अमेरिका
के हवाई अड्डों से अक्सर भारतीय नेताओं या विशिष्ट व्यक्तियों के ‘अपमान’ की खबरें आती हैं। अपमान से यहाँ आशय उस सामान्य सुरक्षा जाँच और पूछताछ से
है जो 9/11 के बाद से शुरू हुई है। आमतौर पर यह शिकायत विशिष्ट
व्यक्तियों या वीआईपी की ओर से आती है। सामान्य व्यक्ति एक तो इसके लिए तैयार रहते
हैं, दूसरे उन्हें उस प्रकार का अनुभव नहीं होता जिसका अंदेशा होता है। मसलन एक पाकिस्तानी
नागरिक ने अपने ब्लॉग में लिखा है कि मुझसे तकरीबन 45 मिनट तक पूछताछ की गई, पर किसी
वक्त अभद्र शब्दों का इस्तेमाल नहीं हुआ। मेरी पत्नी को मैम और मुझे सर या मिस्टर सिद्दीकी
कहकर ही सम्बोधित किया गया। उन्होंने सवाल भी मामूली पूछे, जिनमें मेरा कार्यक्रम क्या
है, मैं करता क्या हूँ, अमेरिका क्यों आया हूँ वगैरह थे। दरअसल हमारे देश के नागरिक
अपने देश की सुरक्षा एजेंसियों के व्यवहार से इतने घबराए होते हैं कि उन्हें अमेरिकी
एजेंसियों के बर्ताव को लेकर अंदेशा बना रहता है।
आजम
खान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ अमेरिका आए थे। उन्हें पिछले
बुधवार को बोस्टन हवाई अड्डे पर विमान से उतरने के बाद ‘पूछताछ’ के लिए कुछ समय तक रोककर रखा गया था। इस बात से नाराज़ अखिलेश यादव ने भारतीय वाणिज्य
दूतावास द्वारा अपने सम्मान में आयोजित स्वागत समारोह को रद्द कर दिया और हार्वर्ड
विश्वविद्यालय में होने वाले अपने व्याख्यान का बहिष्कार कर दिया। अखिलेश यादव हार्वर्ड
यूनिवर्सिटी के स्प्रिंग सिम्पोजियम में हाल में प्रयाग में कुम्भ मेले की सफलता
के बारे में बोलने गए थे। आजम महाकुंभ के प्रभारी थे। इस सिम्पोजियम की थीम हार्वर्ड
विदआउट बॉर्डर थी।
इस
मामले में एक नई बात यह हुई है कि यह आरोप अमेरिकी एजेंसियों से ज्यादा विदेश मंत्री
सलमान खुर्शीद पर लगाया गया है। आजम खान का कहना है कि हवाई अड्डे पर हुई बदसलूकी के
पीछे खुर्शीद का हाथ है। सलमान खुर्शीद ने उन्हें भारत से बाहर बदनाम करने के लिए साजिश
रची। वे यह भी कहते हैं कि यह घटना यूपीए सरकार को समर्थन जारी रखने के निर्णय को भी
प्रभावित कर सकती है। अमेरिका के हवाई अड्डों पर इस किस्म की पूछताछ या तलाशी के किस्से
कई साल से सुनाई पड़ते रहे हैं। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे कलाम, संयुक्त राष्ट्र में
भारतीय राजदूत हरदीप सिंह पुरी, पूर्व रक्षामंत्री डॉर्ज फर्नांडिस, फिलम् अभिनेता
शाहरुख खान, एक और अभिनेता इरफान खान, वॉशिंगटन में पूर्व राजदूत मीरा शंकर को भी इस
प्रकार की स्थितियों का सामना करना पड़ा। पर आजम खान इस बात पर जोर दे रहे हैं कि उपरोक्त
विशिष्ट व्यक्तियों से उनके मामले की तुलना नहीं की जा सकती। यह एक साजिश थी। मैं भारत का एक गैर कांग्रेसी ताकतवर
मुस्लिम नेता हूं और उन्होंने (खुर्शीद) भारतीय कैबिनेट मंत्री के अपने रूतबे का इस्तेमाल
करके बड़ी चालाकी से आंतरिक सुरक्षा विभाग की मदद से योजना बनाई। दरअसल जब उन्हें रोका
गया तो भारतीय महावाणिज्य दूत के प्रोटोकॉल भी अधिकारी वहां थे। आजम खान को दुख इस
बात का है कि वे मूकदर्शक बने रहे। वे हमें वहां लेने आए थे। मुझे लगता है कि उन्हें
उनके वरिष्ठ लोगों ने दूर बने रहने की हिदायत दे रखी थी।
सन
2002 और 2003 में रक्षामंत्री जॉर्ज फर्नांडिस को वॉशिंगटन के डलेस हवाई अड्डे पर जामा
तलाशी देनी पड़ी थी। वे इस बात से क्षुब्ध भी हुए थे और उन्होंने तत्कालीन अमेरिकी
विदेश उप मंत्री स्ट्रोब टैल्बॉट से शिकायत भी की थी। टैल्बॉट ने अपनी किताब में इस
घटना का उल्लेख भी किया है। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे कलाम से सन 2009 में दिल्ली के
ही हवाई अड्डे पर एक अमेरिकन एयरलाइंस के कर्मचारी ने पूछताछ की। इसके बाद उसी रोज
न्यूयॉर्क एयरपोर्ट पर दो बार उनकी तलाशी ली गई। इसके बाद जब वह प्लेन में बैठ गए
तो सुरक्षा अधिकारी उनके जैकेट और जूते जांच के लिए लेकर चले गए। अमेरिका में 2009
