श्रीनगर में जी-20 के तीन दिन के कार्यक्रम के आगाज़ के साथ पाकिस्तानी और चीनी प्रचार की हवा ही नहीं निकली है, बल्कि कश्मीर घाटी के निवासियों का आत्मविश्वास भी वापस लौटा है. इस दौरान यह भी साबित हुआ है कि पाकिस्तान यहाँ शांति-व्यवस्था की वापसी नहीं चाहता.
श्रीनगर सम्मेलन को विफल
साबित करने और भारत की प्रतिष्ठा को कलंकित करने के इरादे से पाकिस्तान के विदेशमंत्री
बिलावल भुट्टो गुलाम कश्मीर के तीन दिन के दौरे पर जा पहुँचे हैं.
जिस वक्त श्रीनगर में विदेशी मेहमान आए हुए हैं, बिलावल साहब पीओके में भारत-विरोधी जहर बो रहे हैं. तीन दिन के इस कार्यक्रम के लिए जबर्दस्त व्यवस्था की गई है, क्योंकि इसे विफल साबित करने वालों के इरादों पर भी पानी फेरना है.
इस कार्यक्रम में करीब 60 प्रतिनिधि शामिल हो
रहे हैं. सबसे बड़ा प्रतिनिधिमंडल सिंगापुर का है. पाकिस्तानी मीडिया का प्रचार है
कि तुर्की और सऊदी अरब के प्रतिनिधि इस कार्यक्रम
में शामिल नहीं हुए हैं, पर इन दोनों देशों ने भी विरोध जैसी कोई बात नहीं
कही है. मिस्र और ओमान के प्रतिनिधियों ने पंजीकरण नहीं कराया, पर वे जी-20 के
सदस्य नहीं हैं. उन्हें भारत ने विशेष रूप से आमंत्रित किया है. इंडोनेशिया
तो ओआईसी का सदस्य है, पर उसने अपना प्रतिनिधि भेजा.
उन्होंने भी विरोध जैसी कोई बात नहीं कही है.
सऊदी अरब और तुर्की के प्रतिनिधि ज़रूर श्रीनगर
नहीं आए, पर इन दोनों देशों की ट्रैवल
एजेंसियों के प्रतिनिधि श्रीनगर आए. वस्तुतः ओआईसी की एकजुटता को व्यक्त करने
की औपचारिकता का दबाव भी इन देशों पर है. इसका मतलब यह नहीं कि वे अंतरराष्ट्रीय
संबंधों में भारत-विरोधी हैं.
जी-20 देशों में केवल चीन ने बयान जारी किया
है, जो अप्रत्याशित नहीं है. चीन जिसे विवादास्पद इलाका मानता है, वहाँ पाकिस्तान
के साथ मिलकर वह खुद सीपैक का निर्माण कर रहा है. इस इलाके में उसकी सेना तैनात
है. दोनों बातें किस तरीके से नैतिक हैं?
चीन-पाक
गठजोड़
पाकिस्तान और चीन पिछले एक साल से इन कार्यक्रमों
को लेकर टिप्पणियाँ करते रहे हैं, पर जी-20 के सदस्य देशों ने कभी कोई टिप्पणी
नहीं की. जी-20के सदस्य देशों में तुर्की, सऊदी अरब और इंडोनेशिया इस्लामिक सहयोग
संगठन (ओआईसी) के सदस्य भी हैं.
पिछले एक साल में पाकिस्तान ने दूसरे देशों के
अलावा इन तीन देशों में भी जाकर श्रीनगर की बैठक का विरोध किया है. पर इन देशों ने
कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की. पाकिस्तान जी-20 का सदस्य नहीं है और उसे इन
बैठकों में बुलाया भी नहीं गया है.
जबर्दस्त
व्यवस्था
अगस्त, 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370
की वापसी के बाद से ही नहीं, स्वतंत्रता के
बाद से जम्मू-कश्मीर में होने वाला यह सबसे महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय आयोजन है. श्रीनगर
की बैठक को रोकने के लिए पाकिस्तान लगातार जी-20 में शामिल
अपने सहयोगी देशों जैसे सऊदी अरब, तुर्की और चीन के
सामने लॉबीइंग कर रहा है.
हालांकि पूरी
सुरक्षा-व्यवस्था कश्मीर की पुलिस देख रही है, पर अप्रिय घटनाओं के अंदेशे से भारत
सरकार ने झेलम और डल झील में मरीन कमांडो फोर्स और राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड को
तैनात किया है. यह कार्यक्रम काफी विशाल आयोजन है, जिसका डिप्लोमैटिक-असर भी दूर
तक होगा. दुनिया के सामने भारत ने कश्मीर को शोकेस तो किया ही है, साथ ही उस दुष्प्रचार
की हवा निकाली है, जिसे अरसे से चलाया जा रहा था.
