गुरुवार की शाम पाकिस्तान में सिंध के सहवान कस्बे की लाल
शाहबाज कलंदर दरगाह पर आतंकी हमला हुआ, जिसमें 88 लोगों के मरने और करीब 200 को
घायल होने की खबर है। इस आत्मघाती हमले की जिम्मेदारी आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट
ने ली है। इस्लामिक स्टेट ने इससे पहले नवम्बर में बलूचिस्तान में एक सूफी दरगाह पर
हुए हमले की जिम्मेदारी भी ली थी। पाकिस्तान में इस्लामिक स्टेट की गतिविधियाँ
बढ़ती जा रहीं है। हालांकि उसका अपना संगठन वहाँ नहीं है, पर लश्करे-झंगवी जैसे
स्थानीय गिरोहों की मदद से वह अपनी जड़ें जमाने में कामयाब हो रहा है।
चिंता की बात यह है कि भारत के खिलाफ नफरत की हवाओं से साँस
लेने वाले पाकिस्तानी हुक्मरां इस खतरे की ओर नहीं देख पा रहे हैं। यह देश अपनी ही
लगाई आग में झुलसता जा रहा है। पिछले दिनों आई एक किताब में दिखाए गए नक्शे के
मुताबिक इस आतंकी संगठन की योजना दुनिया के बड़े हिस्से में अगले पांच साल में
अपना प्रभुत्व कायम करने की है, जिसमें लगभग
समूचा भारतीय उपमहाद्वीप शामिल है। पिछले साल बांग्लादेश में हुई आतंकी घटनाओं से
इस बात की पुष्टि हुई कि इस्लामिक स्टेट भले ही अपने गढ़ में मार खा रहा है, पर
दक्षिण एशिया की और कदम बढ़ा रहा है। अफगानिस्तान में उसने गतिविधियाँ बढ़ाईं हैं
और अब पाकिस्तान में उसकी सक्रियता नजर आने लगी है।
पाकिस्तान में शियों, सूफियों और अहमदियों के खिलाफ हिंसा बढ़ती
जा रही है। पिछले साल जून में तालिबान आतंकवादियों ने सूफी गायक अमजद साबरी की कराची में गोली
मारकर हत्या कर दी थी। रूह को छूने वाली सूफी गायकी के मशहूर साबरी बंधुओं में वे
एक थे। ऐसी आवाजें भारत में भी सुनी जाती हैं और ये सद्भाव का संदेश लेकर आती हैं।
पर कट्टरपंथियों को सद्भाव सुहाता नहीं है।
शाहबाज लाल कलंदर की दरगाह पर हुआ
धमाका बड़े खतरे का संकेत है। इस इलाके में लोकप्रिय गीत 'दमादम मस्त कलंदर' अमीर खुसरो ने शाहबाज
कलंदर के सम्मान में लिखा था। बुल्ले शाह ने इस गीत में कुछ बदलाव किए और इनको 'झूलेलाल कलंदर' कहा। गीत-संगीत की इस
संगत को ‘धमाल’ कहते हैं जिसमें दक्षिण एशिया के
हिन्दू और मुसलमान दोनों शामिल होते हैं। यह उस मिश्रित संस्कृति की पहचान है, जो
पिछले कई सौ साल में विकसित हुई है। इस ताने-बाने को तोड़ने की अब कोशिशें हो रहीं
हैं।
पिछले कुछ समय से भारत का प्रयास है कि पठानकोट पर हमले के मास्टरमाइंड मसूद
अज़हर पर सुरक्षा परिषद की पाबंदियाँ लगाईं जाएं। इन पाबंदियों को लगाने पर आम
सहमति है, पर चीन ने अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल करके इसे रोक लिया है। इसी तरह हाल
में पाकिस्तान ने मुम्बई कांड के मास्टरमाइंड हफीज़ सईद को हिरासत में लिया है। यह
कार्रवाई भी संयुक्त राष्ट्र के दिशा-निर्देशों के कारण हुई है, पर इसमें भी
पाकिस्तान जितनी देरी कर सकता था उतनी की।
कहा यह भी जाता है कि हफीज़ सईद की गिरफ्तारी नहीं, हिफाजती हिरासत है। संरक्षण
देने की कोशिश। परवेज मुशर्रफ ने एक इंटरव्यू में लश्करे तैयबा और जैसे मोहम्मद
जैसे संगठनों को अपने ‘एसेट्स’ बताया था। पाकिस्तान एक
तरफ दावा करता है कि हम आतंकवाद से पीड़ित हैं। दूसरी तरफ वह ऐसे तत्वों को बढ़ावा
देता है। इस्लामिक स्टेट जैसी ताकतें अंततः उसके दरवाजे तक आ चुकी हैं। ऐसे में
उसे अपने ऐसे ‘रत्नों’ पर गर्व है तब वह आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई कैसे
लड़ेगा?
