महाराष्ट्र की राजनीति में फिर कुछ होने वाला है। ऐसा अनुमान शिवसेना के मुखपत्र सामना में प्रकाशित सांसद संजय राउत के लेख से निकाला जा रहा है। इसके अलावा शरद पवार की अमित शाह से मुलाकात के बाद ये कयास और बढ़ गए हैं।
मुंबई के पूर्व
पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह की चिट्ठी के बाद शिवसेना और एनसीपी में भितरखाने संग्राम
चल रहा है। उधर संजय राउत ने रविवार को कहा कि अनिल देशमुख महाराष्ट्र के गृहमंत्री
दुर्घटनावश बने थे। जयंत पाटिल और दिलीप वालसे-पाटिल जैसे वरिष्ठ राकांपा नेताओं
के इनकार के बाद उन्हें यह पद मिला।
संजय राउत के इस
बयान के साथ-साथ आज मीडिया में खबरें हैं कि शरद पवार तथा प्रफुल्ल पटेल की
अहमदाबाद में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात हुई है। इस मुलाकात के बारे
में मीडिया कर्मियों ने जब दिल्ली में अमित शाह से सवाल किया तो उन्होंने यह कहकर
विषय को टाल दिया कि कुछ बातें सार्वजनिक नहीं होतीं। गृहमंत्री अमित शाह के इस
जवाब से अटकलों को और बल मिला है। उन्होंने मुलाकात की बात से इनकार नहीं किया है।
ऐसे में अब इस पर सस्पेंस बढ़ गया है कि तीनों नेताओं की मुलाकात में आखिर क्या
बात हुई है? मीटिंग का एजेंडा
क्या था?
नीचे पढ़ें संजय
राऊत का सामना में प्रकाशित आलेख
महाराष्ट्र के चरित्र पर
सवाल… ‘डैमेज कंट्रोल’ की दुर्गति!
मार्च 28,
2021
संजय राऊत / कार्यकारी संपादक , मुंबई
विगत कुछ महीनों में जो कुछ हुआ उसके कारण महाराष्ट्र के चरित्र पर सवाल खड़े किए गए। वाझे नामक सहायक पुलिस निरीक्षक का इतना महत्व कैसे बढ़ गया? यही जांच का विषय है। गृहमंत्री ने वाझे को 100 करोड़ रुपए वसूलने का टार्गेट दिया था, ऐसा आरोप मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह लगा रहे हैं। उन आरोपों का सामना करने के लिए प्रारंभ में कोई भी आगे नहीं आया! सरकार के पास ‘डैमेज कंट्रोल’ की कोई योजना नहीं है, ये एक बार फिर नजर आया।
महाराष्ट्र के
चरित्र पर सवाल खड़े करने वाली घटनाएं बीते दो महीनों में लगातार घट रही हैं। जो
राष्ट्र अपना चरित्र संभालने के प्रति सतर्क नहीं रहता है वो राष्ट्र करीब-करीब
खत्म होने जैसा ही है, ऐसा
स्पष्ट समझ लेना चाहिए। जो राष्ट्र सत्य, नेकीr, सरलता और
न्याय-निष्ठा आदि सद्गुणों का महत्व नहीं जानता और उन गुणों का पालन नहीं करता वो
राष्ट्र जीवित रहने के योग्य भी नहीं होता है। विलासी वृत्ति ही उस राष्ट्र का
भगवान है, जिस राष्ट्र के लोग
सिर्फ खुद के लिए ही जीते हैं अथवा जहां कोई छोटा व्यक्ति खुद को ईश्वर समझता है
उस राष्ट्र के दिन खत्म हो चुके हैं, ऐसा स्पष्ट समझ लेना चाहिए। आज हमारे देश का ही नहीं, बल्कि महाराष्ट्र के संदर्भ में यह सवाल पूछे जा रहे
हैं इस पर दुख होता है।
महाराष्ट्र के एक
मंत्री संजय राठौड़ को नैतिकता के मुद्दे पर इस्तीफा देना पड़ा। वह प्रकरण शांत नहीं
हुआ, तभी मुंबई के पूर्व पुलिस
आयुक्त परमबीर सिंह द्वारा गृहमंत्री अनिल देशमुख पर 100 करोड़ की वसूली का आरोप
लगाने का मामला आज भी खलबली मचा रहा है। परमबीर सिंह के आरोपों के कारण अनिल
देशमुख को गृहमंत्री के पद से जाना होगा व सरकार डगमगाएगी, ऐसा माहौल तैयार हो गया था, जबकि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। इसके बावजूद देशभर में इस
प्रकरण पर चर्चा हुई और महाराष्ट्र की बदनामी हुई!
