बजट सत्र का उत्तरार्ध शुरू होने के ठीक पहले मुलायम सिंह ने माँग की है कि यूपीए सरकार को चलते रहने का नैतिक अधिकार नहीं है। उधर मायावती ने लोकसभा के 39 प्रत्याशियों की सूची जारी की है। दोनों पार्टियाँ चाहेंगी तो चुनाव के नगाड़े बजने लगेंगे। उधर टूजी मामले पर बनी जेपीसी की रपट कांग्रेस और डीएमके के बाकी बचे सद्भाव को खत्म करने जा रही है। कोयला मामले में सीबीआई की रपट में हस्तक्षेप करने का मामला कांग्रेस के गले में हड्डी बन जाएगा। संसद का यह सत्र 10 मई को खत्म होगा। तब तक कर्नाटक के चुनाव परिणाम सामने आ जाएंगे। भाजपा के भीतर नरेन्द्र मोदी को लेकर जो भीतरी द्वंद चल रहा है वह भी इस चुनाव परिणाम के बाद किसी तार्किक परिणति तक पहुँचेगा। राजनीति का रथ एकबार फिर से ढलान पर उतरने जा रहा है।
एक महीने के ब्रेक के बाद राजनीतिक गतिविधियाँ फिर से संसद भवन
में वापस आ रही हैं। चूंकि कर्नाटक में चुनाव प्रचार का यह समय है इसलिए काफी बातें
उसके मद्देनज़र होंगी। चुनाव परिणाम आते-आते सत्रावसान होगा और शायद अगले लोकसभा चुनाव
का परिदृश्य बनने लगे। ऐसा न भी हो तब भी एनडीए और यूपीए की आमने-सामने की जोर आजमाइश
के अलावा दोनों गठबंधनों के भीतरी टकराव भी सामने आएंगे। सरकार के सामने कुछ विधेयकों
को पास कराने की चुनौती है। इसके अलावा टूजी पर संयुक्त संसदीय समिति की रपट गले की
हड्डी बनने वाली है। इन सब बातों के पहले पाँच साल की गुड़िया का मामला एक बड़ी चुनौती
बनकर सामने आने वाला है। देखते ही देखते दिसम्बर वाला माहौल फिर से पैदा हो गया है।
यूपीए अपने सामाजिक कार्यक्रमों और कैश ट्रांसफर योजना के सहारे नैया पार कराना चाहती
है। एनडीए के पास फिलहाल नकारात्मक एजेंडा है। यानी सरकार की छवि। वह जितना बिगड़ेगी
उतना अच्छा।
एक अरसे से टलते आ रहे भूमि अधिग्रहण विधेयक पर अपेक्षाकृत व्यापक
सहमति बन गई है। इस विधेयक को इसी सत्र में पास कराने का मतलब है औद्योगिक विकास के
लिए बुनियादी इंतज़ामात का रास्ता साफ हो जाएगा।
इससे महीने भर के गतिरोध के बाद विधेयक को संसद के बजट सत्र में ही पेश कर पारित
कराने का रास्ता साफ हो गया। सरकार के सामने आर्थिक विकास की दर को बढ़ाने की चुनौती
है। इसके लिए उदारीकरण से जुड़े विधेयकों को संसद से पास कराने का काम भी होना है।
पिछले हफ्ते मुद्रास्फीति की दर 6 फीसदी से नीचे चली गई, सोने की कीमतें गिरनेलगीं
और सेंसेक्स में उठान शुरू हो गया है। अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में तेल की कीमतें गिरीं
हैं और डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत गिरी है। इधर यूरोपीय यूनियन के साथ मुक्त व्यापार
की पहल के कारण आर्थिक विकास की सम्भावनाएं और बेहतर हुईं हैं। यूरोपीय यूनियन के सामने
भारत का विशाल उपभोक्ता बाजार है और भारत को यूरोप में पेशेवर सेवा क्षेत्र खुलने का
भरोसा है। इसके साथ ही वस्त्र उद्योग के लिए यूरोप का बड़ा बाज़ार मिलने की सम्भावनाएं
हैं। भारत का वस्त्र कारोबार रोजगार पैदा करने का सबसे प्रभावशाली क्षेत्र है। भारत
और यूरोपीय यूनियन के बीच फ्री ट्रेड एग्रीमेंट की कोशिश हो रही है। हालांकि यह बातचीत
शुरूआती दौर में है। 27 देशों का यह यूनियन भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का सबसे
बड़ा क्षेत्र है। सन 2011 में यूरोपीय यूनियन के साथ हमारा 103 अरब डॉलर का कारोबार
हुआ। दोनों पक्ष 2013 तक इसे बढ़ाकर 200 अरब
डॉलर तक ले जाना चाहते हैं। एफटीए होने पर भारत के इंजीनियरों तथा अन्य पेशेवरों को
यूरोप में काफी काम मिलेगा।
पिछले साल के अंत में सरकार ने निवेश के रास्ते में आने वाली
