Wednesday, November 5, 2025

बदलती भू-राजनीति और भारत-अमेरिका-चीन त्रिकोण


अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के बयानों और टैरिफ को लेकर भारत और अमेरिका के बीच चलती तनातनी के दौरान दो-तीन घटनाएँ ऐसी हुई हैं, जो इस चलन के विपरीत हैं.

एक है, दोनों देशों के बीच दस साल के रक्षा-समझौते का नवीकरण और दूसरी चाबहार पर अमेरिकी पाबंदियों में छह महीने की छूट. इसके अलावा दोनों देश एक व्यापार-समझौते पर बात कर रहे हैं, जो इसी महीने होना है.

इन बातों को देखते हुए पहेली जैसा सवाल जन्म लेता है कि एक तरफ दोनों देशों के बीच आर्थिक-प्रश्नों को लेकर तीखे मतभेद हैं, तो सामरिक और भू-राजनीतिक रिश्ते मजबूत क्यों हो रहे हैं? उधर अमेरिका और चीन का एक-दूसरे के करीब आना भी पहेली की तरह है.

डॉनल्ड ट्रंप और शी चिनफिंग के बीच मुलाकात के बाद कुछ दिनों के भीतर  अमेरिकी युद्धमंत्री (या रक्षामंत्री) पीट हैगसैथ ने रविवार को बताया कि उन्होंने चीन के रक्षामंत्री एडमिरल दोंग जून से मुलाकात की और दोनों ने आपसी संपर्क को मजबूत करने और सैनिक-चैनल स्थापित करने पर सहमति व्यक्त की है.

Thursday, October 30, 2025

आगे जाता आसियान और पिछड़ता सार्क


हाल में दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया को लेकर दो तरह की खबरें मिली थीं, जिनसे दो तरह की प्रवृत्तियों के संकेत मिलते हैं। आसियान-भारत शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्चुअल तरीके से और विदेशमंत्री एस जयशंकर स्वयं उपस्थित हुए थे। इस मौके पर प्रधानमंत्री ने कम्युनिटी विज़न 2045 को अपनाने के लिए आसियान की सराहना की। कम्युनिटी विज़न 2045 अगले बीस वर्षों में इस क्षेत्र को एक समेकित समन्वित विकास-क्षेत्र में तब्दील करने की योजना है।

अपने आसपास के राजनीतिक माहौल को देखते हुए यह ज़ाहिर होता जा रहा है कि भारत को पूर्व की दिशा में अपनी कनेक्टिविटी का तेजी से विस्तार करना होगा। यह विस्तार हो भी रहा है, पर म्यांमार की अस्थिरता और बांग्लादेश की अनिश्चित राजनीति के कारण कुछ सवाल खड़े हो रहे हैं। दक्षिण-पूर्व एशिया के पाँच देशों (कंबोडिया, लाओस, म्यांमार, थाईलैंड और वियतनाम) के साथ सांस्कृतिक और वाणिज्यिक संबंधों को बढ़ावा देने वाले गंगा-मीकांग सहयोग कार्यक्रम में हमें तेजी लानी चाहिए।

अब उस दूसरी खबर की ओर आएँ, जो इस सिलसिले में महत्वपूर्ण है। भारत के सरकारी स्वामित्व वाले भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) ने गत 22 अक्तूबर से अपने पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए बांग्लादेश से इंटरनेट बैंडविड्थ का आयात बंद कर दिया। इस कदम का सीधा असर पूर्वोत्तर की इंटरनेट कनेक्टिविटी पर पड़ेगा, जो अभी तक बांग्लादेश अखौरा बंदरगाह के माध्यम से आयातित बैंडविड्थ पर निर्भर थी।

यह फैसला अचानक नहीं हुआ है। पिछले साल दिसंबर में बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने हसीना सरकार के उस फैसले को पलट दिया, जिसमें भारत के पूर्वोत्तर को बैंडविड्थ की आपूर्ति के लिए बांग्लादेश को ट्रांज़िट पॉइंट के रूप में उपयोग करने की अनुमति दी गई थी। बांग्लादेश टेलीकम्युनिकेशंस रेग्युलेटरी कमीशन (बीटीआरसी) का कहना था कि भारत को ट्रांज़िट पॉइंट देने से क्षेत्रीय इंटरनेट हब बनने की हमारी क्षमता कमज़ोर हो जाएगी।

भारत का पूर्वोत्तर पहले घरेलू फाइबर ऑप्टिक नेटवर्क का उपयोग करके चेन्नई में समुद्री केबलों के माध्यम से सिंगापुर से जुड़ा हुआ था। चूंकि चेन्नई में लैंडिंग स्टेशन पूर्वोत्तर से लगभग 5,500 किमी दूर है, इसलिए इंटरनेट की गति पर असर पड़ता था।

Wednesday, October 29, 2025

रूसी तेल पर पाबंदियाँ और भारत-अमेरिका रिश्ते


रूस पर दबाव बढ़ाने के लिए उसकी दो सबसे बड़ी तेल कंपनियों और 34 सहायक कंपनियों पर अमेरिका ने जो प्रतिबंध लगाए हैं, उनका असर भारत पर भी पड़ेगा. कोई भी बैंक, जो इन कंपनियों के तेल की खरीद में मदद करेगा, उसे अमेरिकी वित्तीय प्रणाली से अलग किया जा सकता है.

