Friday, May 25, 2018

मोदी-राज के चार साल


किसी भी सरकार के चार साल केवल सफलता या केवल विफलता के नहीं होते। कहानी कहीं बीच की होती है। उपलब्धियों और विफलताओं के बीच के संतुलन को देखना चाहिए। मोदी सरकार की ज्यादातर उपलब्धियाँ सामाजिक कार्यक्रमों और प्रशासनिक फैसलों के इर्द-गिर्द हैं। अधिकतर विफलताएं सांविधानिक-प्रशासनिक संस्थाओं को कमजोर करने और सामाजिक ताने-बाने को तोड़ने से जुड़ी हैं। गोहत्या के नाम पर निर्दोष नागरिकों की हत्याएं हुईं। दलितों को पीटा गया वगैरह। मोदी की एक इमेज तेज तर्रार नेता की है और दूसरी असहिष्णु क्रूर प्रशासक की। दोनों छवियाँ बदस्तूर बनी हैं।  

सरकार के पास एक साल बाकी है। क्या वह अपनी नकारात्मक इमेज को सुधारेगी और सकारात्मक छवि को बेहतर बनाएगी? राजनीतिक हिन्दुत्व पर मोदी के रुख में नरमी कभी नहीं रही। वे अपने प्रतिस्पर्धियों को तुर्की-ब-तुर्की जवाब देने में यकीन रखते हैं। पिछले चार वर्षों को अल्पसंख्यकों और समाज के पिछड़े वर्गों पर हुए हमलों, मानवाधिकार तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए लड़ने वालों की प्रताड़ना के लिए भी याद रखा जाएगा। पिछले साल फिल्म पद्मावत की रिलीज़ केवल इसलिए टली, क्योंकि उसके खिलाफ आंदोलन चलाने वालों पर काबू पाने की प्रशासनिक कोशिशों में ढील रही।


मोदी सरकार एक राजनीतिक एजेंडा के साथ सामने आई है और उनके पास जनादेश है। उस जनादेश का यह आखिरी साल है। अब हमें इंतजार करना होगा कि उनकी रीति-नीति को जनता ने किस रूप में देखा और वह 2019 में क्या फैसला करेगी। मोदी के समर्थकों और विरोधियों के बीच ऐसे लोगों की संख्या कम है, जो तटस्थ होकर विचार करते हों। उनका पहला साल पूरा होते-होते पुरस्कार वापसी अभियान चला। उस अभियान के पीछे वाजिब कारण थे, तो राजनीतिक प्रेरणाएं भी थीं।

सिद्धांततः मोदी भी समाज को जोड़ने की बात करते हैं। यह बात संसद में उनके भाषणों से जाहिर है। पर, उनके दौर में सामाजिक ध्रुवीकरण जितनी तेजी से हुआ है, उतना पहले कभी नहीं हुआ। मोदी के दीवानों की संख्या बहुत बड़ी है, तो नापसंद करने वालों की भी है। मोदी को मीडिया से शिकायत है। उन्होंने ‘मन की बात’ के मार्फत देश के साथ संवाद किया, पर पिछले चार साल में एक भी संवाददाता सम्मेलन नहीं किया। वे टीवी के उन एंकरों से ही बात करते हैं, जो उनके समर्थक हैं।

नरेन्द्र मोदी ने चुस्त-दुरुस्त और ताकतवर नेता की जो इमेज बनाई थी, वह अब तक बनी हुई है। उनकी सरकार के चार साल बाद तमाम वादों के पूरा न होने या अधूरा रह जाने के बावजूद, उनके समर्थक निराश नहीं हैं। महंगाई में कमी नहीं है। पेट्रोल की कीमतें आसमान पर हैं। नोटबंदी के बाद से कई तरह की दिक्कतें खड़ी हुईं, जो अभी तक जारी हैं। पर मोदी समर्थकों ने उन्हें खुशी से झेल लिया।

