Tuesday, March 1, 2016

ग्रामीण भारत को ‘मेगापुश’

मोदी सरकार ने चार राज्यों के चुनाव के ठीक पहले राजनीतिक जरूरतों का पूरा करने वाला बजट पेश किया है. इसमें सबसे ज्यादा जोर ग्रामीण क्षेत्र, इंफ्रास्ट्रक्चर, रोजगार और सामाजिक कल्याण के कार्यक्रमों पर है. राजकोषीय घाटे को 3.5 प्रतिशत रखने के बावजूद सोशल सेक्टर के लिए धनराशि का इंतजाम किया गया है. अजा-जजा उद्यमियों के लिए प्रोत्साहन कार्यक्रम भी इसका संकेत देते हैं. बजट का संदेश है कि अमीर ज्यादा टैक्स दें, जिसका लाभ गरीबों को मिले. हालांकि सरकार ने पूँजी निवेश के लिए प्रोत्साहन योजनाओं की घोषणा की है, पर कॉरपोरेट जगत में कोई खास खुशी नजर नहीं आती.


इस बजट से बड़े आर्थिक सुधारों से जुड़ी घोषणाओं की आशा भी थी. ऐसा कुछ नजर नहीं आया. सरकार ने बैंकरप्सी कोड का जिक्र किया है, पर इस सत्र के दूसरे चरण में पता लगेगा कि इस विधेयक का और उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण जीएसटी विधेयक का क्या होता है. वित्तमंत्री ने इस बार काला धन निकालने के लिए जो माफी घोषणा की है, उसके भी बड़े परिणाम सामने आ सकते हैं. बहरहाल वित्त मंत्री के भाषण के दौरान सेंसेक्स में लगातार गिरावट होती रही. हालांकि बाद में कुछ सुधार हुआ, पर यह देश के कॉरपोरेट जगत की मनोदशा को नहीं बताता. यह बात विदेशी निवेशकों के बारे में कही जा सकती है. बजट की महीन लाइनों के बीच अभी काफी बातें छिपी हुईं हैं, जिनका असर इस साल हमें देखना होगा.  

बजट का लब्बो-लुबाव है खेती और ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर. आधार, खेती और मनरेगा इस सरकार के भी मूलाधार हैं. अगले छह साल में ग्रामीण क्षेत्रों की आय दुगनी करने और 2018 तक हरेक गांव का विद्युतीकरण करने की योजनाएं ध्यान खींचती हैं. मनरेगा के लिए 38,500 रुपये अब तक की सबसे बड़ी राशि है. इसके साथ प्रधानमंत्री सड़क योजना में 19 हजार करोड़ रुपये इस काम को आगे बढ़ाते हैं. कुल मिलाकर ग्रामीण विकास के लिए 87,765 करोड रुपये का आवंटन किया गया है.

एक माने में इसे यूपीए सरकार के बजटों की सीरीज का ही हिस्सा मानें या ‘गरीबी हटाए बजट’ कहें तो गलत नहीं होगा. सरकार ने सबसे बड़ा निवेश इसी इलाके में किया है. उसे उम्मीद है कि देहाती माँग बढ़ने पर ही अर्थ-व्यवस्था में जान आएगी. पर यह भी सच है कि इसमें ग्रामीण इलाके के लोगों को कुछ भी मुफ्त में देने की बात नहीं है. साथ ही सब्सिडी को क्रमशः कम करते जाने और केवल गरीबों तक उसे पहुँचाने और उसे व्यक्ति के बैंक एकाउंट तक पहुँचाने की रणनीति है.

इस बजट को इस साल के रेल बजट के साथ भी पढ़ा जाना चाहिए. बजट में रेलवे व सड़क परिवहन पर कुल 2.18 लाख करोड़ रुपये के निवेश की घोषणा की गई है. सड़कों के लिए इस वित्तीय वर्ष में 97 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान है. 10 हजार किलोमीटर के राष्ट्रीय राजमार्ग के विस्तार की योजना है. इसके समांतर करीब 50 हजार किलोमीटर के स्टेट हाइवे का विस्तार भी होगा. यह कार्यक्रम भविष्य की व्यापारिक गतिविधियों के लिए रास्ता बनाने के अलावा ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार के रास्ते भी खोलेगा.

ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियों के साथ-साथ सरकार डिजिटल साक्षरता के लिए भी पैसा लगाने जा रही है. ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट की पहुँच बनाने के पहले यह इस तथ्य पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि देश के 16.8 करोड़ ग्रामीण परिवारों के पास कंप्यूटर नहीं हैं. वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में कहा कि हमने ग्रामीण भारत के लिए डिजिटल साक्षरता मिशन शुरू करने की योजना बनाई है ताकि अगले तीन साल में करीब छह करोड़ अतिरिक्त परिवारों को इसमें शामिल किया जा सके. इस योजना का ब्योरा अलग से दिया जाएगा.

बावजूद इन बातों के बजट को पूरी तरह ग्राम केंद्रित मानना भी गलत होगा. सरकार ने एफडीआई नीति में कुछ बदलावों की घोषणा इस बजट में की है. इस तरफ मीडिया का ज्यादा ध्यान नहीं गया है. इंश्योरेंस, पेंशन और शेयर बाजार में विदेशी निवेश को और ज्यादा उदार बनाया गया है. फूड प्रोसेसिंग उद्योग में सौ फीसदी एफडीआई की घोषणा शहर और गांव दोनों को प्रभावित करेगी. देहाती इलाकों में फल और सब्जियाँ उगाने वाले किसानों को इसके सहारे एक नया बाजार मिलेगा. चालू वित्त वर्ष में देश में एफडीआई में 40 फीसदी की बढ़त हुई है. इसी तरह बाजारों को सातों दिन खोलने की पहल है, जिसे लागू तो राज्य करेंगे, पर केंद्र ने इसकी पहल की है. इसे ठीक ढंग से लागू किया जाए तो रोजगार बढ़ेंगे और कारोबार भी.

अगले तीन वर्ष में एक करोड़ युवाओं को कुशल बनाने की योजना है. इसके लिए 15000 बहु कौशल प्रशिक्षण संस्थान खोले जाएंगे. अगले दो वर्ष में 62 नवोदय विद्यालय खोलने की योजना भी है. सस्ती दवाओं की 3000 दुकानें खुलेंगी. यह शहरी और ग्रामीण गरीब दोनों के लिए राहत की योजना है. इसी तरह गरीबों के रसोई गैस के लिए 2,000 करोड़ की राशि आबंटित की गई है जो शहरी और ग्रामीण दोनों तरह के गरीबों के जीवन को बेहतर बनाएगी. इसका एक लाभ यह भी होगा कि ईंधन के रूप में लकड़ी का जलना कम होगा.

हालांकि इस बार आयकर स्लैब में कोई बदलाव नहीं किया गया है, पर छोटे करदाताओं को कुछ राहत मिली है. पाँच लाख तक की सालाना आय वालों की 3 हजार रुपये की अतिरिक्त छूट मिल गई है. इसके साथ ही आयकर में छूट के लिए मकान भत्ते को 24 हजार से बढ़ाकर 60 हजार कर दिया गया है. सस्ते आवास को बढ़ावा देने के लिए पहली बार 50 लाख तक की कीमत वाले मकान खरीदने पर 50 हजार की छूट मिलेगी. दूसरी ओर एक करोड़ की आय वाले लोगों पर सरचार्ज बढ़ा दिया गया है.

काले धन को बाहर निकालने के लिए सरकार एक और कोशिश करेगी. एक जून से 30 सितंबर तक अघोषित आय सामने लाने वालों को 45 फीसदी टैक्स लगाकर माफ कर दिया जाएगा. ब्लैक मनी निकालने की स्कीम फ्लॉप रही थी, जिसमें केवल 3770 करोड़ रुपये सामने आए थे. बहरहाल सरकार का संदेश है कि अमीरों को ज्यादा टैक्स देना चाहिए. सरकार महंगी कारों और डीजल कारों पर अतिरिक्त टैक्स लगाकर आय बढ़ाने के साथ-साथ टैक्स का आधार बढ़ाने की कोशिश भी की गई है.

इस बार की आर्थिक समीक्षा से ही अनुमान लग गया था कि इस बार के बजट में सरकार आयकर में छूट की सीमा नहीं बढ़ाएगी. सर्वे में कहा गया था कि टैक्स नेट में अभी 5.5 फीसदी कामगार आते हैं और ज़रूरी है कि आने वाले वर्षों में इनकी संख्या बढ़कर 20 फीसदी की जाए. इस लिहाज से सम्भावनाएं अभी काफी हैं.
प्रभात खबर में प्रकाशित

1 comment:

  1. बहुत अच्छा विश्लेषण,गागर में सागर भरने जैसा।

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