सबसे बड़ी
भागीदारी
जी-20 के चीफ कोऑर्डिनेटर हर्ष श्रृंगला ने
बताया कि श्रीनगर में इस तीसरे टूरिज़्म वर्किंग ग्रुप की बैठक की सफलता का पता इस
बात से लगता है पिछली दो बैठकों से ज्यादा बड़ी संख्या में पंजीकरण इस बैठक के लिए
हुआ. इसके पहले दो बैठकें गुजरात और पश्चिम बंगाल में हुई थीं.
इस बैठक में इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) के
सदस्य भी आए हैं. इंडोनेशिया इसका उदाहरण है. उसके अलावा नाइजीरिया, सिंगापुर,
यूके, अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र से संगठनों के प्रतिनिधि इसमें शामिल हुए हैं. बांग्लादेश
के प्रतिनिधि भी इसमें आए हैं. कश्मीर को लेकर पाकिस्तान और चीन के मुकाबले उनके
विचार ज्यादा मायने रखते हैं.
पर्यटन को बढ़ावा
पाकिस्तान साबित करना चाहता है कि कश्मीर में
हालात सामान्य नहीं हैं. ज़ाहिर है कि उसकी दिलचस्पी हालात को बिगाड़ने में है. यह
बात कश्मीर के निवासियों को भी समझ में आ रही है.
श्रीनगर की बैठक, खासतौर से घाटी के निवासियों
के जीवन में महत्वपूर्ण साबित होगी, क्योंकि इससे पर्यटन केंद्र के रूप में
श्रीनगर के विकसित होने की संभावनाएं पैदा हुई हैं. घाटी के बहुसंख्यक निवासी
मुसलमान हैं. आतंकवाद के कारण सबसे ज्यादा नुकसान पर्यटन का हुआ है, जो स्थानीय निवासियों
का नुकसान है.
इन कार्यक्रमों से यहाँ की अर्थव्यवस्था को सहारा
मिलेगा. पर्यटन के अलावा श्रीनगर एक ज़माने में भारतीय फिल्म उद्योग के लिए भी
शूटिंग का महत्वपूर्ण केंद्र हुआ करता था. यह काम भी फिर से शुरू हो रहा है.
सिनेमाघरों की वापसी
आतंकवाद के दौरान आतंकवादियों के दबाव में कश्मीर
घाटी में सिनेमाघर या तो बंद करा दिए गए या उन्हें जला दिया गया. उन्होंने फरमान
जारी किया था कि फिल्में देखना गैर-इस्लामिक है. 1990 से पहले जब आतंकवाद ने
जम्मू-कश्मीर में तबाही मचाई थी, घाटी में श्रीनगर, अनंतनाग, बारामूला, सोपोर,
हंडवारा और कुपवाड़ा में 19 सिनेमा हॉल थे.
अकेले श्रीनगर शहर में फिरदौस, शिराज, खयाम, नाज़,
नीलम, ब्रॉडवे, रीगल
और पैलेडियम सहित 10 सिनेमा हॉल थे, जिनमें बॉलीवुड
फिल्में दिखाई जाती थीं. वे खंडहर में बदल गए या दूसरी व्यावसायिक गतिविधियों में
लगा दिए गए.
1999 में फारूक अब्दुल्ला सरकार ने सिनेमा हॉलों
को फिर से खोलने की कोशिश की, जब रीगल, नीलम
और ब्रॉडवे में फिल्मों के प्रदर्शन की अनुमति दी गई, लेकिन रीगल सिनेमा में पहले
शो के दौरान एक आतंकवादी हमला हुआ, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई और 12
अन्य घायल हो गए. सिनेमाघरों को फिर से बंद कर दिया गया.
370 की वापसी के बाद
अगस्त, 2019 में 370 की वापसी के बाद से जो
अनेक बदलाव आए हैं, उनमें एक सिनेमाघरों की वापसी भी है. पिछले साल उपराज्यपाल
मनोज सिन्हा ने 20 सितंबर को श्रीनगर में दो सिनेमाघरों का उद्घाटन किया. इसके
अलावा दक्षिण कश्मीर के पुलवामा और शोपियां जिलों में दो सिनेमाघर खोले गए. ये
दोनों जिले आतंकी गतिविधियों के चलते बहुत ज्यादा अस्थिर रहे हैं.
इन सिनेमा हॉलों का खुलना इन क्षेत्रों में
सुरक्षा की स्थिति बदलने का भी संकेत माना गया. इन सिनेमाघरों में मूवी स्क्रीनिंग,
इंफोटेनमेंट से लेकर कश्मीर घाटी के युवाओं के कौशल विकास तक की
सुविधाएं दी जा रही हैं.
