जनरल बिपिन रावत के तीखे तेवरों का संदेश क्या है? मेजर गोगोई की पहल को क्या हम मानवाधिकार
उल्लंघन के दायरे में रखते हैं? क्या जनरल
रावत का कश्मीरी आंदोलनकारियों को हथियार उठाने की चुनौती देना उचित है? उन्होंने क्यों कहा कि कश्मीरी पत्थर की जगह
गोली चलाएं तो बेहतर है? तब हम वो
करेंगे जो करना चाहते हैं। उन्होंने क्यों कहा कि लोगों में सेना का डर खत्म होने
पर देश का विनाश हो जाता है? उनके स्वर राजनेता
जैसे हैं या उनसे सैनिक का गुस्सा टपक रहा है?
कश्मीर केवल राजनीतिक समस्या नहीं है, उसका सामरिक आयाम
भी है। हथियारबंद लोगों का सामना सेना ही करती है और कर रही है। वहाँ के राजनीतिक
हालात सेना ने नहीं बिगाड़े। जनरल रावत को तीन सीनियर अफसरों पर तरजीह देकर
सेनाध्यक्ष बनाया गया था। तब रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने कहा था कि यह नियुक्ति
बहुत सोच समझ कर की गई है। नियुक्ति के परिणाम सामने आ रहे हैं। सेना ने दक्षिण कश्मीर के आतंक पीड़ित
इलाकों में कॉम्बिंग ऑपरेशन चला रखा है। पिछले दो हफ्तों में उसे सफलताएं भी मिली
हैं।
शनिवार को हिज्ब-उल-मुजाहिदीन का कमांडर सब्ज़ार भट मारा
गया। उसे दफन करते वक्त भीड़ हुई, पर वैसी अराजकता नहीं हुई, जैसी पिछले साल जुलाई
में बुरहान वानी की मौत के बाद हुई थी। सेना की कार्रवाई के साथ-साथ प्रशासन ने
इंटरनेट पर पाबंदी लगाकर आतंकी संचार-प्रणाली को कुछ देर के लिए ठप कर दिया। आतंकवादी
समूहों को इंटरनेट के कारण काफी मदद मिल रही थी।
सेना ने अपना रुख अचानक नहीं बदला है। जनरल रावत ने जनवरी
में ही साफ़ कर दिया था कि सेना अब उन अलगाववादियों को भी आतंकी मानेगी जो
पाकिस्तान और इस्लामिक स्टेट के झंडे लहराते हैं। उनके तेवर जब और तीखे हुए जब शोपियां जिले कश्मीरी
मूल के युवा अधिकारी लेफ्टिनेंट उमर फैयाज का आतंकियों ने अपहरण करके उनकी हत्या
कर दी थी।
पिछले दिनों सोशल मीडिया पर वायरल हुआ वह वीडियो लोगों
के जेहन में अभी ताजा होगा, जिसमें कुछ
कश्मीरी लड़के सीआरपी के एक जवान पर हमला कर रहे हैं। सेना के मनोबल को लेकर
बार-बार सवाल उठाए जा रहे हैं। इस बीच मेजर गोगोई ने एक कश्मीरी व्यक्ति का
इस्तेमाल मानव ढाल के रूप में किया तो उसका विरोध होने लगा।
जनरल रावत का कहना है कि युद्ध के नियम तब लागू होते हैं
जब विरोधी पक्ष सामने से लड़ता है। यह घृणित युद्ध है। ऐसे समय में नए तरीकों का
जन्म होता है। ‘‘लोग हम पर पथराव कर
रहे हैं, पेट्रोल बम फेंक रहे
हैं। मेरे साथी मुझसे पूछें कि हम क्या करें तो मैं क्या जवाब दूँ? कि इंतजार करो, और जान दे दो। मैं तिरंगे झंडे में लिपटा ताबूत लेकर आऊंगा
और सम्मान के साथ शव को आपके घर भेज दूँगा। आर्मी चीफ होने के नाते क्या मुझे यह
कहना चाहिए?’’
