मॉनसून के बारे में जो सूचनाएं आ रही हैं वे
बहुत उत्साहित करने वाली नहीं हैं। भारत के लिए मॉनसून बहुत अहम है क्योंकि उसकी
सालाना बारिश में मॉनसूनी बारिश का योगदान 70
फीसदी है। मॉनसूनी बारिश में अगर ज्यादा कमी हुई तो खरीफ की फसल का उत्पादन तो
प्रभावित होगा ही,
साथ ही रबी की फसल पर भी असर होगा।
खबरों के मुताबिक इस वर्ष आठ साल की सबसे कम
बारिश होने वाली है। इन दिनों सूखे का जो सिलसिला चल रहा है उसके चलते अगस्त में
बारिश में रिकॉर्ड कमी आई है और यह सिलसिला आगे भी जारी रहने की आशंका है।
जानकारी के मुताबिक अल नीनो प्रभाव मजबूत हो रहा है और माना जा रहा है कि दिसंबर
तक उसका प्रभाव जारी रहेगा। बिजनेस
स्टैंडर्ड की पूरी संपादकीय टिप्पणी पढ़ें यहाँ
चीन सदा-सर्वदा विकासशील!
दक्षिण अफ्रीका में हाल ही में संपन्न ब्रिक्स
देशों की शिखर बैठक से इतर चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने जोर देकर कहा कि उनका
देश ‘विकासशील देशों के समूह का सदस्य था, है और हमेशा
रहेगा।’ इस बात की संभावना कम है कि शी चीन की भविष्य की वृद्धि को लेकर कोई आशंका
व्यक्त कर रहे थे और ऐसा कुछ कह रहे थे कि उनका देश मध्य आय के जाल में उलझा
रहेगा। यदि वह ऐसा नहीं कह रहे थे तो फिर उनके इस वक्तव्य की व्याख्या किस प्रकार
की जाए?
दरअसल वह इस बात की घोषणा कर रहे थे कि चीन
चाहे जितना अमीर हो जाए और उसके हित विकासशील देशों के हितों से चाहे जितने अलग हो
जाएं, वह हमेशा खुद को विकासशील देशों का नेता
कहलवाना चाहता है। पश्चिम के उदार लोकतांत्रिक देशों के साथ महाशक्ति बनने की किसी
भी प्रतिस्पर्धा में चीन की उम्मीद यही है कि वह अपने विकासशील देश के दर्जे के
साथ दुनिया के विकासशील देशों का समर्थन जुटा सकेगा। बिजनेस
स्टैंडर्ड की पूरी संपादकीय टिप्पणी पढ़ें यहाँ
विकासशील देशों का नेतृत्व कल्पना और
भुलावा
इन दिनों नेहरू को नकारना या उनसे पल्ला झाड़ना
चाहे जितना चलन में हो लेकिन उन्होंने विदेश नीति में जो बातें शामिल की थीं उनका
एक हिस्सा नरेंद्र मोदी सरकार में भी जस का तस है।
इस दलील को स्थापित करने के लिए हम यह गिनती कर
सकते हैं कि हाल के दिनों में मोदी ने सार्वजनिक रूप से ‘ग्लोबल साउथ’ (विकासशील
देशों) का प्रयोग कितनी बार किया है। उन्होंने तमाम वैश्विक शिखर बैठकों में,
अमेरिकी कांग्रेस को संबोधन में, ब्रिक्स
शिखर बैठक में और यहां तक कि स्वतंत्रता दिवस पर लालकिले से भी इसका इस्तेमाल किया
है।
पहले इस विचार को विस्तार से जानते हैं और यह
भी कि नेहरू के युग से यह निरंतरता में क्यों है। विचार यह है कि भारत या उसका
नेता बाकियों का नेतृत्व कर सकता है। यहां बाकियों से तात्पर्य है अमेरिका,
उसके यूरोपीय साझेदारों और अन्य गठबंधन वाले देशों के अलावा जो भी
देश हैं। अगर आप ग्लोबल साउथ शब्द को गूगल करें तो पाएंगे आमतौर पर इसमें दक्षिणी
गोलार्द्ध के देश शामिल हैं।
परंतु तब प्रश्न यह उठता है कि आप जापान और
दक्षिण कोरिया, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया
और न्यूजीलैंड को कहां रखेंगे? जाहिर है यहां भूगोल काम नहीं करता। बिजनेस
स्टैंडर्ड में शेखर गुप्ता का लेख पढ़ें यहाँ
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