जयललिता
के निधन के बाद तमिलनाडु की राजनीति में पहला सवाल अद्रमुक की सत्ता-संरचना को
लेकर है। यानी कौन होगा उसका नेता? कैसे चलेगा उसका संगठन और सरकार?
फिलहाल ओ पन्नीरसेल्वम को मुख्यमंत्री बनाया गया है। सवाल है क्या वे
मुख्यमंत्री बने रहेंगे? पार्टी संगठन का सबसे बड़ा पद
महासचिव का है। अभी तक जयललिता महासचिव भी थीं। एमजीआर और जयललिता दोनों के पास
मुख्यमंत्री और महासचिव दोनों पद थे। अब क्या होगा?
ऐसे
तमाम सवाल हैं। इनमें ही एक सवाल यह भी है कि क्या अद्रमुक और कांग्रेस का गठबंधन
होगा, जिसकी पिछले कुछ महीनों से उम्मीदें काफी बढ़ गईं थीं। हालांकि औपचारिक रूप
से कांग्रेस और डीएमके का गठबंधन कायम है, पर वह पूरी तरह टूटता नजर आ रहा है।
इसका संकेत हाल में तब मिला जब राहुल गांधी ने अस्पताल जाकर जयललिता का हाल-चाल
पूछा और करुणानिधि से मुलाकात भी नहीं की।
राहुल
की अम्मा से मुलाकात के बाद डीएमके ने कहा, बीमार तो करुणानिधि भी रहे हैं, पर
राहुल गांधी ने कभी उनका हाल-चाल पूछने की जरूरत नहीं समझी। यह तब है जब दोनों
पार्टियों का औपचारिक गठबंधन है, जो अभी तक टूटा नहीं है। डीएमके की अप्रसन्नता के
बाद कांग्रेस के नव-नियुक्त अध्यक्ष एस तिरुनवुक्करसार ने कहा, बीमार नेता का
हालचाल पूछने जाना नेहरू परिवार की परंपरा है। उन्होंने कहा कि 1984 में जब एमजीआर
बीमार थे, तब इंदिरा गांधी उन्हें देखने आईं थीं। उन्होंने एमजीआर को अमेरिका इलाज
के लिए ले जाने के वास्ते विमान की व्यवस्था भी की थी। इतना ही नहीं एमजीआर के
निधन के बाद राजीव गांधी ने जयललिता की मदद की, जिसके कारण वे राजनीति में वापस आ
सकीं।
तमिलनाडु
कांग्रेस के नए अध्यक्ष एस तिरुनवुक्करसार इसके पहले अद्रमुक के साथ भी जुड़े रहे
हैं। ऐसा माना जा रहा है कि पी चिदंबरम खेमे के नेताओं के साथ उनके अच्छे रिश्ते
हैं और वे अद्रमुक के साथ रिश्ते बेहतर बनाने के उद्देश्य से ही लाए गए हैं। दोनों
पार्टियों के बीच बेहतर रिश्ते बनाने की इच्छा शायद दोनों तरफ से है। कांग्रेस की
दिलचस्पी फिलहाल प्रदेश की राजनीति में नहीं है। प्रदेश में अद्रमुक के पास
पर्याप्त बहुमत है। उसे भी कांग्रेस की जरूरत नहीं है।
राजनीतिक
दृष्टि से अद्रमुक के पास लोकसभा में 37 सदस्य हैं और राज्यसभा में 12। कांग्रेस
की रणनीति फिलहाल बीजेपी पर दबाव बनाकर रखने की है ताकि 2019 के लोकसभा चुनाव में
हिसाब चुकता किया जा सके। तमिलनाडु में अम्मा की खास छवि है। सन 2014 के लोकसभा
चुनाव में जहाँ तकरीबन पूरे देश के वोटर ने नरेंद्र मोदी के पक्ष में अपना झुकाव
जाहिर किया, तमिलनाडु के वोटर ने ‘अम्मा को वोट दिया था।
सवाल
है कि अम्मा के निधन के बाद क्या स्थितियाँ बदल नहीं जाएंगी?
कांग्रेस और अद्रमुक के बीच यदि गठबंधन की कोई बात चल भी रही थी, तो क्या अब भी
वैसा ही होगा? खासतौर से तब जब अद्रमुक संगठन और सरकार के भविष्य
का ठिकाना नहीं है? सवाल यह भी है कि कांग्रेस को यदि अम्मा के साथ
गठबंधन में लाभ था तो अद्रमुक को बदले में क्या मिलता?
जयललिता
के खिलाफ आय से अधिक सम्पत्ति का मामला अब भी चल रहा है। यह मामला डीएमके सरकार के
विजिलेंस विभाग ने शुरू किया था। बाद में यह मामला कर्नाटक चला गया। वहाँ के
हाईकोर्ट के फैसले के बाद उसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील कर्नाटक सरकार ने की
है। कर्नाटक की कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री इस मामले में मदद कर सकते हैं। अब
जब जयललिता ही नहीं रहीं तब अद्रमुक की क्या दिलचस्पी हो सकती है?
यह
दिलचस्पी अब भी संभव है। खासतौर से तब जब पार्टी पर अम्मा की मित्र शशिकला का
नियंत्रण होने की संभावना है। जयललिता के खिलाफ चल रहे मामले में शशिकला के अलावा
उनके दो संबंधी भी शामिल हैं। पर शशिकला के सामने मोदी से हाथ मिलाने का विकल्प भी
है। इस मुकदमे से बचाने में मोदी सरकार बेहतर मददगार होगी या कर्नाटक की कांग्रेस
सरकार? पिछले कुछ दिनों में अम्मा से कांग्रेस के नेताओं ने
संपर्क किया और बीजेपी नेताओं ने भी किया.