कश्मीर में चल रहे आंदोलन के बारे में हमें अपनी राय भी बनानी
चाहिए। क्या यह शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक आंदोलन है? या यह ‘छाया-युद्ध’ है, जिसकी योजना सीमा-पार से बनाई जा रही
है? यह देश की समस्या है या राजनीति का अखाड़ा? सेना के पास भी आत्मरक्षा का अधिकार है। मेजर
गोगोई भीड़ पर गोली चलाने का विकल्प भी अपना सकते थे।
भारत
और पाकिस्तान के बीच पिछले तीन दशक से जो तनाव चल रहा है उसे देखते हुए दोनों के
बीच किसी भी वक्त युद्ध छिड़ने का अंदेशा है। पिछले 28 साल से धीमी गति का युद्ध चल
रहा है, जिसका आयाम सामान्य छाया-युद्ध से ज्यादा बड़ा है। जनवरी 2015 से अबतक
भारतीय सेना के ठिकानों पर कई हमले हो चुके हैं। इनमें पठानकोट और उड़ी के हमले
बड़े हैं। साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल के अनुसार 1988 से 21 मई 2017 तक कश्मीरी
हिंसा में 44,243 लोगों की मौत हो चुकी है।
युद्ध
को लेकर कान तब खड़े हुए जब यह खबर आई कि भारतीय वायुसेना प्रमुख बीएस धनोआ ने अपने
के सभी 12,000 अफसरों को एक पत्र लिखा है, जिसमें
उनसे किसी भी वक्त युद्ध के लिए तैयार रहने को कहा गया है। उधर पाकिस्तानी
वायुसेना ने गिलगित बल्तिस्तान सहित कश्मीर के अपने सभी हवाई अड्डों को सक्रिय कर
दिया और हवाई अभ्यास करने लगी है।
पाकिस्तान की सत्ता
में असैनिक सरकार फौज के दबाव में रहती है। वहाँ पिछले कुछ साल से असैनिक सरकार है
जरूर, पर रक्षा और विदेश नीति पर सेना का कब्जा है। पाकिस्तानी धारणा है कि टकराव
से ही पाकिस्तान का वजूद है। भारत से दोस्ती का मतलब है पाकिस्तान की अवधारणा को
अस्वीकार करना। भारत के साथ मिलकर ही रहना था, तो विभाजन क्यों हुआ? फिलहाल उनकी समझ है कि लड़ाई हुई तो अंतरराष्ट्रीय समुदाय को हस्तक्षेप करना होगा,
जिससे कश्मीर में जनमत संग्रह का माहौल बनेगा।
कश्मीर में पिछले
तीन दशक से जो आंदोलन चल रहा है, वह आईएसआई
की नई रणनीति के तहत है। ऑल पार्टीज हुर्रियत कांफ्रेंस की स्थापना 31 जुलाई 1993
में हुई थी। यह ऐसे राजनीतिक दलों का मोर्चा है, जिन्होंने 1987 में हुए विधानसभा
चुनाव नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस के गठबंधन के खिलाफ चुनाव लड़ा था। इस मोर्चे
के समांतर 1994 में पाकिस्तान में युनाइटेड जेहादी कौंसिल की स्थापना हुई थी,
जिसके साथ लश्करे तैयबा और हिज्ब-उल-मुजाहिदीन जैसे संगठन हैं। इस कौंसिल का
संचालन सीधे आईएसआई करती है।
कश्मीर में जेहादी
आंदोलन से जुड़े लोगों में से कुछ का धार्मिक कट्टरपंथी एजेंडा है और कुछ का पाकिस्तानी
राजनीतिक लक्ष्य है। इन दोनों से हमें निपटना होगा। भारतीय सुरक्षा बल हर गाँव का
वैरीफिकेशन कर रहे हैं ताकि जमीनी जानकारी हासिल हो सके। आक्रामक माहौल में यह काम
बेहद मुश्किल है। कई जगह पुलिस के अत्याचारों के कारण भी नौजवानों ने हथियार उठाए
हैं। कश्मीर में शिक्षा से लेकर चिकित्सा तक के काम सेना करती है। इसे न भूलें कि वह
हमारी रक्षा की आखिरी कतार है।
inext में प्रकाशित
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