दो दिन बाद पेश होने वाले आम बजट से देश के अलग-अलग वर्गों को कई तरह की उम्मीदें हैं। महामारी से घायल अर्थव्यवस्था को मरहम लगाने, बेहोश पड़े उपभोक्ता उद्योग को जगाने, गाँवों से बाहर निकलती आबादी को रोजगार देने और पाँच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था को तैयार करने की चुनौती वित्तमंत्री के सामने है। अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष में संवृद्धि 9.2 प्रतिशत रहेगी। नॉमिनल संवृद्धि 18 प्रतिशत के आसपास रहेगी, जबकि पिछले बजट में 14 प्रतिशत का अनुमान था। इस साल का कर-संग्रह भी अनुमान से कहीं बेहतर हुआ है। इन खुश-खबरों के बावजूद अर्थव्यवस्था के बुनियादी सुधार के सवाल सामने हैं।
गरीबों को संरक्षण
पहली निगाह ग्रामीण और
सोशल सेक्टर पर रहती है। एफएमसीजी सेक्टर चाहता है कि सरकार
लोगों के हाथों में पैसा देना जारी रखे, खासकर गाँवों में।
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत किसानों को अभी 6 हजार रुपये सालाना
रकम दी जाती है। संभव है कि इस राशि को बढ़ा दिया जाए। मनरेगा और खेती से जुड़ी
योजनाओं के लिए आबंटन बढ़ सकता है, जो ग्रामीण उपभोक्ताओं का क्रय-शक्ति बढ़ाएगा। महामारी से शहरी गरीब ज्यादा प्रभावित हुए
हैं। लॉकडाउन ने कामगारों की रोजी छीन ली। रेस्तरां, दुकानों, पार्लरों, भवन निर्माण आदि से
जुड़े कामगारों की सबसे ज्यादा। छोटी फ़र्मों और स्वरोजगार वाले उपक्रमों में
रोजगार खत्म हुए हैं। संभव है कि सरकार शहरी गरीबों के लिए पैकेज की घोषणा करे।
डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर, कौशल विकास,
रोजगार-वृद्धि, मझोले और छोटे उद्योगों की सहायता उपभोक्ता-सामग्री की माँग बढ़ाने
जैसी घोषणाएं इस बजट में हो सकती हैं।
मध्यवर्ग की उम्मीदें
मध्यवर्ग को आयकर से जुड़ी उम्मीदें रहती हैं। वे
स्टैंडर्ड डिडक्शन की सीमा बढ़ने का इंतजार कर रहे हैं। ज्यादातर लोग घर से काम कर
रहे है। उनका बिजली, इंटरनेट, मकान किराए, फर्नीचर आदि का खर्च बढ़
गया है। वे किसी रूप में टैक्स छूट की उम्मीद कर रहे हैं। जीवन बीमा और स्वास्थ्य
बीमा से जुड़ी सुविधाएं और उसपर जीएसटी कम करने की माँग भी है। पीपीएफ में निवेश
की अधिकतम सीमा को 1.5 लाख रुपये से बढ़ाकर 3 लाख रुपये करने का सुझाव भी है। ग्रोथ
के इंजन को चलाए रखने में मध्यवर्ग की सबसे बड़ी भूमिका है। क्या सरकार उसे खुश कर
पाएगी?
बदला माहौल
वैक्सीनेशन की गति बढ़ने से माहौल बदला है और उपभोक्ता की दिलचस्पी भी बढ़ी है। उम्मीद से ज्यादा कर-संग्रह हुआ है, जो कर-दायरा बढ़ाने से और ज्यादा हो सकता है। जीडीपी-संवृद्धि बेहतर होने से आने वाले वर्ष में कर-संग्रह और बेहतर होगा। पिछले दो साल से पेट्रोलियम के सहारे सरकार ने कर-राजस्व के लक्ष्य हासिल जरूर किए, पर इससे मुद्रास्फीति बढ़ी। यह बात अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदायक है। साबित यह भी हुआ है कि सरकारी विभागों की व्यय-क्षमता कमजोर है, तमाम विभागों को आबंटित धनराशि का इस्तेमाल नहीं हो पाया। इससे संवृद्धि प्रभावित हुई। राष्ट्रीय अधोसंरचना पाइपलाइन, 4जी तकनीक, डिजिटल इंडिया मिशन, निर्यात उत्पादों पर शुल्क और कर में रियायत की योजना तथा जल जीवन मिशन में लक्ष्य से कम खर्च हुआ। संभव है कि अंतिम तिमाही में व्यय बढ़े, पर सरकारी विभागों को अपने कार्यक्रमों के लिए आबंटित धनराशि को खर्च न कर पाने की समस्या का समाधान खोजना होगा।