पिछले साल सोलहवीं लोकसभा के पहले सत्र
में नई सरकार की ओर से राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के अभिभाषण में बदलते भारत का नक्शा पेश किया गया था। नरेंद्र
मोदी के आलोचकों ने तब भी कहा था और आज भी कह रहे हैं कि यह एक राजनेता का सपना
है। इसमें परिकल्पना है, पूरा करने की तजवीज नहीं। देश में एक सौ स्मार्ट सिटी का
निर्माण, अगले आठ साल में हर परिवार को पक्का मकान, डिजिटल
इंडिया, गाँव-गाँव तक ब्रॉडबैंड पहुँचाने का वादा और हाई स्पीड ट्रेनों के हीरक
चतुर्भुज तथा राजमार्गों के स्वर्णिम चतुर्भुज के अधूरे पड़े काम को पूरा करने का
वादा वगैरह। सरकार की योजनाएं कितनी व्यावहारिक हैं या अव्यावहारिक हैं इनका पता
कुछ समय बाद लगेगा, पर तीन योजनाएं ऐसी हैं जिनकी सफलता या विफलता हम अपनी आँखों
से देख पाएंगे। ये हैं आदर्श ग्राम योजना, डिजिटल इंडिया और अब 100 स्मार्ट सिटी।
पिछले हफ्ते सरकार ने 100 में से 98
स्मार्ट सिटी बनाने की घोषणा की है। जम्मू कश्मीर ने अपने राज्य के दो शहरों के
नाम की घोषणा करने के लिए कुछ समय माँगा है। वे नाम आने के बाद इन शहरों की संख्या
100 हो जाएगी। अब सवाल है कि ये शहर वास्तव में स्मार्ट बन पाएंगे या नहीं? दूसरा
सवाल, बाकी शहर क्या स्मार्ट नहीं बनेंगे? भारत के 28
राज्यों और सात केन्द्र शासित क्षेत्रों में 638 जिले हैं। हर जिले में तीन-चार
शहर या कस्बे मान लें तो देशभर में ढाई से तीन हजार शहर हैं। इस बीच कुछ बड़े गाँव
छोटे कस्बों के रूप में उभर कर सामने आएंगे। इनमें सुविधाओं की दशा क्या है, यह हम
सब जानते हैं। ज्यादातर शहरों की पहचान कूड़े के ढेर और गंदी बस्तियों के रूप में
है। अगले दस से बीच वर्षों में हमारा देश इस विस्तार को और तेजी से होते देखेगा,
क्योंकि जनसंख्या का विस्तार भी अगले दो-तीन दशक तक होगा, जिसके बाद वह स्थिर हो
जाएगा।
एक तरफ भारत का खेतिहर समाज से औद्योगिक
समाज में रूपांतरण और दूसरी तरफ हैं पर्यावरण के सामने खड़े खतरे। नागरिक सेवाओं
का विस्तार और नई तकनीक के साथ कदम मिलाने की चुनौतियाँ सब एक साथ हमारे सामने
हैं। इनसे घबराने के बजाय इनका सामना करने की जरूरत है। इस लिहाज से स्मार्ट सिटी
की पहल का स्वागत करना चाहिए। पर उसके पहले समझना चाहिए कि यह योजना क्या है। पिछले
साल जब पहली बार इस योजना का नाम सामने आया तब देश में शौचालय क्रांति लाने वाले
बिंदेश्वर पाठक ने एक इंटरव्यू में कहा कि पहले सरकार को शौचालय बनवाने चाहिए और
फिर पैसे बचे तो स्मार्ट सिटी। सवाल है कि क्या शौचालय बना लेने के बाद स्मार्ट
सिटी बनाने का काम शुरू किया जाए? क्या विकास के कार्यक्रमों को तैयार करते
समय हमें सीढ़ियाँ बनाकर चढ़ना होगा? देश में 11 करोड़ से
ज्यादा घरों में शौचालय नहीं हैं। क्यों नहीं हैं? इसके दो
कारण हैं। एक साधन नहीं हैं, दूसरे समझ नहीं है। इसके लिए जिस सामाजिक जागरूकता की
जरूरत है। उसे विकसित करने के लिए भी कोई मॉडल हमारे पास होना चाहिए।
स्मार्ट सिटी शब्द स्मार्टफोन या स्मार्ट-हाउस
