देवयानी खोब्रागडे के मामले को लेकर हमारे मीडिया में जो
उत्तेजक माहौल बना उसकी जरूरत नहीं थी. इसे आसानी से सुलझाया जा सकता था. इसे
भारत-अमेरिका रिश्तों के बनने या बिगड़ने का कारण मान लिया जाना निहायत नासमझी
होगी. दो देशों के रिश्ते इस किस्म की बातों से बनते-बिगड़ते नहीं है. भारत में इस
साल चुनाव होने हैं और यह मामला बेवजह गले की हड्डी बन सकता है. सच यह है कि यह एक
बीमारी का लक्षण मात्र है. बीमारी है संवेदनशील मसलों की अनदेखी. बेहतर होगा कि हम
बीमारी को समझने की कोशिश करें. हर बात को राष्ट्रीय अपमान, पश्चिम के भारत विरोधी रवैये और भारत के दब्बूपन पर
केंद्रित नहीं किया जाना चाहिए.
देवयानी खोब्रागडे भारत वापस आ गईं हैं, पर उनके पति और
बच्चे अमेरिका में हैं, जिन्हें अमेरिकी नागरिकता हासिल है. हमने बेशक एक अमेरिकी
राजनयिक को बदले में वापस भेज दिया, पर देवयानी की दिक्कतें कम नहीं हुईं हैं. वे
अब अमेरिका नहीं जा सकतीं. इसके कारण उन 14 अन्य घरेलू कर्मचारियों के मामले अब उठ
रहे हैं जो अमेरिका में भारतीय अधिकारियों के घरों में काम कर रहीं हैं. भारत सरकार
उन्हें सरकारी कर्मचारी का दर्जा देने की बात सोच रही है. क्या यह केवल अमेरिका के
लिए नियम बनेगा? और क्या यह जरूरी है कि भारत सरकार अपनी
विदेश सेवा के अधिकारियों के लिए घरेलू नौकर की व्यवस्था भी करे? लगता है यह दो देशों का नहीं उनकी विदेश सेवाओं के अफसरों के बीच का
विवाद बन गया है. खास बात यह है कि इस मामले को विवाद के रूप में उभरने के पहले
दोनों देशों की अदालतों में यह किसी न किसी रूप से उठ चुका था. अदालत में मामला
जाने के बाद उसे बैकरूम बातचीत से नहीं सुलझाया जा सकता.
इस विवाद के कारण दोनों देशों के रिश्तों पर असर पड़ा है या
नहीं, पर अमेरिकी ऊर्जा मंत्री अर्नेस्ट मोनिज ने इस महीने होने वाली अपनी भारत
यात्रा अचानक रद कर दी है. क्या यह भारत का अपमान और अमेरिकी साजिश है? साज़िश है तो उसका लक्ष्य क्या है? हमें अपमानित करके उन्हें क्या हासिल होगा? वे घरेलू सेवकों के जिन अधिकारों की बात कर रहे हैं क्या वे
उन्हें लेकर वास्तव में सख्त हैं? अमेरिका
में बड़े से बड़े लोग अपने काम अपने हाथ से करते हैं वहाँ भारत के डिप्लोमैट घर
में पूर्णकालिक सेविका सस्ते में कैसे रख लेते हैं? भारत सरकार के रुख के पीछे क्या डिप्लोमैट लॉबी का हाथ है? इस मामले में हो
रहे विमर्श में देवयानी की नौकरानी संगीता रिचर्ड के बारे में बात हो ही नहीं रही
है. वह भी तो भारतीय नागरिक है. उसका क्या कहना है और वह कहाँ है?
हमारे मीडिया के पास जो विवरण है वह देवयानी के पिता पूर्व
ब्यूरोक्रेट उत्तम खोब्रागडे ने उपलब्ध कराया है. भारत सरकार ने अमेरिकी दूतावास
के खिलाफ बदले की जो कार्रवाई की वह जनमत के दबाव में थी, कानूनी खामियों के कारण
नहीं. यह काम उचित था तो हमने पहले क्यों नहीं किया? अमेरिकी दूतावास से चल रही व्यावसायिक गतिविधियों, उसके स्कूल में काम
करने वाले कर्मचारियों की सेवा शर्तों के बारे में जो भी किया जा रहा है, वह ठीक
है. पर यह सब पहले क्यों गलत नहीं था? यह दोनों देशों के राजनयिकों को
मिलने वाली सुविधाओं और विशेषाधिकारों का मामला है तो इसे राजनयिक रिश्तों को
बिगाड़ने वाला मामला क्यों माना जा रहा है?
