दिल्ली की केजरीवाल सरकार जिस मुद्दे को अपनी राजनीति का केन्द्रीय विषय बनाकर
चल रही है उसे तार्किक परिणति तक पहुँचने में अभी कुछ देर है। केन्द्र के साथ उसका
टकराव अभी खत्म होने वाला नहीं है। इस बीच सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम राहत नहीं मिली
तो उनकी राजनीति कुछ कमजोर जरूर पड़ेगी। हाईकोर्ट के फैसले के बाद ‘आप’ नेता आशुतोष ने एक
वैबसाइट पर लिखा है, ‘हाईकोर्ट के फैसले ने
दिल्ली के नागरिकों की उम्मीदों को तोड़ा है, जिन्होंने आम आदमी पार्टी को 70 में
से 67 सीटें दीं।...यानी जनता द्वारा चुने गए मुख्यमंत्री का कोई मतलब नहीं है।...हम
दिल्ली में चुनाव कराते ही क्यों हैं? यदि सारी पावर एलजी के पास ही हैं तो चुनाव का तमाशा क्यों?’
इन बातों का जवाब अंततः सुप्रीम कोर्ट में ही मिलेगा। फिलहाल लगातार दो दिन
अदालतों ने ‘आप’ सरकार को निराश किया। गुरुवार को
दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला आया। उसके अगले दिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब हाईकोर्ट
ने दिल्ली को केन्द्र शासित क्षेत्र घोषित कर दिया है, तब आप यह क्यों कह रहे हैं
कि दिल्ली को पूर्ण राज्य घोषित किया जाए? आप पहले हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दें। दिल्ली
सरकार की वकील इंदिरा जयसिंह अदालत से कहा कि अदालत इस बात को नोट करे कि हम विशेष
अनुमति याचिका भी दायर करने जा रहे हैं। इसपर अदालत का कहना था कि यह आपकी इच्छा
है, पर अभी हम यह क्यों रिकॉर्ड करें?
दिल्ली की वकील ने कहा कि हम चाहते हैं कि अदालत बताए कि यह मामला अनुच्छेद
131 के तहत दिल्ली सरकार और केन्द्र के बीच के विवाद के रूप में आएगा या नहीं? इसपर अदालत ने कहा कि यह बात
विशेष अनुमति याचिका की सुनवाई के दौरान उठेगी। अनुच्छेद 131 के अंतर्गत संघ सरकार
और राज्यों के बीच विवादों पर फैसला करने का अधिकार सुप्रीम कोर्ट के पास है।
देखना यह होगा कि सुप्रीम कोर्ट इसके तहत मामले को सुनेगी या नहीं। इसके तहत सुनवाई का मतलब है दिल्ली को राज्य
मानना। पर यदि दिल्ली केन्द्र शासित क्षेत्र है तो वह एक माने में केन्द्र सरकार
का हिस्सा है। बहरहाल सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई 29 अगस्त तक स्थगित कर
दी है। यानी अदालत ने कोई अंतरिम आदेश जारी नहीं किया।
इस विषय पर हाईकोर्ट का फैसला आने में भी समय लगा। अदालत ने फैसला 24 मई को
रिजर्व कर लिया था। इस दौरान ‘आप’ सरकार ने सुप्रीम
कोर्ट में अपील करके फैसला रुकवाने की प्रार्थना की थी, जिसे अदालत ने स्वीकार
नहीं किया। दिल्ली सरकार और उप-राज्यपाल के बीच अधिकारों का विवाद पिछले साल फरवरी
में सरकार बनने के बाद से ही शुरू हो गया था। मूल प्रश्न यह है कि दिल्ली को
उप-राज्यपाल की अनुमति के बगैर राज्य-सूची के विषयों पर नियम बनाने का अधिकार है
या नहीं। दूसरे शब्दों में दिल्ली केन्द्र शासित क्षेत्र है या पूर्ण राज्य?