रोज़नेफ्ट और लुकॉइल नामक इन कंपनियों से भारत की दो कंपनियाँ (रिलायंस और नायरा) तेल खरीदती रही हैं. रिलायंस का रोज़नेफ़्ट से क़रार था और नायरा में भी रोज़नेफ़्ट की हिस्सेदारी है. रिलायंस ने प्रतिबंधों को स्वीकार करने के साथ भारत सरकार के साथ खड़े होने की प्रतिबद्धता भी व्यक्त की है.

उधर भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता निर्णायक मोड़ पर है. लगता है कि दोनों देशों ने कुछ पत्ते दबाकर रखे हैं, जिनके सहारे मोल-तोल चल रहा है. इस दौरान अमेरिका यह संकेत भी दे रहा है कि दोनों के रिश्तों में बिगाड़ नहीं है.

ट्रंप इस हफ्ते दक्षिण पूर्व और पूर्व एशिया की यात्रा पर आए हैं. मलेशिया, जापान और दक्षिण कोरिया में वे रुकेंगे. उनकी चीन के शी जिनपिंग के साथ बैठक होगी. बुधवार को बुसान में इस बैठक के बाद अमेरिका और तीन के बीच की रस्साकशी के परिणाम सामने आएँगे, साथ ही अमेरिका के एशिया पर प्रभाव की असलियत का पता भी लगेगा. 

ट्रंप साबित करना चाहेंगे कि अमेरिका का अब भी दक्षिण पूर्व एशिया में बोलबाला है, जहाँ बीजिंग का दबदबा बढ़ रहा है. उम्मीद थी कि उनकी और पीएम मोदी की मुलाकात कुआलालंपुर में आसियान शिखर सम्मेलन में होगी, पर मोदी वहाँ नहीं गए. ज़ाहिर है कि भारत सरकार, अमेरिका के साथ निकटता दिखाने से बच रही है.

अन्य प्रतिबंध

रूस की सैन्य क्षमताओं को कम करने के उद्देश्य से विमान उपकरण और सेमीकंडक्टर जैसे उच्च तकनीक वाले उत्पादों के रूस को निर्यात पर रोक भी लगाई गई है.  

ये निर्यात प्रतिबंध उन वस्तुओं पर भी लागू होंगे, जिनका उत्पादन अन्य देश अमेरिकी तकनीक का उपयोग करके करते हैं. अमेरिकी वित्तमंत्री स्कॉट बेसेंट ने कहा कि ‘युद्ध को ख़त्म करने से इनकार’ की वजह से प्रतिबंध जरूरी हैं.

अमेरिका ने यह कार्रवाई अकेले नहीं की है, बल्कि उसके सहयोगियों ने भी की है. पिछले हफ्ते ब्रिटेन ने भी इन्हीं दोनों कंपनियों पर प्रतिबंध लगाए थे. यूरोपियन यूनियन ने भी प्रतिबंध लगाए हैं.

Saturday, October 25, 2025

पीयूष पांडे और हिन्दुस्तान अखबार

महिला प्रेस क्लब के लॉन की इस तस्वीर में बाएँ से अनिता सिंह, संजय अभिज्ञान, प्रमोद जोशी, मृणाल जी, गैबी श्मिट और जसनीत बिंद्रा। 
विज्ञापन गुरु पीयूष पांडे के निधन की खबर आने के बाद मेरे मन में उनसे एक या दो मुलाकातों की याद ताज़ा हो गई, जब 2008 में हिन्दुस्तान अखबार के दूसरे रिलॉन्च के सिलसिले में हमारी कंपनी ने उनकी सहायता ली थी। उसके तहत उन्होंने एक टीवी विज्ञापन तैयार किया था, जिसके साथ एक गीत बजता था, अब हिन्दुस्तान की बारी है, क्या पूरी तैयारी है?’ उन दिनों हमारे यहाँ इस गीत की कॉलर ट्यून भी बनाई गई थी।

हालाँकि उस समय तक सोशल मीडिया का भारत में उदय हो चुका था, पर कम से कम मैं उसमें बहुत सक्रिय नहीं था और अफसोस इस बात का है कि मैंने उस विज्ञापन को रिकॉर्ड करके नहीं रखा। बहरहाल आज मैंने यूट्यूब पर उसे सर्च किया, पर मिला नहीं। इसके बाद मैंने गूगल के सर्च इंजन पर सवाल डाला कि क्या आपको हिन्दुस्तान अखबार का विज्ञापन गीत की जानकारी है?

