पहले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने और फिर सेना प्रमुख जनरल क़मर जावेद बाजवा ने कहा है, कि भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में सुधार होना चाहिए। प्रधानमंत्री के साथ जनरल बाजवा के बयान का आना भी बड़ा संदेश दे रहा है।
पिछले बुधवार को
इमरान खान ने पाकिस्तान के थिंकटैंक नेशनल सिक्योरिटी डिवीजन के दो दिन के
इस्लामाबाद सिक्योरिटी डायलॉग का उद्घाटन करते हुए कहा कि हम भारत के साथ रिश्तों
को सुधारने की कोशिश कर रहे हैं, पर भारत को इसमें पहल करनी चाहिए। पर
उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि उनका आशय क्या है।
इसी कार्यक्रम में
बाद में जनरल बाजवा बोले थे। इसमें उन्होंने कहा, ''जब तक कश्मीर मुद्दा हल नहीं हो जाता तब तक
उपमहाद्वीप में शांति का सपना पूरा नहीं होगा। अब अतीत को भुला कर आगे
बढ़ने का समय आ गया है।" पाकिस्तान की तरफ़ से हाल ही में सीमा पर युद्ध
विराम समझौता किया गया है। जिसके बाद सेना प्रमुख जनरल जावेद बाजवा की भारत से
बातचीत की पेशकश सामने आई है। उनकी इस पेशकश की सकारात्मक बात यह है कि इसमें
कश्मीर से अनुच्छेद 370 की वापसी और इसी किस्म के विवादास्पद विषयों के नहीं उठाया
गया है।
इस सिलसिले में एक और रोचक खबर यह है कि क़मर जावेद बाजवा ने अपनी सेना के जवानों को भारतीय लोकतंत्र की सफलता पर आधारित किताब पढ़ने की सलाह दी है। उन्होंने कहा कि यह जानने की ज़रूरत है कि भारत ने किस तरह से राजनीति को अपनी सेना को अलग रखा है।
जानकारी के
मुताबिक पाक सेना प्रमुख ने ये भाषण पिछले साल दिसंबर के आख़िरी हफ्ते में दिया।
सेनाध्यक्ष के तौर पर यह उनका पहला भाषण था। द नेशन अख़बार ने उनके इस भाषण को
‘दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति’ नाम दिया है। अखबार के अनुसार, ये भाषण बहुत ही संतुलित तरीके से दिया गया और
सेनाध्यक्ष ने अपनी बात बहुत साफ-साफ तरीके से अपने अफसरों के सामने रखी थी। बाजवा
ने कहा कि असैनिक नेतृत्व और सैनिक नेतृत्व के बीच प्रतियोगिता की छवि देश के लिए
अच्छा नहीं है।
पाकिस्तान के
पूर्व केंद्रीय मंत्री मोइनुद्दीन हैदर ने कहा है, कि सेनाध्यक्ष से पहले, प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने भी कहा था कि चल रहे
तनाव को कम किया जाना चाहिए ताकि शांति के कुछ पल मिल सकें। उन्होंने कहा कि 'भारत एक बड़ा देश है और इस प्रस्ताव पर
सकारात्मक प्रतिक्रिया देना उसकी ज़िम्मेदारी है। कश्मीर एक महत्वपूर्ण मुद्दा है,
जिसके कारण स्थिति बिगड़ जाती है।
इससे पहले भी भारतीय जनता पार्टी की सरकार से इस पर बात हुई थी। कांग्रेस की
मनमोहन सिंह सरकार ने भी इस सिलसिले को जारी रखा था। यह एक सच्ची पेशकश है कि
पाकिस्तान युद्ध के पक्ष में नहीं है, वह बातचीत चाहता है।'
रक्षा विश्लेषक
डॉक्टर आयशा सिद्दीक़ा का कहना है, कि सेना प्रमुख की पेशकश के पीछे आर्थिक कारक है। अगर शांति बहाली की
प्रक्रिया शुरू नहीं होती है और स्थिरता बहाल नहीं हुई, तो हम सड़क पर आ जाएंगे। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान
ने इंडो-पैसिफिक रणनीति को गंभीरता से नहीं लिया। अमेरिका का पेपर प्रकाशित भी हो
गया, लेकिन उस पर कोई कार्रवाई
नहीं की गई। इस योजना में नेपाल, श्रीलंका, भूटान और भारत
शामिल हैं, हमारा कोई उल्लेख
नहीं है, जबकि पाकिस्तान चीन के पक्ष में है, जिससे हमें पहले भी फायदा नहीं हुआ है।
पाकिस्तानी अखबार
डॉन ने अपने संपादकीय
में कहा है कि इस पहल की शुरुआत पिछले महीने हुई थी, जब दोनों देशों के डीजीएमओ ने
नियंत्रण रेखा पर गोलाबारी बंद करने का फैसला किया था।
No comments:
Post a Comment