नेशनल
इनवेस्टिगेशन एजेंसी ने पिछले कुछ दिनों में कश्मीर, दिल्ली और हरियाणा में 40 से ज्यादा जगहों पर छापेमारी करके टेरर
फंडिंग के कुछ सूत्रों को जोड़ने की कोशिश की है. हाल में एक स्टिंग ऑपरेशन से यह
बात उजागर हुई थी कि कश्मीर की घाटी में हुर्रियत के नेताओं के अलावा दूसरे समूहों
को पाकिस्तान से पैसा मिल रहा है. इन छापों में नकदी, सोना और विदेशी मुद्रा के
अलावा कुछ ऐसे दस्तावेज भी मिले हैं, जिनसे पता लगता है कि आतंकी नेटवर्क हमारी
जानकारी के मुकाबले कहीं ज्यादा बड़ा है.
inext में प्रकाशित
एनआईए
ने कुछ बैंक खातों को फ़्रीज़ कराया है और कुछ लॉकरों को सील. यह छापेमारी ऐसे दौर
में हुई है जब आतंकी फंडिंग पर नजर रखने वाली संस्था द फाइनैंशल एक्शन
टास्क फोर्स इस सिलसिले में जाँच कर रही है. हमें इस संस्था के सामने सप्रमाण जाना
चाहिए. पिछले
कई साल से संयुक्त राष्ट्र में ‘कांप्रिहैंसिव कन्वेंशन ऑन इंटरनेशनल टेररिज्म’ को
लेकर विमर्श चल रहा है, पर टेररिज्म की परिभाषा को लेकर सारा मामला अटका हुआ है.
जब तक ऐसी संधि नहीं होगी, हम साबित नहीं कर पाएंगे कि कश्मीरी आंदोलन का चरित्र
क्या है.
भारत
में टेरर फंडिंग के खिलाफ यह अब तक का सबसे बड़ा अभियान है. ऐसा नहीं है कि हम इस
बात को जानते नहीं थे. नब्बे के दशक में ‘जैन हवाला’ मामला कश्मीरी आतंकवादियों को मिलने वाले पैसे की जाँच के चक्कर में
ही सामने आया था. चूंकि उसकी आँच देश के राजनेताओं पर आ रही थी, इसलिए उसकी तरफ से
आँखें मूँद ली गईं. उसके बाद एनएन वोहरा समिति ने इस तरफ इशारा किया था
कि अपराधियों और राजनेताओं के रिश्तों की एक डोर राष्ट्रीय सुरक्षा तक जाती है.
आतंक से जुड़ा पैसा केवल कश्मीर ही नहीं जाता. आतंकवादियों के कुछ प्रकट समर्थक
होते हैं तो कुछ अप्रकट सहयोगी होते हैं. हमारी खुली व्यवस्था लोकतांत्रिक
व्यवस्था उनकी मददगार होती है. पिछले डेढ़ दशक में नियंत्रण रेखा पर व्यापार
बढ़ाने के लिए जो कदम उठाए गए हैं, आतंकी संगठनों ने उसके भीतर से छिद्र खोज लिए
हैं. पुंछ-रावलकोट और उड़ी-मुजफ्फराबाद मार्ग पर होने वाला व्यापार वस्तु-विनिमय
(बार्टर) के आधार पर होता है. इन वस्तुओं की कीमतें कम या ज्यादा दिखाकर आतंकी
संगठन शेष राशि भारत के अपने एजेंटों तक पहुँचा देते हैं.
एनआईए
ने हाल में तहरीक-ए-हुर्रियत के फारूक अहमद डार उर्फ बिट्टा कराटे, नईम खान और जावेद अहमद बाबा उर्फ गाजी से
पूछताछ की थी. इस पूछताछ के तार 26/11 के मुंबई हमले तक जाते हैं. इस मामले की जब
सन 2009 में अमेरिका में जाँच चल रही थी तब पाकिस्तान के एक ‘कराची प्रोजेक्ट’ का नाम सामने आया. कराची प्रोजेक्ट के बारे में डेविड कोल हेडली
ने अमेरिका की खुफिया एजेंसी एफबीआई को जानकारी दी थी. यह प्रोजेक्ट 2003 से चल
रहा था और इस बात की पूरी संभावना है कि किसी न किसी रूप में आज भी सक्रिय होगा.
