साभार सतीश आचार्य का पुराना कार्टून
कर्नाटक विधानसभा के चुनाव की घोषणा होने और
राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता जाने के साथ विरोधी दलों की एकता के प्रयासों में
फिर से तेजी आ गई है। सोमवार 3 अप्रेल को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने
16 विरोधी दलों की बैठक बुलाई है। जिन दलों को निमंत्रण दिया गया है, उनमें बीजू
जनता दल और वाईएसआर कांग्रेस भी शामिल है। वे
आएंगे या नहीं इसे लेकर कयास हैं। ये दोनों दल अभी तक विरोधी दलों के किसी भी
गठबंधन में शामिल होने से बचते रहे हैं।
वाईएसआर कांग्रेस ने गुरुवार को कहा भी है कि
हमें बुलाया नहीं गया है और हम शामिल भी नहीं होंगे। बीजद ने भी बैठक में भाग लेने
के बारे में कुछ भी नहीं कहा है। अलबत्ता इस सम्मेलन के आयोजनकर्ताओं का कहना है
कि बीजद के राज्यसभा मुख्य सचेतक सस्मित पात्रा बैठक में शामिल होंगे। विरोधी दलों
के नेता यह भी मानते हैं कि ये दोनों दल एनडीए के करीब रहते हैं। इंडियन
एक्सप्रेस की खबर के अनुसार जब सस्मित पात्रा से संपर्क किया गया, तो उन्होंने
कहा कि मैं कह नहीं सकता कि बीजद इस बैठक में शामिल होगा या नहीं। मेरे पास इसमें
हिस्सा लेने के बारे में कोई जानकारी नहीं है।
एकता के सूत्र
बहरहाल बैठक के आयोजकों के अनुसार डीएमके की इस बैठक में शामिल होने के लिए कांग्रेस, जेएमएम, राजद, जेडीयू, तृणमूल कांग्रेस, सपा, वाईएसआरसीपी, बीजद, नेकां, बीआरएस, कम्युनिस्ट पार्टी, माकपा, राकांपा, आम आदमी पार्टी, आईयूएमएल, एमडीएमके को आमंत्रित किया गया है। अब पहली बार मोदी विरोध के नाम पर ही सही कम से कम 14 या 15 दल अब एक साथ बैठने को तैयार नज़र आ रहे हैं।
कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने बुधवार को कहा
कि उनकी पार्टी किसी भी पार्टी के ‘बड़े
भाई’ की भूमिका नहीं निभाना चाहती और बड़ी चुनौती के खिलाफ सामूहिक लड़ाई का
आह्वान किया। खुर्शीद ने जम्मू-कश्मीर प्रदेश कांग्रेस कमेटी (जेकेपीसीसी) के
मुख्यालय में एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि यह विपक्षी दलों के सामूहिक नेतृत्व
को तय करना है कि किसे क्या जिम्मेदारी दी जाए। राहुल गांधी को लोकसभा की सदस्यता
से अयोग्य ठहराए जाने के मुद्दे पर बुलाए गए संवाददाता सम्मेलन में खुर्शीद ने कहा, हम किसी के बड़े भाई की भूमिका नहीं निभाना चाहते। सामूहिक प्रयास
किया जाना चाहिए, सभी को एक साथ आना चाहिए और सभी नेताओं
को यह तय करना चाहिए कि किसे क्या जिम्मेदारी या अधिकार मिले।
एक अन्य संवाददाता सम्मेलन में दिन में पीपुल्स
डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की नेता महबूबा मुफ्ती ने कांग्रेस से ‘बड़े भाई’ की
तरह काम करने और लोकतंत्र की लड़ाई में विपक्षी दलों के लिए जगह बनाने को आह्वान
किया था। मुफ्ती ने पीडीपी कार्यालय में पत्रकारों से कहा था, ‘कांग्रेस को बड़े भाई की तरह व्यवहार करना होगा। उसे जगह नहीं रोकनी
चाहिए, उसे देश में लोकतंत्र को बचाने के लिए अन्य
विपक्षी दलों के लिए जगह बनानी चाहिए, जो अतीत में
उसके गठबंधन सहयोगी रहे हैं।’
खटकते बर्तन
पहले बीआरएस और ‘आप’
साथ आए तो टीएमसी दूर रही। फिर टीएमसी साथ आई तो सावरकर पर राहुल के बयान ने
शिवसेना को दूर कर दिया। संजय राउत और सोनिया-राहुल की मुलाकात के बाद मामला सुलझ गया है। खबर
यह भी है कि टीएमसी के खिलाफ बयान देने के लिए लोकसभा में कांग्रेस नेता और बंगाल
कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन को मना कर दिया गया है। इससे टीएमसी ने भी विपक्षी
एकता का हिस्सा बनने पर हामी भर दी है। अब तो कांग्रेस नेता ईमानदारी के मुद्दे को
मोदी को घेरने के लिए मनमोहन सिंह और ममता का उदाहरण तक दे रहे हैं।
विपक्ष की इस मुहिम में शरद पवार भी महत्वपूर्ण
भूमिका निभा रहे हैं। शुरुआती मुलाकात के बाद एक सब ग्रुप बनाने की तैयारी है,
जो चुनाव के मुद्दों को तय करेगा, जो
जनता से जुड़े हों और मोदी सरकार को घेरते हों। सभी दलों से कहा जाएगा कि वे इन्हीं
बड़े मुद्दों के इर्द-गिर्द ही अपनी बात रखें। माना जा रहा है, अडाणी की मदद के लिए जनता के पैसे की लूट, जांच
एजेंसियों का इस्तेमाल, महंगाई, बेरोजगारी
