आगामी 12 जून को पटना में प्रस्तावित विरोधी दलों की एकता-बैठक एक बार फिर से स्थगित हो गई है। हालांकि इसकी अगली तारीख तय नहीं है, पर संभावना है कि अब यह बैठक 23 जून को हो सकती है। इसका स्थान भी पटना के बजाय कहीं और हो सकता है। इसे शिमला में भी किया जा सकता है। कांग्रेस पहले से 23 जून की बात कह रही थी, पर जेडीयू ने 12 जून की घोषणा कर दी थी।
विरोधी-एकता की एक परीक्षा संसद के मॉनसून सत्र
में होगी, जब दिल्ली की प्रशासनिक व्यवस्था से जुड़े अध्यादेश का स्थान लेने वाला विधेयक
पेश किया जाएगा। बहरहाल 12 जून की बैठक में शामिल होने के लिए 16 पार्टियों ने
सहमति दी थी, जिनमें आम आदमी पार्टी भी शामिल है। इस बैठक को लेकर नीतीश कुमार के
अलावा अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी, उद्धव ठाकरे, शरद पवार इसे लेकर काफी
उत्साहित हैं।
हिंदी बेल्ट
ममता बनर्जी ने एक वीडियो जारी करके पटना आने और बैठक में शामिल होने का बयान भी दिया है। ममता बनर्जी ने कहा कि पटना में होने वाली विपक्ष की एकता की बैठक से हिंदी बेल्ट में बेहतर असर होगा। हालांकि ममता ने इस बात को खुलकर नहीं कहा है, पर जो बातें सामने आ रही हैं, उनसे संकेत मिलता है कि उन्होंने ही नीतीश कुमार को सलाह दी थी कि आप अपनी तरफ से पहल करें। 12 जून की बैठक उसी पहल का परिणाम थी। ममता बनर्जी सत्तर के दशक में जय प्रकाश नारायण की पहल का इस सिलसिले में उदाहरण देती हैं।
अरविंद केजरीवाल ने हाल में राहुल गांधी और
मल्लिकार्जुन खरगे से मुलाकात की काफी कोशिशें की हैं। उनकी शिकायत भी है कि
कांग्रेस के नेता उनकी पहल का सकारात्मक जवाब नहीं दे रहे हैं। केजरीवाल को
कर्नाटक के शपथ-ग्रहण समारोह में भी नहीं बुलाया गया था। कुछ ऐसी ही खलिश तेलंगाना
में बीआरएस के नेता के चंद्रशेखर राव के साथ है। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी
को कांग्रेस का करीबी माना जाता है, पर फिलहाल वह भी कांग्रेस से खिंची हुई लगती
है।
पिछले साल राष्ट्रपति चुनाव के समय तृणमूल
कांग्रेस ने प्रत्याशी को लेकर पहल की थी, जिसे लेकर कांग्रेस में नाखुशी थी, पर
पार्टी ने उसे बाहर आने नहीं दिया था। अलबत्ता कांग्रेस के दोनों शीर्ष नेताओं ने
नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव से विरोधी-एकता को लेकर हाल में जरूर बात की है।
चिंतन-शिविर
राहुल गांधी का सुझाव था कि सबसे पहले दिल्ली
से बाहर तीन-चार दिन के लिए विरोधी दलों का एक चिंतन-शिविर लगना चाहिए, जिसमें खुलकर
बातचीत हो। हालांकि अभी किसी ने कोई बयान नहीं दिया है, पर दो-एक निष्कर्ष निकाले
जा सकते हैं। कांग्रेस पार्टी विरोधी-एकता में अपने ‘केंद्रीय-भूमिका’ पर ज़ोर देगी। अभी तक तारीख और बैठक के स्थान की घोषणा
जेडीयू की ओर से की जाती रही हैं। अब संभवतः सभी दलों से विचार-विमर्श के बाद तय
होगा कि बैठक कब और कहाँ होगी।
ज्यादातर विरोधी दलों राय है कि आगामी लोकसभा चुनाव में अधिकाधिक
संभव स्थानों पर बीजेपी के प्रत्याशियों के खिलाफ एक प्रत्याशी उतारा जाए। इस
विचार और इसे लेकर उत्साह के बावजूद ये दल जानते हैं कि इसके साथ कुछ जटिलताएं जुड़ी
हैं। बड़ी संख्या में ऐसे चुनाव-क्षेत्र हैं, जहाँ विरोधी-दलों के बीच प्रतिस्पर्धा
है।
बैठक से जुड़े सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस नेता
राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे 12 जून को बैठक में शामिल होने में असमर्थ थे। राहुल गांधी
विदेश-यात्रा से 18 जून को वापस आने वाले हैं। उनके अलावा एमके स्टालिन के आने की
संभावना भी नहीं थी। सीपीएम की भी 12 जून की तारीख पर सहमति नहीं थी। इस बैठक को
बुलाने के पीछे नीतीश कुमार का आग्रह है।
बैठक को लेकर ज्यादातर पार्टियों की सहमति भी
है, पर नेताओं की उपलब्धता को लेकर अड़चनें हैं। पहले यह बैठक 19 मई को होने वाली थी। लेकिन, कर्नाटक
विधानसभा चुनाव और वहां कांग्रेस की सरकार बनने के बाद शपथ ग्रहण समारोह को लेकर बैठक
को टाल दिया गया। इसके बाद मई के अंतिम सप्ताह में इस बैठक को करना था वह भी बैठक
नहीं हो पाई। फिर 12 जून की तारीख तय की गई।
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