जैसा लगता है। पर भारत सरकार की निगाह में स्मार्ट सिटी क्या है? शहरी
विकास मंत्रालय के अवधारणा पत्र के अनुसार देश में शहरी आबादी 31 फीसदी है, जिसकी देश की जीडीपी में हिस्सेदारी 60 फीसदी से ज्यादा है। अगले 15 साल
में शहरी आबादी की जीडीपी में हिस्सेदारी 75 फीसदी होगी। सरकार की परियोजना तीन
बुनियादी बातों पर केंद्रित है। एक, जीवन स्तर, दो, निवेश और तीन, रोजगार। किफायती
घर हो, जिसमें पानी और बिजली चौबीसों घंटे मिले। आसपास
शिक्षा और चिकित्सा की सुविधा हो। मनोरंजन और खेल की व्यवस्था हो। सुरक्षा का पूरा
इंतजाम हो। आसपास के इलाकों से अच्छी और तेज कनेक्टिविटी हो, परिवहन व्यवस्था ठीक
हो। अच्छे स्कूल और अस्पताल भी मौजूद हों।
इनके मानक भी सोचे गए हैं। मसलन स्मार्ट
सिटी के अंदर एक जगह से दूसरी जगह तक जाने में यात्रा की अवधि 45 मिनट से ज्यादा न
हो। सड़कों के साथ कम से कम 2 मीटर चौड़े फुटपाथ हों। रिहायशी इलाकों से 800 मीटर
की दूरी या 10 मिनट पैदल चलने पर सार्वजनिक परिवहन सुविधा हो। 95 फीसदी रिहायशी इलाके
ऐसे हों जहां 400 मीटर से भी कम दूरी पर स्कूल, पार्क और पार्क मौजूद हों। साथ
ही 20 फीसदी मकान आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए हों। झुग्गी बस्तियों को रोकने
के लिए यह व्यवस्था बेहद जरूरी है। 100 फीसदी घरों में बिजली कनेक्शन हों। शहर की
बिजली का कम से कम 10 फीसदी वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत से हो। अस्सी फीसदी मकान ग्रीन,
यानी पर्यावरण मित्र हों। लागत में नुकसान न हो। यानी कोई बिजली-पानी चोरी न कर
पाए। प्रति व्यक्ति कम से कम 135 लीटर पानी दिया जाए।
ये शहर तकनीक के लिहाज से अत्याधुनिक
होंगे। 100 फीसदी घरों तक वाई फाई कनेक्टिविटी हो। 100 एमबीपीएस की स्पीड पर वाई
फाई पर मिले। हर 15 हजार लोगों पर एक डिस्पेंसरी हो। एक लाख की आबादी पर 30
बिस्तरों वाला छोटा अस्पताल, 80 बिस्तरों वाला मीडियम अस्पताल और 200
बिस्तरों वाला बड़ा अस्पताल हो। हर 2500 लोगों पर एक प्री-प्राइमरी, हर 5000 लोगों पर एक प्राइमरी, हर 7500 लोगों पर एक
सीनियर सेकंडरी और हर एक लाख की आबादी पर पहली से 12वीं क्लास तक का एक इंटीग्रेटेड
स्कूल हो। सवा लाख की आबादी पर एक कॉलेज हो। दस लाख की आबादी पर एक यूनिवर्सिटी,
एक इंजीनियरिंग कॉलेज, एक मेडिकल कॉलेज,
एक प्रोफेशनल कॉलेज और एक पैरामेडिकल कॉलेज हो।
केंद्र सरकार ने 98 स्मार्ट सिटी की जो लिस्ट
जारी की है, उसमें सबसे पहले राज्यों ने अपने शहर चुने। राज्यों की सूची एक
विशेषज्ञ समिति के पास भेजी गई, जिसने सूची को अंतिम रूप दिया। जिन 98 शहरों के
नामों का ऐलान हुआ है,
उनमें 20 शहरों का विकास पहले दौर में होगा। बाकी का विकास दूसरे और
तीसरे दौर में किया जाएगा। स्मार्ट सिटी के लिए चुने गए हर शहर को पहले साल 200
करोड़ और उसके बाद चार साल तक हर साल सौ-सौ करोड़ रुपये मिलेंगे। अभी अक्तूबर तक इन
शहरों के प्रस्ताव पेश किए जाएंगे। आशा है कि इनमें से 20 शहरों का काम उसके बाद
