चौथी खबर राजनीति के बजाय, खेल के मैदान से है.
पाकिस्तान सरकार ने इस साल भारत में अक्तूबर-नवंबर में हो रही एकदिनी क्रिकेट की
विश्वकप प्रतियोगिता में अपनी टीम को भेजने की अनुमति दे दी है. इन दिनों चेन्नई
में हो रही हॉकी की एशिया चैंपियन ट्रॉफी प्रतियोगिता में भी पाकिस्तान की टीम खेल
रही है. खेल की खबरें भी बदलाव का संदेश दे रही हैं. सरकार ने जाते-जाते क्रिकेट का
फैसला कुछ सोचकर किया है.
नेशनल असेंबली को अपने समय से तीन दिन पहले भंग
करने का मतलब है कि अब चुनाव 9 नवंबर तक कराने होंगे. संसद अपना कार्यकाल पूरा
करती, तो नियमानुसार 12 अक्तूबर तक कराने होते. सरकार चुनाव कराने के लिए थोड़ा
ज्यादा समय चाहती है.
इमरान गिरफ्तार
सनसनी के लिहाज से ज्यादा बड़ी खबर है इमरान
खान को दी गई तीन साल की सज़ा. लगता यह है कि उनकी गति नवाज़ शरीफ जैसी होने वाली
है. उन्हें चुनाव की राजनीति से बाहर किया जा रहा है. वे सेना की मदद से बढ़े थे
और सेना ही उन्हें निपटा रही है. अलबत्ता उनकी पार्टी तहरीके इंसाफ पाकिस्तान की
लोकप्रियता में कमी दिखाई पड़ती नहीं है.
खान साहब का अपराध अदालत की नज़रों में जो भी
रहा हो, असली वजह वही है, जिसने पूर्व प्रधानमंत्रियों शाहिद ख़ाक़ान अब्बासी,
नवाज़ शरीफ, बेनज़ीर भुट्टो और हुसेन शहीद सुहरावर्दी को कुर्सी से हटाया था.
अंतरिम सरकार
संसद भंग करने के पहले अंतरिम सरकार की
नियुक्ति का महत्वपूर्ण कार्य और होना है. 90 दिन की सरकार चलाने के लिए अंतरिम
प्रधानमंत्री के नाम का निर्णय भी संभवतः हो
चुका है. सरकार आखिरी समय में नाम की घोषणा करेगी. पिछले शुक्रवार को सत्तारूढ़
गठबंधन के आठ दलों की बैठक में ज्यादातर पार्टियों ने अपने पसंदीदा नामों की सूची
दे दी थी.
इस बैठक में तीन बातों पर विचार हुआ. संसद को
भंग करने का फैसला, अंतरिम प्रधानमंत्री का नाम और चुनाव 2023 की जनगणना के आधार
पर होंगे. पीएमएल-नून की मुख्य सहयोगी पीपीपी ने तीन नाम दिए हैं, पर नामों को
सार्वजनिक नहीं किया गया है. कुछ पार्टियों ने अंतरिम प्रधानमंत्री का नाम देने के
लिए कुछ समय माँगा, पर संसद भंग करने की तारीख 9 अगस्त पर सबकी सहमति थी.
शहबाज़ शरीफ अब पहले नवाज़ शरीफ से बात करेंगे
और फिर नाम की घोषणा होगी. लगता यह है कि पीएमएल-एन और पीपीपी के बीच नाम को लेकर
सहमति है, पर जानबूझकर उसकी घोषणा नहीं की जा रही है. इसके पहले पीपीपी के नेता
क़मर ज़मां कैरा ने प्रधानमंत्री से मुलाकात करके अंतरिम सरकार की संरचना पर
बातचीत की.
पहले तीन नाम तय होंगे, फिर नेशनल असेंबली में
विपक्ष के नेता राजा रियाज़ अहमद के साथ बैठकर किसी एक नाम का फैसला किया जाएगा.
इन पंक्तियों के प्रकाशित होते समय तक वह फैसला संभवतः हो चुका होगा.
इसबार की अंतरिम सरकार के पास कुछ अधिकार भी
है. हाल में संसद से पास हुए नए कानून के तहत सरकार इस दौरान पहले से चल रहे
द्विपक्षीय या बहुपक्षीय समझौतों या परियोजनाओं पर फैसले कर सकेगी.
