गुजरते साल के आखिरी हफ्ते में हम पीछे मुड़कर देखना चाहें, तो पाएंगे कि पिछले तीन वर्षों की तुलना में यह साल अपेक्षाकृत सकारात्मक उपलब्धियों का रहा है। पिछले साल का समापन कोविड-19 के नए अंदेशों के साथ हुआ था, पर उनपर विजय पा ली गई। हालांकि देश के कुछ इलाकों से बीमारी की खबरें फिर से आ रही हैं, पर खतरा ज्यादा बड़ा नहीं है। ज्यादातर बड़ी खबरें आर्थिक पुनर्निर्माण और राजनीतिक उठा-पटक से जुड़ी हैं। साल के अंत में हुए विधानसभा चुनावों, नए संसद भवन और संसदीय-राजनीति, सुप्रीम कोर्ट के कुछ बड़े फैसलों, चंद्रयान-3 और आदित्य एल-1 मिशन जैसी वैज्ञानिक उपलब्धियों के महत्व को रेखांकित किया जाना चाहिए। इस साल हमारे पास निराशा से ज्यादा आशा भरी खबरें हैं।
चलते-चलाते साल के अंत
में आर्थिक मोर्चे से अच्छी खबरें मिली हैं, जो बता रही हैं कि भारतीय जीडीपी अब 7
से 7.5 प्रतिशत सालाना की दर से संवृद्धि की दिशा में बढ़ रही है। दूसरी तरफ हिमाचल
प्रदेश की बाढ़, सिल्यारा सुरंग, बालेश्वर (बालासोर) ट्रेन-दुर्घटना, मणिपुर की हिंसा और उसके दौरान वायरल हुए
शर्मनाक वीडियो से जुड़ी निराशाओं को भी भुलाना नहीं चाहिए। गत 13 दिसंबर को संसद
भवन हमले के सालगिरह पर एक और बड़ी घटना को अंजाम दिया गया। लोकसभा के
शीतकालीन सत्र के दौरान कुछ लोग अंदर कूद गए और उन्होंने एक कैन से पीले रंग का
धुआँ छोड़ा।
हमलावरों पर काबू पा
लिया गया, पर इसके बाद सत्तापक्ष और इंडिया गठबंधन से
जुड़े विरोधी दलों के बीच टकराव शुरू हो गया, जिसकी परिणति 146 सांसदों के निलंबन
के रूप में हुई है। यह परिघटना न केवल शर्मनाक है, बल्कि खतरनाक भी। इसे ऐसे दिन
अंजाम दिया गया, जो 2001 के संसद पर हुए हमले की तारीख है। इस
दृष्टि से यह देश की सर्वोच्च
लोकतांत्रिक संस्था के आँगन सुरक्षा में हुई चूक से ज्यादा राष्ट्रीय-प्रतिष्ठा का
प्रश्न है। इसका सांकेतिक महत्व है। लगता है कि यह गतिरोध नए साल में बजट सत्र में
भी चलेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने 11 दिसंबर को एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि अनुच्छेद 370 एक अस्थायी व्यवस्था थी, जिसे हटाए जाने का फैसला पूरी तरह संवैधानिक है। इस निर्णय ने अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी बनाए जाने के 5 अगस्त, 2019 के फैसले पर कानूनी मुहर लगा दी। कोर्ट ने केंद्र सरकार से यह भी कहा कि जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा जल्द दिया जाना चाहिए और अगले साल सितंबर के महीने तक राज्य में चुनाव कराए जाने चाहिए। अब 2024 के लोकसभा चुनाव के साथ जम्मू-कश्मीर विधानसभा-चुनाव होने की उम्मीद भी जागी है।
उत्तर प्रदेश में गैंगस्टर
से नेता बने अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की सरेआम गोली मारकर हत्या की खबर ने इस
साल काफी सुर्खियां बटोरी। ये हत्याएं मीडिया के सामने लाइव हुई थीं। यह प्रकरण
राजनीति और अपराध के गठजोड़ से जुड़े कुछ गंभीर सवालों को उठाता है। अप्रैल के
महीने में खालिस्तानी समर्थक वारिस पंजाब डे के प्रमुख अमृतपाल को एक महीने तक
लगातार पीछा करने के बाद गिरफ्तार कर लिया गया था। फिलहाल, अमृतपाल जेल
में हैं। हालांकि कनाडा और अमेरिका के साथ खालिस्तानी आंदोलन को लेकर बदमज़गी रही,
पर वैश्विक राजनीति में भारत के हस्तक्षेप की दृष्टि से दिल्ली में हुए जी-20 और
शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलनों की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
खेल के मोर्चे पर क्रिकेट
में भारतीय टीम ने आईसीसी के टेस्ट टीम रैंकिंग में पहला स्थान हासिल करके नया
इतिहास रचा है। भारतीय टीम क्रिकेट के तीनों प्रारूपों में नंबर-1 टीम बन गई, पर