जयललिता के अस्पताल में भरती होने के बाद गुलाम नबी आजाद, पी. चिदंबरम और मुकुल वासनिक के जरिए पार्टी ने अद्रमुक के साथ संपर्क बनाया.
राहुल गांधी स्वयं उनका हाल पूछने गए। बीजेपी के अमित शाह, अरुण जेटली और वेंकैया
नायडू अम्मा से अस्पताल में मिलकर आए थे। अम्मा के अंतिम संस्कार के लिए नरेंद्र
मोदी खुद चेन्नै गए थे। भाजपा दक्षिण में पैर जमाना चाहती है। अद्रमुक इसमें मदद
कर सकती है।
क्या
शशिकला कांग्रेस और बीजेपी के साथ मोल-भाव करेंगी। मोदी सरकार को भी राज्यसभा में अद्रमुक
का समर्थन चाहिए। सवाल है कि शशिकला को बचाने में कौन बेहतर मददगार होगा? बीजेपी या कांग्रेस?
पर उससे पहले अद्रमुक की भीतरी सत्ता-संरचना का स्पष्ट होना भी जरूर है। क्या
शशिकला का वर्चस्व बना रहेगा? अलबत्ता इतना साफ है कि अद्रमुक पर
डोरे डालने में कांग्रेस आगे है।
इस
साल हुए तमिलनाडु विधानसभा के चुनाव के बाद कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष तमिलनाडु ईवीकेएस इलंगोवन ने पार्टी के खराब प्रदर्शन की जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा
दे दिया था। इस्तीफे का तात्कालिक कारण यह था कि पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कांग्रेस
की पराजय को लेकर अपनी नाराजगी जाहिर की थी। पर अब समझ में आता है कि पार्टी ने
डीएमके का साथ छोड़कर जयललिता के साथ
जयललिता
की बीमारी के वक्त डीएमके ने माँग की थी कि बीमार मुख्यमंत्री के फोटो जारी किए
जाने चाहिए। और यह भी कहा था कि एक अंतरिम मुख्यमंत्री की नियुक्ति की जाए।
कांग्रेस ने खुद को दोनों माँगों से अलग रखा। वस्तुतः दोनों दलों के रिश्ते 2013
के बाद से खराब ही चल रहे हैं। 2014 का लोकसभा चुनाव दोनों दलों ने अलग-अलग लड़ा,
पर 2016 के विधानसभा चुनाव में दोनों का गठबंधन हो गया, जिसकी इच्छा शायद दोनों
तरफ से नहीं थी।
एक अरसे से कांग्रेस तमिलनाडु में डीएमके से खुद को अलग रख रही है। कांग्रेस
हाईकमान ने तमिलनाडु में अपने नेताओं को स्पष्ट निर्देश दिया था कि जयललिता के
स्वास्थ्य को लेकर उठाए जा रहे किसी तरह के सवाल और विवाद से खुद को अलग रखें। पन्नीरसेल्वम
को मुख्यमंत्री के सभी विभागों का कामकाज सौंपने के राज्यपाल के फैसले पर न तो कोई
सवाल उठाएं और ना अम्मा की राजनीतिक विरासत को लेकर कयास से जुड़ा कोई बयान दें।
अम्मा
के चले जाने के बाद उम्मीद है कि पार्टी को हमदर्दी का लाभ मिलेगा। पर यह तभी
होगा, जब अद्रमुक बची रहेगी। देखना यह है कि अद्रमुक के भीतर का शक्ति संतुलन किस
करवट बैठता है। पार्टी का सामूहिक नेतृत्व किस प्रकार काम करेगा और इनका समन्वय
कैसे होगा? ऐसे तमाम सवाल बाकी हैं।
फिलहाल
ज्यादा बड़ा सवाल यह है कि अद्रमुक, कांग्रेस के साथ जाएगी या बीजेपी के साथ?
जयललिता के अंतिम संस्कार के समय आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ शशिकला के
पति एम नटराजन की मुलाकात भी कराई गई थी। नटराजन को और शशिकला के पूरे परिवार को
जयललिता ने अपने अनुग्रह से बाहर कर दिया था। पर परिवार की वापसी हो रही है।
राज्य
में जयललिता की अनुपस्थिति का सबसे बड़ा फायदा डीएमके लेना चाहेगी। विधान सभा चुनाव में अद्रमुक को 234 में से 137 सीटें
मिलीं और डीएमके को केवल 89, पर वोट प्रतिशत में दोनों के बीच केवल एक फीसदी का
अंतर ही था। पर यह पार्टी भी अंतर्विरोधों से घिरी हुई है। करुणानिधि 93 साल के हो चुके
हैं। उनके उत्तराधिकारी के रूप में एमके स्टालिन का उभार हुआ है, पर परिवार में
झगड़े हैं।
ऐसे
में कांग्रेस और बीजेपी दोनों की परीक्षा है। राज्य के दूसरे दल भी देख रहे हैं कि
जयललिता के जाने के बाद बने राजनीतिक स्पेस में उन्हें कितना स्थान मिलेगा। छोटे
दल अपने आधार का विस्तार करने की कोशिश करेंगे। इनमें पीएमके (पत्ताली मक्काल
काची), वाइको की एमडीएमके और विजयकांत की डीएमडीके शामिल हैं। अद्रमुक के साथ
कांग्रेस और बीजेपी की गोटी नहीं बैठी तो इन दलों के साथ बैठाने की कोशिश भी हो
सकती है।
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