पाँच राज्यों के विधानसभा चुनावों में अपेक्षित सफलता पाने के बावजूद सरकार के
सामने अब सबसे बड़ी चुनौती आर्थिक होगी. हाल में केंद्रीय सांख्यिकीय संगठन
(सीएसओ) ने जब अर्थ-व्यवस्था के नवीनतम आँकड़े जारी किए तब कुछ लोगों की
प्रतिक्रिया थी कि आँकड़ों में हेरे-फेर है. वैश्विक रेटिंग एजेंसी फिच ने अक्टूबर-दिसंबर
तिमाही के लिए 7 प्रतिशत जीडीपी वृद्धि दर को ‘चौंकाने वाला’ बताया. इससे पिछली तिमाही में यह दर 7.4 प्रतिशत थी.
एजेंसी को उम्मीद है कि भारत की जीडीपी वृद्धि 2016-17 में 7.1 प्रतिशत रहेगी जो
2017-18 और 2018-19 दोनों वित्त वर्ष में बढ़कर 7.7 प्रतिशत तक हो जाएगी.
हालांकि सीएसओ के आँकड़ों पर किसी को आपत्ति नहीं है, पर विशेषज्ञों को लगता
है कि इन आँकड़ों में नोटबंदी का असर नजर नहीं आ रहा है. फिच ने कहा कि लगता है कि
सरकारी आंकड़े नोटबंदी के नकारात्मक प्रभाव को शामिल नहीं कर पाए हैं. देश के
सामने इस वक्त बड़ी चुनौती असंगठित क्षेत्र पर पड़े दुष्प्रभावों को दूर करने की
है. फिच के अनुसार इंफ्रास्ट्रक्चर पर सरकार के भारी निवेश और सरकारी कर्मचारियों
के वेतन में वृद्धि के साथ लोगों की खर्च योग्य आय में वृद्धि से अब अर्थ-व्यवस्था
में तेज गति से वृद्धि होने की उम्मीद है.
पूर्व वित्तमंत्री पी चिदम्बरम को लगता है कि सरकार अपेक्षित वृद्धि को
प्राप्त करने में विफल रही है. उन्होंने सीएसओ के पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद्
डॉक्टर प्रणब सेन और मौजूदा मुख्य सांख्यिकीविद् डॉ. टीसीए अनंत के दृष्टिकोण में
अंतर का उल्लेख करते हुए कहा है कि डॉ सेन इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि आंकड़े अपूर्ण
हैं और संभावना यही है पूरे साल के लिए वृद्धि दर पुनरीक्षित या संशोधित होगी और यह
नीचे जाकर साढ़े छह फीसद हो जाएगी. संवृद्धि की दर सात से नीचे जाएगी या नहीं, यह
राजनेताओं की चिंता का विषय ज्यादा है. इससे यह निष्कर्ष निकाला जाएगा कि नोटबंदी
ने देश का भला किया या नुकसान.
सरकार की सबसे बड़ी जरूरत पूँजी निवेश है. बैंकों की दशा खराब है और स्वदेशी
पूंजीपति आगे आने की हिम्मत नहीं दिखा रहे हैं. मोदी सरकार देश के भीतर और बाहर
अपनी छवि को लेकर संवेदनशील है. वह रेटिंग एजेंसियों से बेहतर रेटिंग की मांग कर
रही है ताकि विदेशी निवेश बढ़े. सरकार ने अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी मूडीज़ से
बाकायदा लॉबीइंग की. पर मूडीज़ ने रेटिंग नहीं बढ़ाई. उसने भारत पर चढ़े विदेशी
कर्ज और बैंकों की दुर्दशा पर चिंता व्यक्त करते हुए अपग्रेड से इनकार कर दिया है.
पिछले दो साल से भारत दुनिया की सबसे तेज गति से बढ़ती अर्थ-व्यवस्था है.
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मामले में भी वह अब सबसे आगे आ गया है. फिर भी ये
एजेंसियाँ अभी आश्वस्त नहीं हैं. भारत का सकल राजस्व जीडीपी का 21 फीसदी है, जो मूडीज़ के बीएए-रेटेड देशों के औसत राजस्व 27.1 फीसदी से कम है. भारत की
रेटिंग बीएए3 है. इस रेटिंग के कारण भारत को बॉण्ड निवेशकों का लाभ नहीं मिल पाता
है. यदि इससे एक ऊपर की रेटिंग मिले तो उसे पूँजी प्राप्त करने में आसानी हो.
