अमेरिकी मीडिया के कयास के विपरीत डोनाल्ड ट्रम्प का जीतना कुछ लोगों को विस्मयकारी लगा, जिसकी जरूरत नहीं है। अमेरिकी चुनाव की प्रक्रिया ऐसी है कि ज्यादा वोट जीतने वाला भी हार सकता है। यदि वे हार भी जाते तो उस विचार की हार नहीं होती, जो इस चुनाव के पीछे है। लगभग कुछ दशक की उदार अमेरिकी व्यवस्था के बाद अपने राष्ट्रीय हितों की फिक्र वोटर को हुई है। कुछ लोग इसे वैश्वीकरण की पराजय भी मान रहे हैं। वस्तुतः यह अंतर्विरोधों का खुलना है। इसमें किसी विचार की पूर्ण पराजय या अंतिम विजय सम्भव नहीं है। अमेरिका शेष विश्व से कुछ मानों में फर्क देश है। यह वास्तव में बहुराष्ट्रीय संसार है। इसमें कई तरह की राष्ट्रीयताएं बसती हैं। हाल के वर्षों में पूँजी के वैश्वीकरण के कारण चीन और भारत का उदय हुआ है। इससे अमेरिकी नागरिकों के आर्थिक हितों को भी चोट लगी है। ट्रम्प उसकी प्रतिक्रिया हैं। क्या यह प्रतिक्रिया गलत है? गलत या सही दृष्टिकोण पर निर्भर है। पर यह प्रतिक्रिया अस्वाभाविक नहीं है। दुनिया के ऐतिहासिक विकास की यह महत्वपूर्ण घड़ी है। अमेरिकी चुनाव की खूबसूरती है कि हारने के बाद प्रत्याशी विजेता को समर्थन देने का वायदा करता है और जीता प्रत्याशी अपने आप को उदार बनाता है। ट्रम्प ने चुनाव के बाद इस उदारता का परिचय दिया है। अमेरिकी प्रसासनिक व्यवस्था में राष्ट्रपति बहुत ताकतवर होता है, पर वह निरंकुश नहीं हो सकता। अंततः वह व्यवस्था ही काम करती है।
अमेरिका में राष्ट्रपति पद का जैसा चुनाव इस बार हुआ है,
वैसा कभी नहीं हुआ। दोनों प्रत्याशियों की तरफ से कटुता चरम सीमा पर थी। अल्ट्रा
लेफ्ट और अल्ट्रा राइट खुलकर आमने-सामने थे। डोनाल्ड ट्रम्प के बारे में अभी कुछ
भी कहना मुश्किल है, सिवाय इसके कि वे धुर दक्षिणपंथी और राष्ट्रवादी राष्ट्रपति
साबित होंगे। पर सबसे बड़ा खतरा यह है कि उनके ही कार्यकाल में अमेरिका की
अर्थ-व्यवस्था पहले नम्बर से हटकर दूसरे नम्बर की बनने जा रही है।
पश्चिम में इस वक्त कई तरह के संग्राम चल रहे हैं। इस्लामिक
स्टेट एक है, सीरिया अपने आप में अलग मोर्चा है, इसरायल में हमस और हिज़्बुल्ला
तीसरी समस्या हैं, यमन में संग्राम है, इराक जल रहा है और अफगानिस्तान में तालिबान
अपनी गतिविधियाँ बढ़ा रहा है। रूस, चीन, ईरान और पाकिस्तान का एक नया गुट वैश्विक
परिदृश्य पर उभर कर आ रहा है। यानी ट्रम्प के सामने समस्याएं ही समस्याएं हैं।
सही या गलत ट्रम्प को अमेरिकी जनता
के एक वर्ग का, खासकर गोरी आबादी का जबर्दस्त समर्थन था। उनके पास हिलेरी क्लिंटन
के मुकाबले आधे संसाधन भी नहीं थे, फिर भी वे जीतकर आए। वे लड़-भिड़कर आए हैं और
उनके व्यक्तित्व की भारत के नरेन्द्र मोदी के साथ तुलना की जाती है। यह सिर्फ
संयोग नहीं कि उनका नारा था, ‘अबकी बार ट्रम्प सरकार।’ यह नारा उन्हें अमेरिकी भारतवंशियों ने दिया था। वे नरेंद्र मोदी को ‘महान शख्सियत’ बता चुके
हैं। साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि
मैं ‘हिंदुओं का बड़ा प्रशंसक हूँ।’ भारत और इसके पड़ोसियों के बारे में जो कुछ
ट्रम्प ने कहा है,
उनसे संकेत मिलता
है कि वे भारत-अमेरिका संबंधों को घिसे-पिटे ढर्रे में से बाहर निकालेंगे।
हालांकि सामान्यतः चुनाव में
प्रचार की भाषा और राष्ट्रपति चुन जाने के बाद व्यक्ति की बोली में फर्क होता है।
ट्रम्प की भाषा में यह अंतर आना शुरू हो गया है। चुनाव जीतने के बाद उन्होंने कहा
है, जिन कुछ लोगों ने मुझे समर्थन नहीं दिया, मैं उनसे भी मदद लेने की पेशकश
करता हूँ जिससे अमेरिका एक बेहतरीन देश बन सके। फिर भी मौसम परिवर्तन, आव्रजन,
व्यापार और विदेश नीति को लेकर उनके विचार खासे विवादास्पद हैं।
सवाल है कि भारत, रूस, चीन और
यूरोपीय संघ के बरक्स उनकी नीति क्या होगी? ट्रम्प वैश्विक व्यापार समझौतों में बराक ओबामा के