शुरू हो जाएगा। इसके बाद 2016 और 2017 में दूसरी और तीसरी सूची जारी की जाएगी। इस प्रोजेक्ट
पर 48 हजार करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। इसके लिए एक विशेष उद्देश्य निगम (स्पेशल
परपज़ वेहिकल) बनाया गया है।
भारत का यह प्रयोग अपने किस्म का अनोखा
है। शायद दुनिया में अपने किस्म का सबसे बड़ा प्रयोग है। घोषणा के बावजूद इन शहरों
के शक्ल लेने का इंतजार करना होगा। चीन में पिछले तीन दशक में बढ़े औद्योगिक शहरों
का विकास किया गया है। उनका अनुभव हमारे पास है। देखना यह है कि यह कितनी व्यावहारिक
होती है। भविष्य के शहर में बिजली के ग्रिड से लेकर सीवर पाइप, सड़कें,
कारें और इमारतें हर चीज़ नेटवर्क से जुड़ी होगी। इमारत अपने आप
बिजली बंद करेगी, कारें
खुद अपने लिए पार्किंग ढूंढेंगी। यहां तक कि कूड़ेदान भी स्मार्ट होगा। ये शहर
पर्यावरण के लिहाज से भी सुरक्षित होंगे। कहना मुश्किल है कि हम किस स्तर की तकनीक
को इन शहरों में शामिल करने जा रहे हैं।
आशा है कि ये शहर संस्कृति विहीन नहीं
होंगे, इनमें कला दीर्घाएं होंगी, थिएटर होंगे और पुस्तकालय
भी होंगे, जो तकनीक के जरिए सीधे नागरिक से जुड़े होंगे।
भारत जैसे देश में जहाँ शहरीकरण अपने शुरुआती दैर में है, इसका
मतलब है नई तकनीक और सुविधाओं से लैस आधुनिक शहर। एक शहर, जो
अपने निवासियों को पूरी सहूलियत, सुविधाएं और अवसर दे पाए,
वही सिटी स्मार्ट है। सिद्धांततः इनमें समावेशी विकास के अवसर भी
होंगे। झुग्गी-झोपड़ियाँ नहीं होंगी। पानी, बिजली की बरबादी
नहीं होगी। अक्षय ऊर्जा, डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक तकनीक का
ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल होगा।
दुनिया में एम्स्टर्डम (हॉलैंड), बार्सिलोना
(स्पेन), स्टॉकहोम (स्वीडन), सुवान और
सोल (द कोरिया), वॉटरलू, ओंटारियो और
कैलगैरी (कनाडा), न्यूयॉर्क, ला ग्रेंज
और जॉर्जिया (यूएसए), ग्लासगो ( स्कॉटलैंड, यूके), ताइपेह (ताइवान), मिताका
(जापान) और सिंगापुर जैसे शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने की कोशिशें हों रही हैं।
स्मार्ट सिटी में पर्याप्त बिजली, पानी, आवास, परिवहन, स्वास्थ्य
सेवाएं तथा रोज़गार होंगे। स्मार्ट शहर सड़कों के कुशल इस्तेमाल को बढ़ा सकते हैं।
वे लोगों को सड़कों पर कार अथवा अन्य किसी वाहन के बजाय पैदल यात्रा अथवा साइकिल से
चलने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। व्यक्तिगत वाहनों को हतोत्साहित करके दक्षिण
कोरिया की राजधानी सोल ने सड़कों के विस्तार पर रोक लगाई है। बार्सिलोना में ऐसी
एकीकृत प्रणाली बनाई गई है ताकि यात्रा की दूरी कम से कम हो।
सुन्दर व सार्थक रचना ..
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...
बहुत अच्छी अौर विस्तृत जानकारी । एकदम सहज सरल ढंग से पूरी बात समझाने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद !
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