भारत सरकार ने मिड-लेवल पर सरकार में विशेषज्ञों को शामिल करने की पार्श्व-प्रवेश योजना (लेटरल एंट्री) से फौरन पल्ला झाड़ लिया है, पर यह बात अनुत्तरित छोड़ दी है कि क्यों तो इस भर्ती का विज्ञापन दिया गया और उतनी ही तेजी से क्यों उसे वापस ले लिया गया? केंद्रीय लोकसेवा आयोग (यूपीएससी) ने मिड-लेवल पर 45 विशेषज्ञों की सीधी भर्ती के लिए 17 अगस्त को विज्ञापन निकाला था, जिसे तीसरे ही दिन वापस ले लिया गया। विज्ञापन के अनुसार 24 केंद्रीय मंत्रालयों में संयुक्त सचिव, डायरेक्टर और उप सचिव के पदों पर 45 नियुक्तियाँ होनी थीं।
इन 45 पदों में संयुक्त सचिवों के दस पद वित्त
मंत्रालय के अधीन डिजिटल अर्थव्यवस्था, फिनटेक, साइबर सुरक्षा और निवेश और गृह
मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) जैसे मामलों से
जुड़े थे, जिनमें तकनीकी विशेषज्ञता की जरूरत होती है। इन पदों को सिंगल काडर पद
कहा गया था, जिनमें आरक्षण की व्यवस्था नहीं थी।
सरकार का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा सामाजिक न्याय के पक्षधर रहे हैं, पर व्यावहारिक सच यह है कि जैसे ‘दूध का जला, छाछ भी फूँककर पीता है’ वैसे ही लोकसभा चुनाव में धोखा खाने के बाद भारतीय जनता पार्टी कोई राजनीतिक जोखिम मोल नहीं लेगी। पर विज्ञापन जारी करते वक्त सरकार ने इस खतरे पर विचार नहीं किया होगा। लेटरल एंट्री का विरोध केवल कांग्रेस ने ही नहीं किया है, एलजेपी जैसे एनडीए के सहयोगी दल ने भी किया। अभी तो यह तीसरा दिन ही था। देखते ही देखते विरोधी-स्वरों के ऊँचे होते जाने का अंदेशा था।