तोशाखाना केस
इस्लामाबाद के जिला और सेशन कोर्ट ने तोशाखाना
मामले में इमरान खान को दोषी पाया है. उन्हें
तीन साल की जेल और एक लाख रुपये जुर्माने की सज़ा सुनाई गई, जिसके
बाद उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया. इमरान ख़ान पर आरोप हैं कि प्रधानमंत्री रहते
हुए उन्हें जो भी तोहफ़े दूसरे देशों के राष्ट्राध्यक्षों से मिले थे, उन्हें
उन्होंने बेच दिया, लेकिन इससे मिले धन को उन्होंने अपने दस्तावेज़ों में नहीं
दिखाया.
देश के चुनाव-कानून के तहत हर उम्मीदवार को
अपने आय और व्यय की रिपोर्ट चुनाव आयोग को देनी होती है. उनपर आरोप है कि 2018 से 2022
तक की जो रिपोर्टें उन्होंने चुनाव आयोग में दी है उसमें तथ्यों को छिपाया. यह नहीं
बताया है कि तोहफ़े बेचने से उन्हें कितना लाभ हुआ.
राजनेताओं का अपमान
इसके पहले अक्तूबर 2022 में चुनाव आयोग ने
तोशाखाना मामले में उन्हें पाँच साल के लिए चुनाव लड़ने के अयोग्य क़रार दिया था.
देश का सत्ता प्रतिष्ठान (एस्टेब्लिशमेंट) अर्थात सेना अपने राजनेताओं को अतीत में
जिस बेरहमी से अपमानित करती रही है, इमरान खान भी उसी दशा को प्राप्त हुए हैं.
इसके विपरीत सेना के किसी अधिकारी को आजतक इस
तरह अपमानित नहीं होना पड़ा है, भले ही उसने अपने मौके पर संविधान को उठाकर ताख़
पर रख दिया हो. तकनीकी लिहाज़ से इमरान खान ने चुनाव आयोग के उस नियम का पक्की तरह
से पालन नहीं किया, जिसके अंतर्गत उन्हें उन तोहफ़ों की घोषणा करनी चाहिए थी, जो
उन्हें मिले थे.
उन्हें अदालत ने सबसे कड़ी सज़ा दी है, पर सच
यह है कि तोशाखाने की पुराने रिकॉर्डों को देखा जाए, तो देश के किसी भी बड़े नेता या
अधिकारी को बचाना मुश्किल होगा.
इमरान इस सज़ा के खिलाफ अपील करेंगे और उन्हें
राहत मिल भी जाएगी, पर नुकसान हो चुका है. फिर भी असली फैसला जनता के हाथों में
है. देश में लोकतांत्रिक-व्यवस्था धीरे-धीरे पैर जमा रही है. ऐसा पहली बार हुआ है,
जब जनता के एक वर्ग ने भी सेना के खिलाफ बोलना शुरू किया है.
भारत-पाकिस्तान
शहबाज शरीफ ने गत 1 अगस्त को एक कार्यक्रम में परोक्ष
रूप से भारत के साथ बातचीत की पेशकश करके एक और शिगूफा छोड़ा है. उन्होंने सीधे
तौर पर भारत का नाम नहीं लिया, पर कहा कि दो देश तब तक 'सामान्य
पड़ोसी' नहीं हो सकते, जब
तक कि उनके बीच गंभीर मुद्दों पर शांतिपूर्ण और सार्थक चर्चा नहीं होती.
वे इसके पहले भी एकबार भारत के साथ वार्ता करने
की बात कह चुके हैं, जिसकी सफाई भी उन्हें फौरन देनी पड़ी थी. शहबाज़ शरीफ के बयान
के बाद भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने गुरुवार 3 अगस्त को कहा
कि हमने उनके बयान की खबरें देखी हैं. भारत सभी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध
चाहता है, पर बातचीत शुरू करने के लिए आतंक और शत्रुता से मुक्त माहौल बनाना जरूरी
होगा.