देवयानी पर मूल आरोप वीज़ा फ्रॉड का है. अभियोजन पक्ष के
अनुसार, न्यूयॉर्क के भारतीय मिशन में काम करते हुए उन्होंने अपने घर में काम करने
वाली सेविका के बारे में जो सूचनाएं दी थीं, वे गलत थीं. इन्हें लेकर उनकी सेविका ने शिकायत की और
अमेरिकी सरकार ने कार्रवाई की. हमारे देश में जो विरोध हो रहा है, वह इस बात को लेकर है कि एक राजनयिक को प्राप्त विशेष
सुविधाओं का उल्लंघन किया गया है. राजनयिक सुविधाएं देने का उद्देश्य अधिकारी को
अपने राजनयिक कार्यों को सम्पन्न करने में आने वाली दिक्कतों से बचाना है. क्या यह
मामला किसी राजनयिक कर्म से जुड़ा है? थोड़ी देर के लिए हम इटली के नौसैनिकों पर चल रहे मुकदमे के
बारे में सोचें. वहाँ की सरकार उनके लिए विशेष सुविधा की माँग की थी. हमने उन
सुविधाओं को देना मंजूर नहीं किया.
देवयानी की गिरफ्तारी के ठीक पहले संगीता के पति और बच्चों
को अमेरिकी वीज़ा देकर अमेरिका ले जाने का मामला साजिश की संभावना को जन्म देता है.
अमेरिका के सरकारी वकील प्रीत भरारा के अनुसार उन्हें भारत में गिरफ्तार करने की
तैयारी की जा रही थी. संगीता के पति को टी वीज़ा पर अमेरिका ले जाया गया है. यानी
कि वहाँ उच्च स्तर पर सहमति थी. भारत सरकार की तीखी प्रतिक्रिया के पीछे यह बड़ा
कारण समझ में आता है. पर क्या भारत सरकार ने संगीता रिचर्ड के पक्ष को जानने की
कोशिश की?
वह भी तो भारतीय नागरिक है. भरारा के अनुसार उसे चुप कराने
और भारत लौटने पर बाध्य करने के लिए उसके खिलाफ भारत में कानूनी कार्यवाही शुरू की
गई है. संगीता की वकील का कहना है कि मामले में ध्यान उनकी मुवक्किल के खिलाफ़ हुए
अपराधों से हटकर राजनयिक पर केंद्रित होना निराशाजनक है.
संगीता रिचर्ड नवंबर 2012 में देवयानी के यहाँ काम करने आई.
लगता है कि एक-दो महीने के भीतर ही उसके कॉण्ट्रैक्ट का विवाद शुरू हो गया था.
देवयानी का कहना है कि वह अमेरिकी वीज़ा दिलाने और 10,000 डॉलर की माँग कर रही थी.
संगीता का पक्ष अभी सामने नहीं आया है. यह मामला जून से चल रहा है. संभव है संगीता
को किसी ने भड़काया हो. पर यह सच है कि उसने अमेरिकी न्याय व्यवस्था से गुहार की
थी. 23 जून से वह लापता थी. देवयानी ने जब उसके लापता होने की जानकारी न्यूयॉर्क
स्थित विदेशी मिशन विभाग को दी थी, उसके पहले ही नौकरानी ने शिकायत कर दी थी. देवयानी के भारत
वापस आ जाने के बावजूद उनके खिलाफ अमेरिका में चल रहा मुकदमा बंद नहीं होगा. उसे
बंद करने की प्रक्रिया भी हैं तो उसमें दोनों पक्षों की सहमति की जरूरत होगी और
देवयानी को अपराध स्वीकार करना होगा. क्या वे इसके लिए तैयार होंगी? क्या अंततः इस मामले में मनमोहन सिंह और
बराक ओबामा को हस्तक्षेप करना होगा? इसे इस हद तक बिगड़ने
देने का दोष उन लोगों पर है जिन्हें रिश्ते बनाने की जिम्मेदारी दी गई है. दोनों
देशों के विदेश विभागों में कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ है.
अमरीकी स्वान कितना अच्छा खाना खाते हैं, आश्चर्य है ! फिर भी उनको बुद्धि नहीं आई.....
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