सरकार गिराने
की जल्दबाजी
महाराष्ट्र के
विपक्ष को ठाकरे सरकार को गिराने की जल्दबाजी लगी है इसलिए फटे हुए गुब्बारे में
हवा भरने का काम वे कर रहे हैं। उनके आरोप प्रारंभ में जोरदार लगते हैं बाद में वे
झूठ सिद्ध होते हैं। परंतु ऐसे आरोपों के कारण सरकार गिरने लगी तो केंद्र की मोदी
सरकार को सबसे पहले जाना होगा। महाराष्ट्र में पिछले सप्ताह क्या हुआ?
मनसुख हिरेन व एंटीलिया
विस्फोटक मामले में राज्य सरकार ने मुंबई पुलिस के आयुक्त परमबीर सिंह का तबादला
कर दिया। श्री सिंह एक महत्वाकांक्षी अधिकारी हैं। होमगार्ड महा संचालक के पद पर
की गई बदली वे सह नहीं सके। उनकी उस अवस्था में तेल डाला गृहमंत्री देशमुख ने।
पुलिस आयुक्त ने गलतियां कीं इसलिए उन्हें जाना पड़ा, ऐसा एक बयान देशमुख द्वारा देते ही परमबीर सिंह ने 100
करोड़ की वसूली का टार्गेट गृहमंत्री ने कैसे दिया था, ऐसा पत्र बम फोड़ दिया। फिर वह टार्गेट किसे दिया,
तो मनसुख हिरेन नामक युवक की हत्या का
आरोप जिस पर है, उस सचिन वाझे
को। सचिन वाझे अब एक रहस्यमय मामला बन गया है। पुलिस आयुक्त, गृहमंत्री, मंत्रिमंडल के प्रमुख लोगों का दुलारा व
विश्वासपात्र रहा वाझे महज एक सहायक पुलिस निरीक्षक था। उसे मुंबई पुलिस का असीमित
अधिकार किसके आदेश पर दिया यह वास्तविक जांच का विषय है। मुंबई पुलिस आयुक्तालय
में बैठकर वाझे वसूली कर रहा था और गृहमंत्री को इस बारे में जानकारी नहीं होगी?
देशमुख को
गृहमंत्री का पद दुर्घटनावश मिल गया। जयंत पाटील, दिलीप वलसे-पाटील ने गृहमंत्री का पद स्वीकार करने
से मना कर दिया था। तब यह पद शरद पवार ने देशमुख को सौंपा। इस पद की एक गरिमा व
रुतबा है। खौफ भी है। आरआर पाटील की गृहमंत्री के रूप में कार्य पद्धति की तुलना
आज भी की जाती है। संदिग्ध व्यक्ति के घेरे में रहकर राज्य के गृहमंत्री पद पर
बैठा कोई भी व्यक्ति काम नहीं कर सकता है। पुलिस विभाग पहले ही बदनाम है। उस पर
ऐसी बातों से संदेह बढ़ता है।
श्री अनिल देशमुख
ने कुछ वरिष्ठ अधिकारियों से बेवजह पंगा लिया। गृहमंत्री को कम-से-कम बोलना चाहिए।
बेवजह कैमरे के सामने जाना और जांच का आदेश
जारी करना अच्छा नहीं है। ‘सौ सुनार की एक लोहार की’ ऐसा बर्ताव गृहमंत्री का होना
चाहिए। पुलिस विभाग का नेतृत्व सिर्फ ‘सैल्यूट’ लेने के लिए नहीं होता है। वह
प्रखर नेतृत्व देने के लिए होता है। प्रखरता ईमानदारी से तैयार होती है, ये भूलने से कैसे चलेगा?