कश्मीर में आतंकवाद और पत्थरबाजी जारी है। बल्कि इस साल राज्य सरकार की सलाह पर केन्द्र ने औपचारिक रूप से आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई रोकने की घोषणा की है, जिसे युद्ध-विराम कहा जा रहा है। पिछले एक साल में कश्मीर में आतंकवादियों के खिलाफ जबर्दस्त फौजी कार्रवाई चल रही है। पिछले डेढ़ साल में कश्मीर में हुई फौजी कार्रवाई में 290 आतंकवादी मारे गए हैं। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने हाल में दावा किया है कि देश में माओवाद पस्त हो रहा है, परंतु माओवादियों के हमले जारी हैं। हाल में महाराष्ट्र के गढ़चिरौली इलाके में सीआरपी ने बड़ी सफलता जरूर हासिल की है।

मोदी की खासियत है कि वे फैसला करते हैं, तो वह लागू भी होता है। उन्होंने बजट की तारीख पूरे एक महीने खींचकर पीछे कर दी। उन्होंने यह साबित करने में सफलता हासिल की है कि मैं ‘बदलाव का वाहक’ हूँ, जबकि मेरे विरोधी यथा-स्थिति के समर्थक हैं। आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ टीएन नायनन ने हाल में लिखा है, बतौर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल के आखिरी वर्षों की नीतिगत पंगुता के बाद नरेंद्र मोदी सरकार के चार साल अत्यधिक सक्रियता के रहे हैं।

बेशक आर्थिक संवृद्धि की दर मनमोहन सरकार के दूसरे कार्यकाल के मुकाबले कम रही है, बल्कि पेट्रोलियम की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में कमी आने की वजह से राजकोषीय घाटे और मुद्रास्फीति में कमी आई है। पर सरकार ने कई तरह की सामाजिक योजनाएं तैयार कीं, जिनमें उसे सफलता मिली है। बिजली आपूर्ति, घरेलू गैस की उपलब्धता, सड़क संचार और खुले में शौच से मुक्ति जैसे लक्ष्य सामान्य व्यक्ति को छूते हैं। सौर ऊर्जा के मामले में भारत ने जबर्दस्त सफलता हासिल की है। सरकार ने रेलवे में भारी निवेश किया है, जिसका लाभ आने वाले वर्षों में देखने को मिलेगा। राजमार्गों पर भारी निर्माण भी उनकी उपलब्धि है।

मोदी सरकार की उपलब्धियों में ई-नाम (इलेक्ट्रॉनिक नेशनल एग्रीकल्चरल मार्केट), एफडीआई को खोलना (खासतौर से रक्षा और रेलवे में), जीएसटी, बिजली के क्षेत्र में सुधार, दिवालिया कानून बनाकर बैंकों के डूबे धन की वापसी की शुरुआत, व्यापार को आसान बनाना और छोटे कारोबारियों के लिए पूँजी की व्यवस्था करना। मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्वच्छ भारत, बेटी पढ़ाओ-बेटी बढ़ाओ, स्मार्ट सिटी वगैरह-वगैरह उनकी उपलब्धि है।

नई राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति-2015 के यदि लागू हो सकी, तो आने वाले दिनों में चिकित्सा देश के नागरिकों का मौलिक अधिकार बन सकेगी। इस साल के बजट में घोषित 10 करोड़ गरीब परिवारों के लिए स्वास्थ्य सुरक्षा योजना अपने आप में बड़ा क्रांतिकारी कदम है। हालांकि सरकार ने इस योजना का विवरण जारी नहीं किया है, पर इसे आगामी 2 अक्तूबर से लागू करने की योजना है। यह कार्यक्रम की बड़ी उपलब्धि बनेगा, बशर्ते ठीक से लागू हो।