अड़चनों को दूर करने के लिए बड़ी परियोजनाओं को जल्द मंजूरी देने को लेकर मंत्रिमंडल
की निवेश समिति गठित करने को मंज़ूरी दी थी। साथ ही औद्योगीकरण को बढ़ावा देने के लिए
भूमि अधिग्रहण विधेयक के मसौदे को भी मंजूरी दी थी, पर विपक्ष को साथ लाए बगैर यह काम
सम्भव नहीं है। क्या सरकार इस कानून को संसद में पास करा पाएगी? यही सवाल बीमा और पेंशन कानूनों को लेकर है। कांग्रेस के भीतर काफी लोगों को लगता
है कि यह बिल पास हो गया तो पार्टी की पकड़ ग्रामीण इलाकों में अच्छी हो जाएगी। पिछले
हफ्ते सर्वदलीय बैठक के बाद संसदीय कार्य मंत्री कमलनाथ और लोकसभा में विपक्ष की नेता
सुषमा स्वराज ने कहा कि भूमि अधिग्रहण विधेयक पर सहमति बन गई है। सरकार भाजपा की इस
मांग पर सहमत हो गई है कि भूमि अधिग्रहण के बजाय डेवलपर को लीज पर दिया जाए ताकि भूमि
का स्वामित्व किसान के पास ही रहे और उसे नियमित वार्षिक आय होती रहे। राज्यों के लिए
इसमें प्रावधान होगा कि वे इस बारे में कानून बनाएं। भूमि को लीज पर देना या लेना राज्य
का विषय है।
राजनीतिक सहमति के बावज़ूद उद्योग जगत इसमें नए जोड़े गए प्रस्तावों
से सहमत नहीं। फिक्की का कहना है उद्योग जगत के लिए जमीन हासिल करने में और देरी होगी।
अब तीन से पांच वर्षो के भीतर किसी भी परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण करना मुश्किल
होगा। फिर कम से कम 80 फीसदी लोगों की सहमति का प्रावधान भी बड़ी मुसीबत खड़ी करेगा। अगर 80 फीसदी परिवारों का कोई भी एक सदस्य अगर खिलाफ हुआ तो काम लटक जाएगा। भारत में
इस समय ज़मीन के दाम दुनिया में सबसे ज्यादा हैं। शहरों में प्रॉपर्टी की कीमत असाधारण
रूप से बहुत ज्यादा है। ज़मीन के दाम बढ़ने से भूस्वामियों को तो लाभ होगा, पर गाँवों में आधी से ज्यादा आबादी भूमिहीनों की है। उनके लिए रोज़गार के अवसर
बढ़ेंगे या घटेंगे,
यह समझने की बात है। ऐसे उद्योग लगें जिनमें स्थानीय मज़दूरों
को काम मिले तो रोज़गार बढ़ सकता है, पर यदि प्रशिक्षित
और कुशल लोगों को ही काम मिलेगा तो इसके दुष्प्रभाव भी सामने आएंगे। आर्थिक उदारीकरण
की नीतियों को तेजी से लागू करने के कारण सरकारी अलोकप्रियता बढ़ी है। इसलिए सरकार
अब दूसरे विकल्पों की ओर जाएगी। उसके पास खाद्य सुरक्षा का प्रस्ताव भी है। यह विधेयक
बजट सत्र के पहले दौर में पेश होना था। शायद अब उसे पास कराने का प्रयास किया जाए।
बजट सत्र के दूसरे चरण की शुरूआत के ठीक पहले 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन की जांच करने वाली संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की रपट लीक
हो गई। इस रपट के तीन महत्वपूर्ण बिन्दु हैं। इसमे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्तमंत्री
पी चिदम्बरम को क्लीन चिट है। इसके लिए जिम्मेदार ए राजा को माना गया है। इसमें यह
भी कहा गया है कि 1.76 लाख करोड़ के राजस्व हानि की कहानी भी गलत है। इसमें यह भी कहा
गया है कि एनडीए शासन में टेलीफोन कम्पनियों को दी गई छूट के कारण 42 हजार करोड़ के
राजस्व की हानि हुई थी। यानी टूजी का ठीकरा विपक्ष के सिर पर फोड़ने की भूमिका बन गई
है। पर क्या यह रपट अंतिम रूप से पास हो पाएगी? यह रपट का
प्रारूप है रपट नहीं। सम्भावना है कि 25 अप्रेल को जेपीसी की बैठक में इसे पास कराने
की कोशिश की जाएगी। विपक्ष का कहना है कि यह कांग्रेसी दस्तावेज़ है। उधर जेपीसी अध्यक्ष
पीसी चाको का कहना है कि यह रपट तथ्यों पर आधारित और निष्पक्ष है। बहरहाल शोर के एक
और दौर के लिए तैयार रहिए।
सतीश आचार्य का कार्टून |
हिन्दू में सुरेन्द्र का कार्टून |
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