मुकाबले ज्यादा कड़ा रुख अख्तियार करेंगे। पर भारत के साथ अमेरिका के रिश्ते बेहतर
होंगे। यों भी रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रपति भारत के लिए ज्यादा मुफीद होते हैं।
ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद तेल की राजनीति पर और ज्यादा प्रभाव पड़ेगा और
लगता है कि तेल की कीमतें और गिरेंगी। ट्रम्प ने रूसी राष्ट्रपति पुतिन के तौर-तरीकों की तारीफ
की है। उन्होंने कहा है कि मैं रूसी नेता के साथ करीबी रिश्ते चाहता हूँ।
आतंकवाद पर रूस-अमेरिका के एक साथ आकर लड़ने से वैश्विक स्तर
पर इस दानव से निपटने में मदद मिलेगी। साथ ही रूस का चीन की तरफ बढ़ रहा झुकाव भी
रुकेगा। ट्रम्प के आगमन से दुनिया भर की अर्थ-व्यवस्थाओं में आमूल बदलाव आएगा। भारत
का ट्रम्प की जीत में फायदा है क्योंकि अमेरिका को चीन का विकल्प खोजना होगा, जो
भारत ही है। पिछले 15 साल में अमेरिकी कारखानों में 50 लाख नौकरियों की कमी आई है, जबकि इसी दौरान चीन में उत्पादन बढ़ा है।
ट्रम्प अमेरिकावादी हैं। अपना हित सोचते हैं। ट्रम्प ने
चुनाव अभियान दौरान वायदा किया है कि मैं अमेरिका के हाथों से गई नौकरियों को वापस
लाऊँगा। उनका कहना है कि भारत और चीन ने अमेरिकी लोगों के रोजगार चुरा लिए हैं। वे
एच-बी1 वीजा को कठिन बनाने और उसपर भारी शुल्क लगाने की बात कर रहे हैं। अमेरिका
आठ लाख से ज्यादा वीजा जारी करता है। इनमें 70 फीसदी से ज्यादा भारतीयों को मिलते
हैं। व्यावहारिक सच यह है कि अमेरिकी कॉरपोरेट जगत को भारतीय कर्मचारियों की जरूरत
है। वहाँ की कम्पनियाँ चाहती हैं कि भारत के लोगों को काम मिले।
भारत-अमेरिका कारोबार को 2020 तक 500 अरब अमेरिकी डॉलर तक
ले जाने का लक्ष्य है जो अभी 100 अरब डॉलर के आसपास है। भारत और चीन के
बीच 70 अरब डॉलर के आसपास का कारोबार होता है। यदि हम अमेरिका की ओर रुख करेंगे तो
हमें अपने उद्योगों का विकास करने का मौका भी मिलेगा। हमें अमेरिकी से उन्नत तकनीक
चाहिए और निवेश भी ताकि जल्द से जल्द ‘मेक इन इंडिया’ को सफल बनाया जा सके।
इस लिहाज से ट्रम्प का आगमन स्वागत योग्य है। जेनरिक दवाओं के कारोबार में भारत
सबसे आगे है। हमें अमेरिका का बाजार चाहिए। हमारी ‘स्मार्ट सिटी परियोजना’ के लिए भी
अमेरिका का नया प्रशासन मददगार होगा।
अमेरिका इस वक्त भारत का सबसे बड़ा रक्षा सप्लायर बन गया है।
हमें जल्द से जल्द अपने पैरों पर भी खड़े होना है। भारत की कोशिश है कि अमेरिकी
कम्पनियाँ भारत में अपने कारखाने लगाकर यहाँ से निर्यात करें। ट्रम्प की नीति चीन
से उद्योगों को वापस लाने की होगी, ताकि अमेरिकी लोगों को रोजगार मिले। इस व्यापार
युद्ध से चीन को जो भी नुकसान होगा, उससे भारत को फायदा होगा। दक्षिण एशिया में अमेरिका की
मौजूदगी से क्षेत्रीय शक्ति संतुलन को उसके पक्ष में बनाए रखने में मदद मिलेगी। ट्रम्प
पाकिस्तान की आर्थिक मदद के भी विरोधी हैं।
चीन और पाकिस्तान कई दशकों से अमेरिका को सोने के अंडे देने
वाली मुर्गी के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। चीन में अमेरिकी कम्पनियों के निवेश
से आर्थिक उछाल आया था। चीन में बना माल अमेरिका और यूरोपीय देशों को निर्यात होता
है। अमेरिका और चीन के बीच व्यापार में 2015 में 366 अरब डॉलर का चीनी सरप्लस था। इसी
तरह पाकिस्तान ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के नाम पर 2002 से अब तक अमेरिका से 30
अरब डॉलर से भी ज्यादा बड़ी रकम वसूली है। चीनी अर्थ-व्यवस्था जब गिरावट की
ओर है, ट्रम्प का आगमन उसके लिए खराब समाचार है। पर हमारे लिए यह अच्छी खबर है।
inext में प्रकाशित
खूबसूरती के साथ प्रस्तुत एक ज्ञानवर्द्धक विश्लेषण। वैसे ट्रम्प क्या सिद्ध होंगे, यह अभी भविष्य के गर्भ में है। सबको इसका इन्तज़ार तो रहेगा ही।
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