पाकिस्तानी प्रशासन आग से खेलने का शौकीन है। हिंसा और आतंकवाद उसकी विचारधारा
के अनिवार्य अंग बन चुके हैं। यह रणनीति केवल कश्मीरी मसले को सुलगाए रखने तक
सीमित नहीं है। पिछले तीन-चार दशकों में दुनिया के किसी भी कोने में हुई आतंकी
गतिविधि में कहीं न कहीं पाकिस्तानी हाथ होता है। पाकिस्तानी कट्टरपंथियों की
दिलचस्पी पूरी दुनिया में है। दो साल पहले 16 दिसम्बर 2014 को जब पेशावर के आर्मी
पब्लिक स्कूल पर आतंकवादी हमले में करीब डेढ़ सौ बच्चों की मौत हुई थी, तब शायद
वहाँ के नागरिकों को पहला झटका लगा था। खूनी विचारधारा ने उनके बच्चों की जान लेनी
शुरू कर दी।
तब लगा था कि शायद अब वहाँ की व्यवस्था अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करे। उस
घटना के बाद पाकिस्तान ने एक 20 सूत्री नेशनल एक्शन प्लान तैयार किया गया। इसके छह
महीने पहले वहाँ की सेना उत्तरी वजीरिस्तान में ऑपरेशन ज़र्ब-ए-अज़्ब शुरू कर चुकी
थी। इन अभियानों की खराबी यह है कि इन्हें अंधाधुंध चलाया जा रहा है, बगैर यह देखे
कि इससे परेशानी जनता को ही हो रही है। नवम्बर की खबर थी कि पाकिस्तानी सेना किसी
बात पर नाराज होकर ने एक पूरे बाजार को ढहा दिया, जिसमें करीब 150 दुकानें तबाह हो
गईं। लाल शाहबाज कलंदर के हमले के अगले रोज ही की गई कार्रवाई में पाकिस्तानी सेना
ने करीब 100 लोगों को मार डाला। वही पाकिस्तान कश्मीर में पैलेट गन के इस्तेमाल को
लेकर दुनियाभर में नाच रहा है।
सच यह है कि पाकिस्तान अपनी लगाई आग से वह खुद जलने लगा है। पर बजाय
आत्म-चिंतन के पाकिस्तानी सेना ने अपनी नाकामयाबी की तोहमत भारत और अफगानिस्तान पर
लगानी शुरू कर दी। पाकिस्तान में धमाकों के पीछे कई तरह के तत्व हैं और निशाने पर
भी कई तरह के लोग हैं। जनवरी में पेशावर के पाराचिनार इलाके में हुए विस्फोट का
निशाना शिया समुदाय के लोग थे। लाल शाहबाज कलंदर की दरगाह पर हुए विस्फोट का
निशाना सूफी विचारधारा है। दिसम्बर में चकवाल के एक अहमदी धर्मस्थल पर हजारों की
भीड़ ने हमला बोलकर कब्जा कर लिया। उसे बाद में खाली कराया गया।
पाकिस्तान में जो उदार तत्व बचे भी हैं उनके खिलाफ कट्टरपंथी आग उगलते रहते
हैं। हाल में पाँच सम्मानित ब्लॉगर लापता हो गए। इनमें से तीन वापस लौट आए हैं, पर
यह पता नहीं लगा है कि वे क्यों लापता हुए। सब जानते हैं कि उन्हें खुफिया
एजेंसियाँ उठाकर ले गईं थीं। ये एजेंसियाँ जिसे चाहती हैं पकड़ ले जाती हैं। इनके निशाने पर कट्टरपंथी नहीं हैं, बल्कि उदार और प्रगतिशील लोग हैं। मीडिया का एक हिस्सा
कट्टरपंथी आग को भड़काता है। हाल में आमिर हुसेन लियाकत के एक टीवी शो पर पाबंदी
लगाई गई, जिसके लिए नियामक संस्था पेमरा को सुप्रीम कोर्ट तक जाना पड़ा।
हरिभूमि में प्रकाशित
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