भारत में ही हुई एकदिनी क्रिकेट की विश्वकप प्रतियोगिता के फाइनल में परास्त हो
गई। इस साल चीन के हैंगजाऊ में हुए एशियाई खेलों में कई प्रकार के रिकॉर्ड तोड़ते
हुए भारतीय खिलाड़ियों ने खेल की दुनिया में बड़ा कदम रखा। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि
है पदक तालिका में ‘सौ की मानसिक सीमा-रेखा’ को पार करना। यह उपलब्धि देश के आकार
को देखते हुए पर्याप्त नहीं है, पर पिछले प्रदर्शनों
से इसकी तुलना करें, तो बहुत बड़ी है। यह भारत के विकसित होते
बदलते सामाजिक-आर्थिक स्तर को भी रेखांकित कर रही है। उम्मीद है कि 2024 के पेरिस-ओलिंपिक
में भारतीय खिलाड़ी सफलता के एक और चरण को पार करेंगे। दूसरी तरफ भारतीय कुश्ती
संघ का विवाद आंदोलनों और कानूनी लड़ाइयों से घिरा रहा, जो साल का अंत होते-होते
चल ही रहा है।
राष्ट्रीय राजनीति
लोकसभा चुनाव की ओर बढ़ रही है। उसे देखते हुए सत्तापक्ष और विपक्ष की गतिविधियाँ
क्रमशः बढ़ती जा रही हैं। पिछले साल का अंत राहुल गांधी की ‘भारत-जोड़ो यात्रा’ के दिल्ली
पड़ाव के साथ हुआ था और इस साल उस यात्रा का फलितार्थ था। इस लिहाज से भारत के 26
प्रमुख विरोधी-दलों ने 18 जुलाई को बेंगलुरु में ‘नए गठबंधन इंडिया’ की बुनियाद
रखते हुए 2024 के लोकसभा चुनाव का बिगुल बजा दिया। कर्नाटक और तेलंगाना में
कांग्रेस की विजय को कांग्रेस की उपलब्धियों में गिना जाएगा। राहुल गांधी के
लोकसभा से अयोग्य घोषित होने और उनकी बहाली और संसद के शीत सत्र में 146 सांसदों
के निलंबन ने संसदीय राजनीति से जुड़े कुछ गंभीर सवालों की ओर इशारा किया है। साल
के अंत में पाँच विधानसभाओं के चुनावों ने इंडिया गठबंधन को लेकर कुछ बुनियादी
सवाल भी खड़े किए हैं।
दूसरी तरफ तीन हिंदी भाषी राज्यों में जीत के
बाद बीजेपी ने बड़ी तेजी से लोकसभा चुनाव की रणनीतियों पर काम शुरू कर दिया है।
तीन राज्यों के नए मुख्यमंत्रियों के चयन से यह बात साफ हो गई है कि पार्टी ने
लोकसभा चुनाव ही नहीं, उसके बाद की राजनीति पर भी विचार शुरू कर दिया है। तीनों राज्यों में बीजेपी
की सफलता के पीछे अनेक कारण हैं। मजबूत नेतृत्व, संगठन-क्षमता, संसाधन,
सांस्कृतिक-आधार और कल्याणकारी योजनाएं वगैरह-वगैरह। इनमें ‘शुक्रिया मोदीजी’ को भी जोड़
लीजिए। यानी मुसलमान वोटरों को खींचने के प्रयासों में भी उसे आंशिक सफलता मिलती
नज़र आ रही है।
उसे कितनी सफलता मिलेगी, यह तो मई 2024 में ही
पता लगेगा, पर इतना साफ है कि पार्टी ‘पुरानेपन’ को
भुलाना और ‘नएपन’ को अपनाना
चाहती है। पुराने नेताओं का कोई ‘हैंगओवर’ अब नहीं है। दूसरी तरफ पार्टी को इस बात का भरोसा भी है
कि वह लोकसभा चुनाव आसानी से जीत जाएगी। उसने ‘इंडी’ गठबंधन या ‘इंडिया’ को चुनौती के रूप में लिया ही नहीं।
अर्थव्यवस्था में
मज़बूती के संकेत मिल रहे हैं। शेयर मार्केट तमाम कयासों को झुठलाते हुए उच्च स्तर पर
बना हुआ है। जीडीपी में बढ़ोतरी हो रही है, साथ ही जीएसटी
कलेक्शन भी बढ़ा हुआ है। देश का विदेशी मुद्रा भंडार 15 दिसंबर को
समाप्त हुए सप्ताह में 20 माह के उच्चतम स्तर 616 अरब डॉलर हो गया है। 25 मार्च, 2022 के बाद का यह उच्चतम स्तर है। 30 नवंबर को जारी जीडीपी
के आंकड़ों से पता चलता है कि जुलाई-सितंबर की अवधि में शानदार प्रदर्शन के बाद
भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत तीसरी तिमाही के लिए तैयार है। दूसरी तिमाही
(जुलाई-सितंबर) में वार्षिक आधार पर 7.6 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई, जबकि पहली तिमाही में यह 7.8 प्रतिशत थी।
दैनिक
हिंदी ट्रिब्यून में 28 दिसंबर, 2023 को प्रकाशित
कोई चुनौती कहीं नहीं है | कुछ कमी पेशी रहेगी भी तो बैंगन थाली के लुडक कर उधर से इधर आ ही जाएंगे :)
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