नोटबंदी के बाद करीब तीन महीने के मंदे के बावजूद लोगों की
उम्मीदें सकारात्मक बदलावों पर टिकी हैं। केंद्र सरकार के लिए सन 2019 के चुनाव के
पहले अगले दो साल के बजट बेहद महत्वपूर्ण हैं। इसबार का बजट पाँच राज्यों के चुनाव
के ठीक पहले है। देखना होगा कि सरकार लोक-लुभावन रास्ता पकड़ेगी या अर्थ-व्यवस्था
को सुदृढ़ करते हुए दीर्घकालीन रणनीति का। चूंकि चुनाव के ठीक पहले बजट आ रहा है
इसलिए सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग की चेतावनियों की तलवार भी उसपर लटक रही है। पर
राजनीति का तकाजा है कि सरकार किसी न किसी रूप में रियायतों का पिटारा खोलेगी। पर देश
को इंतजार उस आर्थिक उछाल का है, जिसमें हमारी समस्याओं का समाधान निहित है।
इस बजट पर नोटबंदी का असर साफ दिखाई देगा। एक तरफ मध्य वर्ग को आयकर में राहत की उम्मीदें हैं। अभी से कहा जा रहा है कि
पाँच लाख तक की आय पर टैक्स में भारी कमी होगी। कई तरह की अटकलें हैं। बैंकों में
बड़ी मात्रा में नकदी आई है। उम्मीद है कि सरकार के पास आयकर का राजस्व बढ़ेगा। दूसरी
ओर करदाताओं की संख्या में काफी वृद्धि नहीं हुई तो नोटबंदी निरर्थक होगी। उम्मीद
है कि यह संख्या बढ़ेगी। यह अर्थ-व्यवस्था के दीर्घकालीन विकास के लिए अच्छी खबर
होगी।
कॉरपोरेट सेक्टर को भी कंपनी कर में कमी की आशा है। सॉफ्टवेयर,
इंफ्रास्ट्रक्चर और ऑटो कंपनियाँ इस साल बेहतर परिणामों की आशा कर रहीं हैं। पिछले
हफ्ते देश के शेयर बाजारों में आठ महीने बाद सबसे ज्यादा रौनक दिखाई दी। निवेशकों
को उम्मीद की किरण दिखाई पड़ रही है। बैंकों की ब्याज दरें कम होने लगीं हैं। यह
क्रम जारी रहा तो आवास और उपभोक्ता सामग्री का बाजार बढ़ेगा। उधर सरकार को लोकप्रियता
और विकास के बीच संतुलन भी बनाना है। सामाजिक कल्याण, सार्वजनिक स्वास्थ्य और
शिक्षा पर क्या निवेश बढ़ेगा?
सरकार जल्द से जल्द आर्थिक गतिविधियों को तेज करना चाहती
है। बजट सत्र 31 जनवरी को शुरू होगा और राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद आर्थिक समीक्षा
पेश कर दी जाएगी। अब तक सत्र के पहले दिन राष्ट्रपति के भाषण के साथ ही संसद की
कार्यवाही दिनभर के लिए स्थगित कर दी जाती थी। इसके अगले दिन यानी 1 फरवरी को आम
बजट पेश किया जाएगा, जो कि आम तौर पर फरवरी के अंतिम दिन पेश किया जाता था।
बजट सत्र का पहला दौर 9 फरवरी तक चलेगा। दूसरा दौर 9 मार्च से 12 अप्रैल के
बीच होगा, जिसमें वास्तविक राजनीति नजर आएगी। 11 मार्च को पाँचों विधानसभाओं के
परिणाम आ जाएंगे।
परंपरा को तोड़कर बजट समय से पहले
ही नहीं आ रहा है, बल्कि कई तरह की उम्मीदें लेकर आ रहा है। दो नई बातें इसबार
हैं। रेल बजट को आम
बजट के साथ मिलाकर पेश किया जा रहा है। दूसरी तरफ जीएसटी की तैयारियां जोर-शोर से
चल रही हैं। कई तरह के सवाल हैं। नोटबंदी के बाद अब क्या होगा, जीएसटी क्या समय से लागू हो
पाएगा, आयकर में छूट मिलेगी, कॉरपोरेट टैक्स कम होगा, रेलवे की दशा सुधरेगी, खेती
में क्या सुधार होगा, विनिर्माण के क्षेत्र में स्थितियाँ सुधरेंगी, विदेशी निवेश
बढ़ेगा और क्या स्टार्टअप्स के बारे में सरकार नए कार्यक्रम लाएगी?
