मुम्बई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह के पत्र ने केवल महाराष्ट्र की ही नहीं, सारे देश की राजनीति में खलबली मचा दी है। देखना यह है कि इस मामले के तार कहाँ तक जाते हैं, क्योंकि राजनीति और पुलिस का यह मेल केवल महाराष्ट्र तक सीमित नहीं है। कहा जा रहा है कि महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख को हटा दिया जाएगा। इस तरह से महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (एमवीए) की सरकार बची रहेगी और धीरे-धीरे लोग इस मामले को भूल जाएंगे। पर क्या ऐसा ही होगा? इस मामले के राजनीतिक निहितार्थ गम्भीर होने वाले हैं और कोई आश्चर्य नहीं कि राज्य के सत्ता समीकरण बदलें। संजय राउत ने एमवीए के सहयोगी दलों से कहा है कि वे आत्ममंथन करें। इस बीच इस मामले से जुड़े मनसुख हिरेन की मौत से जुड़े मामले को केंद्रीय गृम मंत्रालय ने एनआईए को सौंपने की घोषणा की ही थी कि मुम्बई पुलिस के एंटी टेररिज्म स्क्वाड (एटीएस) ने कहा कि इस मामले की हमने जाँच पूरी कर ली है। घूम-फिरकर यह मामला राजनीति का विषय बन गया है।
इस वसूली के छींटे
केवल एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना तक ही सीमित नहीं रहेंगे। इसके सहारे कुछ और
रहस्य भी सामने आ सकते हैं। अलबत्ता इन बातों से इतना स्पष्ट जरूर हो रहा है कि
देश के राजनीतिक दल पुलिस सुधार क्यों नहीं करना चाहते। पिछले कुछ दिनों से मुंबई
पुलिस कई कारणों से मीडिया में छाई हुई है। पहले मुकेश अंबानी के घर के पास विस्फोटक
रखने के आरोप में पुलिस अधिकारी सचिन वझे फँसे। बात बढ़ने पर पुलिस कमिश्नर परमबीर
सिंह को पद से हटा दिया गया। इसपर परमबीर सिंह ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को चिट्ठी
लिखी।
सवाल है कि परमबीर सिंह को यह चिट्ठी लिखने की सलाह किसने दी और क्यों दी? उन्हें जब यह बात पता थी, तब उन्होंने इसकी जानकारी दुनिया को देने में देरी क्यों की? सच्चे पुलिस अधिकारी का कर्तव्य था कि वे ऐसे गृहमंत्री के खिलाफ केस दायर करते। पर क्या भारत में ऐसा कोई पुलिस अफसर हो सकता है? विडंबना है कि हम इस वसूली के तमाम रहस्यों को सच मानते हैं। हो सकता है कि काफी बातें गलत हों, पर वसूली नहीं होती, ऐसा कौन कह सकता है?
सवाल यह भी है कि मुकेश अम्बानी के घर के पास मोटर वाहन से विस्फोट मिलने के पीछे रहस्य क्या है? सचिन वझे इस पूरे प्रकरण में मामूली सा मोहरा नजर आता है। असली ताकत कहीं और है। बेशक वह पुलिस कमिश्नर और शायद गृहमंत्री से भी ऊँची कोई ताकत है। यहाँ यह साफ कर देने की जरूरत है कि कोई भी राजनीतिक दल दूध का धुला नहीं है।
इस वक्त आरोप
सीधे-सीधे गृहमंत्री अनिल देशमुख पर हैं जो एनसीपी से आते हैं। कांग्रेस देशमुख का
इस्तीफा मांग रही है, शिवसेना
के संजय राउत कह रहे हैं कि 'सरकार
में शामिल सभी दलों को आत्म परीक्षण करने की जरूरत है।' जाहिर है एमवीए में भी कहीं कुछ गड़बड़ है।
मुंबई पुलिस के 'एनकाउंटर स्पेशलिस्ट' सचिन वझे पर मुकेश अंबानी के घर के पास विस्फोटक भरी
गाड़ी रखने का आरोप है। एनआईए इसकी जांच कर रही है। ऊपर से मनसुख हिरेन की मौत को लेकर भी वझे पर
शिकंजा कस रहा है। सन 2007 में
पुलिस फोर्स छोड़ने के बाद वझे शिवसेना में शामिल हो गए थे। जब उनका अंबानी के