कुछ छोटी-छोटी ऐसी बातें हैं, जिनपर हमारा ध्यान नहीं जाता, पर जो जनता का ध्यान खींचती हैं। सरकार ने पिछले चार साल में 1,175 पुराने कानूनों को खत्म किया। इसके पहले पिछले 64 साल में देश ने 1,301 कानूनों को खत्म किया गया था। तमाम कानून ऐसे थे जो अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे थे और जिनकी आज कोई उपयोगिता नहीं रही। सन 2014 में सरकार ने फैसला किया कि दस्तावेजों को राजपत्रित अधिकारियों से प्रमाणित कराने की जरूरत नहीं है।

पासपोर्ट तैयार करने की व्यवस्था में सुधार हुआ है। कुछ साल पहले तक पासपोर्ट बनवाना भारी मुसीबत होती थी। इसी तरह आयकर रिटर्न फाइल करने की व्यवस्था आसान हुई है। सीबीडीटी के अनुसार पिछले चार साल में रिटर्न फाइल करने वालों की संख्या में इजाफा हुआ है। वित्त वर्ष 2013-14 में जहां 3.79 करोड़ लोगों ने आईटीआर फाइल किया था वहीं 17-18 में इनकी संख्या बढ़कर 6.84 करोड़ पहुंच गई। यानी इनकी संख्या में कुल 80.5 फीसदी का इजाफा हुआ है। डिजिटल ट्रांजीशन बढ़ने से काफी काला कारोबार बंद हुआ है। ई-कारोबार की क्रांति को भी पिछले चार साल की देन माना जा सकता है।

जीएसटी लागू होने के बाद राजमार्गों की चुंगियों पर लगी ट्रकों की कतार अब खत्म हो गई है। पर चौराहों पर ट्रक ड्राइवरों के हाथों से नोट लेते पुलिस वाले हर शहर में देखे जा सकते हैं। आम लोगों को ज्यादा बातें समझ में नहीं आती, पर उन्हें लगता है कि मोदी काम कर रहे हैं। केंद्रीय कर्मचारियों को वेतन आयोग मिला और पूर्व सैनिकों को ‘वन रैंक, वन पेंशन।’

मोदी सरकार की ज्यादातर उपलब्धियाँ राजनीतिक हैं। सन 2014 के बाद से हुए ज्यादातर चुनावों में बीजेपी को सफलता मिली है। केवल दिल्ली, बिहार और पंजाब में उनकी पार्टी को विफलता मिली है। इस दौरान हरियाणा, झारखंड, महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, गोवा, उत्तर प्रदेश और गुजरात में बीजेपी ने जीत हासिल की। पूर्वोत्तर में असम, अरुणाचल, मणिपुर, मेघालय और नगालैंड में सरकारें बनाकर उसने एक नए इलाके में प्रवेश किया है।

कर्नाटक में भी बीजेपी को सबसे बड़ी पार्टी बनने में सफलता मिली, पर सरकार बनाने की जल्दबाजी में उसकी भद्द भी पिटी है। इस मोड़ पर आकर प्रतिरोध भी बढ़ा है। बीजेपी-विरोधी दल अब एक मंच पर हैं। कांग्रेस ने कर्नाटक में बीजेपी की सरकार को रोकने के लिए जनता दल सेक्युलर को समर्थन देकर एक नई राजनीति की ओर कदम बढ़ाया है, जो लगता है 2019 के चुनाव तक चलेगी। यह राजनीति है ‘मोदी बनाम सब।’ यह बात भी मोदी के महत्व को ही रेखांकित करती है।  
हिन्दी ट्रिब्यून में प्रकाशित

3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (26-05-2017) को "उफ यह मौसम गर्मीं का" (चर्चा अंक-2982) (चर्चा अंक-2968) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. subse phle me apko shukriya krna chahungi ke apne itna amazing blog bnya. Apka blog pdne me kafi intrusting hai or or kafi friendly hai. Jb mene or meri team news4social ne apka ye blog dekha Latest Breaking News in hindi samachar Toh Hume kafi khushi mili or kafi jankari bhi prapt hui dhanywaad apka.
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  3. अच्छा विश्लेषण

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