एकमुश्त सवालों के जवाब 1 फरवरी को
मिलेंगे। इस बार बजट में
खर्चे का हिसाब किताब भी अलग तरीके से पेश किया जाएगा। सरकार ने योजना और
गैर-योजनागत व्यय के बीच के अंतर को खत्म करने का फैसला किया है। इसकी जगह पूँजीगत
और राजस्व व्यय पेश किया जाएगा। इससे पता लगाना आसान होगा कि कितना पैसा वाकई
विकास पर खर्च होगा।
इस बजट का असर समूची अर्थ-व्यवस्था
पर पड़ेगा। बहरहाल देखना यह है कि नोटबंदी से राजस्व आय में कोई वृद्धि हुई या
नहीं। इसका सीधा रिश्ता राजकोषीय घाटे से भी है। यदि सरकार के पास पर्याप्त धनराशि
होगी तो इंफ्रास्ट्रक्चर में वह पैसा लगा सकती है, जिससे रोजगार के दरवाजे
खुलेंगे। अक्तूबर 2016 में अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष ने वैश्विक आर्थिक परिदृश्य पर अपनी रिपोर्ट में
संभावना व्यक्त की थी कि 2016-17 में भारत की अर्थ-व्यवस्था 7.6 प्रतिशत की दर से विकसित होगी।
विश्व बैंक ने भारत से उम्मीद
जाहिर की है कि वह अपनी कर प्रणाली में सुधार करे और सब्सिडी को कम करे ताकि
इंफ्रास्ट्रक्चर, शिक्षा और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए संसाधन उपलब्ध हो सकें। फिलहाल नोटबंदी
के बाद विश्व बैंक ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट में चालू वित्त वर्ष में जीडीपी वृद्धि
अनुमान घटाकर 7 फीसदी कर दिया है। भारत सरकार और रिजर्व बैंक के अनुमान भी 7.1 प्रतिशत हैं। सवाल है कि क्या
नोटबंदी के सकारात्मक परिणाम कब और किस रूप में मिलेंगे। इसका 31 जनवरी को पेश
होने वाली आर्थिक समीक्षा में मिलेगा।
विश्व बैंक ने कहा है कि नोटबंदी
से मध्यम अवधि में बैंकिंग प्रणाली में नकदी में बढ़ोतरी होगी जिससे कर्ज दर में
कमी आने में मदद मिलेगी और आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा। इसमें यह भी कहा
गया है कि नोटबंदी को लागू करने से अन्य आर्थिक सुधारों जैसे वस्तु एवं सेवा कर
(जीएसटी),
श्रम और भूमि सुधारों को नुकसान पहुंच सकता है। पर ये नुकसान अस्थायी हैं।
पिछले साल सितंबर तक देश में 21 अरब डॉलर से ज्यादा का प्रत्यक्ष विदेशी पूँजी निवेश हुआ था, जो 2015 के मुकाबले 30 फीसदी ज्यादा था। इस निवेश में सेवा क्षेत्र, टेलीकम्युनिकेशंस और
व्यापार पर जोर है। निर्माण क्षेत्र के लिए बड़े स्तर पर निवेश की जरूरत है। सरकार
ने रक्षा के क्षेत्र में काफी छूट देने की घोषणाएं की हैं। अब 2017-18 में कुछ बड़े कार्यक्रमों की घोषणा हो सकती है। रोजगार सृजन के लिए हमें बड़े
निवेशों का इंतजार है।
नोटबंदी के बाद वित्तमंत्री ने कहा
था कि अप्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष टैक्सों में वृद्धि हुई है। चूंकि अब काफी राशि
‘ऑडिट ट्रेल’ में आ गई है, इसलिए उम्मीद रखनी चाहिए कि इस साल
आयकर जमा करने वालों की संख्या बढ़ेगी। एक्साइज ड्यूटी भी बढ़नी चाहिए। ये बातें
बजट पूर्व आर्थिक समीक्षा में दिखाई पड़ेंगी। जिस दूसरी आर्थिक परिघटना पर नजर
रखने की जरूरत है, वह है जीएसटी। नोटबंदी से व्यापारियों को काफी परेशानी हुई, पर यदि जीएसटी ठीक
से लागू हो जाए तो उसका टैक्स के चक्कर में दफ्तरों में भागना कम होगा। पर जीएसटी
के परिणाम फौरन नहीं मिलेंगे। इसके लिए हमें कम से कम दो साल का इंतजार करना होगा।
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