अमेरिकी उद्योगपति एलन मस्क ने घोषणा की है कि उनके स्टार्टअप न्यूरालिंक ने पहली बार एक इंसान के दिमाग में वायरलेस चिप को इम्प्लांट किया है। इस चिप की मदद से वह व्यक्ति केवल मन में सोचकर ही किसी मोबाइल फोन, लैपटॉप या किसी अन्य उपकरण को संचालित कर सकेगा।
एलन मस्क ने इस क्षमता को टेलीपैथी नाम दिया
है। यह उपकरण पहली नज़र में जितना क्रांतिकारी लग रहा है, उतना ही इसका खतरनाक रूप
भी संभव है। एक खतरा मेंटल प्राइवेसी के छिन जाने का भी है।
इस खबर के पहले पिछले साल मई में अमेरिका की सर्वोच्च चिकित्सा संस्था फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने न्यूरालिंक को मानवीय अध्ययन की और उसके चार महीने बाद इस चिप के परीक्षण की अनुमति दी। उसके पहले रायटर्स ने यह खबर भी दी थी कि इस कंपनी की इससे पहले की एप्लीकेशंस को अनुमति नहीं मिल रही है। अनुमति न मिलने के पीछे सुरक्षा जैसे अनेक कारण थे।
पिछले साल अक्तूबर में मीडिया हाउस वायर्ड ने इस
सिलसिले में बंदरों पर इस परीक्षण के दुष्प्रभावों से जुड़ी खबर दी। इसमें बताया
गया था कि इस चिप के कारण बंदरों के दिमाग में सूजन आ गई, उन्हें दौरे पड़ने लगे
और उसका अपने अंगों पर नियंत्रण खत्म होने लगा है।
इसके बाद प्रशासन ने सिक्योरिटी एंड एक्सचेंज
कमीशन से कहा कि न्यूरालिंक और मस्क की जाँच करें, जिन्होंने बंदरों पर ब्रेन
इम्प्लांट के दुष्प्रभावों की जानकारी निवेशकों को नहीं दी है। इसके बाद यह पता
नहीं लगा कि न्यूरालिंक ने क्या सुधार किए और अब मनुष्य के दिमाग में लगा
इम्प्लांट बंदरों के दिमाग में लगाए गए इम्प्लांट से कितना फर्क है।
कंपनी ने रोबोट पर भी यह प्रयोग किया है। इसे प्रिसाइस
रोबोटिकली इम्प्लांटेड ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस (PRIME) का
नाम दिया है। इसमें एक रोबोट R1 के उस स्थान पर जहाँ से ब्रेन शरीर के
अंगों का नियंत्रण करता है N1 नाम का इम्प्लांट लगाया गया। चिप में ‘अल्ट्रा-फाइन और फ्लैक्सिबल थ्रैड्स’ हैं, जो ब्रेन
से मिलने वाले सिग्नलों को वायरलेस तरीके से एक एप में भेजते हैं, जो उसे डिकोड
करता है।
इस चिप को लेकर
विशेषज्ञ अभी आश्वस्त नहीं हैं कि यह कारगर है या नहीं। अलबत्ता इस विषय पर काफी
लंबे समय से रिसर्च चल रही है।
इस डिवाइस की उपयोगिता
के बारे में मस्क का दावा है कि अंततः इसकी मदद से नेत्रहीन देख सकेंगे और जिनके
अंग पैरालाइज़ हो चुके हैं, वे काम कर सकेंगे।
अलबत्ता विशेषज्ञ कहते हैं कि अतीत में मस्क दावे बड़े करते रहे हैं, पर वे
गलत भी साबित होते रहे हैं।
बताया जाता है कि कंपनी के 21 प्रतिशत बंदर
ब्रेन इम्प्लांट के प्रयोगों के कारण मौत के शिकार हो चुके हैं। इन बंदरों को न्यूरालिंक
ने यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के कैलिफोर्निया नेशनल प्राइमेट रिसर्च सेंटर से
प्राप्त किया था। ये प्रयोग 2019-20 में हुए थे।
परीक्षणों में बंदरों या इंसानों को होने वाली
संभावित क्षति के अलावा वैज्ञानिक एक और विषय की ओर इशारा कर रहे हैं। वह है कि व्यक्ति
के विचार भी क्या उसके नियंत्रण के
बाहर हो जाएंगे? यदि ऐसे उपकरण बनने लगेंगे, तो व्यक्ति के
विचार उसके अपने नियंत्रण से बाहर हो जाएंगे।
ब्रेन कंप्यूटर इंटरफेसेस (बीसीआई) तकनीक पर
नज़र रखने वालों ने इस प्रकार की चिंता व्यक्त की है। टेक्सास विश्वविद्यालय के
कुछ शोधकर्ताओं ने ऐसे बीसीआई की रचना की, जो मूलतः मस्तिष्क की तरंगों को टेक्स्ट
में परिवर्तित करता है। उन्हें लगता है कि यह उपकरण उनके विचारों को पढ़ रहा है।
एक वैज्ञानिक ने अपने ऊपर इसका प्रयोग करके
देखा और उसका कहना है कि यह तो मेरे दिमाग के भीतर चल रहे विचारों को पढ़ रहा है। हालांकि
इस उपकरण से उन लोगों के विचारों की अभिव्यक्ति संभव होगी, जो बोल नहीं पाते हैं,
पर खतरा मानसिक सर्विलांस का भी है। खतरा मेंटल प्राइवेसी के छिन जाने का भी है।
सीखना पडेगा आने वाली पीढ़ियों को इन सब के साथ जीने के लिए अपने आप को तैयार करना |
ReplyDeleteमहत्वपूर्ण जानकारी...
ReplyDeleteकोई भी आविष्कार जहाँ उपयोगी है वहीं कुछ खतरे भी लगे ही रहते हैं