जैसे मुद्दे होंगे। यह भी कि धर्म या सावरकर जैसे किसी मुद्दे से परहेज करें जो
बीजेपी को सियासी हथियार देता हो या आपस में ही विवाद का विषय हो।
इसके पहले खबर थी कि पिछले शुक्रवार को 14
राजनीतिक दलों की याचिका पर सुनवाई को सुप्रीम कोर्ट तैयार हो गया है। इन विरोधी
दलों ने इस याचिका में कहा है कि केंद्र सरकार जांच एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही
है। राजनीतिक विरोधियों को गिरफ्तार कराया जा रहा है। लिहाजा जांच एजेंसियों और
अदालतों के लिए गिरफ्तारी और रिमांड पर गाइडलाइन बनाई जाए। इस मामले में 5 अप्रेल
को सुनवाई होगी। इन 14 पार्टियों में कांग्रेस
भी शामिल है।
तृणमूल का रुख
लोकसभा चुनाव 2024 में अकेले लड़ने के ऐलान कर
चुकीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने रुख बदला है। अब वे विपक्षी
एकता की अपील
कर रही हैं। गत सोमवार 27 मार्च की रात कांग्रेस की तरफ से बुलाई गई विपक्षी दलों
की बैठक में तृणमूल कांग्रेस भी शामिल हुई थी। सियासी घटनाक्रमों के बीच इसकी कई
वजह हो सकती हैं। पश्चिम बंगाल के अलावा टीएमसी को खास चुनावी सफलता नहीं मिली है।
हाल में हुए मेघालय विधानसभा चुनाव में टीएमसी का प्रदर्शन बेहतर रहा है, पर सफलता
उतनी नहीं रही, जिसकी शा थी। पार्टी ने 5 सीटों पर जीत दर्ज की थी। बहरहाल,
2024 में दिल्ली तक का सफर पूरा करने के लिए अन्य राज्यों का भी
समर्थन जरूरी है।
टीएमसी सुप्रीमो ने कहा कि अगर विपक्ष राज्यों
में जीते तो भाजपा को हराया जा सकता है। उन्होंने कहा, ‘बीजेपी
को सीटें कहां से मिलेंगी? उत्तर प्रदेश से? हम भाजपा के खिलाफ अखिलेश का साथ देने के लिए यूपी जाएंगे। उन्हें
बिहार, बंगाल, ओडिशा, राजस्थान, महाराष्ट्र में भी सीटें नहीं
मिलेंगी।’ सागरदिघी उपचुनाव में कांग्रेस ने कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (एम) के
साथ मिलकर टीएमसी का गढ़ छीन लिया था। उस चुनाव में सीएम बनर्जी के रिश्तेदार कहे
जा रहे टीएमसी उम्मीदवार देवाशीष बनर्जी की करीब 23 हजार मतों से हार हो गई थी।
इसके बाद पार्टी को हल्दिया डॉक इंस्टीट्यूट स्टीयरिंग कमेटी चुनाव में भी 19
सीटें गंवानी पड़ी।
बंगाल में चुनाव
पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव में दस्तक देने
वाले हैं। ऐसे में टीएमसी भी तैयारियों में जुटी हुई है। गुरुवार को शुरू हुए दो
दिवसीय धरना प्रदर्शन को भी पंचायत चुनाव की तैयारियों के तौर पर देखा जा रहा है।
कहा जा रहा है कि इन चुनाव में सफलता सुनिश्चित करना टीएमसी के लिए 2024 के लिहाज
से काफी अहम होगा। जानकारों का मानना है कि पंचायत चुनाव टीएमसी सुप्रीमो की
विश्वसनीयता के लिए बेहद जरूरी होंगे। साथ ही इनके जरिए संगठन स्तर पर भी पार्टी
की ताकत का पता चलेगा।
बंगाल में पार्थ चटर्जी, अनुव्रत
मंडल और सीएम बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी जैसे बड़े नेता केंद्रीय एजेंसियों की
जांच की आंच का सामना कर रहे हैं। इसी बीच कांग्रेस नेता राहुल गांधी के मामले ने
राष्ट्रीय स्तर पर और सरगर्मी बढ़ा दी है। 2019 के एक मामले में दोषी करार होने के
बाद राहुल की लोकसभा सदस्यता जा चुकी है। साथ ही उन्हें बंगला खाली करने के भी
आदेश जारी कर दिया गया है। बुधवार को धरना प्रदर्शन के दौरान अभिषेक बनर्जी ने भी
राहुल के खिलाफ कार्रवाई का मुद्दा उठाया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरा।
उन्होंने कहा कि ‘दीदी ओ दीदी’ कहने पर पीएम मोदी के खिलाफ एक्शन क्यों नहीं हो
सकता।
अंतर्विरोध
विरोधी एकता के तमाम अंतर्विरोध अब भी अनसुलझे
हैं। बंगाल में कांग्रेस ममता के विरोध में लेफ्ट के साथ है। केरल में
लेफ्ट-कांग्रेस आमने सामने है। दिल्ली और पंजाब में आप और कांग्रेस आमने-सामने है।
बीआरएस और कांग्रेस की तेलंगाना में टक्कर है। यूपी में बसपा, सपा और कांग्रेस अलग-अलग हैं। हालांकि, विपक्षी
एकता के साथ 2024 में साथ लड़ने के लिए सीट बंटवारे जैसे
मामलों को जल्दी फाइनल करने की वकालत करने वाले नीतीश कुमार अब देरी के लिए
कांग्रेस को ही जिम्मेदार ठहराकर हताशा जता रहे हैं।
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