लश्करे
तैयबा अपने नए नाम दारुल उद दावा के रूप में सक्रिय है और हाफिज सईद
दिफा-ए-पाकिस्तान कौंसिल के नाम से कट्टरपंथी आंदोलन चलाते रहे हैं. हाल में
पाकिस्तान सरकार ने हाफिज सईद को नजरबंद किया है, जिसके पीछे कारण है संयुक्त
राष्ट्र सुरक्षा परिषद का दबाव. 9/11 के बाद से यह दबाव आतंकवाद के अंतरराष्ट्रीय
ताने-बाने को तोड़ने के उद्देश्य से बनाया जा रहा है, पर अभी तक वह सफल नहीं है. जैशे
मोहम्मद के प्रमुख मसूद अज़हर का नाम आतंकवादियों की सूची में इसलिए दर्ज नहीं हो
पा रहा है, क्योंकि चीन ने उसमें अड़ंगा लगा रखा है.
मुम्बई हमलों की जाँच के सिलसिले में 3 फरवरी 2010 को
अमेरिका की नेशनल इंटेलिजेंस के डायरेक्टर एडमिरल डेनिस ब्लेयर ने अमेरिकी सीनेट
की एक कमेटी को बताया था कि पाकिस्तान ने भारत की आर्थिक-सैनिक बढ़त को कुंठित
करने के लिए उग्रवादी समूहों का इस्तेमाल करने का फैसला किया है. इस काम को लश्करे
तैयबा और आईएसआई मिलकर अंजाम दे रहे हैं. भारत में हुर्रियत के खिलाफ कार्रवाई
करने की कोशिश नहीं की गई, क्योंकि इस संगठन को आतंकी संगठन साबित करने में
दिक्कतें हैं. अब एनआईए ने लश्कर-ए-तैयबा के चीफ हाफिज सईद के अलावा हुर्रियत नेता सैयद अली शाह
गिलानी और जम्मू एंड कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के नेता नईम खान के खिलाफ भी केस दर्ज
कर प्राथमिक जांच शुरू की है.
अलगाववादी
नेताओं पर लश्कर चीफ हाफिज सईद से पैसे लेने के आरोप लगे हैं. पाकिस्तान में
आईएसआई ऐसे संगठनों को फ्रंट बना रहा है जो प्रकट रूप से जनसेवा का काम करते हैं. जमात-उद-दावा, चैरिटी फाउंडेशन फलाह-ए-इंसानियत और जैश
समर्थित अल रहमत ट्रस्ट यह काम करते हैं. ये संगठन पाकिस्तान में लोगों से चैरिटी
के नाम पर पैसे लेते हैं जिसका इस्तेमाल जम्मू-कश्मीर में आतंक के प्रसार के लिए
किया जाता है. अल रहमत ट्रस्ट पर्चे छपवाकर लोगों से डोनेशन लेता है.
सोशल
सर्विस के नाम पर पाकिस्तान लाखों डॉलर इकट्ठा करता है फिर इस पैसे का इस्तेमाल
कश्मीर में अशांति फैलाने के लिए होता है. पाकिस्तान ने अब चेहरा बचाने की
कोशिश में 5000 बैंक अकाउंट्स को सीज करके 30 लाख डॉलर की
राशि भी जब्त की है. उसने यह सब आतंकी फंडिंग पर नजर रखने वाली संस्था द फाइनैंशल एक्शन
टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की इस महीने हो रही बैठक में अपने को पाक-साफ साबित करने की
कोशिश में किया है.
एफएटीएफ ने जनवरी में पाकिस्तान से यह स्पष्ट करने को
कहा था कि उसने आतंकवादी संगठनों को आर्थिक मदद पहुंचाने वालों के रास्तों को
रोकने का क्या काम किया है. पाकिस्तान की कोशिश है कि उसका नाम इस टास्क फोर्स की
काली सूची में शामिल होने से बच जाए. एनआईए की कार्रवाई से अंततः पाकिस्तान पर
दबाव बढ़ेगा. अब भारतीय
डिप्लोमेसी की परीक्षा है कि कश्मीरी संगठनों को अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद से जोड़े
और उसे ‘टेरर फंडिंग’ साबित करे.
inext में प्रकाशित
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