आर्यन खान के मामले की जाँच एनसीबी के अधिकारी
समीर वानखेड़े के हाथ से लेकर एक दूसरी टीम को देने का फैसला करने से और कुछ हो या
नहीं हो, इसके राजनीतिकरण की शिद्दत कुछ कम होगी। खबर है कि नवाब मलिक के दामाद
समीर खान के केस से भी समीर वानखेड़े को हटा दिया गया है। दिल्ली की टीम अब आर्यन
खान केस,
समीर खान केस,
अरमान
कोहली केस,
इकबाल कासकर केस,
कश्मीर
ड्रग केस और एक अन्य केस की जांच करेगी।
ऐसा क्यों किया गया है, यह स्पष्ट नहीं है, पर
जिस तरह से देश का सारा ध्यान समीर वानखेड़े पर केंद्रित हो गया था, उससे हटने की
जरूरत थी। नशे के बढ़ते कारोबार और नौजवानों के बीच फैलती नशा-संस्कृति पर ध्यान
देने के लिए यह जरूरी है। हो सकता है कि यह मामला भी अंततः एनआईए को सौंपा जाए,
क्योंकि कुछ समय पहले गुजरात के मुंद्रा पोर्ट पर पकड़ी गई तीन हजार किलोग्राम
हेरोइन का मामला एनआईए को सौंपा गया है।
राजनीतिक रंग
सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु के बाद मीडिया
में वह मामला ‘आत्महत्या या कुछ और’ जैसे सवालों में उलझा रहा, पर खतरनाक
तरीके से बढ़ती नशाखोरी की ओर हमारा ध्यान नहीं गया। कुछ समय पहले ‘उड़ता
पंजाब’ ने इस तरफ ध्यान खींचा, पर हम उसे जल्द भूल गए।
इस समय भी हमारा ज्यादातर ध्यान इसलिए है, क्योंकि इसके साथ बॉलीवुड के सितारों का
नाम जुड़ा है। पर मामले को राजनीतिक रंग देने से इसकी दिशा बदल गई है।
गुजरात के मुंद्रा पोर्ट पर पकड़ी गई 21 हजार
करोड़ रुपये की तीन हजार किलोग्राम 'हेरोइन' के मामले को भी हम उस गहराई के साथ देखने की कोशिश नहीं कर रहे हैं,
जिसकी जरूरत है। उसमें भी राजनीतिक-रंग ज्यादा है, आपराधिक विवेचन कम। बहरहाल शुरुआती
जांच में कुछ गिरफ्तारियों के बाद उस मामले की जाँच एनआईए को सौंप दी गई है।
सवाल है कि क्या इन सब घटनाओं की तह पर पहुँचने में कामयाबी मिलेगी? कौन लोग हैं, जो इस कारोबार को चला रहे हैं? 21
हजार करोड़ रुपये की इतनी बड़ी मात्रा में हेरोइन मँगाने वाला कौन है?
सवाल ही सवाल
इस कारोबार के अंतरराष्ट्रीय कनेक्शन हैं। क्या
हम उन्हें पकड़ पाएंगे? नशाखोरी और आतंकवाद के अंतरराष्ट्रीय नेटवर्कों
की कोई साठगाँठ तो नहीं?
हेरोइन की इतनी बड़ी खेप में अफ़ग़ानिस्तान का
कनेक्शन क्या है? नशाखोरी से लड़ने वाली हमारी व्यवस्था क्या
पर्याप्त कुशल है? या वह वसूली करके अपनी जेब भर रही है? फिल्मी सितारों के यहां छापे मारकर सुर्खियां बटोरने वाली 'एनसीबी' के पास 18 महीने से स्थायी डीजी नहीं
है, क्यों नहीं है? क्या अपराधियों
को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है? क्या हमारे कानून अपर्याप्त हैं?
इस मामले को कम से कम तीन अलग-अलग शीर्षकों में
देखा जाना चाहिए। नशे का वैश्विक नेटवर्क, उसके साथ भारतीय नेटवर्कों का सम्पर्क और भारतीय
कानूनी और प्रशासनिक व्यवस्थाओं की अकुशलता। इन सबसे अलग एक चौथे विषय पर भी विचार
करना होगा। हमारी सामाजिक-सांस्कृतिक व्यवस्था में ऐसी क्या खराबी है, जो युवा
वर्ग में नशे की पलायनवादी प्रवृत्ति जन्म ले रही है।