इसपर जवाब मिला, विज्ञापन गीत के लिए यह जानना ज़रूरी है कि आप किस विशेष विज्ञापन के बारे में पूछ रहे हैं, क्योंकि हिन्दुस्तान अखबार के कई विज्ञापन अभियान चले हैं और उनके विज्ञापन गीत भी अलग-अलग हैं। हालांकि, उनका एक लोकप्रिय और यादगार अभियान था, जिसका गीत इस प्रकार था: "तरक्की का नया हिन्दुस्तान, नए विचारों का हिन्दुस्तान।"

Wednesday, October 22, 2025

फ्रांचेस्का ऑर्सीनी के प्रवेश पर रोक


हिंदी की अग्रणी विद्वान और लंदन विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज (एसओएएस) की प्रोफेसर एमेरिटा फ्रांचेस्का ऑर्सीनी के देश में प्रवेश करने से रोक लगाने की कार्रवाई चिंता पैदा कर रही है। एक अखबार की रिपोर्ट के अनुसार गृह मंत्रालय के एक अधिकारी का दावा है कि उनकी पिछली यात्राओं के दौरान ‘वीज़ा शर्तों का उल्लंघन’ ही उन्हें देश में प्रवेश देने से इनकार करने का आधार है। इस विषय में सरकार को जल्द से जल्द पूरी जानकारी सामने रखनी चाहिए।

यह बात समझ में नहीं आती। वे साधारण महिला नहीं हैं। यदि वीज़ा को लेकर कोई तकनीकी दिक्कत थी, तो उसका पता इस तरह से अचानक नहीं लगना चाहिए था। अभी तक ऑर्सीनी की ओर से कोई बात सामने नहीं आई है, पर जो भी हुआ है, वह दुखद और निंदनीय है। वापस जाने वाली फ्लाइट में सवार ऑर्सीनी से कोई टिप्पणी नहीं मिल पाई, लेकिन द वायर ने पहले उनके हवाले से कहा था कि उन्हें दिल्ली एयरपोर्ट पर रोके जाने का कोई कारण नहीं बताया गया। उन्होंने कहा, ‘मुझे निर्वासित किया जा रहा है। मुझे बस इतना ही पता है।’

ऑर्सीनी के पति पीटर कोर्निकी, जो कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में जापानी भाषा के एमेरिटस प्रोफेसर और ब्रिटिश अकादमी के फैलो हैं। उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस से पुष्टि की कि ऑर्सीनी हांगकांग से दिल्ली आई थीं और उन्हें हांगकांग वापस भेज दिया गया। उन्होंने कहा कि इसके पीछे कोई कारण नहीं बताया गया।

वीज़ा उल्लंघन के आरोपों के बारे में पूछे जाने पर, उन्होंने कहा कि उन्हें ‘इन मामलों की कोई जानकारी नहीं है।’ यह पूछे जाने पर कि क्या उन्होंने हाल में भारत में किसी सम्मेलन में भाग लिया है, उन्होंने कहा कि उन्हें ऐसी किसी भी बात की जानकारी नहीं है। मूल रूप से इटली की रहने वाली ऑर्सीनी ने हिंदी में स्नातक की पढ़ाई पूरी की, बाद में उन्होंने दिल्ली में केंद्रीय हिंदी संस्थान और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अध्ययन किया।


ऑर्सीनी ने 'द हिंदी पब्लिक स्फीयर 1920-1940: लैंग्वेज एंड लिटरेचर इन द एज ऑफ नेशनलिज्म' नामक पुस्तक लिखी है, जो 2002 में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस द्वारा प्रकाशित हुई थी और यह उनके पीएचडी के दौरान एसओएएस में किए गए शोध का हिस्सा थी। इस पुस्तक में उन्होंने पत्रिकाओं और साहित्य के माध्यम से उन दशकों के राष्ट्रवाद के संदर्भ में हिंदी भाषा का परीक्षण किया है। इसका हिंदी में अनुवाद नीलाभ ने किया है, जिसका वाणी ने 2011 में प्रकाशन किया। मुझे थोड़ी हैरत हुई कि इस दौरान हिंदी के लेखक भी अंगरेजी किताब का ज़िक्र कर रहे हैं, हिंदी पुस्तक का नहीं। मुझे नहीं लगता कि इसे अंगरेजी में भी हिंदी वालों ने ज्यादा पढ़ा है, बहरहाल।  

ऑर्सीनी 2013-14 में हार्वर्ड विश्वविद्यालय के रैडक्लिफ संस्थान में फैलो थीं। उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय और एसओएएस में अध्यापन किया, और संस्थान के साथ तीन दशकों से अधिक समय तक जुड़े रहने के बाद, 2021 में वहाँ से सेवानिवृत्त हुईं।

उनका भारत से चार दशक से भी ज़्यादा पुराना नाता रहा है, उन्होंने यहीं हिंदी का अध्ययन किया है। वे समकालीन और मध्यकालीन हिंदी साहित्य की विद्वान हैं। उनका ज़्यादातर साहित्य मौखिक है, इसलिए वे लोगों से बातचीत करती थीं, जानकारी इकट्ठा करती थीं और विद्वानों से मिलती थीं। उन्होंने कई विद्वानों का मार्गदर्शन भी किया है और ग्रंथों का अनुवाद भी किया है। यह उनकी सामान्य वार्षिक यात्राओं में से एक थी,’ दिल्ली विश्वविद्यालय के एक प्रोफ़ेसर और ऑर्सीनी के एक मित्र ने नाम न बताने की शर्त पर बताया।