सरकार ने 2016 के शुरु में दावा किया था कि विकास दर 7.6 फीसद रहेगी. अब यह
लक्ष्य इस साल पूरा नहीं होने वाला. पर अगले वित्त वर्ष में बेहतरी की काफी
उम्मीदें हैं. सबसे बड़ी उम्मीदें औद्योगिक उत्पादन को लेकर, पर खुशहाली की खबरें
खेत-खलिहानों से आती हैं. खाद्यान्न उत्पादन को लेकर दूसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक
फसल वर्ष 2016-17 के दौरान देश में रिकॉर्ड 27.198 करोड़ टन खाद्यान्न उत्पादन
होगा. गेहूं, चावल, दलहन, मोटे अनाज और तिलहन का उत्पादन
पिछले सभी रिकॉर्ड को पार कर सकता है.
सूखे के कारण पिछले साल अन्न उत्पादन घटकर 25.157 करोड़ टन हुआ था. जबकि 2013-14
में 26.50 करोड़ टन अनाज देश में पैदा हुआ था. इस साल 10.88 करोड़ टन चावल के उत्पादन का अनुमान है, जो
पिछले साल 10.44 करोड़ टन था. इस साल 9.66 करोड़ टन गेहूं उत्पादन का अनुमान है.
सन 2015-16 में 9.22 करोड़ टन गेहूं पैदा हुआ था. इस साल दलहन की भी रिकॉर्ड पैदावार
2.21 करोड़ टन का अनुमान है. पिछले साल 1.63 करोड़ टन दलहन का उत्पादन हुआ था. दालों
की खपत 2.3 से 2.4 करोड़ टन है, जिसके कारण हमें इनका आयात करना पड़ता है. इस साल
3.36 करोड़ टन तिलहन पैदा होने की उम्मीद है. पिछले साल 2.52 करोड़ टन तिलहन पैदा
हुआ था. कपास का उत्पादन भी बढ़ेगा, पर गन्ने का उत्पादन घटने का अनुमान है.
किसान की खुशहाली देश की खुशहाली के रूप में दिखाई पड़ती है. अगले महीने नया
गेहूँ बाजार में आने लगेगा. वैश्विक कृषि उत्पादन पर अमेरिकी कृषि मंत्रालय भी नजर
रखता है. उसका अनुमान है कि भारत में 9.66 करोड़ टन नहीं 9.56 करोड़ टन गेहूँ का
उत्पादन होने की आशा है. व्यापारी मानते हैं कि भले ही गेहूं उत्पादन बढ़ेगा, फिर भी
20 से 30 लाख टन गेहूं का आयात हमें करना होगा. पिछले साल करीब 50 लाख टन गेहूँ का
आयात हुआ था.
अर्थ-व्यवस्था की स्थिरता के लिहाज से नया वित्त वर्ष मोदी सरकार के लिए सबसे
महत्त्वपूर्ण है. इसके अगले साल वह कड़वे कदम उठाने से बचेगी, क्योंकि वह चुनाव के
पहले का साल होगा. राजकोषीय घाटे को काबू में लाने की कोशिश के बावजूद सरकार ने इस
बार इंफ्रास्ट्रक्चर पर 3,96,135 करोड़ रुपये का आबंटन किया है. इतने बड़े स्तर पर निर्माण पर निवेश पहले
कभी नहीं हुआ. सड़क परिवहन और जहाजरानी मंत्री नितिन गडकरी का कहना है कि निजी
क्षेत्र निवेश के लिए आगे नहीं आएगा तब भी भारत इस साल इंफ्रास्ट्रक्चर के नए
प्रतिमान स्थापित करेगा.
कारोबारी गतिविधियों के लिहाज से अब जीएसटी को 1 जुलाई से लागू करने का बड़ा
काम बाकी है. जीएसटी परिषद ने प्रस्तावित दो प्रमुख विधेयकों के अंतिम मसौदे को
मंजूरी दे दी है. संसद के इसी सत्र में इन्हें पास किया जाना है. देखने की जरूरत
है कि अर्थ-व्यवस्था की गाड़ी अब किस तरह से गति पकड़ेगी.
inext में प्रकाशित
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