शूटिंग को बढ़ावा
अब जम्मू-कश्मीर की सरकार फिल्मों की शूटिंग को
बढ़ावा दे रही है. केंद्र शासित राज्य के पर्यटन विभाग की ओर से कहा गया है कि इस
साल फिल्म पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए 300 जगहों का चयन किया है. जी-20 प्रमुख
अंतरराष्ट्रीय आयोजन है, जो जम्मू-कश्मीर के लिए बड़ा अवसर होगा.
आयुक्त सचिव पर्यटन सैयद आबिद रशीद ने कहा कि
पिछले साल 200 से अधिक फिल्मों की शूटिंग जम्मू-कश्मीर में हुई थी. इस साल हमारा
फोकस फिल्म पर्यटन को बढ़ावा देना है. साथ ही इसके लिए हमने फिल्म निर्माताओं और
निर्देशकों की मेज पर 300 लोकेशंस को रखा है ताकि वे अपनी इच्छा की जगह को शूटिंग
के लिए चुन सकें.
यह घोषणा आईनॉक्स सिनेमा, श्रीनगर में तारिक भट
द्वारा निर्देशित नई रिलीज फिल्म 'वेलकम टू कश्मीर' के पहले शो के उद्घाटन के अवसर पर हुई. कश्मीरी निर्देशक की यह पहली
फिल्म है, जिसे विशेष रूप से कश्मीर में शूट किया गया है और अब कश्मीर में भी
रिलीज़ किया गया है.
अटूट अंग
श्रीनगर और लेह में जी-20 कार्यक्रमों के आयोजन
पर पाकिस्तान की आपत्ति को खारिज करते हुए भारत ने कहा है कि इन दोनों जगह जी-20 कार्यक्रमों
का आयोजन स्वाभाविक है, क्योंकि ये भारत के अभिन्न अंग हैं.
कश्मीर और लद्दाख की इन बैठकों के पहले एक बैठक
अरुणाचल की राजधानी ईटानगर में 26 मार्च को हो चुकी है. उसके पहले 26 से 28 अप्रेल
तक लेह में यूथ इंगेजमेंट समूह की बैठक हो चुकी है.
कुल मिलाकर देश के 55 केंद्रों में 215
कार्यक्रम हो रहे हैं. जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में इनका आयोजन बहुत स्वाभाविक है, क्योंकि
वे भारत के अभिन्न अंग हैं. अरुणाचल की बैठक को लेकर भी चीन की आपत्ति थी, पर बैठक
हुई.
विदेशी यात्री
श्रीनगर की बैठक
जम्मू-कश्मीर को राजनयिक मानचित्र पर महत्वपूर्ण भूमिका प्रदान करेगी. इसके पहले
कई देशों के नेता और प्रतिनिधि यहाँ की यात्राएं कर चुके हैं. इनमें अमेरिका के
विशेष दूत रॉबर्ट ब्लैकविल की श्रीनगर यात्रा उल्लेखनीय है. वे सियाचिन भी गए थे. पर वह यात्रा काफी पहले दिसंबर, 2002 में हुई थी.
अनुच्छेद 370 हटाए
जाने के बाद यूरोपियन यूनियन (ईयू) के 23 सांसदों का प्रतिनिधिमंडल भी कश्मीर के
दो दिन के दौरे पर आया था. वह दौरा देश की आंतरिक राजनीति का भी शिकार हुआ. कुछ
विरोधी दलों ने कहा कि ज्यादातर यूरोपीय सांसद दक्षिणपंथी पार्टियों के प्रतिनिधि
हैं. वे व्यक्तिगत आधार पर आए थे, ईयू या अपने देश के प्रतिनिधि के रूप में नहीं.
इतने देशों तथा
संगठनों के प्रतिनिधियों के सामने प्रकारांतर से भारत को जम्मू-कश्मीर के
सकारात्मक पक्ष को रखने का मौका मिलेगा. यूथ-20 और सिविल-20 कार्यक्रमों की
मेजबानी के लिए चुने गए देश के 15 संस्थानों में कश्मीर विश्वविद्यालय भी एक है.
लैंगिक समानता और
विकलांगता विषय पर सी-20 वर्किंग ग्रुप की बैठक कश्मीर विवि में हो चुकी है. जी-20
का एक आधिकारिक जुड़ाव समूह है सी-20. यूथ-20 कार्यक्रम, जून 2023 में वाराणसी में
होने वाले यूथ-20 समिट के लिए गठित जी-20 इंगेजमेंट ग्रुप है.
बहुत ही सारगर्भित विश्लेषण।
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