पेशकश का वक्त
शहबाज़ शरीफ की पेशकश और भारत के जवाब में
असामान्य कुछ नहीं है, फिर भी सवाल उठता है कि जब पाकिस्तान सरकार अपना कार्यकाल
पूरा कर रही है, तब भारत से बात करने की पेशकश का मतलब क्या है? फिर भी लगता नहीं कि यह बयान अनायास दिया गया है.
पाकिस्तान के संजीदा विशेषज्ञ भी मानते हैं कि
भारत से रिश्तों को सुधारना पाकिस्तान के हित में है. पिछले सेनाध्यक्ष भी मान रहे
थे. अब सेना का रुख क्या है, पता नहीं. लगता है कि शहबाज़ शरीफ आने वाले वक्त की
पेशबंदी कर रहे हैं. पाकिस्तानी राजनीति में भारत की बात करने से सब डरते हैं,
इसलिए पहेलियों के अंदाज़ में बातें होती हैं.
इस साल जनवरी में शहबाज़ शरीफ ने यूएई के चैनल
अल अरबिया के साथ एक साक्षात्कार में कहा कि हम कश्मीर समेत सभी मुद्दों पर पीएम
नरेंद्र मोदी के साथ गंभीर बातचीत करना चाहते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि भारत के
साथ तीन-तीन युद्ध लड़कर पाकिस्तान ने सबक सीख लिया है. इससे गरीबी, बेरोजगारी और परेशानी के सिवा हमें कुछ नहीं मिला. अब हम शांति चाहते
हैं.
मंगलवार 17 जनवरी को पाकिस्तान के सरकारी टीवी
चैनल पर इस साक्षात्कार के प्रसारण के फौरन बाद प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ से
जारी बयान में कहा गया कि पीएम के बयान को गलत संदर्भ में लिया गया. बातचीत तभी हो
सकती है, जब भारत कश्मीर पर अगस्त, 2019 के फैसले को
वापस ले.
नवाज़ शरीफ की नीति
पाकिस्तान में 2013 के आम चुनावों के पहले
नवाज़ शरीफ ने भारत के साथ बातचीत का इरादा ज़ाहिर किया था. 2014 में मोदी सरकार
की जीत के बाद मई के महीने में हुए शपथ ग्रहण समारोह में वे आए भी थे. भले ही उस
बात का पाकिस्तान में विरोध हुआ था.
इतना ही नहीं, उन्होंने दिल्ली आकर कश्मीर के
अलगाववादियों से मुलाकात भी नहीं की. यह नई बात थी. उसके बाद जुलाई 2015 में रूस
के शहर उफा में मोदी-नवाज वार्ता फिर हुई और तय हुआ कि पहले दोनों देशों के रक्षा
सलाहकारों की बैठक की जाए.
उस साल उम्मीद बनी थी कि हालात सुधरेंगे. दोनों
देशों के विदेश सचिवों की 15 जनवरी 2016 को बातचीत तय थी. दिसंबर 2015 के आखिरी
हफ्ते में नरेंद्र मोदी अफ़ग़ानिस्तान से लौटते वक्त अचानक नवाज शरीफ के परिवार से
मिलने लाहौर गए. इससे माहौल खुशनुमा हुआ, पर पाकिस्तान के प्रतिष्ठान की मर्जी कुछ
और थी. एक हफ्ते बाद ही पठानकोट पर हमला हुआ. उसके बाद उड़ी पर.
टर्न और यू-टर्न
माना जाता है कि दोनों देशों ने फरवरी 2021 में
नियंत्रण रेखा पर गोलीबारी रोकने के लिए सन 2003 के समझौते को पुख्ता तरीके से
लागू करने की जो घोषणा की थी, उसके पीछे भी यूएई की भूमिका थी. यह
बात उन्हीं दिनों अमीरात के वॉशिंगटन स्थित राजदूत युसुफ अल ओतैबा ने कही थी.
फरवरी 2021 में गोलाबारी तो रुकी, साथ ही पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष क़मर जावेद बाजवा का यह बयान भी सामने
आया कि हमें कश्मीर के मसले को पीछे रखकर भारत से बात करनी चाहिए. इमरान खान की
सरकार ने भारत से कपास और चीनी आयात करने का फैसला किया और फिर अगले दिन ही फैसला
रद्द कर दिया. देखना होगा कि पाकिस्तान में भारत को लेकर कोई स्थिर नीति बनी भी है
या नहीं.
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