परमबीर सिंह ने जब
आरोप लगाया तब गृह विभाग और सरकार की धज्जियां उड़ी। परंतु महाराष्ट्र सरकार के
बचाव में एक भी महत्वपूर्ण मंत्री तुरंत सामने नहीं आया। चौबीस घंटे गड़बड़ी का
माहौल बना रहा। लोगों को परमबीर का आरोप प्रारंभ में सही लगा इसकी वजह सरकार के
पास ‘डैमेज कंट्रोल’ के लिए कोई व्यवस्था नहीं थी। एक वसूलीबाज़ पुलिस अधिकारी का
बचाव प्रारंभ में विधान मंडल में किया। उसके बाद परमबीर सिंह के आरोपों का उत्तर
देने के लिए कोई तैयार नहीं था और मीडिया पर कुछ समय के लिए विपक्ष ने कब्जा जमा
लिया, यह भयंकर था।
रश्मि शुक्ला व सुबोध
जायसवाल इन बड़े अधिकारियों को पुलिस विभाग में कुछ बदलियों के संदर्भ में लेन-देन
होने की जानकारी मिलते ही इस संदर्भ में दलालों के फोन टैप किए। उससे संबंधित
रिपोर्ट मुख्यमंत्री को दिए। यह फोन टैपिंग और उससे मिली जानकारी गड़बड़ है।
मुख्यमंत्री को अंधेरे में रखकर यह फोन टैपिंग की गई, परंतु इस वार्तालाप में जिन अधिकारियों का नाम आया
उनमें से एक भी अधिकारी का तबादला वार्तालाप में सुने अनुसार हुआ नजर नहीं आता है।
इसलिए तबादलों में भ्रष्टाचार का आरोप झूठा है! इन झूठी जानकारियों की रिपोर्ट
लेकर हमारे विपक्ष के नेता श्री फडणवीस दिल्ली आए। केंद्रीय गृह-सचिव से मिले व
सीबीआई जांच की मांग की यह हास्यास्पद मामला है।
परमबीर सिंह
द्वारा मुख्यमंत्री को लिखे गए पत्र ने खलबली मचा दी, परंतु उन आरोपों की हवा अब निकल गई है। गुजरात काडर
के आईपीएस अधिकारी संजीव भट ने इससे भी भयंकर पत्र गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री
को लिखा था। उत्तर प्रदेश के नोएडा के पुलिस अधीक्षक वैभव कृष्ण ने भी योगी
आदित्यनाथ को पत्र लिखकर उत्तर प्रदेश के ‘वसूली कांड’ की जानकारी दी थी। उस राज्य
के सात बड़े आईपीएस अधिकारी इस वसूली के रैकेट में किस तरह से शामिल हैं, यह सामने लाया। उन पत्रों को कचरे की टोकरी
में डाल दिया गया और भट तथा वैभव कृष्ण के खिलाफ सख्त कार्रवाई की गई। यह हमारे
विपक्ष के नेता को समझ लेना चाहिए। महाराष्ट्र की घटनाओं पर सबसे ज्यादा चर्चा
दिल्ली में हुई क्योंकि श्री फडणवीस बार-बार दिल्ली जाकर पत्रकार परिषद ले रहे थे।
इससे केंद्र सरकार महाराष्ट्र पर राष्ट्रपति शासन लगानेवाली है, ऐसा माहौल दिल्ली की मीडिया ने तैयार किया,
जो कि पूरी तरह से गलत साबित हुआ।
विपक्ष के नेता बार-बार दिल्ली जाकर क्या करते हैं, यह सवाल है। फडणवीस दिल्ली नहीं गए होते तो प्रकरण
की गरमी बरकरार रही होती।
राज्यपाल की
भूमिका
महाराष्ट्र के
राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने इस पूरे दौर में निश्चित तौर पर क्या किया? राज्यपाल आज ठाकरे सरकार जाए इसके लिए
राजभवन के समुद्र में बैठकर ईश्वर का अभिषेक कर रहे हैं। एंटीलिया व परमबीर सिंह
लेटर प्रकरण के कारण तो यह सरकार जाएगी ही, ऐसी उम्मीद वे लगाए बैठे थे। उस पर भी पानी फिर गया।
एक बार फिर महाराष्ट्र के भाजपाई नेता आए दिन राज्यपाल से मिल रहे हैं। सरकार की
बर्खास्तगी की मांग कर रहे हैं, इससे राजभवन की प्रतिष्ठा भी कलंकित हुई। राज्यपाल को जिन बारह विधायकों को
मनोनीत करना है उनकी सूची सरकार ने राज्यपाल को भेजी है, इसे छह महीने हो गए हैं। परंतु राज्यपाल कोश्यारी
ठाकरे सरकार के जाने का इंतजार कर रहे हैं यह संविधान का उल्लंघन है। अनिल देशमुख,
वाझे, परमबीर सिंह के पत्र के घालमेल में सरकार का पांव
निश्चित तौर पर फंसा। वह दोबारा न फंसे। अधिकारियों ने सरकार को मुश्किल में डाला।
वाझे नामक एक सामान्य पुलिस अधिकारी, रश्मि शुक्ला नामक वरिष्ठ आईपीएस। परमबीर सिंह उनसे भी वरिष्ठ। अधिकारियों पर
निर्भर रहने का परिणाम राज्य सरकार भुगत रही है। अपने ही पसंदीदा अधिकारियों की
नियुक्ति की प्रथा नए से शुरू हुई। ये पसंदीदा अधिकारी ही डुबने की वजह बने!
सरकार को क्या
करना चाहिए ये कहने के लिए यह प्रपंच नहीं है। सरकार फिसलन भरे छोर से फिसल रही है
और किस्मत से बच रही है। इस पूरे खेल में महाराष्ट्र को निश्चित तौर पर क्या मिला?
कम-से-कम
महाराष्ट्र के चरित्र पर तो सवाल खड़े न हों!
अच्छी जानकारी।
ReplyDeleteरंग भरी होली की शुभकामनाएँ।