से 2011 तक राजदूत रहीं मीरा शंकर की दिसम्बर 2010 में मिसीसिपी हवाई अड्डे पर पैटडाउन
जाँच की गई। कारण यह बताया गया कि उन्होंने साड़ी पहनी हुई थी। नियमानुसार जाँच नहीं
होनी चाहिए थी, क्योंकि मीरा शंकर के पास डिप्लोमैटिक पासपोर्ट था। सन 2010 में हमारे
तत्कालीन नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल से शिकागो के ओ हेयर हवाई अड्डे पर पूछताछ
की गई। इसकी वजह यह थी कि उनका नाम और जन्म तिथि एक और प्रफुल्ल पटेल से मिल रही थी,
जो अमेरिका की वॉचलिस्ट में था। भारत के ही
नहीं पाकिस्तान के लोगों को अक्सर इस किस्म की परेशानी होती है। अगस्त 2010 में पाकिस्तान
के एक पूरे सैनिक शिष्टमंडल के सामान की तलाशी ली जाने लगी। यह शिष्टमंडल अमेरिकी सेना
के निमंत्रण पर अमेरिका आया था। अंततः यह शिष्टमंडल यात्रा रद्द करके वापस चला गया।
कुछ
मामलों में अमेरिका सरकार क्षमा याचना भी करती है, पर सारी बात का लब्बो-लुबाव यह है
कि सब लोगों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए हवाई अड्डों पर तैनात सुरक्षा कर्मियों
को निर्देश दिए गए हैं कि यदि उन्हें कहीं भी संदेह हो तो वे जाँच करने से न चूकें।
जिसकी जाँच की जा रही है उससे संयमित बर्ताव करें, पर जाँच ज़रूर करें। सही है या गलत
अमेरिका की कड़ी जाँच व्यवस्था आतंकवादी हमलों की देन है। अन्यथा एक ज़माने में कोई
भी आता और चला जाता था। इस कड़ी जाँच का परिणाम है या अमेरिका की सतर्क पुलिस की भूमिका
है कि 9/11 के बाद
से अमेरिका में उस स्तर के धमाके नहीं हुए। हाल में बोस्टन में धमाके हुए और पुलिस
ने काफी कम समय में हमलावरों को खोज निकाला। इस बात के एक और पहलू पर भी बात की जानी
चाहिए। आजम खान के साथ हुए बर्ताव को सही नहीं ठहराया जा सकता है, पर यह साजिश थी,
यह बात समझ में नहीं आती। विश्वास नहीं होता कि भारत का विदेश मंत्री अमेरिकी सुरक्षा
अधिकारियों के साथ मिलकर इस स्तर की साजिश करेगा। इसे मानने या न मानने के कारण हमारे
पास नहीं हैं।
आजम खान उत्तर प्रदेश सरकार
के कुम्भ आयोजन की सफलता के बारे में बताने के लिए हारवर्ड जा रहे थे। बेहतर होता कि
अपमान के बावजूद वे हारवर्ड जाते। इस साजिश में कम से कम हारवर्ड की कोई भूमिका नहीं
थी। अमेरिका के सुरक्षा अधिकारियों की भूमिका थी तो उनके प्रति विरोध होता। अमेरिका
सरकार से विरोध होता। एक शिक्षा संस्था से विरोध के माने क्या हैं? दूसरी बात यह है कि चाहे लालू हों या नीतीश,
मोदी हों या अखिलेश इन्हें अमेरिका की संस्थाएं आकर्षित करती हैं। भारतीय संस्थाएं
नहीं। बेहतर हो कि अपने स्कूल कॉलेजों के बच्चों के साथ राजनेता संवाद बढ़ाएं, उनके
बीच जाएं, उन्हें प्रेरित करें। इससे बेहतर परिणाम सामने आने लगेंगे। अमेरिकी संस्थाएं
मीडिया में आपको कवरेज दिला देंगी। कुछ समय के लिए वाहवाही होगी। पर असली आनन्द अपने
लोगों के बीच प्रतिष्ठित होने में है। उनका आशीर्वाद हासिल करने में है।
वास्तव में हमें बेहतर काम
करने वालों का सम्मान करना चाहिए। कुम्भ के आयोजन में सफलता मिली तो उसके हकदार अखिलेश
यादव और आजम खान के अलावा कुछ छोटे लोग भी होंगे। उन्हें सम्मानित कीजिए। ऐसा माहौल
बनाइए जिसमें प्रतिभा का सम्मान हो। हम प्रतिभाशाली समाज बनाएंगे तो वह खुशहाल और समृद्ध
भी होगा। कोई ज़रूरत नहीं होगी कि दूसरों के मुल्क में जाकर वाहवाही लूटें। हमारी वाहवाही
हमारे देश में है। जिसे देखना, समझना है वह आए हमारे देश। उसका स्वागत है। अमेरिका
में कोई सरकारी मंत्री किसी अफसर की वर्दी उतरवाने की धमकी नहीं देता। इसे सीखने की
ज़रूरत है। यह सीखने की ज़रूरत भी है कि वहाँ का कर्मचारी अपना काम करते वक्त आपकी
ताकत से डरता नहीं। उसके पास अपने कदम का जवाब होता है। आप भी ऐसी व्यवस्था बनाएं।
देखिए नहीं होगा दूसरी बार धमाका।
नेशनल दुनिया में प्रकाशित
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