फिलहाल दिल्ली सरकार मानती
है कि दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं है। नहीं है तभी तो उसने पूर्ण राज्य बनाने की माँग
है। जब पूर्ण राज्य नहीं है तब वह क्या है? सांविधानिक भाषा में विशेष अधिकार
प्राप्त केन्द्र शासित प्रदेश। आम आदमी पार्टी की माँग के पीछे कोई गम्भीर कारण है या केवल राजनीति है? ‘आप’
अपनी बात को सही साबित करने के लिए दो बातें कहती है। पहली, दिल्ली की जनता के प्रति जवाबदेही किसकी है? जनता के द्वारा चुने गए मुख्यमंत्री की या उप-राज्यपाल
की? दूसरे यह कि हम भ्रष्टाचार के
खिलाफ लड़ाई लड़ने जा रहे थे, जिसमें केन्द्र सरकार ने रोक लगा दी।
आम
जनता को दोनों बातें सीधी और साफ लगती हैं। आखिर दिल्ली को पूर्ण राज्य बनाने में
दिक्कत क्या है? क्यों पार्टियाँ जब सत्ता में नहीं होती हैं तो पूर्ण
राज्य बनाने का वादा करती हैं और जब सत्ता में आती हैं तो मुकर जाती हैं? सवाल यह भी है कि
केन्द्र में आम आदमी पार्टी की सरकार भी आई तो क्या वह पूर्ण राज्य का दर्जा दे
देगी? अदालत को इसके राजनीतिक पहलू से कोई वास्ता नहीं है।
वह इसके सांविधानिक पहलू पर ही विचार करेगी।
दिल्ली को पूर्ण
राज्य का दर्जा दिलाने के लिए दिल्ली एनसीटी अधिनियम 1991 में संशोधन करना होगा।
यह कानून 69 वें संविधान संशोधन के कारण वज़ूद में आया था। उसके पहले केन्द्र
सरकार ने पहले आरएस सरकारिया की अध्यक्षता में और फिर एस बालाकृष्णन की अध्यक्षता
में एक समिति बनाई थी, जिसकी सिफारिशें इस संशोधन का आधार बनीं। बालाकृष्णन समिति
ने दुनिया की खासतौर से संघीय व्यवस्था वाली राजधानियों का अध्ययन करने के बाद
संतुलनकारी व्यवस्था का सुझाव दिया था। इसके तहत दिल्ली सरकार के पास पानी, बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन और समाज कल्याण
जैसे काम है। सुरक्षा (पुलिस), कानून-व्यवस्था, प्रशासन (नौकरशाही) और
भूमि पर नियंत्रण केंद्र सरकार के पास है।
संविधान के
अनुच्छेद 239क, 239कक तथा 239कख ऐसे प्रावधान हैं जो दिल्ली और
पुदुच्चेरी को राज्य का स्वरूप प्रदान करते हैं। इन प्रदेशों के लिए मुख्यमंत्री, मंत्रिमंडल तथा विधान सभा की व्यवस्था की है, लेकिन राज्यों के विपरीत इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं
जिसके लिए वे उप-राज्यपाल को सहायता और सलाह देते हैं। ये कानूनन केंद्र शासित
प्रदेश हैं। वस्तुतः दिल्ली सामान्य राज्य नहीं है। वह देश की राजधानी है।
केंद्रीय प्रशासन राज्य व्यवस्था के अधीन रखना सम्भव नहीं। यदि पूर्ण राज्य का
दर्जा देने का विचार हुआ भी तो दिल्ली की व्यवस्था का विभाजन करना होगा। यहाँ
म्युनिसिपल व्यवस्था में यह विभाजन है।
ऐसा करने के लिए
राजनीतिक फैसला करना होगा, जिसके लिए बीजेपी के साथ-साथ कांग्रेस की सहमति की
जरूरत भी होगी। पर आम आदमी पार्टी इन दोनों पार्टियों को भ्रष्ट बताती है। सन 2013
में यहाँ आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद पुलिस व्यवस्था को लेकर केंद्र
सरकार के साथ पहला टकराव हुआ। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल धरने पर भी बैठे थे। उस
घटना के बाद से यह मसला काफी संवेदनशील बन गया है। आम आदमी पार्टी के तौर-तरीकों
को देखते हुए लगता नहीं कि केन्द्र सरकार इस विषय में राजनीतिक फैसला करेगी। अब तक
की व्यावहारिक कानूनी स्थिति यह है कि दिल्ली सरकार केन्द्र सरकार का ही क्षेपक
है। राजनीतिक लिहाज से यह विचित्र बात है। सोने पे सुहागा ये कि मामला मोदी बनाम केजरीवाल
है। बहरहाल सबसे ऊँची अदालत के फैसले का इंतजार कीजिए।
Jung between Mosdi & Kejriwal
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