. अरब देश अब अपना ध्यान पेट्रोलियम से हटाकर दूसरे क्षेत्रों में
लगाना चाहते हैं. सऊदी अरब के वली अहद मोहम्मद बिन सलमान ने इसके लिए विजन-2030
तैयार किया है.
मुस्लिम वर्ल्ड लीग एक अंतर्राष्ट्रीय इस्लामिक
संगठन है, जिसकी स्थापना साल 1962 में की गई थी. इसका
मुख्यालय मक्का में है. सऊदी अरब के शासन द्वारा प्रवर्तित इस संस्था का एक
उद्देश्य इस्लाम के उदारवादी रूप से दुनियाभर के लोगों ख़ासकर ग़ैर मुस्लिमों को परिचित
कराना है.
न्यायिक-सुधार
इस संस्था के महासचिव बनने के पहले डॉ ईसा सउदी
अरब के न्याय मंत्री के रूप में कार्य कर चुके हैं. उन्होंने कई प्रकार के
सुधार-कार्यों को पूरा किया है. इनमें न्यायिक-सुधार, पारिवारिक
मामले, युवा और स्त्रियों तथा मानवाधिकार से जुड़े
मसले शामिल हैं.
2016 में जिस साल वे लीग के प्रमुख बने,
उसी साल सऊदी अरब का सुधार-कार्यक्रम विज़न-2030 शुरू हुआ. यह सऊदी
अरब के शहज़ादे मुहम्मद बिन सलमान की खास परियोजना है. 2017 में इस सिलसिले में
रियाद में हुए ग्लोबल फोरम में उन्होंने कहा था, हम
चरमपंथ को तुरंत खत्म कर देना चाहते हैं और सऊदी अरब को अब उदारवादी इस्लाम की और
लौटना होगा.
अल ईसा क्राउन प्रिंस के करीबी हैं. वह प्रिंस
के विज़न के मुताबिक सऊदी अरब की छवि को और उदारवादी दिखाने के प्लान को आगे बढ़ा
रहे हैं. बतौर न्याय मंत्री भी उन्होंने महिलाओं और युवाओं से जुड़े कई सुधारों को
शुरू किया था.
प्रिंस के विज़न के मुताबिक वे सऊदी अरब की छवि
को और उदारवादी दिखाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. 2017 में वे वैटिकन गए और
उन्होंने ईसाइयों के धर्मगुरु पोप के साथ बातचीत की. 2019 में उन्होंने श्रीलंका
के बुद्ध और मुस्लिम धार्मिक नेताओं से मुलाकात की.
उन्होंने रूसी ऑर्थोडॉक्स चर्च के साथ भी
बातचीत की. अमेरिका और उसके बाहर काम कर रहे यहूदी संगठनों के साथ भी संवाद
स्थापित किया. यानी कि ऐसे सामाजिक वर्गों के साथ वे संपर्क स्थापित कर रहे हैं,
जिनके साथ टकराव रहा है. यह बड़ा सकारात्मक कार्य है. इसके सुपरिणाम आने में कुछ
समय लगेगा, पर परिणाम मिलेंगे जरूर.
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