मामले में नाम आया तो मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कहा, वझे का शिवसेना से कोई नाता
नहीं है। तब फिर वझे के पीछे कौन है? महाराष्ट्र सरकार ने जिस
तरह पुलिस से निलंबित वझे को नौकरी पर बहाल किया और फिर उन्हें एक के बाद एक,
वीआईपी केस सौंपे, उससे कई सवाल खड़े
हुए हैं। इसमें केवल एनसीपी के अनिल देशमुख की ही भूमिका नहीं है।
सबसे बड़ी रहस्य
परमबीर सिंह के पत्र को लेकर है। उन्होंने उद्धव ठाकरे को पत्र क्यों लिखा? क्या वे वसूली के
इस तंत्र को उजागर करना चाहते हैं? दूसरा सवाल है कि क्या यह
तंत्र उजागर हो गया है? परमबीर सिंह ने दावा किया है कि गृहमंत्री
ने वझे को बार और हुक्का पार्लरों से प्रतिमाह 100 करोड़ रुपये वसूली का टारगेट दिया था। देशमुख ने
कहा कि यह उन्हें बदनाम करने की साजिश है। उन्होंने मानहानि का मुकदमा करने की
बात तक कही है।
उधर शरद पवार ने उद्धव
ठाकरे को सुझाव दिया है कि पुलिस के पूर्व अधिकारी जूलियो रिबेरो की अध्यक्षता में
एक जाँच
समिति से इसकी जाँच कराई जाए। इस मामले में कांग्रेस का रुख साफ नहीं है।
पार्टी के नेता संजय निरुपम चाहते हैं कि शरद पवार जवाब दें क्योंकि वे ही
महाराष्ट्र सरकार के रचनाकार हैं। कांग्रेस के ही राशिद अल्वी का कहना है कि 'परमबीर सिंह ने कमिश्नर रहते हुए यह खुलासे क्यों
नहीं किए?' सवाल अपनी जगह है,
पर ज्यादा बड़ा सवाल है कि ये बातें सच हैं या गलत?
मामले को लेकर
बीजेपी हमलावर है। केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री अनुराग ठाकुर ने एएनआई से कहा कि 'इसकी गंभीरता से जांच होनी चाहिए।' उन्होंने कहा, मुंबई पुलिस की यह हालत है तो आप महाराष्ट्र राज्य
की कल्पना कर सकते हैं। पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का कहना है कि देशमुख
को पद से हटाते हुए सीएम उद्धव ठाकरे पूरे मामले की निष्पक्ष जांच करवाएं। क्या
सारा मामला अनिल देशमुख पर जाकर रुकता है? इतनी बड़ी वसूली क्या केवल उनके उपभोग के लिए हो रही थी?
शिवसेना के नेता
संजय राउत ने कहा कि 'सरकार के
मंत्री पर इस तरह का आरोप लगना धक्का पहुँचाता है। सरकार में शामिल लोगों को अपने
पैर देखने चाहिए कि वे जमीन पर हैं या नहीं। अब शरद पवार केंद्र में हैं क्योंकि
वही एक तरह से महा विकास अघाड़ी के 'संयोजक' और 'संकटमोचक' हैं।
महाराष्ट्र के
पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने 5 मार्च को महाराष्ट्र विधान सभा में कहा कि
क्राइम इंटेलिजेंस यूनिट (सीआईयू) का अधिकारी, जो इस मामले की जाँच कर रहा है,
हिरेन को पहले से जानता था। फडणवीस ने कहा, मेरे पास इन दोनों की बातचीत का कॉल
डेटा भी है। जिस दिन फडणवीस ने यह बात कही, उसी रोज वझे ने कहा, हिरेन से मेरे
परिचय का कोई मतलब नहीं है।
वझे ने कहा, सबसे
महत्वपूर्ण बात यह है कि उस स्कॉर्पियो
को चला कौन रहा था और फुटेज से यह स्पष्ट नहीं है कि वह एसयूवी से उतर कर उसके
पीछे चल रही इनोवा में किस तरह बैठा। आप उसपर ध्यान दीजिए। बाद में पता लगा कि वझे
को इस महत्वपूर्ण सवाल का जवाब मालूम था।
इस मामले की जाँच
कर रहे एनआईए के सूत्रों के अनुसार उस रात उस इनोवा को वझे खुद चला रहा था और
स्कॉर्पियो को वझे की सीआईयू टीम का ही कोई व्यक्ति चला रहा था। अब एनआईए सीआईयू
के पाँच लोगों से पूछताछ कर रही है।
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